Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट दोनों से टकराव की स्थिति में कर्नाटक सरकार

हमें फॉलो करें राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट दोनों से टकराव की स्थिति में कर्नाटक सरकार
, शुक्रवार, 19 जुलाई 2019 (09:16 IST)
इमरान कुरैशी, बेंगलुरू से, बीबीसी हिंदी के लिए
कर्नाटक इतिहास बनाने की कगार पर है क्योंकि सरकार के एक तरफ राज्यपाल वजुभाई वाला और दूसरी तरफ़ सुप्रीम कोर्ट है। जनता दल-सेक्यूलर और कांग्रेस की गठबंधन सरकार दोनों से टकराव की स्थिति में है। इस गठबंधन सरकार के सामने इस समय दो चुनौतियां हैं।
 
पहली, राज्यपाल वजुभाई वाला ने विधानसभा के स्पीकर रमेश कुमार को निर्देश दिए हैं कि मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी सरकार के विश्वास मत की प्रक्रिया शुक्रवार दोपहर 1:30 बजे तक पूरी हो जाए। दूसरी चुनौती है सुप्रीम कोर्ट के बागी विधायकों को लेकर दिए गए व्हिप की अनिवार्यता से स्वतंत्रता के आदेश से निपटना। ये सभी बातें इशारा करती हैं कि जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन राज्यपाल से सीधे टकराव के मूड में है।
 
वहीं, सभी की नजरें राज्यपाल वजुभाई वाला पर भी होंगी कि वो एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार विश्वासमत पर वोटिंग के लिए क्या कदम उठाते हैं। लेकिन, कर्नाटक के इस मामले के साथ ही उस युग का अंत हो जाएगा जिसमें ज़्यादातर सरकारें राजभवन या राज्यपाल के कमरे में चुनी जाती थीं।
 
सुप्रीम कोर्ट के साथ इस टकराव ने कर्नाटक को एक मिसाल कायम करने का मौका दिया है।
 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहस
वकीलों का कहना है कि कानूनी गलियारों में इस सवाल पर बहस हो रही है कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका के विशेष क्षेत्र में हस्तक्षेप करके अपनी सीमा पार की है।
 
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा, 'संविधान में शक्तियों के विभाजन पर बहुत सावधानी बरती गई है। विधायिका और संसद अपने क्षेत्र में काम करते हैं और न्यायपालिका अपने क्षेत्र में। आमतौर पर दोनों के बीच टकराव नहीं होता। ब्रिटिश संसद के समय से बने कानून के मुताबिक़ अदालत विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करती।'
 
सुप्रीम कोर्ट ने बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश दिया था जिसके मुताबिक़ स्पीकर को विधायकों के इस्तीफ़े स्वीकार करने या न करने या उन्हें अयोग्य करार देने का अधिकार है। हालांकि, 'संतुलन' बनाने का प्रयास करते हुए कोर्ट ने 15 बागी विधायकों विधानसभा की प्रक्रिया से अनुपस्थित रहने की स्वतंत्रता दे दी।
 
इसका मतलब ये है कि राजनीतिक पार्टियां सदन में अनिवार्य मौजूदगी के लिए जो व्हिप जारी करती हैं वो अप्रभावी हो जाएगा। इस पर गठबंधन सरकार के नेताओं ने आपत्ति जाहिर की है।
 
कांग्रेस नेता सिद्दारमैया ने सदन में इस फ़ैसले पर कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एक राजनीतिक पार्टी के रूप में हमारे अधिकारों का हनन होता है।'
 
विधायक और पार्टी के अधिकार
लेकिन, पूर्व महाधिवक्ता बीवी आचार्य इस पूरे तर्क को हास्यास्पद मानते हैं। वह कहते हैं, 'उन्हें सिर्फ अपने अधिकारों की चिंता है। लेकिन, इस्तीफ़ा देने वाले विधायक का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है। एक बार इस्तीफ़ा देने के बाद व्हिप जारी नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक पार्टियों और विधायक दोनों के अधिकारों के बारे में जानता है, जिनके इस्तीफे में स्पीकर ने अनावश्यक रूप से देरी की है।'
 
संजय हेगड़े को इस पर हैरानी होती है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने 1994 के पांच न्यायाधीशों वाली पीठ के फ़ैसले के ख़िलाफ़ जाना सही समझा।
 
वह कहते हैं, 'पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने फैसला दिया था कि कोई अंतरिम आदेश नहीं हो सकता लेकिन इस मामले में तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने बिना अंतिम सुनवाई के अंतरिम आदेश दे दिया। इसने एक ख़तरनाक मिसाल कायम की है।'
 
बीवी आचार्य कहते हैं, 'आप जानते हैं, अंतरिम आदेश के मामले में हमेशा कुछ अधिकार थोड़े बहुत प्रभावित होते हैं। विपक्षी दावे को संतुलित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किए हैं। विधायक राजनीतिक दल का बंधुआ मजदूर नहीं है।'
 
दूसरी तरफ हेगड़े का मानना है कि वह नहीं जानते कि देश की बाक़ी विधायिकाएं विधानसभाओं के सम्मेलन में 'सुप्रीम कोर्ट के इस अतिक्रमण' को किस तरह देखेंगी। उन्होंने कहा, 'ये ऐसा मामला है जिसमें कुछ भी साफ नहीं है। इसमें कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर ने जो स्थिति चुनी है उसके दूरगामी संवैधानिक मतलब निकाले जा सकते हैं।'
 
राजनीतिक दलों के अस्तित्व का सवाल
राजनीतिक विश्लेषक और धारवाड़ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हरीश रामास्वामी भी मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में संतुलन था। उसने किसी भी पक्ष को संतुष्ट नहीं किया। इससे टकराव की स्थिति बन गई। लेकिन व्हिप की परंपरा को भुला दिया। अगर आप लोगों के प्रतिनिधि हैं, तो उससे पहले एक राजनीतिक पार्टी के सदस्य थे। इस मूल प्रश्न को नजरअंदाज कर दिया गया है।
 
प्रोफेसर हरीश रामास्वामी कहते हैं, 'यह सभी राजनीतिक दलों के अस्तित्व का सवाल बन गया है। बीजेपी कांग्रेस को खत्म करने की कोशिश कर रही है और दूसरी तरफ जेडीएस और कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं। अकादमी से जुड़े किसी शख्स के लिए इससे ज्यादा दिलचस्प कुछ और नहीं हो सकता।'

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कारगिल: 15 गोलियां लगने के बाद भी लड़ते रहे परमवीर योगेंद्र