नवीन सिंह खड़का, पर्यावरण संवाददाता, बीबीसी
हिमालय के क्षेत्रों में तेज बारिश से अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। मूसलाधार बारिश और बेतहाशा निर्माण दो महत्वपूर्ण कारण हैं जिससे हिमालय के इलाकों में प्राकृतिक आपदाएं आती है। लेकिन इलाके में बारिश में असामान्य वृद्धि ने इस इलाके को और ख़तरनाक बना दिया है।
इसी महीने बादल फटने से हुई तेज़ बारिश और भूस्खलन से हिमाचल प्रदेश में कई लोगों की मौत हो गई। कई इमारतें, सड़कें और रेलवे ट्रैक बर्बाद हो चुके हैं। इस तरह के मौसम से पाकिस्तान और नेपाल के कुछ हिस्से भी प्रभावित हुए हैं।
एक नई स्टडी में पाया गया है कि हिमालय सहित दुनिया भर के पहाड़ों में अब ऊंचाई वाली जगहों पर अधिक बारिश हो रही है, जहां अतीत में ज़्यादातर बर्फ़बारी होती थी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बदलाव ने पहाड़ों को और अधिक खतरनाक बना दिया है, क्योंकि बढ़ता तापमान न केवल बारिश का कारण बन रहा है बल्कि बर्फ के पिघलने में भी तेज़ी आ रही है।
बारिश का पानी भी मिट्टी को ढीला कर देता है जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन, चट्टानें गिरना, बाढ़ आने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
'नेचर जर्नल' में जून में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है, "हमारी फ़ाइंडिंग में पता चला है कि काफ़ी ऊंचाई पर, खासकर उत्तरी गोलार्ध के बर्फ वाले क्षेत्रों में बारिश में काफ़ी वृद्धि हुई है और इसके हमें कई सबूत मिले हैं।"
यह अध्ययन 2019 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की एक विशेष रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है, जिसमें कहा गया था कि बर्फबारी में कमी आई है, खासकर पर्वतीय क्षेत्रों पर ऐसा देखा जा रहा है।
जरूरत से ज्यादा बारिश
फ्रांस में राष्ट्रीय मौसम विज्ञान अनुसंधान केंद्र के कार्यकारी निदेशक और विशेष आईपीसीसी रिपोर्ट के लेखकों में से एक सैमुअल मोरिन कहते हैं कि अब अधिक ऊंचाई पर हर मौसम में बारिश हो रही है। ये बारिश ज़रूरत से काफ़ी अधिक है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण ज़ीरो-डिग्री इज़ोटेर्म(वो हिमांक स्तर जिस पर बर्फ़ गिरती है) वह भी बढ़ गया है।
इस अध्ययन में कहा गया है, “परिणामस्वरूप, इन पर्वतीय क्षेत्रों को हॉटस्पॉट के रूप में माना जाता है जो अत्यधिक बारिश की घटनाओं, बाढ़, भूस्खलन और मिट्टी के कटाव के खतरों के प्रति संवेदनशील होते हैं।”
स्टडी के लीड ऑथर मोहम्मद ओम्बाडी ने बीबीसी को बताया कि उत्तरी गोलार्ध के रोकिज और आल्प्स पर्वतीय क्षेत्र की तुलना में हिमालय के क्षेत्र में ख़तरा अधिक है।
उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में ऐसी अतिरिक्ति परिस्थितियां हैं, जिससे यहां भीषण तूफान आते हैं।
सटीक जानकारी की कमी
हिमालय क्षेत्र भारत, भूटान, नेपाल और पाकिस्तान में फैला हुआ है और इस इलाके में बहुत ही कम मौसम स्टेशन हैं जिससे बारिश के बारे सटीक आंकड़े हासिल करना भी मुश्किल है।
यही नहीं, कम ऊंचाई वाले पर्वतीय इलाकों में जो स्टेशन हैं, वो भी बारिश और बर्फबारी में अंतर नहीं कर पाते।
हालांकि, माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप स्थित मौसम स्टेशन ने पहाड़ पर एक जून से 10 अगस्त के बीच 245।5 मिमी वर्षण (बारिश और बर्फ दोनों के लिए इस्तेमाल होना वाला शब्द) दर्ज किया। इसमें से 70 प्रतिशत आंकड़ा बारिश का है।
पिछले साल जून और सितंबर में 32 फ़ीसदी बारिश दर्ज की गई थी, वहीं 2021 में 43 फ़ीसदी और 2020 में 41 फ़ीसदी बारिश दर्ज की गई थी।
नेशनल जियोग्राफिक के एक्सप्लोरर बेकर पेरी और टॉम मैथ्यूज ने बताया, ''हमारा मानना है कि बर्फबारी की तुलना में ज़्यादा बारिश होना हाल की स्थितियां हैं लेकिन हमारे पास लंबे समय का डेटा नहीं है जो इसको पूरी तरह साबित करे।''
क्षेत्रीय मौसम कार्यालय के प्रमुख बिक्रम सिंह ने बताया कि वर्षण में ये बदलाव हिमालयी राज्य उत्तराखंड में स्पष्ट दिख रहा है।
उन्होंने बताया, ''हम निश्चित तौर पर ये कह सकते हैं कि बर्फबारी में कमी आई है और 6,000 मीटर की ऊंचाई से नीचे वाले क्षेत्रों में ऐसा हुआ है। मानसून के दौरान निचले इलाकों में भारी बारिश होती है।''
नदियों का बदलता रूप
कुमाऊं यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर जे एस रावत ने कहा कि बर्फबारी में कमी और बारिश में वृद्धि का मतलब है कि इलाके की नदियों की प्रकृति बदली है।
उन्होंने कहा, ''अब अचानक बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हुई है और नदियां जो कभी ग्लेशियर से पोषित थीं अब उनमें बारिश का पानी आता है। ''
तापमान में वृद्धि ने समस्या को और गंभीर कर दिया है क्योंकि इससे हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे ग्लेशियर के झीलों में पानी भरता है और इससे बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।
वैश्विक औसत दर की तुलना में हिमालय के तीन गुना अधिक गर्म होने की आशंका है, और कई अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि इससे वहां वर्षा में काफी वृद्धि होगी।
'सब कुछ तबाह हो गया'
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के स्थानीय लोगों का कहना है कि मानसून के मौसम में इलाकों में भूस्खलन और बारिश की घटनाओं में उन्होंने वृद्धि देखी है।
उत्तराखंड के चमोली जिले के मायापुर गांव के रहने वाले प्रभाकर भट्टा बताते हैं, ''पहाड़ों पर अधिक बारिश की वजह से मेरा गांव भूस्खलन के ख़तरों का सामना कर रहा था इसलिए इस जगह को खाली कर हमें कहीं और जाना पड़ा।''
14 अगस्त को रात में अचानक से बाढ़ आई और प्रभाकर का दो मंजिला घर मलबे, कीचड़ और पत्थर से दब गया।
प्रभाकर का परिवार अपनी जान इसलिए बचा सका क्योंकि उनसे ऊपर के इलाकों में रहने वाले लोगों ने उन्हें खतरे के बारे में बताया था इसलिए वो रात में जगे हुए थे और जैसे ही अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगी, वो वहां से भाग खड़े हुए।
प्रभाकर का कहना है कि उनके पिता ने जिंदगी भर की कमाई लगाकर घर बनाया था और अब सब कुछ तबाह हो गया।
सर्दी में बर्फबारी की जगह हो रही है बारिश
विशेषज्ञों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में सड़क, सुरंग और जल विद्युत परियोजनाओं जैसे बुनियादी ढांचे के अंधाधुंध विकास से भी यहां प्राकृतिक विपदा आने की घटनाएं बढ़ी हैं।
हिमालय भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है जो हालात को और बदतर बनाता है।
बारिश में वृद्धि का असर सीमा पार भी दिखने लगा है। पाकिस्तान का उत्तरी क्षेत्र जहां हिमालय काराकोरम और हिंदूकुश की पहाड़ियों से मिलता है, वहां अचानक से बाढ़ आने की घटनाएं आम होती जा रही हैं।
इस इलाके के क्षेत्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी के महानिदेशक कमल कमर ने बताया कि पिछले मानसून में गिलगित बाल्टिस्तान के इलाकों में अचानक बाढ़ की 120 घटनाएं आई हैं। अगर इसकी तुलना 10-20 साल पहले से करें तो इसमें काफी बड़ा अंतर आया है।
उन्होंने बताया कि 4,000 मीटर की ऊंचाई पर गर्मी और सर्दी दोनों में बारिश हो रही है, जबकि सर्दी में तो बर्फबारी होनी चाहिए थी। नेपाल का भी हाल कुछ ऐसा ही है। यहां हाइड्रोपावर और पीने वाले पानी के प्लांट, सड़कें और पुल भारी बारिश और मलबे से तबाह हो रहे हैं।
नेपाल के स्वतंत्र पावर प्रोड्यूसर एसोसिएशन ने बताया कि इस मानसून में पूर्वी नेपाल में 30 हाइड्रोपावर प्लांट क्षतिग्रस्त हुए हैं।