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चिराग तले उजाला.. नीतीश से पीछा छुड़ाने का फॉर्मूला आखिर भाजपा को मिल ही गया

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, मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020 (13:06 IST)
पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक)


एकला चलो रे.. भाजपा ने अपनी पटकथा को इतनी बारीकी से बुना कि बिहार की राजनीति के हीरो के लिए इसमें कोई जगह ही नहीं छोड़ी, नीतीश को एकला चलो रे की यात्रा पर छोड़कर भाजपा अब खुद के मुख्यमंत्री की राह बना रही है

आखिर जो तय था, वही हुआ। लोक जनशक्ति पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान ने इसका ऐलान कर दिया। भाजपा भी यही चाहती थी। जैसा भाजपा के थिंक टैंक ने सोचा वही चिराग ने कर दिया। केंद्र में राजग की सहयोगी बिहार में अलग चुनाव लड़ेगी। अलग लड़ेगी, पर भाजपा के खिलाफ नहीं। सिर्फ नीतीश कुमार की जद यू के खिलाफ। इसके मायने, साफ़ है कि इस चिराग के तले भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री की राह का उजाला ढूंढ लिया।

बिहार में लालूराज के बाद से ही भाजपा अपनी खुद की ताकत की तलाश में है। उसे बार-बार नीतीश के पीछे खड़ा होना पड़ा। कम सीटों के बावजूद नीतीश को नेता मानना पड़ा। खुद का मुख्यमंत्री न होने की कसक भाजपा में है। नीतीश से पीछा छुड़ाने का फॉर्मूला उन्हें चिराग पासवान जैसे युवा चेहरे में दिखा। यानी अघोषित रूप से भाजपा लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान की सहयोगी रहेगी।

नीतीश कुमार के लिए ये चुनाव आखिरी साबित हो सकता है। कुल 243 सीटों वाली विधानसभा है। इसमें नीतीश 122 सीटों पर लड़ेंगे। भाजपा 121 पर मैदान में होगी। यानी बीजेपी को जद यू से एक सीट कम मिली। अब अपने हिस्से की 122 सीटों में से नीतीश कुमार जीतनराम मांझी की पार्टी को कुछ सीटें देंगे। इसी तरह भाजपा मुकेश साहनी की पार्टी को कुछ सीटें देंगी।
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अब बात करें लोक जनशक्ति पार्टी की। पासवान की ये पार्टी कुल 143 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। चिराग ने साफ़ किया कि वे भाजपा के खिलाफ प्रत्याशी खड़े नहीं करेंगे। यानी वे सिर्फ नीतीश कुमार को नुकसान करेंगे। लोजपा सिर्फ 30 सीटों पर मजबूत है। ऐसे में बाकी 143 सीटों पर वो प्रत्याशी कहां से लाएगी। इसका सीधा जवाब है। इन सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी लोजपा के टिकट पर लड़ेंगे।

भाजपा ने बहुत पहले ही मन बना लिया था कि-अबकी बार नीतीश कुमार नहीं। इसकी पटकथा एक साल पहले ही लिख ली गई। चिराग पासवान पिछले एक साल से लगातार नीतीश पर हमले करते रहे। पर भाजपा चुप रही। क्योंकि वो यही चाहती थी। आज हालात ये हैं कि सुसाशन कुमार को लेकर बड़ा विरोध है। राजद समर्थक उन्हें धोखेबाज़ मानते हैं, जद यू का बड़ा खेमा भी भाजपा के साथ जाने के फैसले से नाराज़ है ही।

लोजपा के टिकट पर भाजपा प्रत्याशी
बिहार संभवतः देश का एकमात्र ऐसा राज्य हैं, जहां गठबंधन वाले दलों को सीट के साथ प्रत्याशी भी दिए जाते हैं। लोजपा सिर्फ तीस सीटों पर मजबूत है। बाकी 100 सीटों पर उसे भाजपा ही प्रत्याशी देगी। यानी जिन सीटों पर नीतीश कुमार के साथ भाजपा का गठबंधन है, उन पर भाजपा लोजपा के टिकट पर प्रत्याशी उतारेगी। यानी पूरी 243 सीट पर भाजपा चुनाव लड़ रही है। चिराग पासवान की पार्टी के पोस्टर ही पूरी पटकथा कह रहे हैं । इसकी टैग लाइन है-मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।

नीतीश का राजद का रास्ता भी भाजपा ने किया बंद
नीतीश कुमार अब लालू प्रसाद यादव की राजद से भी गठबंधन नहीं कर पाएंगे। वे तमाम कोशिश करेंगे। पर अब ये सम्भव नहीं होगा। एक तो राजद का बड़ा धड़ा इसके लिए राजी नहीं। पिछले चुनाव में राजद के साथ लड़कर नीतीश ने जो धोखा दिया उससे लालू भी आहत है। दूसरा बड़ा दांव भाजपा ने खेला है। भाजपा ने राजद को मजबूत सीटों पर समर्थन का वादा किया है। पर इस समर्थन की शर्त यही है कि राजद किसी भी कीमत पर नीतीश से गठबंधन नहीं करेगी। यानी नीतीश कुमार के लिए अब कोई दरवाजा खुला नहीं।

नीतीश वैसे भी मजबूरी के साथी
बिहार की जातिवादी राजनीति के चलते भाजपा के विकास वाले मुद्दे भी वहां ठहर नहीं पाए। नीतीश कुमार हमेशा से भाजपा के लिए एक कांटा सत्ता के मजबूरी ही रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाकर भोज रद्द करने की नीतीश नीति को भाजपा कभी भूल नहीं सकी (इस पर फिर कभी विस्तार से)।

ऐसे अपमान के बाद भी नीतीश के साथ खड़े रहना राजनीतिक मजबूरी बताता है। 2014 में बिहार की सभी लोकसभा सीट जीतकर भाजपा को लगा था अब बिहार विधानसभा में वो अकेले सरकार बना लेगी। पर शाति‍र नीतीश ने लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाकर पूरा खेल ही बदल दिया। सरकार नीतीश-लालू की बनी। इस बार भाजपा ने पहले नीतीश के सभी रास्ते बंद किये, अब वे एकला चलो रे की राह पर हैं। और बिहार की राजनीति सिर्फ और सिर्फ गठबंधन पर चलती है, उसमे “एकला चलो रे” का कोई स्थान अभी नहीं है।

इलायची…  भाजपा ने जो नीतीश के साथ चतुराई दिखाई उसे देखकर नीतीश खुद भी मुस्कुरा रहे होंगे। जाहिर है, उन्होंने भी अपने दौर में ऐसे ही किया है। जॉर्ज फर्नांडीज, लालू प्रसाद यादव, जगन्नाथ मिश्रा, जीतन राम मांझी और भाजपा इन सबको भी कभी न कभी नीतीश ने ऐसी ही चतुराई से किनारे किया है। आखिर सेर को सवा सेर मिलता ही है।

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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