Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पुतिन क्या यूक्रेन युद्ध में अब बुरी तरह से फंस चुके हैं?

हमें फॉलो करें पुतिन क्या यूक्रेन युद्ध में अब बुरी तरह से फंस चुके हैं?

BBC Hindi

, शुक्रवार, 6 जनवरी 2023 (07:36 IST)
स्टीव रोज़ेनबर्ग और जेरेमी बोवेन, एडिटर, बीबीसी रूसी सेवा, बीबीसी इंटरनेशनल एडिटर
2023 की आने वाली फ़रवरी रूस-यूक्रेन जंग को एक साल पूरा हो जाएगा। लेकिन सवाल है कि इसके बाद क्या होगा? युद्ध के मोर्चे से कोई पीछे हटेगा? या किसी समाधान के साथ जंग खत्म हो जाएगी? या फिर 2022 के मुकाबले और भी घातक और संहारक युद्ध शुरू होगा?
 
ये वो सवाल हैं जो साल की शुरुआत के साथ सबके जेहन में कौंध रहे हैं। बीबीसी रेडियो के एक कार्यक्रम में हमारे इंटरनेशनल एडिटर जेरेमी बोवेन और बीबीसी रशियन के संपादक स्टीव रोज़ेनबर्ग ने ऐसे पाँच सवालों के जवाब साझा किए।
 
महीनों के घनघोर युद्ध, भयानक संहार और दोनों तरफ़ विनाशकारी नुक़सान के बाद क्या कोई ऐसे संकेत है,जिससे ये लगता हो, रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन लड़ाई से जंग से थक चुके हों या वो पीछे हटना चाहते हों?
 
स्टीव रोज़ेनबर्ग- "नहीं, थकने या उबने जैसा कोई संकेत नहीं है। बल्कि नए साल की पूर्व संध्या पर अपनी सालाना स्पीच में पुतिन ने जो बातें कहीं, उससे साफ़ पता चलता है जंग को लेकर उनके दिमाग़ में क्या चल रहा है और 2023 में रूस को कहाँ ले जाना चाहते हैं।"
 
"रूसी राष्ट्रपति ने अपनी स्पीच में क्या कहा, इसे अगर अलग छोड़ भी दें, तो उस दिन की तस्वीरें ही बहुत कुछ बता जाती हैं। पुतिन पहले न्यू इयर स्पीच पर अकेले होते थे, लेकिन इस बार स्टेज पर बेहद गंभीर मुद्रा में सैनिक वर्दी पहने महिला-पुरुषों के बीच घिरे दिखे।
 
ये तस्वीर पुतिन का वो संदेश देने के लिए काफी थी- 'ये 2023 का रूस है, आपका अपना देश जो अपनी संप्रभुता के लिए जंग लड़ रहा है'
 
हालांकि पुतिन अपनी तरफ़ से इसे युद्ध नहीं कहते। हालांकि इसमें सैनिक जीत हासिल करने के लिए पूरे देश को झोंक चुके हैं ताकि वो यूक्रेन को जीत सकें, नेटो और पश्चिमी देशों से बीस साबित हो सकें।
 
इस मुहिम में ना सिर्फ़ वो हर नागरिक के समर्थन की उम्मीद करते हैं बल्कि चाहते हैं लोग बड़ी से बड़ी क़ुर्बानी के लिए तैयार रहें। इसमें कोई बहस नहीं, कोई चर्चा नहीं बस अपने देश के झंडे और अपने नेता के साथ डटे रहो।
 
ये सब उस दिन की तस्वीरों से ज़ाहिर होता है। बाक़ी उस दिन जो कहा उसे एक लाइन में समझ सकते हैं- "अगर उधर से झुकने के संकेत नहीं, तो हमारी तरफ़ से भी समझौते का कोई इशारा नहीं। हमें 'इस घमासान से बाहर निकलने' जैसी कोई बात नहीं करनी।"
 
अगर आज की तारीख़ में पुतिन का रुख़ ऐसा है, तो इसकी दो वजहें हो सकती हैं। पहली तो ये, कि उन्हें पूरा यक़ीन है कि वो इस युद्ध में जीत हासिल कर सकते हैं। और दूसरी वजह ये, कि पुतिन को ये अंदाज़ा हो चुका है कि वो युद्ध में इतने गहरे उतर चुके हैं कि अब इससे बाहर निकलना आसान नहीं। इसलिए उनके पास ख़ुद को झोंकने के सिवा कोई विकल्प नहीं।"
 
यूक्रेन का रुख़ क्या होगा, जिस तरह अब तक वो युद्ध के मोर्चे पर डटे हैं, क्या वो आगे भी डटे रहेंगे?
जेरेमी बोवेन- "यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की क्राइमिया समेत रूस के हाथों अपनी खोई हुई सारी ज़मीन वापस लेने की बात करते रहे हैं। क्राइमिया यूक्रेन का सबसे बड़ा प्रांत है, जिस पर रूस ने 2014 में कब्ज़ा कर लिया था।
 
इस दिशा में अब तक तो ज़ेलेंस्की ने ख़ुद को एक बेहतरीन 'वॉर लीडर' साबित किया है। लेकिन आने वाले दिनों में सैन्य लिहाज़ से वो कितना कुछ हासिल करते हैं, ये नेटो के समर्थन पर निर्भर करता है। ख़ासतौर पर वो अमेरिका से, जिसके दिए 'हिमार्स मिसाइल सिस्टम' ने रूस को बड़ा नुकसान पहुंचाया।
 
लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जिस तरह वॉशिंग्टन में बयान दिया, वो अमेरिका की संभलकर चलने वाली रणनीति का साफ संकेत देता है।
 
बाइडन ने जो कहा उसका मतलब ये था कि 'यूक्रेन को हारने नहीं देना चाहिए, उसे जीत हासिल करने में हमें मदद भी करनी चाहिए। लेकिन रूस को इतना भी दरकिरनार नहीं कर देना चाहिए, ताकि परमाणु ख़तरे की बात सच हो जाए।'
 
अब यूकेन को भी ये पता चल चुका है कि अगर उन्हें अपनी खोई हुई ज़मीन वापस लेनी है, तो उन्हें पहले से ज़्यादा ताक़तवर हमले करने होंगे। पिछली बार जब मैं यूक्रेन में था, तब खेरसॉन से रूसी सैनिकों के वापस जाने के वक़्त मैंने जितने भी यूक्रेनी कमांडर्स से बात की, उनका यही कहना था- 'हम जिस मक़सद के साथ युद्ध जीतना चाहते हैं उसके लिए हमें और आधुनिक टैंक्स चाहिए, एडवांस एयरक्राफ्ट्स चाहिए। लेकिन उन्हें ये चीजें नहीं मिल पा रही हैं।'
 
क्या यूक्रेन को विदेशी मदद और कम होती जाएगी?
स्टीव रोज़ेनबर्ग- मेरे ख्याल से, ये पुतिन का अनुमान है, क्योंकि पिछली 24 फ़रवरी से जिस तरह का घटनाक्रम रहा है, उन्हें लगता है कि उनके हाथ अब भी तुरूप का पत्ता है। मेरी राय में पुतिन ये मान कर चल रहे हैं कि कुछ दिनों में पश्चिमी देश इस युद्ध से तंग आकर यूक्रेन को सपोर्ट करना बंद कर देंगे
 
रूस में इस तरह की कई चर्चाएं और अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि सेना नए सिरे से मोर्चाबंदी करने वाली है। और ये भी कि सर्दियां ख़त्म होते ही रूसी सेना यूक्रेन पर नए सिरे से हमले करेगी। रूसी सेना के अधिकारी युद्ध में रूस की जीत को लेकर लगातार बातें कर रहे हैं।"
 
जेरेमी बोवेन- "बीते नवंबर में ही अमेरिकी सेना के जॉइंट चीफ़ ऑफ स्टाफ़ मार्क मिले जैसे अधिकारी ने ये कहा था कि क्राइमिया को रूस से दोबारा हासिल करना बहुत मुश्किल है। हालांकि उन्होंने अपने बयान में 'मेरे ख्याल से' जैसा शब्द जोड़ा और बाद में इससे पीछे भी हटे, लेकिन सच यही है, कि ये बात उन्होंने कही।"
 
पुतिन को अपने ही देश में कितना समर्थन?
स्टीव रोजेनबर्ग- "अगर ज़मीनी हक़ीक़त देखें तो इसमें और जंग को लेकर क्रेमिलन की प्रचारित बातों में कोई मेल नहीं है।
 
एक तरफ़ नए साल पर अपनी स्पीच में यूक्रेन पर जीत से कम पर पीछे नहीं हटने का ऐलान करते हैं। इसके कुछ मिनट बाद ही मकीवाका में रूसी सेना के बैरक पर यूकेन के जबरदस्त रॉकेट हमले की ख़बर आती है।"
 
"मैं इसी डिसकनेक्ट (क्रेमलिन के मैसेज और ज़मीनी हकीकत में फ़र्क़) के बारे में बात करना चाहता हूँ। जैसा कि हम लोग पिछले एक साल से देख रहे हैं ज़मीन पर हो क्या रहा है और बताया क्या जा रहा रहा है।
 
क्रेमलिन ने ऐसे संदेश बेहद सावधानी से तैयार किए हैं, जो सुबह से लेकर देर रात तक रूस की सरकारी मीडिया के जरिए प्रचारित प्रसारित किए जाते रहे हैं। इन संदेशों में रूस को एक पीड़ित बताया जाता है और युद्ध में यूक्रेन और इसे सहयोग देने वालों को हमलावर बताया जाता है।"
 
क्या रूस और यूक्रेन में से कोई भी बातचीत के लिए तैयार होगा?
जेरेमी बोवेन- "बातचीत के लिए फ़िलहाल कोई ज़मीन तैयार दिखती है? मेरे ख्याल से क़तई नहीं क्योंकि पुतिन को लगता है कि वो या तो युद्ध में विजयी होंगे या फिर इसी तरह इसे लंबे समय तक खींचते रहेंगे"
 
और यूक्रेन को लगता है एक दिन उनकी जीत होगी। और दूसरी ये, कि इतने लोगों की शहादत देने, इतनी बर्बादी झेलने के बाद वो किसी ऐसे समझौते के लिए तैयार नहीं होंगे, जिसमें उनके हितों का ध्यान नहीं रखा जाए
 
इसके संकेत राष्टपति ज़ेलेंस्की के रुख में आए बदलावों में देखे जा सकते हैं। बीते मार्च में जब राजधानी कीएव पर रूस ने जबर्दस्त हमले करने शुरू किए, तब जेलेंस्की ये कह रहे थे कि 'ज़िंदगी ज़्यादा ज़रूरी है। ज़मीन के किसी टुकड़े से भी ज़्यादा ज़रूरी। लेकिन अब वो ये कहते सुने जाते हैं कि उन्हें अपनी ज़मीन का एक एक इंच वापस चाहिए। अगर रूस बातचीत करना चाहता है तो सबसे पहले हमारी जमीन उन्हें छोड़नी पड़ेगी।'

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दो ही सप्ताह में भारत में तीसरे रूसी की मौत