-हरीश चंद्र केवट (मिर्ज़ापुर से बीबीसी हिन्दी के लिए)
मिर्ज़ापुर शहर विन्ध्याचल में बल खाते हुए निकलती गंगा के दाहिने किनारे पर बसा है। लाल बहादुर शास्त्री सेतु इस शहर को उत्तर से जोड़ता है। ये सेतु मिर्ज़ापुर को पार कर उत्तर दिशा की तरफ़ आने का एकमात्र सड़क मार्ग है। भदोही की तरफ़ से मिर्ज़ापुर शहर में जाने के लिए जैसे ही शास्त्री ब्रिज पर पहुंचते हैं, यहां वाहनों की लंबी क़तार देखने को मिलेगी। मुख्य मार्ग होने की वजह से यहां हमेशा जाम की स्थिति बनी रहती है।
पुल की हालत जर्जर है और मरम्मत के निशान, पुल के किनारे गड्ढे इस बात की तस्दीक करते हैं। पुल पर रात में रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। ओवरटेक करने में कई स्थानीय लोगों ने जान गंवाई है। इन दिनों पुल से ट्रैफिक़ गुज़र रहा है। मरम्मत के बाद ये पुल पिछले महीने ही खुला है। लेकिन मिर्ज़ापुर की लाइफ़लाइन माना जाने वाला ये पुराना पुल अक्सर बंद रहता है।
जब-जब ये पुल बंद होता है, मिर्ज़ापुर के ट्रांसपोर्ट कारोबारियों को भारी नुक़सान होता है और आम लोगों की ज़िंदगी प्रभावित हो जाती है।
इस चुनावी मौसम में मिर्ज़ापुर के कारोबारी पुराने पुल से आवागमन को लेकर होने वाली असुविधा को लेकर ख़ासे नाराज़ नज़र आते हैं।
दरअसल, मिर्ज़ापुर का यह पुल भदोही, जौनपुर और वाराणसी जाने का एकमात्र रास्ता है।
आए दिन मरम्मत के नाम पर पुल पर आवागमन रोक दिया जाता है, इस कारण भदोही, जौनपुर और वाराणसी जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।
ट्रांसपोर्ट व्यवसायी जयशंकर यादव कहते हैं, 'ज़िले के ट्रक व्यवसायी त्रस्त हो चुकें हैं। साल में तीन से चार बार पुल जानबूझकर बंद कर दिया जाता है ताकि मिर्ज़ापुर से बनारस की तरफ़ जाने वाले ज़्यादा से ज़्यादा ट्रक नारायणपुर टोल प्लाजा से होकर गुज़रे और मोटा टोल टैक्स वसूला जा सके। अगर हम पुल पार कर जातें हैं तो इस रास्ते से बनारस तक कोई टोल प्लाज़ा नहीं पड़ता और दूरी भी कम पड़ती है।'
वे कहते हैं, 'माल ढुलाई में जो अतिरिक्त ख़र्चा होता है, हम ट्रक व्यवसायियों को उठाना पड़ता है। हमारे ज़िलें में ही स्थित विश्व प्रसिद्ध मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर को दर्शन करने वाले लाखों की संख्या में दर्शनार्थियों को भी असुविधा का सामना करना पड़ता है।'
कालीन कारीगरों की परेशानी
मिर्ज़ापुर की पहचान देश और बाक़ी दुनिया में अपने कालीन कारोबार से है। यहां की कालीनों पर बारीक काम देखकर लोग हैरान रह जाते हैं।
यहां के कारीगर धारदार छुरे और पंजे की संगत में, बारीक़ से बारीक़ ऊन के धागों से ताने पर हूबहू नक़्शा उतारने में महारत रखते हैं।
एक दौर था, जब यहां हर घर से धागों को काटे जाने और उन्हें बैठाने की ध्वनि सुनाई देती थी। लेकिन अब इस शहर का ये कारोबार भी ठंडा है।
कालीन बनाने वाले ये दावा करते हैं कि अब कारीगरों के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
कारीगरों को मामूली सी मज़दूरी में दिन भर काम करना पड़ता है जबकि कालीन निर्माण में प्रयोग होने वाले धागे से निकलने वाले महीन कणों से कारीगरों को सांस की बीमारी होती है। वे बताते हैं कि कालीन निर्माण में कई प्रक्रियाएं होती हैं।
रंगाई, बुनाई, धुलाई, कटाई, पैकिंग में काम करने वाले मज़दूरों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
कोन ब्लॉक के हुसैनीपुर गांव के कालीन कारीगर सूर्यबली बिंद कहते हैं, 'पहले हम लोग ख़ुद का कालीन बनाकर खुले बाज़ार में अच्छे दाम पर बेचते थे लेकिन सरकारी नियंत्रण न होने के कारण आज इस क्षेत्र में चुनिंदा कंपनियों का एकाधिकार है। जितने भी जो छोटे व्यापारी थे, सब ख़त्म हो गए।'
महंगाई क्या चुनावी मुद्दा है?
महंगाई का असर मिर्ज़ापुर में भी वैसा ही है, जैसा देश के बाक़ी हिस्सों में नज़र आता है।
भरूहना चौराहे पर अपना मैजिक खड़ा कर ग्राहक का इंतज़ार कर रहे अशोक कुमार भूसा के थोक व्यापारी हैं।
अशोक कुमार का परिवार बीजेपी का समर्थक रहा है और वो राशन, किसानों के खाते में सम्मान निधि और बेहतर हुई बिजली व्यवस्था के लिए सरकार की तारीफ़ करते हैं।
लेकिन महंगाई और बेरोज़गारी के सवाल पर उनके सुर बदल जाते हैं। अशोक कुमार कहते हैं, 'वर्तमान सरकार काम कर रहीं है लेकिन महंगाई पर नियंत्रण नहीं कर पा रही हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों की पढ़ाई में बहुत ख़र्चा आ रहा है लेकिन उनके लिए रोज़गार की व्यवस्था नहीं है।
वो कहते हैं, 'मेरी बेटी ने बीएड की डिग्री ले रखी है लेकिन वैकेंसी आ ही नहीं रही है।'
बहुत चाहकर भी अशोक कुमार इन मुद्दों पर सरकार से अपनी नाराज़गी छुपा नहीं पाते हैं।
क्या कह रहे हैं मिर्ज़ापुर के गांवों के लोग?
मिर्ज़ापुर लोकसभा में 5 विधानसभा क्षेत्र, 12 ब्लॉक और 1967 गांव हैं। गंगा की बाएं तरफ़ कोन, मझवा और सीखड़ ब्लॉक है। नौ ब्लॉक गंगा के दाहिने तरफ़ स्थित है। लालगंज, हलिया, छानबे, पहाड़ी, पटेहरा, राजगढ़, जमालपुर ब्लॉक की भूमि पथरीली है, यह पहाड़ी क्षेत्र हैं।
कोन ब्लॉक के रहने वाले ओंकार मौर्या एलआईसी में एजेंट हैं। ओमप्रकाश कहते हैं कि लोगों के पास बचत के लिए पैसे नहीं रह गए हैं। नोटबंदी के पहले उनके पास बहुत लोग बीमा के लिए आते थे, उन्हें अच्छी कमाई हो जाती थी लेकिन इस सरकार के आने के बाद घर चलाना मुश्किल हो रहा है।
ओमप्रकाश मानते हैं कि इस मंहगाई के दौर में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा है। पढ़े-लिखे बच्चे बेरोज़गार घूम रहे हैं। दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं और लोगों के ताने सुन रहे हैं। आत्महत्या तक कर रहें। इनमें उन बच्चों का भला क्या दोष?
किसका दोष है? इस सवाल पर वे कहते हैं, 'सारा दोष इस व्यवस्था का है, सरकार का है।'
वो कहते हैं, 'मैं कोइरी जाति से हूं। मेरा काम खेती का है। मैं जब भी करूंगा तो खेती से ऊपर के ही काम करूंगा, न कि मज़दूरी। मैं क्या कोई भी अपने काम को छोड़ना नहीं चाहता है लेकिन जब उसके काम से पेट ही न भरे तो मजबूरी में दूसरे काम करने पड़ते हैं।'
मझवा विधानसभा के भटौली गांव के लोग गंगा नदी की धारा बदलने से परेशान हैं।
नदी किनारे बने चबूतरे पर बैठे लोग बताते हैं, 'जब गंगा नदी पर पुल नहीं बना था, तब नदी इधर किनारे से बहती थी और उस पार रेत पड़ती थी लेकिन जबसे पुल बना है, गंगा मैया उस पार बहनें लगी हैं। हमलोग नदी के किनारे पर रहते हुए भी प्यासें है। थोड़ी बहुत खेती करते थे, धारा बदलने पर वो भी हाथ से चली गई है।'
वहीं बैठे ब्रह्मा निषाद जो कि नदी में मछली पकड़ने का काम करतें हैं, बताते हैं कि पिछले सालों से मछलियां इतनी कम मिल रहीं है कि किसी प्रकार से जीवन-यापन हो पा रहा है।
निषाद कहते हैं, 'पहले अलग-अलग प्रजाति की बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां मिलतीं थीं लेकिन अब सब ख़त्म हो गई है। हमारे गांव के ज्यादातर मछुआरों ने दूसरा काम शुरू कर दिया है, नौजवान बाहर कमाने चले जाते हैं।'
निषाद पार्टी पर सवाल पूछने पर ब्रह्मा बताते हैं, 'मैं ख़ुद निषाद पार्टी का एक सक्रिय कार्यकर्ता और पदाधिकारी हूं लेकिन पार्टी के मुखिया को अपने परिवार से फुर्सत नहीं। वो बस अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।'
मिर्ज़ापुर के राजनीतिक समीकरण
संसदीय क्षेत्र मिर्ज़ापुर से पिछली लगातार 2 बार से अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल सांसद हैं। अपना दल (एस) बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा है।
2014 में अनुप्रिया पटेल के सांसद बनने से पहले, मिर्ज़ापुर की राजनीति को समझने वाले कम ही लोगों ने अंदाज़ा लगाया होगा कि वो यहां अपनी राजनीतिक जड़ें मज़बूती से जमा लेंगी।
2017 के विधानसभा चुनाव में मड़िहान विधानसभा से अनुप्रिया की पार्टी के राहुल प्रकाश कोल विधायक बने।
2019 के लोकसभा चुनाव में जहां मिर्ज़ापुर से अनुप्रिया पटेल स्वयं सांसद चुनी गईं, वहीं बगल की सोनभद्र सीट से उनकी पार्टी के सिंबल पर पकौड़ी लाल कोल सांसद निर्वाचित हुए।
लोकसभा 2024 के चुनाव में भी एनडीए गठबंधन से ये दोनों सीटें अपना दल के खाते में आई हैं। अनुप्रिया पटेल ,फूलन देवी के बाद दूसरी महिला हैं जो इस सीट पर चुन कर संसद पहुंची हैं।
इस बार इस सीट पर इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी बदल कर सरगर्मी बढ़ा दी है।
समाजवादी पार्टी ने अपनी ही पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र एस बिंद का टिकट काट कर रमेशचंद्र बिंद को दे दिया है। यह पहली बार नहीं है, जब सपा ने मिर्ज़ापुर में अपना प्रत्याशी बदला है।
पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में भी एन मौक़े पर प्रत्याशी बदल दिया था। लेकिन दोनों ही बार में एक बात समान है, यानी दोनों बार के प्रत्याशी भाजपा के सांसद रह चुके हैं।
रमेशचंद बिंद पूर्व में मिर्ज़ापुर की मझवा विधानसभा के लगातार तीन बार के विधायक रह चुके हैं, तब वे बसपा में थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में इनकी पत्नी ने बीएसपी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, जिन्हें कुल 2,17,457 मत मिले थे। इस चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रही थीं।
क्यों कटा राजेन्द्र एस बिंद का टिकट?
यह दूसरी बार है, जब सपा ने राजेंद्र एस बिंद को टिकट देकर काट दिया है। उनकी जगह पर सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद को प्रत्याशी बनाया है।
अपना टिकट कटने पर बीबीसी से बात करते हुए राजेन्द्र एस बिंद कहते हैं कि, 'टिकट देना और काटना हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व का फ़ैसला है। मैं उनके आदेशों का पालन कर रहा हूं। पीडीए गठबंधन को जिताने के लिए जो भी करना पड़ेगा मैं करूंगा।'
टिकट कटने के बाद उनके द्वारा जारी वीडियो के बारे में पूछने पर उस पर सफ़ाई देते हुए बोले कि यह सही है कि रमेशचंद्र बिंद ने मेरे ऊपर दबाव बनाना चाहा था लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। मैं बस अपने नेता अखिलेश यादव के आदेशानुसार काम कर रहा हूं। वे जो फ़ैसला किए होंगे सोच-समझकर ही किए होंगे'।
बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दों पर टिका चुनाव
मिर्ज़ापुर में पिछले 40 सालों से कोई भी स्थानीय प्रत्याशी संसद में नहीं पहुंचा है।
पिछले 40 सालों से बाहरी प्रत्याशी ही मिर्ज़ापुर के संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होते रहें हैं।
इसी को मुद्दा बनाते हुए सपा प्रत्याशी रमेशचंद्र बिंद ने वर्तमान सांसद पर कटाक्ष करते हुए कहा कि, 'जिन्हें मिर्ज़ापुर की भौगोलिक स्थिति का पता नहीं, वो मिर्ज़ापुर का विकास क्या करेंगी?'
इसके अतिरिक्त उनके 10 सालों में स्वास्थ्य राज्यमंत्री और वर्तमान समय में भारी उद्योग इस्पात राज्य मंत्री रहते हुए किए कार्यों पर भी निशाना साधा।
इस पर पलटवार करते हुए एक नुक्कड़ सभा में अनुप्रिया पटेल ने कहा, 'मैं उन्हें खुली चुनौती दे रही हूं। जिसकी नज़र में अनुप्रिया पटेल बाहरी है, उसे मेरी खुली चुनौती है, वो मेरे कामों का मुक़ाबला करके दिखाएं।'
आंतरिक विरोध से जूझ रहे हैं प्रत्याशी
अपना दल (एस) के राष्ट्रीय महासचिव ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है।
इसके पीछे उन्होंने सोनभद्र के सांसद पकौड़ी लाल कोल की ठाकुर और ब्राह्मण बिरादरी के उपर की गई अभद्र टिप्पणी से ख़ासा नाराज़ थे।
वे नहीं चाहते थे कि उनको या उनके परिवार के किसी भी सदस्य को पार्टी टिकट न दे, बावजूद इसके पकौड़ी लाल कोल की बहू और वर्तमान मड़िहान विधानसभा की विधायक रिंकी कोल को प्रत्याशी बनाया गया है।
रिंकी कोल ने अपने पति राहुल प्रकाश कोल के देहांत होने के बाद ख़ाली सीट पर उपचुनाव जीता है।
नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक कार्यकर्ता बताते हैं कि अनुप्रिया पटेल को लेकर स्थानीय नेता नाख़ुश हैं। जिस तरह से उनका राजनीतिक क़द बढ़ रहा है, उससे लोग डरे हुए हैं। उनकी अपनी जाति के लोग भी चाहते हैं कि वे इस बार चुनाव ना जीतें। कुर्मी समाज के स्थानीय नेताओं को अनुप्रिया पटेल के कारण महत्व नहीं मिल रहा है।'
वहीं सपा प्रत्याशी रमेशचंद्र बिंद की ब्राह्मणों के लिए की गई टिप्पणी से ब्राह्मण समाज नाराज़ है। ज़िले में ब्राह्मणों की अच्छी ख़ासी संख्या हैं। समाजवादी पार्टी के ज़िला उपाध्यक्ष स्वामी शरण दुबे और विधानसभा उपाध्यक्ष सुरेन्द्र देव त्रिपाठी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है और कारण बताया कि रमेशचंद्र बिंद ने ब्राह्मणों को अपमानित किया है, ऐसे में पार्टी को उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाना चाहिए था।
भाजपा के पिछड़ा वर्ग मोर्चा के ज़िला अध्यक्ष रामकुमार विश्वकर्मा कहते हैं कि 'सरकार ने पिछड़ी जातियों के लिए बहुत काम किया है।'
वो कहते हैं, 'हम अंत्योदय के सिद्धांत पर काम करने वाले लोग हैं, इस बार भी मिर्ज़ापुर में अनुप्रिया पटेल ही सांसद बनेंगी।'
पिछले 10 सालों में उनके कामों पर किए गए सवाल पर रामकुमार कहते हैं कि, 'सांसद महोदया ने ज़िले में मेडिकल कॉलेज बनवाया है, सड़कें बनवाई है, डगमगपुर में इंडियन आयल का टर्मिनल बन रहा है, पेयजल व्यवस्था की हैं।'
वहीं बसपा कार्यालय पर सन्नाटा सा पसरा है, यहां सिर्फ़ तीन-चार लोग ही दिखाई देते हैं।
कार्यालय प्रभारी मुकुंदलाल केसरी कहते हैं, 'वर्तमान सांसद ने सिर्फ़ ज़िले को लूटने का काम किया है। हर योजना में भ्रष्टाचार किया है। ज़िले के व्यापारी, किसान, नौजवान सभी नाराज़ हैं। बसपा प्रत्याशी मनीष तिवारी मिर्ज़ापुर के स्थानीय हैं और मिर्ज़ापुर के कोने-कोने से वाकिफ़ हैं। 40 साल बाद पार्टी ने स्थानीय प्रत्याशी मैदान में उतारा है।'
केसरी कहते हैं, 'मनीष तिवारी बसपा के पुराने कार्यकर्ता हैं और कई पदों पर रह चुके हैं, उन्हें सर्वसमाज का समर्थन मिल रहा है। पहाड़ी क्षेत्र के लोग रोज़गार की समस्या से जूझ रहे हैं।'
पीने के लिए नहीं मिल रहा पानी
मिर्ज़ापुर के पहाड़ी क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों को रोज़ी-रोटी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है, मड़िहान तहसील से लोग तीस-पैंतीस किलोमीटर दूर गांवों से मज़दूरी करने आए हैं।
यहां मिले मज़दूर बताते हैं, 'हम लोग हर रोज़ जानवरों की तरह डग्गामार वाहनों में भरकर मज़दूरी करने के लिए शहर में आते हैं। ज़रूरी नहीं की हर रोज़ काम मिल ही जाता है। हमारी लेबर मंडी में 200 से ज़्यादा लोग इकट्ठा होते हैं, जिनमें से मुश्किल से ही 100-150 लोगों को काम मिल पाता है।'
श्यामलाल दिहाड़ी मज़दूरी करने हर रोज़ आते हैं। आज उन्हें और उनके कुछ साथियों को काम नहीं मिला है। दोपहर तक इंतज़ार करने के बाद उदास मन से घर जा रहें हैं।
वो कहते है, 'हमारे यहां गर्मियों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि हो जाती है। सरकारी व्यवस्था फेल हो जाती है और मजबूरी में हम लोग नदी नालों में जमा पानी, वो भी एक-एक किलोमीटर दूर जाकर लाते हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, दवाई कराना मुश्किल हो रहा है। कम ही बच्चे हैं जो दसवीं से ज़्यादा पढ़ पाते हैं। सब मज़दूरी करने बाहर दूसरे प्रदेशों में चलें जातें हैं।'
एक और मज़दूर राजेश बताते हैं, 'हमारे गांव में बारिश के दिनों में बहुत परेशानी होती है, यदि किसी भी व्यक्ति को सांप काट लिया तो उसको ज़िला अस्पताल तक लाने में ही मौत हो जाती है। अगर स्थानीय स्वास्थ्य केन्द्र में दवा उपलब्ध रहे तो कई लोगों की ज़िंदगियां बचाई जा सकती हैं। लेकिन इस दिशा में किसी सांसद ने प्रयास नहीं किया है।'
मिर्ज़ापुर में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति
मिर्ज़ापुर में एक मंडलीय अस्पताल है, जिसके बगल में ट्रामा सेंटर भी बना है। यहां से क़रीब तीन किलोमीटर दूर एक मेडिकल कॉलेज भी बनकर तैयार है।
नया बना मेडिकल कॉलेज अभी पूरी तरह से चालू नहीं हो पाया है।
कॉलेज में एडमिशन तो हुए हैं लेकिन न तो ओपीडी की सुविधा है और न ही इमर्जेंसी।
आकस्मिक सुविधा के मामले में मरीज़ों को बनारस या इलाहाबाद रेफ़र कर दिया जाता है।