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पश्चिम बंगाल और असम की सीमा पर स्थित कूचबिहार सीट को लेकर क्यों मचा है घमासान

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BBC Hindi

, रविवार, 24 मार्च 2024 (07:32 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता से, बीबीसी हिंदी
भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने यहां अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन दोनों के लिए यह नाक की लड़ाई बन गई है। इस सप्ताह दोनों दलों के बीच हुई हिंसा इस बात का सबूत है। ऐसे में यहां से बीते पांच दिनों में रिकॉर्ड संख्या में चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतें आना कोई अस्वाभाविक नहीं है।
 
कूचबिहार के एक कॉलेज से सेवानिवृत्त शिक्षक समरेश कुमार कुंडू इन शब्दों में ही इस बार असम और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित कूचबिहार संसदीय सीट की तस्वीर उकेरते हैं। यहां पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान होना है।
 
राज्य चुनाव आयोग के मुताबिक, अब तक अकेले यहां से आचार संहिता के उल्लंघन की पांच हजार से ज्यादा शिकायतें मिली हैं।
 
कूचबिहार पहले एक स्वतंत्र राज्य था। इसके तत्कालीन राजा जगदीपेंद्र नारायण और केंद्र सरकार के बीच 12 सितंबर, 1949 को हुए एक समझौते के तहत इस राज्य का भारत में विलय हुआ। उसके बाद 19 जनवरी, 1950 को यह पश्चिम बंगाल का हिस्सा बना।
 
साल 1887 में तत्कालीन महाराज नृपेंद्र नारायण ने लंदन के बकिंघम पैलेस की तर्ज पर कूचबिहार राजबाड़ी का निर्माण करवाया था।
 
करीब 51 हजार वर्गफीट में फैली लाल रंग के ईंटों से बनी यह दोमंजिली इमारत तोर्षा नदी के किनारे बसे इस शहर की पहचान है।
 
यह राजबाड़ी अब भी शहर के बीचोबीच रजवाड़ों के दौर की याद दिलाती है। जयपुर की महारानी गायत्री देवी इसी राजपरिवार की बेटी थीं।
 
इतिहास के प्रोफेसर रहे अनिर्वाण बसु बताते हैं, कूचबिहार का नाम कूच और विहार दो शब्दों को मिला कर बना है। कूच यहां के राजवंश कोच का ही अपभ्रंश है जबकि विहार का मतलब ज़मीन है। यानी कूचबिहार का मतलब है कोच की ज़मीन।
 
पहले वाम मोर्चे के गढ़ में टीएमसी और बीजेपी की सेंध
इस शहर के आम लोगों में फिलहाल चुनावी उत्सुकता ज्यादा नहीं दिखती है। लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में जाने पर लगातार गर्मा रहे राजनीतिक माहौल की आंच मिलने लगती है।
 
इस सप्ताह इस संसदीय सीट के तहत आने वाले दिनहाटा में तृणमूल कांग्रेस के मंत्री उदयन गुहा और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री निशीथ प्रमाणिक के समर्थकों के बीच हुए हिंसक टकराव की गूंज कोलकाता और दिल्ली तक पहुंची थी।
 
चुनाव आयोग ने इस मामले पर रिपोर्ट मांगी और राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने भी इलाक़े का दौरा किया है। चुनाव से पहले हुए इस टकराव ने इस सीट को भी संवेदनशील की श्रेणी में खड़ा कर दिया है।
 
इससे पहले साल 2021 में विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय बल के जवानों की गोलीबारी में चार लोगों की मौत की घटना को अब भी लोग भूल नहीं पाए हैं।
 
नरम चटाइयों के लिए मशहूर शीतलकुची, जहां यह घटना हुई थी, में एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले सुब्रत कुमार कहते हैं, "यहां के आम लोग शांतिपूर्ण चुनाव चाहते हैं। कोई भी हारे-जीते, हमारे जीवन में ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। लेकिन इस बार आसार ठीक नहीं नज़र आ रहे हैं।"
 
यह इलाक़ा साल 1977 से 2009 तक वाममोर्चा के घटक फॉरवर्ड ब्लॉक का मज़बूत गढ़ रहा था। अमर राय प्रधान इस सीट पर आठ बार जीते थे।
 
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार यहां से तृणमूल कांग्रेस की महिला उम्मीदवार रेणुका सिन्हा ने जीत दर्ज की थी। दो साल बाद यहां हुए उपचुनाव में भी पार्टी ने इस पर क़ब्ज़ा बरक़रार रखा था। लेकिन उसके बाद यह ज़िला तृणमूल कांग्रेस की अंतरकलह और राजनीतिक हिंसा के कारण लगातार सुर्खियों में रहा।
 
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कौन हैं निशीथ प्रमाणिक
निशीथ प्रमाणिक भी तृणमूल छोड़ कर भाजपा में चले गए और पार्टी ने साल 2019 के चुनाव में उनको इस सीट से उम्मीदवार बनाया। वो करीब 55 हजार वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे। इस इलाक़े में अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए ही पार्टी ने उनको केंद्र में मंत्री बनाया।
 
अब वही निशीथ एक बार फिर मैदान हैं। दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस ने इस बार उम्मीदवार बदलते हुए सिताई सीट से विधायक जगदीश चंद्र बसुनिया को मैदान में उतारा है।
 
भाजपा ने साल 2021 के विधानसभा चुनाव में भी अपना बेहतर प्रदर्शन क़ायम रखते हुए इस संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाली सात में से छह सीटें जीत लीं। हालांकि बाद में उपचुनाव में एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस ने क़ब्ज़ा कर लिया था।
 
कोच-राजबंशी और कामतापुरी समुदाय ही यहां निर्णायक है। इसी वजह से कूचबिहार सीट आरक्षित की श्रेणी में है। यहां किसी दौर में ग्रेटर कूचबिहार पीपुल्स एसोसिएशन (जीसीपीए) का फैसला निर्णायक माना जाता था।
 
जीसीपीए उत्तर बंगाल के कुछ इलाक़ों को मिला कर ग्रेटर कूचबिहार के गठन की मांग करता रहा है। लेकिन अब उसके दो गुट हैं। एक गुट की कमान बंशीबदन बर्मन के हाथों में है। इस गुट ने अबकी तृणमूल कांग्रेस के समर्थन का फैसला किया है।
 
बर्मन कहते हैं, "मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राजबंशी समुदाय के बेहतरी के लिए काम कर रही हैं। इसलिए हमने तृणमूल उम्मीदवार के समर्थन में प्रचार करने का फैसला किया है।"
 
दूसरे गुट की कमान उन अनंत राय महाराज के हाथों में है जिनको भाजपा ने बीते साल बंगाल से राज्यसभा में भेजा था। इलाक़े के कोच-राजबंशी वोटरों को ध्यान में रखते हुए ही पार्टी ने यह फैसला किया था। तब राजनीतिक हलकों में इस पर हैरत जताई गई थी।
 
अनंत राय क्यों नाराज हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि अनंत राय को राज्यसभा भेजने की वजह राजबंशी समुदाय का समर्थन हासिल करना था। लेकिन फिलहाल अनंत भी नाराज़ चल रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक रूप से शीर्ष नेतृत्व से अहमियत नहीं मिलने और केंद्र पर वादाख़िलाफ़ी करने का आरोप लगाया है।

उनकी नाराज़गी दूर करने के लिए निशीथ प्रमाणिक ने हाल में उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की थी। लेकिन उनकी नाराज़गी कम नहीं हुई है।
 
अनंत ने पत्रकारों से कहा, "केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि कूचबिहार केन्द्र शासित क्षेत्र नहीं बनेगा। लेकिन पहले केंद्र ने इसका भरोसा दिया था।" वो कहते हैं कि "पार्टी का सिपाही होने के नाते मैं तमाम कार्यक्रमों और चुनाव अभियान में सक्रिय रहूंगा।"
 
जातीय समीकरण
इस संसदीय सीट के तहत क़रीब 90 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है और बाकी शहरी में। यहां अनुसूचित जाति के लोगों की आबादी क़रीब 49 फ़ीसदी है। इनमें कोच और राजबंशी समुदाय ही सबसे ज्यादा हैं।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कूचबिहार बीते पांच वर्षो के दौरान वर्चस्व की लड़ाई में होने वाले हिंसक टकराव के कारण अक्सर सुर्खियों में रहा है। इसके अलावा बांग्लादेश सीमा क़रीब होने के कारण घुसपैठ की समस्या भी अहम है।
 
सीमा पार से होने वाली घुसपैठ और सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों पर कथित अत्याचार के मुद्दे पर सत्तारूढ़ पार्टी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों को कठघरे में खड़ा करती रही है।
 
क्यों बढ़ा तनाव
एक विश्लेषक सुखेंदु बर्मन कहते हैं, "बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में तो भाजपा का दबदबा था। लेकिन उसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने अपने पैरों तले से खिसकी ज़मीन वापस पाने के लिए पूरी ताक़त झोंक दी है। इसी वजह से टकराव बढ़े हैं।"
 
"बीते साल हुए पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए कूचबिहार ज़िला परिषद पर क़ब्ज़े के साथ ही ग्राम पंचायत की 128 में से 101 सीटें जीत ली थी। यह भी भाजपा की चिंता की वजह है।"
 
क्या भाजपा इस बार भी अपना प्रदर्शन दोहराने में कामयाब रहेगी? पार्टी के ज़िला अध्यक्ष सुकुमार राय दावा करते हैं, "हम पहले से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीतेंगे। तृणमूल कांग्रेस हताशा में हमारे लोगों पर हमले कर रही हैं। इससे साफ़ है कि वह पहले ही हार कबूल कर चुकी है। उसके सैकड़ों समर्थक भाजपा का दामन थाम रहे हैं।"
 
इस सीट से दूसरी बार मैदान में उतरे निशीथ प्रामाणिक भी जीत का अंतर बढ़ने का दावा करते हैं। ऐसा ही दावा तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार जगदीश बसुनिया भी करते हैं। उनका कहना है, "यहां से जीतने के बावजूद भाजपा ने बीते पांच साल में इलाक़े में विकास के नाम पर कोई काम नहीं किया है।"
 
इस सप्ताह केंद्रीय मंत्री निशीथ प्रमाणिक से भिड़ने वाले तृणमूल नेता और राज्य के मंत्री उदयन गुहा कहते हैं, "अबकी यहां हमारी जीत तय है। भाजपा नेताओं के अत्याचारों ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।"
 
बीजेपी को हराने की कसम में मछली छोड़ा...
दूसरी ओर, वाममोर्चा ने यहां पूर्व शिक्षक नीतीश चंद्र राय को अपना उम्मीदवार बनाया है। यह सीट फॉरवर्ड ब्लॉक को मिली है।
 
नीतीश कहते हैं, "कूचबिहार के लोगों ने तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों को जिता कर देख लिया है। इसलिए वोटरों ने इस बार वाममोर्चा के समर्थन का फैसला किया है।"
 
वह कहते हैं कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने इलाक़े के विकास के लिए कोई काम करना तो दूर रहा, उलटे इलाक़े में राजनीतिक हिंसा और अपराध की घटनाएं बढ़ा दी हैं।
 
उनका दावा है कि साल 2024 का चुनाव 1977 की पुनरावृत्ति होगा। उस साल फॉरवर्ड ब्लॉक यहां भारी बहुमत के साथ जीता था।
 
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कूचबिहार नगरपालिका के अध्यक्ष रबींद्रनाथ घोष कहते हैं, "पिछली बार भाजपा ने यह सीट ज़रूर जीती थी। लेकिन अब पार्टी का असली चेहरा लोगों के सामने हैं। यहां के वोटर दोबारा भाजपा को जिताने की ग़लती नहीं करेंगे। पिछली बार जीते निशीथ प्रमाणिक को पांच साल में स्थानीय लोगों ने देखा तक नहीं है।"
 
दिलचस्प बात यह है कि घोष ने फिलहाल मछली खाना छोड़ रखा है। उन्होंने कसम खाई है कि प्रामाणिक को हराने के बाद ही वो मछली खाएँगे। इस पर भाजपा के एक नेता चुटकी लेते हैं, "लगता है रवींद्रनाथ घोष को आजीवन निरामिष ही रहना पड़ेगा।"
 
अब क्या निशीथ प्रमाणिक अपनी जीत का सिलसिला दोहराने में कामयाब रहेंगे या फिर तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रबींद्रनाथ घोष को आजीवन निरामिष भोजन ही करना होगा, इसका जवाब तो चार जून को ही मिलेगा।

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