भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भव्य स्वागत के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अमेरिका और भारत के रिश्ते 'दुनिया के लिए सबसे ज़रूरी' हैं। बीबीसी के विकास पांडे और सौतिक बिस्वास ने ये समझने की कोशिश की कि मोदी के इस दौरे की क्या अहमियत है और दोनों देशों के बीच रिश्ते कैसे मज़बूत होंगे।
बाइडन ने कहा कि दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश भारत के साथ रिश्ते 'इतिहास में सबसे ज़्यादा मज़बूत हैं, दोनों एक दूसरे के क़रीब आए हैं, और गतिशील हुए हैं।' बाइडन की ये बात अतिश्योक्ति नहीं है। अमेरिकी थिंक टैंक द विलसन सेंटर के माइकल कुगलमैन के मुताबिक, 'इस दौरे से साफ़ हुआ है कि रिश्तों में बदलाव आया है। एक छोटे समय में रिश्तों में गहराई आई है।'
इसके पीछे की मुख्य वजह ये है कि अमेरिका चीन से बिगड़ते रिश्तों को बैलेंस करने के लिए भारत को क़रीब ला रहा है और साथ ही इंडो-पैसिफ़िक इलाके में अपनी पकड़ मज़बूत बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते पिछले कुछ समय में उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं।
2005 में एक ऐतिहासिक परमाणु समझौते के बाद भारत-अमेरिका संबंध अपने वादों पर खरे नहीं उतरे क्योंकि तीन साल बाद भारत ने एक कानून पास किया जिसके कारण रिएक्टरों की खरीद में बाधा आई।
फ्रेंड्स विद बेनिफ़िट: द इंडिया-यूएस स्टोरी की लेखिका सीमा सिरोही कहती हैं, 'इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में रिश्तों में प्रतिबद्धता की कमी होने लगी। पीएम मोदी के कार्यकाल में गर्माहट अधिक दिख रही है। राष्ट्रपति बाइडन ने भी सभी कामों को बेहतर तरीके से करने के निर्देश दिए हैं।'
दोनों देशों के बीच हुए कई समझौते
सिरोही का कहना है कि अमेरिका ने 'मोदी के दौरे को बेहतर और नतीजा देने वाला बनाने के लिए बहुत कोशिश की है।' रक्षा-औद्योगिक सहयोग और टेक्नोलॉजी के मुद्दे शीर्ष पर रहे हैं।
इन बातों पर ध्यान:
जनरल इलेक्ट्रिक और भारत की सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड भारत में लड़ाकू विमानों के लिए ईंजन बनाएंगे। इसका मतलब है 'पहले की तुलना में अमेरिका की जेट ईंजन टेक्नोलॉजी का बेहतर ट्रांसफ़र।'
भारत जनरल एटॉमिक्स से लड़ाकू MQ-9B ख़रीदेगा, ये डील 300 करोड़ डॉलर की है। इसके साथ ही इससे भारत में फैक्ट्री सेटअप करने में मदद मिलेगी। ये ड्रोन भारत में एसेंबल किए जाएंगे। ये पीएम मोदी के 'मेक इन इंडिया' कैंपेन में फ़िट बैठता है। अमेरिका भारत को उसकी ज़रूरत का सिर्फ़ 11 प्रतिशत हथियार देता है। सबसे बड़ा सप्लायर रूस है, जो 45 प्रतिशत देता है। लेकिन अमेरिका की कोशिश है कि वो मुख्य सप्लायर बने।
कुगलमैन कहते हैं कि अमेरिका का त्वरित गोल है 'चीन के मुकाबले के लिए भारत की सैन्य क्षमता बढ़ाना।'
पीएम मोदी भारत को सेमीकंडक्टर का बेस बनाना चाहते हैं। अमेरिका की चिप कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में 80 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश करेगी ताकि सेमीकंडक्टर की एसेंबली और टेस्ट फ़ैसिलिटी भारत में बन सके। इससे हज़ारों नौकरियों के अवसर पैदा होंगे।
सेमीकंडक्टर से समान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी लैम रिसर्च भारत में 6000 इंजीनियर को ट्रेनिंग देगी ताकि इससे जुड़ी वर्कफोर्स तैयार हो। इसके अलावा अप्लाइड मटेरियल्स जो कि सेमीकंडक्टर बनाने की मशीन बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है, वो 40 करोड़ डॉलर का निवेश करेंगी।
सिरोही के मुताबिक, 'ये अब भविष्य के बारे में है। दोनों देश नई और बेहतर तकनीक का इस्तेमाल कर बेहतर भविष्य बनाने की बात कर रहे हैं।'
दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं
पहले राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और फिर जॉर्ज बुश के कार्यकाल में अमेरिका भारत के साथ संबंधों को लेकर गंभीर हुआ और तब से संबंधों में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। भारत की तरफ़ से प्रतिक्रिया कभी बहुत उत्साहित या आगे बढ़कर आने वाली नहीं रही।
इसका कारण था कि दुनिया में भारत की एक अलग जगह थी। जवाहरलाल नेहरू द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति भारत में बसी रही। भारत कभी भी किसी एक पक्ष के साथ खड़ा नहीं दिखना चाहता था, न ही किसी वैश्विक सुपर पावर का जूनियर पार्टनर दिखना चाहता था। पीएम मोदी ने विदेश नीति में उन आदर्शों को नहीं छोड़ा है जिन्हें कुछ लोग 'रणनीतिक परोपकारिता' कहते हैं।
लेकिन पीएम मोदी अब अलग तरह के भारत का नेतृत्व कर रहे हैं, जो आर्थिक और भू-राजनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारत-अमेरिका रिश्तों को खुले दिल से स्वीकारा है। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और फिर डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक अलग रिश्ता बनाया।
लेकिन भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' का त्याग नहीं किया गया। वाशिंगटन चाहता होगा कि भारत रूस पर एक कदम आगे बढ़े और संभवतः चीन पर सार्वजनिक रुख अपनाए।
लेकिन बाइडन प्रशासन निराश नहीं हुआ क्योंकि मोदी बिना रूस का नाम लिए एक बात हमेशा कहते रहे कि 'ये जंग का युग नहीं है।'
पीएम मोदी ने यूक्रेन को मदद देने की ज़रूरत पर हमेशा ज़ोर दिया। नाम उन्होंने चीन का भी नहीं लिया लेकिन एक मुक्त इंडो-पैसेफिक इलाके की वकालत भी की है।
मतभेदों को मिटाने की कोशिश
कुगलमैन कहते हैं, 'दोनों देशों की सेनाएँ मिलकर काम कर रही हैं। दोनों के बीच अब एक समझौता हुआ है कि लड़ाकू जहाज़ों में तेल भराने के लिए वो एक दूसरे की फैसिलिटी का इस्तेमाल कर सकते हैं। दोनों ज्वाइंट एक्सरसाइज़ कर रहे हैं और पहले से ज़्यादा इंटेलीजेंस साझा कर रहे हैं। इसका श्रेय मोदी को जाता है कि वो बिना पूरा अलायंस किए एक ताकतवर देश के करीब आ रहे हैं।'
टैरिफ़ के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच व्यापक क्षेत्र में मतभेद रहे हैं। ख़ासतौर पर ट्रंप के कार्यकाल में व्यापारिक रिश्तों पर असर पड़ा है।
ये समझा जा रहा था कि दोनों देश किसी व्यापारिक समझौते का एलान नहीं करेंगे और ये बातचीत बिना इस दौरे पर असर डाले आगे चलती रहेगी।
लेकिन सभी को हैरान करते हुए दोनों देशों ने एलान किया कि छह अलग अलग व्यापरिक मतभेदों को सुलझाया जाएगा, जिसमें टैरिफ़ का मुद्दा भी शामिल है।
अब अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है। लेकिन जानकारों को लगता है कि अभी भी संभावनाओं की कमी नहीं है। भारत का बढ़ता मिडिल क्लास एक बड़ा बाज़ार है और वो चीन की जगह एक उत्पादन का हब बनना चाहता है।
विश्व की कई कंपनियां और देशों की इसमें दिलचल्पी है क्योंकि वो ग्लोबल सप्लाई को चीन से मुक्त करना चाहते हैं, और पीएम मोदी ने भी कहा है, 'ईवेन स्काई इज़ नॉट द लिमिट।'
अमेरिका में आलोचकों ने मोदी और बीजेपी के कार्यकाल में देश के 'लोकतांत्रिक तौर पर पीछे जाने' की आलोचना की है। पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने 'मुख्य रूप से हिंदू भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक की सुरक्षा' पर ज़ोर दिया है।
सिरोही के मुताबिक़, 'भारत में जो कुछ हो रहा है उससे डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रगतिशील लोग परेशान हैं। यथार्थवादी और मध्यमार्गी सभी चीन के कारण रिश्ते को मज़बूत करने के पक्ष में हैं।'
लेकिन दोनों पक्षों के बीच रिश्ते बेहतर बनाने के लिए एग्रीमेंट हुए हैं।
सिरोही कहती हैं, 'भारत अब एक रणनीतिक साझेदार और मित्र है।'