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बेशक़ीमती है आपका पुराना फ़ोन

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, मंगलवार, 22 नवंबर 2016 (12:07 IST)
- बिआंका नोगरैडी (बीबीसी फ़्यूचर)
 
गैजेट्स का इस्तेमाल करने का शौक़ आज ना सिर्फ़ नौजवान पीढ़ी को है, बल्कि हर उम्र के लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। किसी को ज़रूरत है, तो किसी को इसकी लत।
अगर मामला हो मोबाइल का तो फिर तो पूछिए ही मत। हरेक की यही कोशिश रहती है महंगे से महंगा मोबाइल फ़ोन खरीद ले। पिछले कुछ सालों में आई- फ़ोन का ख़ुमार लोगों पर कुछ ज़्यादा चढ़ा है। कंपनी ने मोबाइल का नया वर्जन बाज़ार में उतारा नहीं कि उसके ख़रीदारों की लाइन लग जाती है।
 
मोबाइल को लेकर लड़कियों की पसंद और भी निराली है। उन्हें ऐसे मोबाइल अपने हाथ में रखना अच्छा लगता जो देखने में महंगा लगे, उस पर हीरे मोती जड़े हों तो कहने ही क्या। ऐसा मत सोचिए कि इस किस्म के मोबाइल बाज़ार में नहीं हैं। हर तरह का मोबाइल आपको मिल जाएगा। बस ज़रा जेब कुछ ज़्यादा ढीली करनी होगी। जैसे हीरे जड़े आई-फ़ोन की क़ीमत साढ़े नौ करोड़ डॉलर है।
 
अगर आपकी जेब इतना महंगा फ़ोन खरीदने की इजाज़त नहीं देती, तो कोई बात नहीं। आपके पास कम क़ीमत वाला आई-फ़ोन है तो भी आप अमीर हैं। क्योंकि हर आई-फोन में सोना, चांदी, कांसा, प्लेटिनम और पैलेडियम होता है। ये क़ीमती धातुएं आने वाले समय में और भी क़ीमती हो जाएंगी। जितना ज़्यादा इन मोबाइल का उत्पादन हो रहा है, उतना ही इन धातुओं का इस्तेमाल भी हो रहा है।
 
एक दिन ऐसा आएगा कि खदानों में ये धातुएं बचेंगी ही नहीं। अगर ऐसा हुआ तो आपका स्मार्टफोन तो क़ीमती से बेशक़ीमती हो जाएगा।
 
एक स्मार्ट फ़ोन इतना बड़ा होता है कि आपकी जेब में समा जाए। लेकिन इस छोटे से फ़ोन में बहुत सी क़ीमती धातुएं होती हैं। मिसाल के लिए एक आई-फ़ोन में लगभग 0.034 ग्राम सोना, 0.34 ग्राम चांदी, 0.015 ग्राम पैलेडियम, 15 ग्राम तांबा, और 25 ग्राम एल्युमिनियम होता है। यही नहीं, इन धातुओं के अलावा भी और बहुत सी ऐसी दुर्लभ धातुएं इस्तेमाल की जाती हैं, जिन्हें धरती से निकालने में भी काफ़ी ख़र्च आता है। जैसे लेंटेनम, वाईट्रियम, टर्बियम, गैडोलिनियम वग़ैरह।
 
इसके अलावा कांच, प्लास्टिक और ना जाने कितनी तरह की चीज़े एक स्मार्टफ़ोन बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं। हालांकि ये सभी चीज़ें बहुत ही कम तादाद में इस्तेमाल होती हैं। लेकिन जितने बड़े पैमाने पर मोबाइल बनते हैं उस लिहाज़ से बड़ी मात्रा में ऐसी दुर्लभ धातुों का इस्तेमाल होता है।
 
इस वक्त दुनिया में क़रीब दो अरब लोगों के पास स्मार्टफ़ोन हैं। ये संख्या हर पल बढ़ती ही जा रही है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर इन धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। एक टन सोने के अयस्क से जितना सोना निकलता है, उससे तीन सौ गुना सोना, एक टन आई-फ़ोन से निकाला जा सकता है। इसी तरह एक टन चांदी के अयस्क के मुक़ाबले इतने वज़न के आई-फ़ोन से साढ़े छह गुना से ज़्यादा चांदी निकाली जा सकती है।
 
लोग अपने कपड़ों की तरह मोबाइल बदलने लगे हैं। मोटे तौर पर दुनिया में लोग 11 महीने में मोबाइल बदल लेते हैं। क्योंकि इतने वक़्त में बाज़ार में नए फ़ीचर्स के साथ इतने फ़ोन आ जाते हैं कि हर कोई उस नए फ़ोन को ख़रीदना चाहता है।
 
पुराना फ़ोन फेंक दिया जाता है। वो कबाड़ बन चुका होता है। मुश्किल से दस फ़ीसद मोबाइल से उनमें लगी क़ीमती धातुएं निकाली जाती हैं। या इन मोबाइल में लगे पुर्ज़ों का फिर से इस्तेमाल किया जाता है। एक अंदाज़े के मुताबिक़ दस लाख मोबाइल फ़ोन से क़रीब 16 टन तांबा, 350 किलो चांदी, 34 किलो सोना और 15 किलो पैलेडियम निकाला जा सकता है।
 
ई-कचरा आज सारी दुनिया के लिए एक चुनौती बना हुआ है। इस कचरे से ख़तरनाक केमिकल निकलते हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक हैं। अमीर मुल्क़ों का ज़्यादातर ई-कचरा भारत और चीन जैसे देशों को निर्यात कर दिया जाता है। जहां ग़रीब लोगों को इसे छांटने का रोज़गार मिल जाता है। ये लोग इस कचरे से क़ीमती चीज़ें निकालने का काम करते हैं।
 
दक्षिण चीन का शहर गुईयू दुनिया की सबसे बड़ी ई-कचरा मार्केट है। यहां ग़रीब बच्चे और बेरोज़गार लोग इस कचरे को तोड़ते हैं। कचरा गलाने के लिए कई बार ख़तरनाक केमिकल भी इस्तेमाल किये जाते हैं। इस कचरे से क्रोमियम, सीसा और पारे जैसी नुक़सान पहुंचाने वाले मेटल निकलते हैं। जो ना सिर्फ़ सेहत के लिए ख़तरनाक हैं, बल्कि इससे आबो-हवा भी ख़राब होती है। नदियों का पानी प्रदूषित होता है।
 
जो देश ख़ुद अपने यहां इस कचरे को रिसाइकिल कर रहे हैं, उन्हें भी इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मिसाल के तौर पर, ऑस्ट्रेलिया में इस कचरे को पिघलाया जाता है। ये काम बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में होता है। ये बड़े कारख़ाने कचरा पिघलाने के लिए मोटी रक़म लेते हैं। धुआं निकलने से हवा दूषित होती है सो अलग।
 
अब सवाल ये है कि इस मुसीबत से निजात कैसे मिले। सबसे पहले तो सभी लोग जल्दी-जल्दी फ़ोन बदलने की आदत बदलें। लेकिन इतने भर से हालात नहीं सुधरेंगे। क्योंकि, आज उपभोक्ता की आदतें बदल गई हैं।
 
ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर वीना सहाजवाला कहती हैं कि हरेक इलाक़े में माइक्रो फ़ैक्ट्री होनी चाहिए। जहां हिफ़ाज़त से ई-कचरे से क़ीमती चीज़ें निकाल ली जाएं। ताकि, उनका आगे इस्तेमाल हो सके और बाक़ी कचरे को जला दिया जाए। ये काम इंसान की जगह रोबोट या स्वचालित मशीनों से भी कराया जा सकता है।
 
क्या पता अगर आप ऐसे मोबाइल तोड़ने का छोटा कारखाना लगा लें, तो कुछ सालों में आपके पास भी अच्छा ख़ासा सोना और चांदी जमा हो जाएं।

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