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'दुखी हूं लेकिन प्रज्ञा को बद-दुआ नहीं दूंगा...'

-सिन्धुवासिनी

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"लाखों जनम में एक ही ऐसा आदमी पैदा होता है और वो है शहीद श्री हेमंत करकरे।" ये कहना है मुंबई एटीएस के पूर्व प्रमुख हेमंत करकरे की पत्नी के भाई किरन देव का। वही हेमंत करकरे जिनके बारे में इन दिनों साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का विवादित बयान चर्चा में है।
 
हेमंत करकरे अब इस दुनिया में नहीं हैं। साल 2008 में मुंबई में हुए चरमपंथी हमलों में उनकी मौत हो गई थी। हेमंत करकरे के शौर्य और पराक्रम के लिए भारत सरकार ने उन्हें साल 2009 में मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया था। 'अशोक चक्र' शांति काल में दिया जाने वाला भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है।
 
हाल ही में भोपाल से बीजेपी की उम्मीदवार और मालेगांव धमाकों की अभियुक्त प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि 'करकरे ने उन्हें प्रताड़ित किया था और उन्होंने उनके (करकरे के) सर्वनाश का श्राप दिया था, इसलिए आतंकवादियों ने उन्हें मार दिया।'
 
प्रज्ञा ठाकुर के इस बयान की चौतरफ़ा आलोचना हो रही है। हालांकि बाद में बीजेपी ने प्रज्ञा के इस बयान से किनारा कर लिया और इसे उनकी व्यक्तिगत राय बताया। प्रज्ञा ने अपना बयान वापस लेते हुए कहा कि वो ऐसा इसलिए कर रही हैं ताकि 'देश के अंदर और बाहर के दुश्मन' इसका लाभ न उठा सकें।
 
आईपीएस एसोसिएशन ने भी प्रज्ञा के बयान की निंदा और कई राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने भी उनके बयान की निंदा की। लेकिन इन तमाम विवादों और बयानबाजियों को देख-सुनकर हेमंत करकरे के परिवार को क्या महसूस होता है?
 
किरन देव हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे के छोटे भाई हैं। किरन ने बीबीसी से इस बारे में विस्तार से बात की। किरन देव मुंबई में ही रहते हैं और रियल एस्टेट का करोबार करते हैं।
 
उन्होंने कहा, "मैं कविता करकरे का छोटा भाई हूं। मैं उनका सगा भाई हूं। मेरी बहन मुझसे तीन साल बड़ी थीं। बहन के परिवार से मेरे बहुत अच्छे रिश्ते रहे हैं। मैं हेमंत को बहुत क़रीब से जानता हूं। प्रज्ञा ठाकुर के कहने से क्या होता है? जो कुछ भी वो कह रही हैं वो पूरी तरह ग़लत है।"
 
किरन, प्रज्ञा ठाकुर को भारतीय जनता पार्टी से टिकट मिलने पर भी सवाल उठाते हैं। वो कहते हैं, "मैं ख़ुद भी बीजेपी का समर्थक हूं लेकिन प्रज्ञा ठाकुर को टिकट मिलने के बाद मेरे मन में सवाल है कि अगर पार्टी वाक़ई शहीदों का सम्मान करती है तो फिर ऐसे शख़्स को टिकट देने का फ़ैसला क्यों? और बीजेपी क्यों खुलकर प्रज्ञा के बयान का विरोध नहीं कर रही है?"
 
प्रज्ञा ठाकुर के 'श्राप' वाले बयान पर किरन कहते हैं, "पहली बात तो ये कि मैं श्राप जैसी बातों में यक़ीन नहीं करता। कोई भी पढ़ा-लिखा और समझदार व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा। सब जानते हैं कि हेमंत करकरे मुंबई हमलों में शहीद हुए थे। आज उनके तीनों बच्चे अच्छे पदों पर हैं, उन्होंने अच्छी पढ़ाई की है। उनकी दोनों बेटियों की शादी हो गई है और वो अपनी ज़िंदगी में ख़ुश हैं। उनका बेटा भी अच्छी तरह सेटल है। अगर प्रज्ञा ठाकुर का श्राप इतना ही प्रभावी होता तो ये सब कैसे होता?।"
 
किरन अपने जीजा यानी हेमंत करकरे को एक बहादुर, बुद्धिमान और अनुशासनप्रिय पुलिस अधिकारी के तौर पर याद करते हैं। उन्होंने कहा, "हेमंत करकरे ने पुलिस विभाग और एटीएस में काम करते हुए बेहतरीन सर्विस दी है। उन्हें ढेरों मेडल भी मिले हैं। आईजी लेवल पर उनकी तारीफ़ें हुईं हैं। वो रॉ (खुफ़िया एजेंसी) में भी रहे हैं। एकेडमिक करियर में भी वो बहुत इंटेलिजेंट थे..."
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'लाखों में एक : हेमंत करकरे' : किरन देव भावावेश में अपनी बात करते हैं, "उनके जैसा पुलिस ऑफ़िसर हो ही नहीं सकता। सुशिक्षित और शालीन। हम सबको उन पर बहुत गर्व है। लाखों जनम में एक ही ऐसा आदमी पैदा होता है और वो है शहीद श्री हेमंत करकरे। मैं उनके बारे में बस इतना ही कहूंगा।"
 
किरन याद करते हैं कि जब हेमंत और कविता की शादी हुई थी तब वो पुलिस विभाग में नहीं थे। उस वक़्त वो कॉर्पोरेट सेक्टर में नौकरी कर रहे थे। किरन ने बीबीसी से बताया, "जब मेरी बहन और हेमंत की शादी हुई तब वो हिंदुस्तान यूनिलीवर में बहुत अच्छे पद पर थे। शादी के बाद उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में कामयाबी पाई और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) ज्वाइन की।"
 
'शहादत पर फ़ख़्र है लेकिन...' : किरन कहते हैं, "हेमंत के काम को देखकर मेरी बहन हमेशा चिंता में रहती थी, लेकिन वो बहुत बहादुर भी थी। उसने कभी उनके (करकरे के) ऑफ़िस के काम में दखल नहीं दिया।" किरन कहते हैं, "हम सबको हेमंत की शहादत पर फ़ख्र है लेकिन हमारा आदमी तो चला गया। वो जिंदा होते तो हमें ज़्यादा ख़ुशी होती।"
 
प्रज्ञा ठाकुर के बयान से किरन आहत ज़रूर हैं, लेकिन उनके मन में प्रज्ञा के लिए कोई दुर्भावना नहीं है। वो कहते हैं, "इन सबके बावजूद मैं प्रज्ञा को कोई बद-दुआ नहीं दूंगा। उनकी भी अपनी ज़िंदगी है लेकिन उन्हें हेमंत के बारे में ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी…"

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