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अरुणाचल में झड़प: कितनी कारगर है पीएम मोदी की चीन नीति

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BBC Hindi

, गुरुवार, 15 दिसंबर 2022 (08:26 IST)
अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
  • 9 दिसंबर 2022- अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हिंसक झड़प
  • 15 जून 2020- लद्दाख के गलवान में हिंसक झड़प, 20 भारतीय जवानों की मौत
  • 18 जून 2017- डोकलाम में विवाद, करीब ढाई महीने तक रहा तनाव
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये वो तीन बड़ी घटनाएं हैं जब भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने थे। इन घटनाओं ने हर बार पीएम नरेंद्र मोदी की चीन नीति को कटघरे में खड़ा किया है। इस बार ताजा मामला अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर का है।
 
बीते शुक्रवार तवांग सेक्टर के यांग्त्से में हिंसक झड़प हुई, जिसमें कुछ भारतीय सैनिकों को चोटें आई हैं। घटना के चार दिन बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में इस हिंसक झड़प पर अपनी चुप्पी तोड़ी।
 
न सिर्फ रक्षा मंत्री बल्कि हमलावर विपक्ष को घेरने के लिए गृह मंत्री अमित शाह तक को मीडिया के सामने आना पड़ा। उन्होंने भी देश को आश्वस्त करने की कोशिश की और कहा, "जब तक नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में है तब तक कोई भारत की एक इंच ज़मीन नहीं कब्जा सकता।"
 
वहीं विपक्षी पार्टियां मांग कर रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सामने आकर इस पर सफाई देनी चाहिए और सदन में इस घटना पर चर्चा होनी चाहिए।
 
यहां सवाल सबसे बड़ा यह है कि आखिर कुछ समय के अंतराल पर चीन, भारत में घुसपैठ करने की कोशिश क्यों करता है? क्यों भारत और चीन के सैनिकों के बीच सरहद पर हिंसक झड़पें हो रही हैं? आखिर पीएम नरेंद्र मोदी की चीन नीति है क्या? और क्या अब वह असरदार नहीं रही है? इस सब पर बात करेंगे लेकिन उससे पहले बात साल 2014 की।
 
प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही नरेंद्र मोदी की मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से ब्राजील में हुई। इसकी वजह बना, ब्रिक्स सम्मेलन।
 
उस समय पीएम मोदी ने कहा था, "आपसे मुझे मिलने का प्रत्यक्ष अवसर मिल रहा है, ब्रिक्स समिट के इस अवसर पर भारत और चीन की इस मुलाकात का विशेष महत्व है।"
 
इस मौके पर पीएम मोदी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत आने का न्योता भी दिया था। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच करीब 18 बार मुलाकात हुई।
 
इतनी मुलाकातों के बाद भी भारत और चीन के बीच तनाव खत्म नहीं हुआ। 'नेहरू, तिब्बत और चीन' किताब के लेखक अवतार सिंह भसीन, इस तनाव को करीब 70 साल पहले ले जाते हैं और समझाते हुए कहते हैं कि ये समस्या अंग्रेजों की दी हुई है।
 
बीबीसी हिंदी से बातचीत में वे कहते हैं, "हमें ब्रिटिश सरकार से अनडिफाइन बॉर्डर मिले हैं। वे साइंटिफिक तरीके से मार्क नहीं थे। नेहरू जी को चीन ने कई बार इन्हें ठीक करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। पंडित जी ने लद्दाख बॉर्डर के पुराने नक्शे वापिस लेकर नए नक्शे जारी करने का हुक्म दिया और कहा कि नए नक्शों में एक लाइन लगा दो जिससे पता चले कि यह भारत का बॉर्डर है।"
 
भसीन के मुताबिक पंडित नेहरू ने बिना चीन की सहमति से सीमा को बदलने का एकतरफा फैसला लिया था, यही वजह है कि चीन ने कभी इन बॉर्डर को मान्यता नहीं दी।
 
चीन के साथ सीमा पर तनाव के पीछे कई और वजह भी हैं। विदेश मामलों के जानकार क़मर आगा कहते हैं कि चीन के अंदर जब भी घरेलू समस्या आती है तो वह बॉर्डर पर झड़प जैसी गतिविधियों को बढ़ा देता है ताकि उनके यहां राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिल सके।
 
पीएम नरेंद्र मोदी की चीन नीति पर बात करते हुए क़मर आगा कहते हैं, "भारत चीन से जंग नहीं चाहता, भारत का मानना है कि युद्ध का काल खत्म हो चुका है। भारत बातचीत से मसले हल करना चाहता है लेकिन सैनिकों की तैयारी पूरी रखी है ताकि चीन कमजोर मानकर आगे बढ़ने की कोशिश न करे।"
 
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मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर से चीन को जवाब
पीएम नरेंद्र मोदी तेजी से बॉर्डर एरिया में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। भारत-चीन सीमा पर 61 ऐसी सड़कें हैं जो स्ट्रेजिक तौर पर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनमें से 1530 किलोमीटर की 42 सड़कें, साल 2021 तक बना ली गई थीं। इसके अलावा करीब सात हजार किलोमीटर की 130 सड़कों पर काम चल रहा है।
 
विदेश मामलों के जानकार रॉबिंदर सचदेव कहते हैं कि नरेंद्र मोदी, हिमालयन बॉर्डर पर तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ साथ सेना के हथियारों को भी मॉडर्नाइज कर रहे हैं। बेहतर कनेक्टिविटी से भारतीय सेना जल्द से जल्द पहुंचने में सक्षम होगी।
 
वे कहते हैं, "भारत ने बॉर्डर एरिया में खुद को मजबूत करने के लिए माउंटेन स्ट्राइक कोर भी बनाई है जिसमें करीब 50 हजार सैनिकों को लिया गया है।"
 
चीन को जवाब देने के लिए मजबूत अर्थव्यवस्था जरूरी
चीन को जवाब देने के लिए सैन्य ताकत के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में लगे हुए हैं।
 
कमर आगा कहते हैं, "इस समय चीन परेशान है। उनके अमेरिका के साथ संबंध खराब चल रहे हैं। अमेरिकी कंपनियां चीन से छोड़कर जा सकती हैं। भारत ने अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया है, बिजली, पानी और सड़कों को मजबूत किया है। दो तीन सालों में चीन से इनवेस्टमेंट ट्रांसफर होकर भारत में आएगा, और ये शुरू भी हो चुका है।"
 
अगर ऐसा होता है तो भारत की न सिर्फ अर्थव्यवस्था मजबूत होती बल्कि रोजगार भी बढ़ेगा।
 
रॉबिंदर सचदेव कहते हैं, "भारत के हित में नहीं है कि अगले दस साल तक कोई जंग हो, पीएम मोदी सारा ध्यान अर्थव्यवस्था और टेक्नॉलजी को बढ़ाने पर लगा रहे हैं, इसलिए हमें शांति चाहिए। अर्थव्यवस्था मजबूत होती तो हम सैन्य बजट को भी बढ़ा पाएंगे।"
 
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चीन के साथ व्यापार
व्यापार के मामले में भारत, चीन पर अपनी निर्भरता कम नहीं कर पा रहा है। साल 2020-21 में भारत और चीन के बीच 86।4 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ। इसमें भारत ने चीन से करीब 65 अरब डॉलर का आयात किया और करीब 21 अरब डॉलर का निर्यात किया था।
 
चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा साल 2020-21 में करीब 48 अरब अमेरिकी डॉलर का था।
 
वहीं इस साल के शुरुआती छह महीनों की बात करें तो भारत 42 अरब अमेरिकी डॉलर का आयात कर चुका है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के मुताबिक साल 2014-15 में चीन से आयात 60.41 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2020-21 में 65.21 अमेरिकी डॉलर हो गया है।
 
इसका मतलब है कि पिछले छह सालों में चीन से आयात करने में करीब सात प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है।
 
पीएम नरेंद्र मोदी सालों से आत्मनिर्भर भारत की बात तो जरूर कर रहे हैं लेकिन चीन के साथ व्यापार के आंकड़ों को देखकर जानकार इसे चिंता का विषय बताते हैं।
 
विदेश मामलों के जानकार रॉबिंदर सचदेव का कहना है कि ये चीन पर निर्भरता न सिर्फ भारत बल्कि अमेरिका जैसे देश की भी बढ़ी है।
 
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को अलग करने की कोशिश
चीन के साथ अपने व्यापार को कम करने की दिशा में क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा वार्ता महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं।
 
रॉबिंदर सचदेव कहते हैं, "भारत में क्वाड की पार्टनरशिप से चीन को एक तरह से जवाब दिया जा रहा है, हालांकि ये सैन्य साझेदारी नहीं है, लेकिन इसे देखकर यही समझ आता है कि इससे चीन के इकनोमिक एक्सपेंशन को रोकने की कोशिश की गई है।"
 
"विचार यह है कि चार देश मिलकर आपस में सप्लाई चेन बनाएंगे और ग्रीन टेक्नोलॉजी को साझा करेंगे। इससे चीन पर आत्मनिर्भरता कम होगा।"
 
2017 में मनीला में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान 'भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान-अमेरिका' संवाद के साथ क्वाड अस्तित्व में आया था।
 
चीन शुरू से ही क्वाड को चार विरोधी देशों का समूह मानता रहा है। उसे लगता है कि क्वाड के ये चार देश उसकी बढ़ती ताकत के खिलाफ गुटबंदी कर रहे हैं।
 
पड़ोसियों पर चीन की नजर
अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने की कोशिश भी पीएम नरेंद्र मोदी की चीन नीति में शामिल है। इसकी वजह है कि चीन, भारत के पड़ोसी देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है।
 
रॉबिंदर सचदेव कहते हैं, "पीएम मोदी पड़ोसियों को साधने की कोशिशें तो बहुत कर रहे हैं लेकिन नतीजें जैसे आने चाहिए वैसे नहीं आ रहे हैं। श्रीलंका, मालदीव और नेपाल चीन के ट्रैप में जा रहा है। बांग्लादेश का नंबर वन डिफेंस स्पलायर चीन बन गया है।"
 
वे कहते हैं कि साल 2014 के बाद पड़ोसी, भारत के लिए खतरे की घंटी बन गए हैं क्योंकि चीन की उन पर नजर है।
 
हालांकि श्रीलंका को अंधेरे से निकालने में भारत की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। भारत ने कई बिलियन अमेरिकी डॉलर श्रीलंका को दिए हैं। इतना पैसा, इतनी तेजी से भारत ने शायद ही किसी देश को दिया हो।

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