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ज़्यादातर लोग क्यों हो जाते हैं ठगी के शिकार

हमें फॉलो करें ज़्यादातर लोग क्यों हो जाते हैं ठगी के शिकार
, बुधवार, 1 अगस्त 2018 (10:57 IST)
- स्टेसी वुड (मनोवैज्ञानिक) 
 
आपके मेलबॉक्स में हर रोज तमाम जंक मेल आते होंगे। आपके फोन में स्पैम मैसेज आते होंगे। कुछ रोबो कॉल्स भी जरूर आते होंगे। अवांछित मैसेज और फोन कॉल हम सभी की परेशानी हैं। हममें से ज़्यादातर लोग इनको नज़रअंदाज़ कर देते हैं और उन्हें डिलीट करके भूल जाते हैं।
 
 
लेकिन सभी ऐसा नहीं कर पाते। हर साल अनगिनत लोग और संगठन अरबों रुपए की ठगी के शिकार होते हैं। ठगे गए लोग मानसिक अवसाद में पड़ जाते हैं। उनकी सेहत बिगड़ जाती है। ठगी के अलावा दूसरा ऐसा कोई अपराध नहीं, जो इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अपना शिकार बनाता हो। सभी उम्र, पृष्ठभूमि और क्षेत्र के लोग इसके फंदे में फंस जाते हैं।
 
 
आख़िर लोग क्यों फंस जाते हैं?
मैं और मेरे सहयोगियों ने इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना शुरू किया। कुछ नतीजे पुराने शोध से निकले निष्कर्षों की तरह ही हैं। लेकिन कुछ नतीजे ठगी के बारे में आम धारणाओं को चुनौती देते हैं।
 
 
घुड़दौड़, लॉटरी और बाज़ार से जुड़ी धोखाधड़ी आम हो गई है। बेटर बिजनेस ब्यूरो के मुताबिक़ पिछले तीन साल में सिर्फ़ घुड़दौड़ और लॉटरी से जुड़ी लगभग 5 लाख शिकायतें मिलीं, जिनमें 35 करोड़ अमरीकी डॉलर का नुक़सान हुआ था।
 
 
पहले इस तरह की ठगी कुछ स्थानीय लोग करते थे और अक्सर आमने-सामने के सौदे में ठगी हो जाती थी। जैसे किसी निवेश सेमिनार में या फिर किसी रियल इस्टेट सौदे में। पुराने तरह के धोखे अब भी मिलते हैं, लेकिन अब उनसे कहीं ज्यादा संख्या में नई तरह की ठगी हो रही है। इनके पीछे अंतरराष्ट्रीय गिरोहों का हाथ होता है। ऐसे कई गिरोह जमैका, कोस्टारिका, कनाडा और नाइजीरिया जैसे देशों में हैं।
 
 
तकनीक का मिला सहारा
आधुनिक तकनीक ने अंतरराष्ट्रीय ठगी का रूप बदल दिया है। अब एक साथ लाखों लोगों तक पहुंचा जा सकता है और उसकी लागत भी कम से कम आती है। टेक्नोलॉजी ने ऐसे ठगों को पकड़ना और उनको सज़ा देना भी मुश्किल कर दिया है।
 
 
मिसाल के लिए, एक रोबो कॉल यह भ्रम पैदा कराता है कि कोई आपके अपने शहर से कॉल कर रहा हो, जबकि हकीकत में हो सकता है कि वह कॉल किसी दूसरे देश से किया गया हो। एक साथ कई लोगों को टारगेट करने वाली ठगी की स्कीमों में लोग क्यों फंस जाते हैं, यह जानने के लिए ऐसी 25 कामयाब स्कीमों का अध्ययन किया गया।
 
 
ऐसी स्कीमों की जानकारी लॉस एंजेलेस पोस्टल इंस्पेक्टर के ऑफिस से ली गई। लोकप्रिय ब्रैंड जैसे मैरियट या टाटा का इस्तेमाल करना आम है। विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए ठग प्रतिष्ठित व्यापारिक प्रतिष्ठान से जुड़े होने का दिखावा करते हैं।
 
 
मेल-जोल बढ़ाने के लिए वे स्थानीय कोड का इस्तेमाल करते हैं। लुभाने के लिए रंगीन तस्वीरों वाले ई-मेल भेजे जाते हैं। उनमें इनाम की राशि और पहले के विजेताओं को आकर्षक ढंग से दिखाया जाता है। कई बार विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए क़ानूनी शब्दावली इस्तेमाल की जाती है।
 
हमने एक पेज की नमूना चिट्ठी तैयार की, जिसमें ग्राहकों को यह बताया गया था कि वे विजेता हैं और पुरस्कार की रकम लेने के लिए उन्हें अमुक नंबर पर संपर्क करना है। चिट्ठी के 4 नमूने तैयार किए गए। इनमें ग्राहकों को बताया गया था कि हमें आपका नंबर टारगेट से मिला।
 
 
आप फलां तारीख, जैसे 30 जुलाई से पहले संपर्क करें। मकसद यह पता लगाना था कि वे कौन सी चीजें हैं जो ग्राहकों को जवाब देने के लिए प्रेरित करती हैं। पहले प्रयोग में हमने 211 प्रतिभागियों से पूछा कि चिट्ठी में लिखे नंबर पर संपर्क करने के प्रति वे कितने इच्छुक हैं। 10 प्वाइंट के स्केल पर हमने फायदे और जोखिम की रेटिंग करने को कहा।
 
 
शिक्षा की कमी एक वजह
48 फीसदी प्रतिभागी चिट्ठी में लिखी बातों पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए भी दिए गए नंबर पर कॉल करने के इच्छुक थे। ऐसे प्रतिभागी कम पढ़े-लिखे थे और उनकी उम्र भी कम थी। उन्होंने कॉल करने के ख़तरे को कम आंका और संभावित फायदे को ज्यादा रेट दिए।
 
 
दूसरे प्रयोग में हमने 291 प्रतिभागी शामिल किए। इस बार इनाम की राशि लेने के लिए एक एक्टिवेशन फीस जोड़ दी गई। कुछ प्रतिभागियों से कहा गया कि जीते हुए इनाम को पाने के लिए उनको 5 डॉलर की एक्टिवेशन फीस देनी होगी। बाकी प्रतिभागियों से 100 डॉलर मांगे गए। चिट्ठी का बाकी मजमून पहले जैसा ही था। बस प्रतिभागियों की माली हालत को जानने वाले एक-दो सवाल जोड़ दिए गए थे।
 
 
लालच मुख्य वजहों में शामिल
हमारी परिकल्पना यह थी कि जो लोग 100 डॉलर देकर भी कॉल करने के इच्छुक हैं, वे इस तरह की स्कीम में ठगे जाने के लिए तैयार हैं। एक चौथाई प्रतिभागियों ने एक्टिवेशन फीस देकर दिए हुए नंबर पर कॉल करने की इच्छा जताई। 100 डॉलर देकर ऐसा करने वाले 20 फीसदी से ज्यादा थे।
 
 
पहले प्रयोग की तरह यहां भी जिन प्रतिभागियों को ज्यादा फायदा दिख रहा था, वे संपर्क करने के प्रति ज्यादा उत्सुक थे। उम्र या लिंग से बहुत अंतर नहीं पड़ रहा था। हालांकि लगभग 60 फीसदी प्रतिभागियों ने इनाम के लिए लुभाने वाली चिट्ठी को संभावित घोटाला माना, फिर भी वे इसे फायदे के मौके के रूप में देखते थे।
 
 
एडवांस फीस वाली यह ठगी एक तरीके से लॉटरी की तरह है। इसे आजमाने का खर्च कम है और नाकाम होने की संभावना ज्यादा है। ग्राहकों को पैसे डूब जाने का अहसास है, लेकिन वे इस संभावना को खारिज भी नहीं करते कि उनको कोई बड़ी रकम मिल जाएगी। कुछ लोग जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं।
 
 
एक बार जब कोई व्यक्ति इस तरह के लालच वाले ऑफर के बारे में फोन पर बात कर लेता है या किसी धोखे वाले विज्ञापन को क्लिक कर देता है तो वह पहचान लिया जाता है। उसके बाद उसे टारगेट करते हुए ऐसे फोन कॉल्स, ई-मेल और मैसेज की बाढ़ आ जाती है।
 
 
आखिर कैसे बचा जाए ठगी से?
बहुत से लोगों के लिए जंक मेल, स्पैम और रोबो कॉल्स खीझ दिलाने वाले होते हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सिर्फ सिरदर्द नहीं होते, फंदे की तरह होते हैं। ठगी से बचने के लिए सचेत रहने की ज़रूरत होती है। ऐसी सेवाएं और ऐप्स उपलब्ध हैं जो ठगी वाले फोन कॉल्स की पहचान करके आपको बचा सकती हैं।
 
 
कई टेलीफोन कंपनियां इस तरह की सेवाएं लेने की मंजूरी देती हैं। इस तरह की धोखाधड़ी के बारे में ग्राहकों की जागरूकता सबसे कारगर है। संदिग्ध ई-मेल, मैसेज, विज्ञापन को क्लिक करने से खुद को रोकना भी महत्वपूर्ण है। जो लोग लालच देने वाले ऑफर को तुरंत पहचान लेते हैं और समय गंवाए बिना उन्हें डिलीट कर देते हैं, उनके धोखा खाने की गुंजाइश कम रहती है। संभावित फायदे और ख़तरे में से ख़तरे पर ज्यादा ध्यान देकर संभावित फायदे के लोभ में फंसने से बचा जा सकता है।
 

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