भरत शर्मा, बीबीसी संवाददाता
दिल्ली में पराली का धुआं छाया था और कोटला मैदान में खेलने उतरी भारतीय क्रिकेट टीम के प्रदर्शन में बेपरवाही और सुस्ती। नतीजा पहले टी-20 मैच में बांग्लादेश से हार लेकिन इन दिनों मैदान के बाहर भारतीय क्रिकेट टीम के इर्द-गिर्द इतनी दिलचस्प चीज़ें चल रही हैं कि इस मैच को लेकर कोई ख़ास उत्साह नज़र नहीं आया।
पहले पूर्व दिग्गज विकेटकीपर बल्लेबाज़ फ़ारुख़ इंजीनियर और अब युवराज सिंह ने भारतीय क्रिकेट टीम चुनने वाले लोगों को लेकर इतने गंभीर और बड़े बयान दे दिए है कि ये मामला विवाद में बदला तो हैरानी नहीं होगी।
भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेलने वाले 82 वर्षीय फ़ारुख़ इंजीनियर ने दावा किया था कि उन्होंने चयन समिति के पांच सदस्यों में से एक को क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली की पत्नी अनुष्का शर्मा को चाय पकड़ाते देखा था।
इस पर चयन समिति के अध्यक्ष एम एस के प्रसाद ने कहा था, 'जो झूठे और निराधार आरोपों के दम पर चयनकर्ता और भारतीय कप्तान की पत्नी का अपमान कर घटिया बातों में शामिल हैं, उनसे मज़ा लेने की कोशिश कर रहे हैं, उससे मुझे काफ़ी दु:ख पहुंचा है।'
इंजीनियर के इस बयान पर अनुष्का शर्मा ने भी गुस्सा जताया था। उन्होंने लिखा था, 'अगर आपको चयनकर्ताओं और उनकी योग्यता पर ही कोई टिप्पणी करनी है तो शौक से करें, पर अपने फ़र्ज़ी दावों में दम भरने के लिए और सनसनी पैदा करने के लिए मेरे नाम का इस्तेमाल ना करें।'
ये मामला अभी पूरी तरह दबा भी नहीं था कि भारतीय क्रिकेट टीम के धमाकेदार बल्लेबाज़ों में से एक रहे युवराज सिंह ने चयन समिति के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है।
युवराज सिंह ने कहा, 'हमें निश्चित तौर पर बेहतर चयनकर्ता चाहिए। चयनकर्ताओं का काम आसान नहीं होता। जब कभी वो 15 खिलाड़ियों को चुनते हैं, तो ये बात भी होती है कि बाकी 15 खिलाड़ियों का क्या होगा। ये मुश्किल काम है, लेकिन जहां तक आधुनिक क्रिकेट की बात है, तो मुझे नहीं लगता कि ये पूरी तरह दुरुस्त हैं।'
उन्होंने कहा कि वो खिलाड़ियों को बचाने और सकारात्मक रुख़ दिखाने के पक्ष में हैं। युवराज ने कहा, 'अपने खिलाड़ियों और टीम के बारे में नकारात्मक बातें बोलने से आपकी छवि को भी नुकसान पहुंचता है। जब हालात ठीक ना हों और आप खिलाड़ियों को प्रेरित करें तो आपके करेक्टर का पता चलता है। बुरे दौर में तो सब बुरा ही बोलते हैं। हमें बेहतर चयनकर्ता चाहिए।'
पहले भी नाराज़ हुए थे युवराज
हरफ़नमौला खिलाड़ी की चयरकर्तानों से ये पहली भिड़ंत नहीं है। उन्होंने पहले भी आरोप लगाया था कि चयनकर्ता ने उन्हें यो-यो टेस्ट पास करने के लिए कहा था लेकिन पास करने के बावजूद उन्हें टीम में नहीं चुना गया।
ये सारा बवाल तब हो रहा है जब भारतीय क्रिकेट टीम को नई दिशा देने वाले कप्तान कहे जाने वाले सौरव गांगुली ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की कमान संभाली है।
हाल में ख़बर आई थी कि सौरव गांगुली एम एस के प्रसाद की अगुवाई वाली चयन समिति में तब्दीली कर सकते हैं। ऐसा अभी तक हुआ नहीं है लेकिन कभी भी हो सकता है।
प्रसाद के अलावा इस चयन समिति में गगन खोड़ा, जतिन परांजपे, सरनदीप सिंह और देवांग गांधी हैं। ये करीब-करीब साफ़ दिख रहा है कि ये चयन समिति अपना कार्यकाल पूरा नहीं करेगी। पुराने संविधान के हिसाब से समिति का कार्यकाल चार साल है, जबकि संशोधित संविधान के मुताबिक ये पांच साल हो सकता है।
चयनकर्ताओं का अपना अनुभव कितना?
मौजूदा चयन समिति को लेकर ये भी कहा जाता रहा है कि ये मज़बूत नहीं है और कोहली-रवि शास्त्री की जोड़ी के आगे उसकी एक नहीं चलती। हालांकि, दोनों पक्ष इस आरोप से इनकार करते रहे हैं। कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि चयन समिति में शामिल लोगों के पास पर्याप्त अनुभव नहीं है।
चयन की चतुराई में ख़ुद क्रिकेट खेलना कितना अहम है, ये बहस अलग है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अतीत की चयन समितियों की तुलना में मौजूदा चयनकर्ताओं का खेलने का अनुभव कम दिखता है।
सेलेक्शन कमेटी की नुमाइंदगी करने वाले एम एस के प्रसाद के पास छह टेस्ट और 17 वनडे, गगन खोड़ा के पास दो वनडे, सरनदीप सिंह के पास तीन टेस्ट और पांच वनडे, जतिन परांजपे के पास चार वनडे और देवांग गांधी के पास चार टेस्ट और तीन वनडे मैच खेलने का अनुभव है। जोड़ लिया जाए तो पूरी चयन समिति का संयुक्त अनुभव कुल 13 टेस्ट मैच और 31 वनडे मैच का है।
लेकिन क्या ये कहा जा सकता है कि जो कम मैच खेला हो वो अच्छी टीम नहीं चुन सकता? इस पर राय अलग-अलग हो सकती है, लेकिन जानकारों का साफ़ कहना है कि आधुनिक क्रिकेट की जानकारी और कोहली-शास्त्री के सामने अपने फ़ैसलों पर राज़ी करने के लिए एक क़द ज़रूर चाहिए।
मुश्किल फ़ैसले करने में नाकाम?
वरिष्ठ खेल पत्रकार धर्मेंद्र पंत ने कहा, 'अगर टीम को विदेशी पिचों पर खेलना और कामयाब होना है तो ऐसे दिमाग़ों की ज़रूरत पड़नी तय है जो मुश्किल फ़ैसले कर सकें। हमारे पास जो सेलेक्शन कमेटी है, उस पर कड़े फ़ैसले ना लेने के इल्ज़ाम लग रहे हैं।'
पंत के मुताबिक चयन समिति में शामिल लोगों का क़द सामने बैठे कप्तान और कोच के बराबर होना चाहिए या उससे बहुत नीचे नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा, 'लेकिन मौजूदा सेलेक्शन कमेटी को देखकर साफ़ दिखता है कि अगर कोहली कुछ कह देंगे तो क्या इनमें से कोई भी उस बात को काट सकता है?'
नए खिलाड़ियों को ज़्यादा मौके देने से जुड़े चयन समिति के फ़ैसलों की तारीफ़ हुई है तो कुछ निर्णय सवालों के घेरे में भी हैं। पंत ने कहा, 'के एल राहुल को इतने मौक़े क्यों दिए जा रहे हैं? अगर सवाल ज़्यादा मौके देने का है, तो सिर्फ़ एक ही खिलाड़ी को इतने मौके क्यों?'
उनका कहना है कि दिलीप वेंगसरकर, मोहिंदर अमरनाथ, किरण मोरे, क्रिस श्रीकांत या संदीप पाटिल जैसे नामों के बाद प्रसाद और दूसरे चयनकर्ताओं के सामने कोहली-शास्त्री ख़ासे भारी नज़र आते हैं लेकिन अगर टीम सिर्फ़ इन दोनों को चलानी है तो सेलेक्शन कमेटी का क्या काम है?
क्या गांगुली चयनकर्ता बदलेंगे?
इस बात की संभावना जताई जा रही है कि सौरव गांगुली जल्द ही इस चयन समिति से जुड़ा कोई गंभीर फ़ैसला कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'मेरे हिसाब से सौरव गांगुली किसी बड़े खिलाड़ी को लेकर आना चाहेंगे। वो चाहेंगे कि कोहली-शास्त्री के सामने टिकने वाला कोई चेहरा हो। लेकिन ऐसा चेहरा, जो उनकी बात सुने!'
हालांकि, मैदान और इससे बाहर के क्रिकेट पर नज़र रखने वाले कुछ जानकारों का कहना है कि ये पूरा विवाद बिना वजह खड़ा हुआ है। क्रिकेट विश्लेषक अयाज़ मेमन ने बीबीसी से कहा, 'जब टीम कहीं जाती है या कोई इवेंट होता है तो संवाददाता सम्मेलन होता है। वहां रचनात्मक पत्रकार ऐसे सवाल करते हैं। इन्हीं से बवाल होता है।'
मेमन का कहना है कि भारतीय क्रिकेट टीम के हालिया प्रदर्शन को देखा जाए तो टेस्ट और वनडे में टीम अच्छा कर रही, ऐसे में विवाद की कोई ज़रूरत नहीं है। बार-बार नए खिलाड़ियों को आज़माने पर उन्होंने कहा, 'टीम में लगातार बदलाव की वजह ये है कि टैलेंट पूल बड़ा हुआ है, बेंच स्ट्रेंथ बढ़ी है।'
उनका कहना है कि चयनकर्ताओं को सार्वजनिक रूप से बयान देने को लेकर थोड़ा सतर्क रहना चाहिए। मेमन के मुताबिक, 'हाल में प्रसाद ने कह दिया था कि तीनों फ़ॉर्मेट में हमारे नंबर वन विकेटकीपर ऋषभ पंत हैं। लेकिन अगले मैच में उन्हें निकाल दिया गया था। तो ऐसे बयान देने की ज़रूरत क्या है?'
बड़े खिलाड़ी क्यों नहीं बनते चयनकर्ता?
लेकिन क्या चयन समिति के कमान बड़े खिलाड़ियों को देना इतना आसान है? शायद नहीं। मेमन का कहना है, 'आप सोचिए 60-65 साल के किसी दिग्गज पूर्व क्रिकेटर को चयन समिति की कमान सौंपी जाती है, तो उन्हें आधुनिक क्रिकेट या टी20 के बारे में जानकारी नहीं है, तो सेलेक्शन में चूक हो सकती है।'
'एक और बात ये है कि बड़े नाम और खिलाड़ी अब सेलेक्टर बनना नहीं चाहते। पहले अलाउंस मिलता था और अब सैलरी मिलती है। लेकिन जो बड़े खिलाड़ी रिटायर होते हैं, उन्हें कमेंट्री या आईपीएल टीम का कोच बनने में दिलचस्प होती है, सेलेक्टर नहीं!' ज़ाहिर है, जब तक गांगुली कोई फ़ैसला नहीं करते, चयन समिति के चयन को लेकर चर्चा जारी रहने वाली है।