संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष मानवाधिकार संस्था ग़ज़ा में इसराइल और चरमपंथी संगठन हमास के बीच 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष की जांच 'युद्ध अपराध' के तौर पर करेगी। यूएनएचआरसी यानी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में यह प्रस्ताव 24-9 वोट से पास हुआ।14 देश मतदान से बाहर रहे। मतदान न करने वालों में भारत भी शामिल है। गुरुवार को यूएनएचआरसी का फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों को लेकर ख़ास सत्र बुलाया गया था।
इस सत्र में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन के सदस्य देश एकजुट रहे। ओआईसी फ़िलिस्तीनियों के पक्ष में खुलकर खड़ा था।
युद्धविराम से पहले 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष में ग़ज़ा में कम से कम 248 लोगों की मौत हुई है जिनमें 66 बच्चे और 39 महिलाएं हैं। इसराइल में भी 12 लोगों की मौत हुई है। इसराइल का कहना है कि उसने हमास के रॉकेट के जवाब में हमले किए थे।
यूएनएचआरसी के इस प्रस्ताव पर इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। इसराइली पीएम ने यूएनएचआरसी के प्रस्ताव पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'यूएनएचआरसी में लिया गया शर्मनाक फ़ैसला एक और उदाहरण है कि संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था कैसे इसराइल विरोधी मंशा से ग्रस्त है। एक बार फिर से ऑटोमैटिक बहुमत वाली इस काउंसिल ने जनसंहार करने वाले आतंकवादी संगठन जिसने जानबूझकर इसराइली नागरिकों को निशाना बनाया और ग़ज़ा के लोगों को ढाल की तरह इस्तेमाल किया, उसके अपराधों पर पर्दा डाल दिया है।'
इसराइली पीएम की कड़ी प्रतिक्रिया
इसराइल प्रधानमंत्री ने कहा, 'हम एक लोकतांत्रिक देश हैं और हमने हज़ारों बेलगाम रॉकेट हमले से अपने लोगों को बचाने के लिए जवाबी कार्रवाई की थी। इसे लेकर हमें 'दोषी पक्ष' क़रार दिया है। यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का मज़ाक है और दुनियाभर में आतंकवादियों के लिए प्रोत्साहन देने वाला साबित होगा।'
संयुक्त राष्ट्र के इस मानवाधिकार काउंसिल ने ग़ज़ा, इसराइल और वेस्ट बैंक में अधिकारों के उल्लंघन की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए जांच आयोग बनाने का फ़ैसला किया है। इसे सबसे प्रभावी क़दम माना जा रहा है। इसराइल के ख़िलाफ़ पहली बार बहुमत से जांच आयोग गठित करने का फ़ैसला हुआ है।
यह जांच आयोग 11 दिनों तक चले हिंसक संघर्ष की जड़ की भी जांच करेगा। यूएनएचआरसी में पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार अस्थिरता, हिंसक संघर्ष के बचाव, भेदभाव और दमन की भी जांच होगी। इसमें कुछ देशों से हथियारों की आपूर्ति को लेकर भी टिप्पणी की गई है और कहा गया है कि यह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का गंभीर उल्लंघन है। इस टिप्पणी का निशाना उन देशों पर है जो इसराइल को हथियार देते हैं।
चीन, रूस और पाकिस्तान उन देशों में से हैं जिन्होंने इसराइल के ख़िलाफ़ मतदान किए। कई पश्चिमी और अफ़्रीकी देशों ने इसराइल के समर्थन में मतदान किए हैं। जेनेवा में यूएन के स्थायी ब्रिटिश राजदूत सिमोन मैनली ने कहा कि इससे बहुत कुछ हासिल नहीं होगा।
ऑस्ट्रिया के राजदूत ने कहा कि यूएनएचआरसी का प्रस्ताव खेदजनक है। वहीं रूसी प्रतिनिधि ओल्गा वोरोनोत्सोवा ने कहा है कि उनके मुल्क ने इस प्रस्ताव का इसलिए समर्थन किया क्योंकि इससे हिंसक संघर्ष के कारण सार्वजनिक हो सकेंगे।
इसराइल के दोस्त देशों ने यूएनएचआरसी की इस बैठक का विरोध किया था। अमेरिका यूएनएचआरसी में 47 सदस्य देशों में शामिल नहीं है। इसलिए वो वोटिंग में हिस्सा नहीं ले सका। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को यूएनएचआरसी से बाहर कर लिया था।
मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मीचेल बैचलेट ने सत्र की शुरुआत में कहा कि इसराइल को हालिया हिंसक संघर्ष की स्वतंत्र जांच की अनुमति देनी चाहिए। पिछले हफ़्ते संघर्षविराम से पहले इसराइल और हमास के बीच की लड़ाई में सैकड़ों लोगों की जान गई थी।
बचलेट ने कहा, 'ऐसे हमले युद्ध अपराध जैसे होते हैं। इसका असर आम लोगों को पर बहुत गहरा पड़ता है। इसराइल अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करे और ऐसा अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत होना चाहिए।'
बचलेट ने कहा कि हमास के बेलगाम रॉकेट हमले भी युद्ध के नियमों का खुला उल्लंघन है। बचलेट ने कहा कि हमास ने इसराइल में रिहाइशी इलाक़ों पर रॉकेट से हमला किया था।
भारत ने क्या किया?
भारत मतदान में शामिल नहीं हुआ। भारत के साथ 13 और देश मतदान से बाहर रहे। 24 देशों ने प्रस्ताव का समर्थन किया और 9 देशों ने इसराइल का साथ दिया। भारत ने 27 मई को यूएनएचआरसी में वही बात कही जो पिछले कई बयानों में कही गई है- भारत फ़िलिस्तीनियों के मुद्दों के साथ खड़ा है। भारत के हालिया बयानों को लेकर कहा जा रहा है कि उसका रुख़ इसराइल की तरफ़ है।
वोटिंग से बाहर रहने वाले देश हैं- भारत, फ़्रांस, इटली, जापान, नेपाल, नीदरलैंड्स, पोलैंड, दक्षिण कोरिया, फिजी, बहमास, ब्राज़ील, डेनमार्क, टोगो और यूक्रेन।
इसराइल के ख़िलाफ़ वोट करने वाले अहम देश हैं- चीन, रूस, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपींस, अर्जेंटीना, बहरीन, क्यूबा, इंडोनेशिया, लीबिया, मेक्सिको, नामीबिया, उज़बेकिस्तान, सोमालिया और सूडान। इसराइल के साथ देने वाले देश हैं- ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, कैमरून, चेक रिपब्लिक, जर्मनी, मलावी, मार्शऑल आईलैंड्स, ब्रिटेन और उरुग्वे।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने 16 मई को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा था कि भारत फ़िलिस्तीनियों के मुद्दों को लेकर मज़बूती से खड़ा है और वो इस समस्या के समाधान के लिए 'दो राष्ट्र' का समर्थन करता है। इस बार भी भारत ने वही बात दोहराई।
इसराइल भड़का
यूएनएचआरसी के रुख़ को लेकर इसराइल ने सीधा निशाना साधा है। इसराइली विदेश मंत्रालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर कहा गया है, '2014 में यूएनएचआरसी ने आतंकवादी संगठन आईएआईएस की निंदा की। 2015 में यूएनएचआरसी ने बोकोहराम की निंदा की। लेकिन 2006 से 2021 तक यूएनएचआरसी ने हमास के लिए कुछ भी नहीं कहा।'
गुरुवार को यूएनएचआरसी में पास किए गए प्रस्ताव को इसराइल ने ख़ारिज कर दिया है। इसराइल ने कहा है कि यूएनएचआरसी का निर्माण इसराइल विरोधी बहुमत से किया गया है और इसका संचालन पाखंड से भरा है। इसराइली विदेश मंत्रालय ने कहा कि इसराइल पर एक आतंकवादी संगठन ने 4,300 रॉकेट से हमले किए लेकिन एक भी निंदा प्रस्ताव पास नहीं किया गया।
इसराइल विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, 'हमास का नाम तक नहीं लिया गया। यूएनएचआरसी एक पाखंडपूर्ण संस्था है। इसराइली सुरक्षा बलों ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए जवाबी कार्रवाई की है।'
'हमास ने वैश्विक युद्ध अपराध किया है। उसने ग़ज़ा में रिहाइशी इलाक़ों से इसराइल के रिहाइशी इलाक़ों पर हमला किया है। हम इस इस प्रस्ताव को ख़ारिज करते हैं। इसराइल हमास से अपना बचाव करना जारी रखेगा। हम उन देशों का आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।'