Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

पेशावर में शवों को दफ़नाने पर मजबूर हिंदू

हमें फॉलो करें पेशावर में शवों को दफ़नाने पर मजबूर हिंदू
, गुरुवार, 5 जनवरी 2017 (10:58 IST)
- रिफ़तुल्लाह ओरकज़ई (पेशावर)
 
पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख़्वाह और क़बायली इलाकों में रहने वाले हिंदू श्मशान घाट की सुविधा न होने के कारण अपने मृतकों को जलाने के बजाय अब उन्हें कब्रिस्तान में दफ़नाने पर मजबूर हो गए हैं। इन इलाकों में हिंदू समुदाय हज़ारों की तादाद में पाकिस्तान की स्थापना से पहले से रह रहे हैं।
खैबर पख़्तूनख़्वाह में हिंदू समुदाय की आबादी लगभग 50 हज़ार है। इनमें अधिकतर पेशावर में बसे हुए हैं। इसके अलावा फ़ाटा में भी हिंदुओं की एक अच्छी खासी तादाद है। ये अलग-अलग पेशों में हैं और अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं।
 
पिछले कुछ समय से हिंदू समुदाय के लिए ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह और फ़ाटा के विभिन्न स्थानों पर श्मशान घाट की सुविधा न के बराबर ही रह गई है। इस वजह से अब वे अपने मृतकों को धार्मिक अनुष्ठानों के उलट यानी जलाने के बदले दफनाने के लिए मजबूर हो चुके हैं।

पेशावर में ऑल पाकिस्तान हिंदू राइट्स के अध्यक्ष और अल्पसंख्यकों के नेता हारून सर्वदयाल का कहना है कि उनके धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार वे अपने मृतकों को जलाने के बाद अस्थियों को नदी में बहाते हैं, लेकिन यहां श्मशान घाट की सुविधा नहीं है इसलिए वे अपने मृतकों को दफ़नाने के लिए मजबूर हैं।
 
उन्होंने कहा कि केवल पेशावर में ही नहीं बल्कि राज्य के ठीक-ठाक हिंदू आबादी वाले ज़िलों में भी यह सुविधा न के बराबर है। इन जिलों में कई सालों से हिंदू समुदाय अपने मृतकों को दफना रहा है।
 
वह कहते हैं, "पाकिस्तान के संविधान की धारा 25 के अनुसार हम सभी पाकिस्तानी बराबर अधिकार रखते हैं और सभी अल्पसंख्यकों के लिए कब्रिस्तान और श्मशान घाट की सुविधा प्रदान करना सरकार की सर्वोच्च जिम्मेदारी है, लेकिन दुर्भाग्य से न केवल हिंदू बल्कि सिखों और ईसाई समुदाय के लिए भी इस बारे में कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।"
 
हारून सर्वदयाल के अनुसार हिंदुओं और सिखों के लिए अटक में एक श्मशान घाट बनाया गया है लेकिन ज्यादातर हिंदू गरीब परिवारों से संबंध रखते हैं जिसकी वजह से वह पेशावर से अटक तक आने-जाने का किराया वहन नहीं कर सकते।
 
उन्होंने कहा कि पेशावर के हिंदू पहले अपने मृतकों को बाड़ा के इलाके में लेकर जाया करते थे क्योंकि वहाँ एक श्मशान घाट था लेकिन शांति की बिगड़ती स्थिति के कारण वह क्षेत्र अब उनके लिए बंद कर दिया गया है।
 
उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान भर में पहले अल्पसंख्यकों को हर छोटे बड़े शहर में धार्मिक केंद्र या पूजा स्थल थे लेकिन दुर्भाग्य से उन पर या तो सरकार या भूमि माफ़िया ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिससे अल्पसंख्यकों की मुसीबतें बढ़ी हैं।
 
हारून सर्वदयाल के अनुसार, "जिस तरह पाकिस्तान के बनने के समय अल्पसंख्यक अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे थे, उनके हालात में 70 साल बाद भी कोई बदलाव नहीं आया है। वे आज भी अपने अधिकारों से वंचित हैं।"
 
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सभी अल्पसंख्यक सच्चे और सौ फ़ीसदी पाकिस्तानी हैं जो इस देश में बच्चों सहित मर मिटने के लिये तैयार हैं लेकिन दुर्भाग्य से हमारे साथ वह व्यवहार नहीं किया जाता जिसके हम हक़दार हैं।"
 
पाकिस्तान में हिंदू समुदाय देश का सबसे बड़े अल्पसंख्यक तबका माना जाता है। हिंदुओं की ज़्यादातर आबादी सिंध और पंजाब के जिलों में रहती है। खैबर पख़्तूनख़्वाह में पेशावर के बाद हिंदुओं की संख्या कोहाट, बुनेर, हंगू, नौशहरा, स्वात, डेरा इस्माइल खान और बनू के ज़िलों में भी रहती है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

खेती को गहरे जख्म दिए हैं नोटबंदी ने...