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महाराष्ट्र: राज्यपाल कोश्यारी क्यों छोड़ना चाहते हैं पद, जानें किन-किन विवादों से घिरे रहे?

हमें फॉलो करें महाराष्ट्र: राज्यपाल कोश्यारी क्यों छोड़ना चाहते हैं पद, जानें किन-किन विवादों से घिरे रहे?

BBC Hindi

, बुधवार, 25 जनवरी 2023 (07:49 IST)
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पद छोड़ने की इच्छा जताई है। राज्यपाल भवन कार्यालय ने कहा है कि भगतसिंह कोश्यारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से इस्तीफ़ा देने की इच्छा जताई है। कोश्यारी ने राजभवन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह जानकारी दी। महाराष्ट्र में राज्यपाल कोश्यारी का कार्यकाल शुरू से ही विवादों में रहा है।
 
उद्धव ठाकरे की शिवसेना और दूसरी पार्टियां लगातार उनके इस्तीफ़े की मांग करती रही हैं। हालांकि पद छोड़ने की उनकी इस मंशा का इससे कितना नाता है यह अभी पता नहीं चल सका है।
 
भगत सिंह कोश्यारी ने इस संबंध में ट्वीट भी किया,''माननीय प्रधान मंत्री जी की हाल ही की मुंबई यात्रा के दौरान मैंने उनसे कहा कि मुझे राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त करें। मैं अपना शेष जीवन अध्ययन, ध्यान और चिंतन में बिताना चाहता हूं।''
 
उन्होंने आगे लिखा, "महाराष्ट्र जैसे संतों, समाज सुधारकों और नायकों की एक महान भूमि का राज्य सेवक, राज्यपाल होना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। पिछले तीन वर्षों में राज्य के लोगों से मिले प्यार और स्नेह को मैं कभी भूल नहीं सकता।''
 
कोश्यारी का अब तक का कार्यकाल काफी विवादों से घिरा रहा है।उनके शासन संभालने के कुछ दिनों के भीतर राज्य में चुनाव हुए। उसके बाद सरकार बनाने के लिए चले सियासी नाटक में उन्होंने भूमिका पर सवाल उठे।
 
अचानक देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिलाने को लेकर उनपर बीजेपी का पक्ष लेने का आरोप लगाया गया।
 
कई मुद्दों पर उद्धव सरकार के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा : कोरोना महामारी के बावजूद राज्य के बीजेपी नेता लगातार राज्यपाल से मिलने जाते रहे थे। इसे लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं ने नाराज़गी जताई थी।
 
कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को विधायक बनाए जाने का भी विरोध किया था। शिवसेना (उद्धव गुट) इस पर ख़ासी नाराज़ हो गई थी। आख़िरकार प्रधानमंत्री मोदी के कहने के बाद कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे के विधायक बनने का रास्ता साफ़ कर दिया।
 
कोश्यारी ने विश्वविद्यालय में परीक्षाओं के मुद्दे पर भी राज्य सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला। उस समय विवाद से बचते हुए राज्य सरकार ने कुलाधिपति राज्यपाल की बात मान ली थी। उस वक्त राज्यपाल के ट्विटर हैंडल से जारी फ़ोटो में शिवसेना नेता संजय राउत की कोश्यारी को नमस्कार करते हुए फोटो जारी की गई। सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हुई थी।
 
कोरोना महामारी के दौर में जब महाराष्ट्र में मंदिर नहीं खोले जा रहे थे तो राज्यपाल ने खुद उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी थी। कहा गया था कि क्या उद्धव ठाकरे सेकुलर हो गए हैं?
 
राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से दलगत राजनीति करने की अपेक्षा नहीं की जाती, लेकिन उद्धव ठाकरे के गठबंधन ने उन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बीजेपी का पक्ष लगाने का आरोप लगाया था। राज्यपाल रहते हुए उन्होंने एक के बाद एक कई बयान दिए जिन पर खूब विवाद हुआ।

'अगर गुजराती-राजस्थानी को निकाल दिया तो मुंबई में एक पैसा नहीं बचेगा' राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 29 जुलाई 2022 को अंधेरी वेस्ट में अपने भाषण में कहा, "राजस्थान में मारवाड़ी समुदाय ने न केवल व्यापार करके पैसा कमाया है, बल्कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल भी बनवाए हैं और गरीबों की सेवा की है। महाराष्ट्र में, यदि आप गुजराती या राजस्थानी लोगों को विशेष रूप से मुंबई और ठाणे से हटाते हैं, तो आपके पास कोई पैसा नहीं होगा।''
 
'महात्मा फुले और सावित्रीबाई के बारे में विवादित बयान' : सावित्रीबाई फुले के बारे में भगतसिंह कोश्यारी के बयान पर भी विवाद हुआ। कोश्यारी ने कहा था, "सावित्री बाई की शादी 10 साल की उम्र में हुई थी, जब उनके पति की उम्र 13 साल थी। कल्पना कीजिए कि शादी के बाद लड़के-लड़कियां क्या कर रहे होंगे? शादी के बाद वे क्या सोच रहे होंगे?"
 
उन्होंने शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास के बारे में भी बयान दिया। कहा,"रामदास नहीं होते तो शिवाजी महाराज से कौन प्रश्न कर पाता?"
 
"चंद्रगुप्त से चाणक्य के अलावा सवाल करने की क्षमता किसमें हो सकती थी? कोश्यारी ने कहा, "गुरु का हमारे समाज में एक महान स्थान है, छत्रपति ने समर्थ से कहा कि मुझे आपकी कृपा से मेरा राज्य मिला है।" लेकिन बाद में उन्होंने इस विवाद पर सफाई भी दी।
 
'नेहरू की 'शांतिदूत' वाली छवि से भारत कमज़ोर हुआ' : कोश्यारी ने कहा था, "पंडित जवाहरलाल नेहरू, भारत के पहले प्रधान मंत्री, खुद को एक शांतिदूत मानते थे। इसने देश को कमज़ोर बना दिया और यह लंबे समय तक कमज़ोर रहा।"
 
वह कारगिल विजय दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। कोश्यारी ने कहा, "अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को छोड़कर, पिछली सरकारें राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं थीं।"
 
'शिवाजी एक पुराने रोल मॉडल हैं' : डॉ कोश्यारी 19 नवंबर 2022 ने औरंगाबाद में बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय में स्नातक समारोह में भाग लेने के दौरान कहा, "शिवाजी पुराने युग के आदर्श हैं। मैं नए युग की बात कर रहा हूं। डॉ। भीमराव आंबेडकर से लेकर डॉ. नितिन गडकरी तक, आपको यहां हर कोई मिल जाएगा।''
 
यहीं पर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
 
कोश्यारी का राजनीतिक सफ़र : उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में पैदा होने वाले कोश्यारी ने अल्मोड़ा कॉलेज से अंग्रेज़ी में एमए किया। उन्हें अपने कॉलेज जीवन से ही राजनीति में दिलचस्पी थी। 1961-62 के दौरान वे अल्मोड़ा कॉलेज के छात्र संघ में सक्रिय रहे।
 
पेशे से एक शिक्षक और पत्रकार, कोश्यारी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ सामाजिक कार्य शुरू किया। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से राजनीति में प्रवेश किया।
 
उत्तराखंड बनने के बाद जब नित्यानंद स्वामी मुख्यमंत्री बने तो कोश्यारी राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। इसके बाद उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से लगभग छह महीने पहले उन्हें उत्तराखंड का सीएम बनाया गया। वो 30 अक्टूबर से लेकर 1 मार्च तक 2002 तक मुख्यमंत्री रहे।
 
उत्तराखंड में बीजेपी की हार के बाद कोश्यारी ने 2002 से लेकर 2007 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई। इसके बाद वह 2007 से 2009 तक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी भी संभाली।
 
2007 में बीजेपी की उत्तराखंड सरकार में वापसी हुई लेकिन उन्हें सीएम नहीं बनाया गया। वह 2008 से 2014 तक उत्तराखंड से राज्यसभा के सदस्य रहे। 2014 में पार्टी ने उन्हें नैनीताल से लोकसभा चुनाव में उतारा और वो जीतने में सफल रहे।
 
हालांकि पार्टी ने उन्हें 2019 में टिकट नहीं दिया। संघ के नजदीक होने की वजह से उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल की ज़िम्मेदारी दी गई।

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