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'कौन बनेगा पीएम'- लोकसभा चुनाव 2019 में कितने दावेदार?

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, रविवार, 12 मई 2019 (10:42 IST)
इंद्र कुमार गुजराल या एचडी देवेगौड़ा जैसे नेता भी राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति नहीं कर रहे थे, जब उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। अगर कांग्रेस या भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और तीसरे मोर्चे की नौबत आई तो क्षेत्रीय दलों के कुछ नेता हैं, जो 2019 में पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं।
 
ममता बनर्जी
 
ममता बनर्जी खुद कांग्रेस का भी हिस्सा रही हैं, फिर उनकी पार्टी भी यूपीए का हिस्सा रही। हाल ही में सीबीआई को लेकर केंद्र के साथ टकराव में कई विपक्ष के नेताओं ने उनका साथ दिया, जैसे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव, मायावती और अखिलेश यादव। चंद्रबाबू नायडू के केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को भी उन्होंने अपना समर्थन दिया।
 
2014 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से 32 सीटों पर तृणमूल की जीत हुई थी यानी ममता बनर्जी ने अपनी तैयारियां पूरी कर रखी हैं। जनवरी में तृणमूल कांग्रेस की 21वीं सालगिरह पर तृणमूल के नेताओं ने ममता का नाम पीएम पद के लिए आगे बढ़ाया। उनकी पूरी प्रोफाइल आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं। लेकिन ममता बनर्जी एकमात्र विकल्प नहीं हैं।
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मायावती : बहुजन समाज पार्टी भी अपनी प्रमुख मायावती को पीएम पद पर देखना चाहती है और उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। जनता दल सेक्यूलर और इंडियन नेशनल लोकदल ने भी उन्हें सहयोग दिया है। उनके नए-नए साथी अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि मायावती के प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें खुशी ही होगी।
 
अगर तीसरे मोर्चे से प्रधानमंत्री चुनने का मौका आया तो कांग्रेस को भी मायावती को समर्थन देने में गुरेज नहीं होगा, क्योंकि पार्टी पहले भी देश में कई महत्वपूर्ण पदों पर पहला दलित नेता देने का श्रेय लेती रही है।
 
चाहे पहले दलित राष्ट्रपति केआर नारायणन हों या पहली दलित महिला लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार या दलित गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे। मायावती की पार्टी का खुद भी देश के 18 राज्यों में सपोर्ट बेस है।
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नवीन पटनायक : ओडिशा में 4 बार मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक कह चुके हैं कि फिलहाल वे भाजपा और कांग्रेस दोनों से दूरी बनाए रखेंगे लेकिन चुनाव के नतीजे क्या न करवा दें।
 
हालांकि, ओडिशा से सिर्फ 21 सदस्य ही लोकसभा जाते हैं। दूसरी बात ये कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भी वे नहीं गए, जहां बहुत से गैर-बीजेपी दल गए थे। दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू की बुलाई बैठक में भी नहीं गए। एक तरह से उन्होंने अपनी दूरी सभी से बना कर रखी, तो ये बात बाद में उनके हक में भी जा सकती है और शायद उन्हें इसका नुकसान भी हो सकता है।
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शरद पवार : शरद पवार नरेन्द्र मोदी के लिए लंच होस्ट कर चुके हैं तो राहुल गांधी, ममता बनर्जी और मायावती के लिए डिनर भी। अगर किसी को बहुमत नहीं मिला, तो शरद पवार ही एक ऐसे नेता हैं जिनके संबंध सभी दलों से अच्छे ही रहे हैं और उनके नाम पर समझौता होना आसान है।
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नितिन गडकरी : कुछ महीनों से ये चर्चा चल रही है कि अगर बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और गठबंधन सरकार बनाए जाने की नौबत आई तो एनडीए के सहयोगी दल शायद नितिन गडकरी के नाम पर राजी हों।
 
नितिन गडकरी तो कह चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं लेकिन मोदी से रिश्ते और उनके बयान किस तरफ इशारा कर रहे हैं, आप यहां पढ़ सकते हैं।
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राजनाथ सिंह : साल 2014 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने चुनावों से पहले एनडीए का पुनर्गठन शुरू किया था, जो कि एक आसान काम नहीं था। तब राजनाथ सिंह आखिरकार 30 अलग-अलग दलों को एनडीए के झंडे तले लाने में कामयाब हो गए।
 
राजनाथ सिंह ने अपनी कोशिशों से जिस एनडीए का गठन किया, वो उनके राजनीतिक गुरु अटल बिहारी वाजपेयी से भी बड़ा था। ऐसे में कई लोगों ने राजनाथ सिंह को भविष्य के वाजपेयी के रूप में देखना शुरू कर दिया।
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राहुल गांधी : जबसे राहुल गांधी की राजनीतिक पारी शुरू हुई है, कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में ही देखती आ रही है। उन्हें विरोधियों ने 'बच्चा' कहकर, 'पप्पू' जैसे नाम देकर खारिज करने की कोशिश की। उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता की बात आम होने लगी। लेकिन पिछले कुछ वक्त से उनमें बदलाव के संकेत भी नजर आने लगे।
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नरेन्द्र मोदी : भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री भी अगली बार फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए जोर लगा रहे हैं।

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