सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, भोपाल
कुछ ही महीनों में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राज्य में कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर रहती है। दोनों ही पार्टियों ने अपनी रणनीति को धार देना शुरु कर दिया है। आम आदमी पार्टी भी राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने में जुट गई है। यहाँ भी उसका चुनावी दंगल गुजरात की तर्ज़ पर सजता हुआ दिख रहा है।
पिछले विधान सभा चुनाव में बीजेपी हार गयी थी। कांग्रेस ने कुछ छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन कुछ दिनों बाद कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से हाथ छुड़ा लिया और अपने समर्थक विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।
कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई और सत्ता की कुंजी एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आ गयी थी।
आइए जानते हैं बीजेपी और कांग्रेस को आगामी चुनावों में किन चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है। और क्या आम आदमी पार्टी भी मध्य प्रदेश के चुनावों में अपनी छाप छोड़ सकती है। या आप का हाल गुजरात जैसा ही होगा।
भारतीय जनता पार्टी की चुनौतियां
24 जनवरी को राज्य कार्यकारिणी की बैठक में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने काफ़ी मंथन किया और इसी दौरान प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने विधानसभा के चुनावों के लिए '200 दिनों की कार्ययोजना' बनाने की घोषणा की।
मध्य प्रदेश के प्रभारी मुरलीधर राव ने 200 दिनों की कार्य योजना पर विस्तार से बताते हुए कहा, "200 दिनों में 200 सीटें हासिल करने का लक्ष्य प्रदेश के संगठन, नेताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के सामने है।"
इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उनके पास उन नेताओं की फ़ाइल मौजूद है 'जो पिछले चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार के साथ घूमे ज़रूर थे मगर उन्होंने पार्टी के ख़िलाफ़ काम किया।"
शिवराज के अनुसार उसकी वजह से कई उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था।' उन्होंने इस दौरान भितरघात जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कार्यसमिति की बैठक से कुछ ही देर में अचानक निकल पड़ीं। बाद में उन्होंने ट्वीट किया, "लगता है मध्य प्रदेश में 2018 का माहौल आ गया है, जब हमारे जैसे लोगों को लेकर झूठी बातें फैलाई जाती थीं।"
लेकिन जिस बात को लेकर संगठन के अंदरूनी हलक़ों में हलचल मची वो है उनके आरोप कि संगठन में 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' काम कर रहा है।
उन्होंने लिखा, "सोशल मीडिया पर जानबूझकर फैलाया जा रहा है कि मैं बिना बुलाए कार्यसमिति में गई, मैं 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' को आगाह करूंगी कि ऐसी झूठी बातें फैलाने से भाजपा को दुश्मनों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"
भोपाल में वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार गिरिजा शंकर ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा कि जो बीजेपी के ख़िलाफ़ जो सत्ता विरोधी लहर थी वो 2018 में ख़त्म भी हो गयी थी जब भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। उनके अनुसार इस बार चुनाव मुद्दों पर नहीं बल्कि अस्मिता और भावनाओं पर लड़ा जाएगा।
वो कहते हैं, "मैं इसलिए यह कह रहा हूँ क्योंकि इस बार सभी के पास मुद्दों की कमी है और सारा दारोमदार उम्मीदवारों के चयन पर ही होगा। भाजपा का नेतृत्व कमज़ोर नहीं है क्योंकि शिवराज सिंह चौहान पार्टी के सर्वमान्य चेहरा रहे हैं।"
गिरिजा शंकर कहते हैं कि उम्मीदवारों का सही तरीक़े से चयन नहीं कर पाने की वजह से भाजपा को पिछली बार क़रीब 30 सीटों का नुक़सान उठाना पड़ा था।
लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता लोकेन्द्र पराशर, गिरिजा शंकर की बातों से सहमत नहीं हैं। बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने जो जन कल्याण की योजनायें लागू की हैं उनकी वजह से लोगों को काफ़ी राहत मिली है।
पराशर कहते हैं, "चाहे आयुष्मान कार्ड हो या आवास योजना। लोगों के बीच ये बहुत लोकप्रिय योजनायें रहीं हैं। पहले भूमिहीनों के लिए आवास योजना में पेंच था कि मकान कहाँ बनाकर दिया जाए। अब सरकार ही भूमि भी दे रही है। उसी तरह पेसा क़ानून के लागू होने से 87 प्रखंडों में जहां आदिवासियों की संख्या 95 प्रतिशत के आसपास है, उन्हें सीधा लाभ मिलेगा और जल जंगल और ज़मीन पर उनका अधिकार स्थापित होगा।"
जहाँ तक बात है 'भितरघात' करने वालों की तो पराशर का दावा है कि कई ऐसे नेताओं पर पहले ही कार्यवाई की जा चुकी है।
लेकिन भाजपा के गलियारों से ही संकेत मिलने लगे हैं कि संगठन कुछ वैसा ही कर सकता है जैसा गुजरात में किया था। यानी कई ऐसे विधायक हैं जिनको इस बार शायद पार्टी का टिकट ना मिल पाए और नए चेहरों को जगह दी जाए।
कांग्रेस दोहरा पाएगी 2018 की जीत?
कांग्रेस भी चुनाव की तैयारियों में जुटी है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सबसे पहले अपनी युवा इकाई में सुधार किया और राज्य की पूरी कार्यकारिणी को ही बदल डाला। कई पार्टी नेताओं को 'कारण बताओ नोटिस' भी जारी किये गए हैं और ज़िले की इकाइयों का भी पुनर्गठन भी किया
चुनौतियां कांग्रेस के लिए भी कम नहीं हैं लेकिन प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी पीयूष बाबेल का कहना है कि पिछली बार कांग्रेस को जनादेश मिला था लेकिन बीजेपी ने डेढ़ साल कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी। उन्हें लगता है कि इसका फ़ायदा कांग्रेस को होगा।
बीबीसी से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "इसकी वजह से भाजपा के ख़िलाफ़ जो लोगों में आक्रोश था वो बढ़ गया है। लोगों ने कांग्रेस को जितवाया था। मगर सरकार को जोड़ तोड़ कर गिरा दिया गया।"
पीयूष बाबेल कहते हैं कि पूरे प्रदेश में आन्दोलनों का दौर चल रहा है और बिजली कर्मचारी से लेकर आशा कार्यकर्ताओं तक को आंदोलन करना पड़ रहा है।
लेकिन गिरिजा शंकर को लगता है कि कमलनाथ अभी भी प्रदेश की राजनीति से पूरी तरह से वाक़िफ़ नहीं हो पाए हैं। उनके अनुसार मध्य प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों पूर्व मुख्यमंत्री यानी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का आपस में तालमेल कैसा होगा।
एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह मानते हैं कि इस बार भी कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का फ़ायदा मिल सकता है। उनके अनुसार सरकार में जो चेहरे हैं वो दशकों से चले आ रहे हैं जिसकी वजह से लोग बदलाव भी ढूंढ सकते हैं। लेकिन कांग्रेस को कई दिक्कतों से भी निपटना है।
एनके सिंह कहते हैं, "कई ऐसे नेता हैं जिनसे पार्टी ने किनाराकशी कर रखी है या उन्होंने ख़ुद पार्टी से किनाराकशी कर ली है। विपक्ष के नेता की राजनीतिक लाइन साफ़ तौर पर अलग दिखती है और कमलनाथ की अलग।"
"कांग्रेस के लिए संघर्ष करने वाले चेहरों में से एक अरुण यादव भी किनारे पर ही नज़र आ रहे हैं जबकि वो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। उसी तरह अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह भी कई चुनाव हारने के बाद घर बैठ गए हैं।"
एनके सिंह कहते हैं कि 2018 के चुनाव में जनता ने 'कांग्रेस के पक्ष में वोट कम और भाजपा के विरोध में वोट ज़्यादा दिए थे।
आम आदमी पार्टी भी चुनावी दंगल में उतरी
आम आदमी पार्टी ने मध्य प्रदेश की सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है और अगले 200 दिनों तक पार्टी अपने संगठन को मज़बूत करने से लेकर तगड़े उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से काम कर रही है।
आम आदमी पार्टी ने मध्य प्रदेश की राजनीति में नगरीय निकाय और पंचायत के चुनावों के माध्यम से 'एंट्री' ली।
फ़िलहाल प्रदेश में उसके 52 पार्षद हैं और सिंगरौली से एक महापौर। इन चुनावों में आम आदमी पार्टी को छह प्रतिशत वोट मिलने से राजनीतिक विश्लेषक भी हैरानी में हैं।
इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी के समर्थन वाले लगभग 118 सरपंचों, 10 ज़िला पंचायत और 27 जनपद के सदस्यों ने भी चुनाव जीता है। इसलिए अब पार्टी ने विधानसभा की तरफ़ अपनी निगाहें टिका दी है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पंकज सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए दावा किया कि फ़िलहाल प्रदेश में उनके 3।5 लाख वॉलंटियर हैं और वो राज्य भर के 66 हज़ार बूथों तक अपना संगठन मज़बूत करने का अभियान चला रहे हैं।
आप के पंकज सिंह कहते हैं, "मध्य प्रदेश के लोग भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की राजनीति से ऊब चुके हैं। इसलिए आम आदमी पार्टी उनके लिए नया विकल्प है जो हम लोगों को बता रहे हैं। हम उन्हें दिल्ली और पंजाब का उदहारण भी दे रहे हैं। लोगों की तरफ़ से भी हमें अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।"
वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह मानते हैं कि अभी आम आदमी पार्टी का विधान सभा के चुनावों में उतना प्रभाव पड़ता दिख नहीं रहा है। उनको लगता है कि कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी उम्मीदवार कांग्रेस के लिए ही परेशानी खड़ी कर सकते हैं, जैसे गुजरात में हुआ था।