'फ़बिंग' एक नया शब्द है जो ऑस्ट्रेलियाई डिक्शनरी से जुड़ गया है। इसका मतलब उस स्थिति से है जब आप सामने खड़े व्यक्ति की अनदेखी कर अपने मोबाइल पर लगे रहते हैं।
यह जानी मानी परिस्थिति है। वो सामान्य स्थिति है जब किसी से मुलाक़ात के दौरान उनके पास एक टेक्स्ट मैसेज आता है, फिर वो अपने ईमेल और अन्य सोशल मीडिया ऐप्प देखने में व्यस्त हो जाते है और आप वहां बैठे उनका इंतज़ार करते रहते हैं।
एक ख़ास अनुभव के बाद ब्रिटेन की केंट यूनिवर्सिटी के वरोत चटपितायसुनोन्ध ने खुद ही 'फ़बिंग' के पीछे मानसिक स्थिति पर रिसर्च किया और पाया कि इससे आपकी मानसिक स्थिति और लोगों से ताल्लुकात दोनों ही प्रभावित होते हैं।
ट्रिप के दौरान फ़बिंग पर व्यस्त रहे दोस्त
वो कहते हैं, 'मुझे बहुत सालों के बाद एक लंबी छुट्टी मिली तो मैंने अपने हाई स्कूल के दोस्तों के साथ थाईलैंड के खुबसूरत इलाकों का कार्यक्रम बना लिया क्योंकि पिछले 10 सालों में हम एक साथ कहीं नहीं गए थे।"
"मैं इस ट्रिप को लेकर बहुत उत्साहित था। लेकिन दुर्भाग्यवश तीन दिन और दो रात के लिए बनाया गया यह कार्यक्रम वैसा नहीं था जैसा कि मैंने सोचा था।"..... "इस पूरे ट्रिप के दौरान मेरे सभी दोस्त अपने गर्दन झुकाए स्मार्टफ़ोन में व्यस्त रहे। उस ट्रिप की यादों में उनके चेहरे से ज़्यादा उनके सिर मेरे ज़ेहन में हैं।"
'फ़बिंग' का क्या पड़ता है असर?
वो कहते हैं, "बहुत सारी उलझनों को लेकर उस ट्रिप से मैं घर लौटा और इस सोच में पड़ गया कि क्या मेरे दोस्तों का वो व्यवहार सामान्य था? आख़िर क्या हुआ है उन्हें? क्या होगा अगर इस दुनिया में रहने वाले अधिकतर लोग ऐसा ही व्यवहार दिखाने लगें?"
"और फिर मैंने इसकी पढ़ाई करने के लिए पीएचडी प्रोग्राम के लिए अप्लाई कर दिया।"... "रिसर्च के दौरान हमने पाया कि सामने वाले व्यक्ति पर 'फ़बिंग' का बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। बातचीत के दौरान 'फ़बिंग' से सामने वाला व्यक्ति कम संतुष्ट होता है। वो बातचीत के दौरान खुद को कम जुड़ा हुआ महसूस करता है।
अगर 'फ़बिंग' बार बार हो
अगर कोई 'फ़बिंग' कर रहा हो तो सामने वाले व्यक्ति का उसमें यकीन कम हो जाता है। ऐसी स्थिति में मनोदशा 'सकारात्मक कम' और 'नकारात्मक अधिक' होती है। अगर किसी व्यक्ति के साथ 'फ़बिंग' की घटना बार बार होती है तो वो 'फ़बिंग' का ज़िक्र लोगों से करता है और ऐसे में यदि पाता है कि बातचीत के दौरान अपने फ़ोन पर लगे रहना आज आम बात है तो वो खुद भी ऐसा करना शुरू कर देता है।
थाइलैंड, एशियाई देशों और यूरोप में मोबाइल के इस्तेमाल में बहुत बड़ा फर्क है। थाईलैंड में लोग पांच घंटे प्रतिदिन अपने मोबाइल फ़ोन पर लगे रहते हैं वहीं इंग्लैंड में यह दो से ढाई घंटा है। यानी थाईलैंड में ब्रिटेन की तुलना में फ़बिंग करने वालों की संख्या बहुत अधिक है।