सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
यूक्रेन पर रूस हमला करेगा तो इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ेगा, यह बात बहुत पहले से ही कही जा रही थी। अब ऐसा होता दिख भी रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें रिकॉर्ड तोड़ रही हैं। ज़ाहिर है आने वाले दिनों में इसका असर भारत में भी होगा।
भारत की मुद्रा रुपया भी इस संकट की चपेट में है। 24 फ़रवरी को रूस ने यूक्रेन में 'विशेष सैन्य अभियान' की घोषण की थी। 13 दिन बाद इस हमले का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता दिख रहा है।
रुपया डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हो रहा है। सात मार्च को ये रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच गया था, जब एक डॉलर की कीमत 77 रुपये से अधिक हो गई थी। रुपए के कमज़ोर या मज़बूत होने का सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है।
रुपए और डॉलर
रुपए और डॉलर के गणित को इस तरह समझा जा सकता है। किसी के पास 67,000 रुपए हैं और किसी के पास 1000 डॉलर। डॉलर का भाव 67 रुपये है तो संख्या में रुपया ज़्यादा होकर भी डॉलर के ही बराबर है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मुख्यतः डॉलर में ही होता है इसलिए किसी भी मुल्क के पास डॉलर का होना बहुत ज़रूरी है। डॉलर की तुलना में किसी देश की राष्ट्रीय मुद्रा कितनी मज़बूत है, इसके कई कारण होते हैं। पहला यह कि विदेशी मुद्रा भंडार कितना बड़ा है। आयात की तुलना में निर्यात कितना है।
जब रुपया कमज़ोर होता है तो डॉलर के लिए ज़्यादा रुपए देने होते हैं। यानी आप विदेश जा रहे हैं और डॉलर की ज़रूरत है तो जो एक डॉलर 67 रुपए देकर मिल जाता था, वह अब 77 रुपए में मिलेगा।
इस वक़्त रुपए के कमज़ोर होने के कारण
दुनिया में तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश - सऊदी अरब, रूस और अमेरिका हैं। दुनिया के तेल का 12 फ़ीसदी रूस में, 12 फ़ीसदी सऊदी अरब में और 16-18 फ़ीसदी उत्पादन अमेरिका में होता है।
अगर इन तीन में से दो बड़े देश युद्ध जैसी परिस्थिति में आमने-सामने होंगे, तो ज़ाहिर है, इससे तेल की सप्लाई विश्व भर में प्रभावित होगी।
भारत 85 फ़ीसदी तेल आयात करता है, जिसमें से ज़्यादातर आयात सऊदी अरब और बाक़ी खाड़ी के देशों से होता है।
दुनिया के ज़्यादातर देश डॉलर में ही चीज़े ख़रीदते और बेचते हैं। इस वजह से डॉलर को वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त है।
अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं कि अब जब भारत को 85 फ़ीसदी तेल आयात करने के लिए ज़्यादा ख़र्च करना पड़ेगा, तो भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ेगा।
दूसरी बात है कि अनिश्चितता के समय में लोग सोना बहुत ख़रीदते हैं। इस समय सोने का आयात भी बहुत बढ़ रहा है। इन दोनों पर भारत ख़र्च ज़्यादा कर रहा है, इस वजह से हम रुपया डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर हो रहा है।
रुपए के कमज़ोर होने का आप पर असर
1. महंगाई बढ़ेगी
आसान भाषा में रुपया के कमज़ोर होने का मतलब है, जितनी भी चीज़ें भारत, बाहर के देशों से ख़रीद रहा है, वे सब महँगी हो जाएंगी।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं, आईफ़ोन, इलेक्ट्रॉनिक्स के दूसरे सामान, ऑटो पार्ट्स, विदेशों में पढ़ाई का ख़र्च ये सब महँगे हो जाएंगे। पेंट बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल होता है। पिछले एक महीने में पेंट के दाम 50 फ़ीसदी बढ़ गए हैं। इसके अलावा लोकल में मिलने वाली चीज़ों पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है।
युद्ध की वजह से तेल के दाम बढ़े हैं, तेल के दाम बढ़ने का सीधा असर पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतों पर पड़ेगा। खाने-पीने के सामान को खेतों से फैक्ट्री तक, फैक्ट्री से दुकानों तक पहुँचाने में वाहनों का इस्तेमाल होता है, जो पेट्रोल डीज़ल से चलती हैं। इस वजह से खाने पीने की सभी चीज़ें महँगी होंगी। यानी आपकी पॉकेट ज़्यादा ख़ाली होगी।
आलोक जोशी ये भी कहते हैं कि कच्चे तेल की बढ़ी हुई क़ीमतों का सीधा असर अब खाने के तेल पर पड़ने लगा है। अब दुनिया के कई देशों में खाने के तेल का इस्तेमाल फ़्यूल की जगह होने लगा है। जैसे भारत में ब्लेडिंग के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल होता है, वैसे ही दुनिया के दूसरे देशों में पाम ऑयल की ब्लेडिंग होती है। इस वजह से खाने के तेल की कीमतें भी बढ़ जाएंगी।
2. निवेश कम होगा
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, महँगाई का असर निवेश पर पड़ता है। अगर चीज़ें महँगी होंगी तो निवेश के लिए लोग कम सोचेंगे। निवेश कम होने का सीधा असर रोज़गार के अवसर से है। अगर लोगों के पास इन्वेस्टमेंट के लिए पैसा कम होगा, तो नौकरियां कम आएंगी और नौकरियां कम होने का मतलब सीधे बेरोज़गारी और देश के विकास दर से है।
3. विकास दर कम होगी
प्रोफ़सर अरुण कुमार के मुताबिक़ विकास दर का सीधा रिश्ता निचले तबके (ग़रीबों) की आमदनी से है। विकास दर कम होने से निचले तबके के लोगों की आमदनी भी कम होगी। असंगठित क्षेत्र पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा। कोरोना महामारी के बाद जिस अर्थव्यवस्था की पटरी पर लौटने की उम्मीद जताई जा रही है, वो एक बार फिर प्रभावित हो सकती है।
क्या रुपया के कमज़ोर होने से कुछ फ़ायदा भी होगा?
प्रोफ़सर अरुण कुमार कहते है, डॉलर के मज़बूत होने का सकारात्मक असर निर्यातकों पर पड़ता है। वो एक उदाहरण से इस बात को समझाते हैं।
यूक्रेन और रूस दुनिया में गेहूं के बड़े निर्यातक देश हैं। दोनों के बीच जंग की स्थिति में भारत के गेहूं के निर्यातकों के लिए ये अच्छी ख़बर हो सकती है। गेहूं के दाम भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर चल रहे हैं। अगर भारत के निर्यातक दूसरे देशों को गेहूं बेचते हैं तो भुगतान डॉलर में होगा। इससे उनको लाभ होगा। लेकिन ये भी हो सकता है कि भारतीय बाज़ार में भी कीमतें बढ़ जाएं, इससे भारत में गेहूं के दाम बढ़ जाएंगे।
आम लोगों को रुपया के कमज़ोर होने का असर ज़्यादा ना पता चले इसके लिए प्रोफ़ेसर अरुण कुमार उपाए भी सुझाते हैं। वो कहते हैं कि सरकार लोगों के हाथ में ज़्यादा पैसा दे और जनता की 'परचेजिंग पावर' यानी ख़रीदने की क्षमता बढ़ाए। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति और ख़राब नहीं हो पाएगी।