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राज ठाकरे अपने भाषणों में मोदी-शाह को क्यों बना रहे निशाना

हमें फॉलो करें राज ठाकरे अपने भाषणों में मोदी-शाह को क्यों बना रहे निशाना
, शनिवार, 27 अप्रैल 2019 (16:42 IST)
- नीलेश धोत्रे (बीबीसी मराठी)
 
पिछले कुछ महीनों से, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ खुला रुख़ अपनाया है। राज ठाकरे लगातार रैलियां कर रहे हैं और अपने भाषणों में बता रहे हैं कि कैसे मोदी और उनकी पार्टी ने देश को धोखा दिया है। उन्होंने कई साक्षात्कार भी दिए हैं।
 
 
एनसीपी और कांग्रेस ने राज ठाकरे के रुख़ पर पूरक भूमिका निभाई है और जो लोग अब तक राज ठाकरे की आलोचना करते थे वो अब नरेंद्र मोदी-अमित शाह के ख़िलाफ़ स्टैंड लेने के लिए उनकी सराहना कर रहे हैं। दरअसल, ये राज ठाकरे का अधिकार है कि वह क्या राजनीतिक भूमिका निभाना चाहते हैं। वो इस बात के लिए भी स्वतंत्र हैं कि पांच साल पहले वो जिन लोगों की सराहना करते थे अब उन लोगों की आलोचना करें।
 
 
राजनीतिक बदलाव या बदलती परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक नेताओं और दलों को सियासत करने का पूरा-पूरा अधिकार है। भारतीय राजनीतिक नेताओं ने इस अधिकार का समय-समय पर बहुत उपयोग किया है। राज ठाकरे को भी ये अधिकार है, लेकिन क्योंकि वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के ख़िलाफ खड़े हैं, इसके लिए उनका समर्थन करना हैरान करने वाला है।
 
 
कार्टूनिस्ट मंजुल ने इसे दिखाने के लिए एक कार्टून तैयार किया है। इस कार्टून में बताया गया है कि विपक्षी पार्टियों के पास ऐसा नेतृत्व नहीं है जिसके पास प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ बोलने का साहस या हिम्मत हो।
 
 
ठाकरे की शैली बदली
लोकसभा चुनावों में, राज ठाकरे ने अपनी चिरपरिचित शैली को एक और मोड़ पर दे दिया है। शिवसेना के शुरुआती दिनों में बाल ठाकरे भी विभिन्न विभागों में गैर मराठी लोगों का जिक्र किया करते थे और इस बात को भी रेखांकित करते थे कि नौकरियों में मराठियों को तरजीह नहीं दी जाती है।
 
 
ठाकरे ने भी यही राह पकड़ी है। राज ठाकरे भी लैपटॉप का उपयोग करते हुए, स्लाइड शो और वीडियो के जरिये तथाकथित भुक्तभोगी को स्टेज पर बुलाते हैं और अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश करते हैं। ये शैली या प्रयोग आज महाराष्ट्र में लोकप्रिय हो गया है। महाराष्ट्र के बाहर के लोगों ने भी इस प्रयोग को अपनाना शुरू किया है।
 
 
हालाँकि राज ठाकरे अपने भाषण मराठी में देते हैं, लेकिन उनके भाषण हिंदी-अंग्रेजी उपशीर्षक में देश भर में गए। अब तक नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के तूफ़ानी चुनाव अभियान की काट नहीं ढूँढ़ पाई विपक्षी पार्टियों के लिए ये राहत की बात थी। उन्होंने इस बात के लिए राज ठाकरे की तारीफ़ की कि कोई तो है जो मोदी और अमित शाह की जोड़ी के चुनाव अभियान को टक्कर दे रहा है। पिछले कुछ दिनों से यह लगातार हो रहा है।
 
 
जो लोग राज ठाकरे की उनकी ख़ास राजनीतिक रुख़ के लिए आलोचना करते थे और हिंदी-अंग्रेज़ी मीडिया उनके बयानों को लेकर उनका विरोधी था, अब उनके बयानों को सिर-माथे लगा रहा है और राज ठाकरे का ये अंदाज़ 'सुनिए, वो वीडियो चलाइए' उन्हें पसंद आ रहा है। ऐसा क्यों हुआ?
 
 
विपक्ष को सूझ नहीं रहा है कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी से कैसे लड़ा जाए, लेकिन अब उन्हें कुछ राहत मिली। सही समय पर उन्हें ऐसा नेता मिले है जो शानदार भाषण देता है और ये घोषणा करता है कि वह सिर्फ़ और सिर्फ़ मोदी-शाह की जोड़ी के ख़िलाफ़ हैं।
 
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दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त
राज ठाकरे के इस सिद्धांत को हाथों-हाथ लिया जा रहा है कि 'मेरे दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त है।' लोग उनके भाषणों को ट्वीट कर रहे हैं। फ़ेसबुक पर उनके भाषणों के वीडियो क्लिप जमकर वायरल हो रहे हैं। लेकिन जो लोग पहले राज ठाकरे के प्रशंसक थे, वो अब उनकी आलोचना कर रहे हैं और उनके लिए स्थितियां मुश्किल होंगी अगर कोई उन्हें ये याद दिलाएगा कि राज ठाकरे का रुख़ पहले क्या रहा है।
 
 
कल, अगर राज ठाकरे अन्य राज्यों के छात्रों को पीटने, फ़िल्मों का विरोध करने, विधायकों को इस आधार पर मारने कि उन्होंने शपथ हिंदी में ली है, फेरीवालों की पिटाई करने आदि के अपने पुराने कार्यक्रम पर लौटते हैं, तो उन लोगों का रुख़ तब क्या होगा जो आज उनके भाषणों पर तालियां पीट रहे हैं। इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
 
 
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "नरेंद्र मोदी पूरे देश में एक बड़े फैक्टर हैं। मोदी के ख़िलाफ़ जब कोई हवा बहती नहीं दिख रही है, उस माहौल में राज ठाकरे मंच पर आए हैं, इसीलिए लोगों को उनके भाषण आकर्षित कर रहे हैं। अरबी में एक कहावत है- मेरा भाई और मैं मेरे चचेरे भाई कि ख़िलाफ़ हैं, मेरा चचेरा भाई और मैं अजनबी के ख़िलाफ़ हैं। सियासत कुछ ऐसे ही होती है। महाराष्ट्र ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों में भी कई पार्टियां इसी तर्ज़ पर एक-दूसरे के नजदीक आई हैं। इसलिए जो पार्टियां आज राज ठाकरे का समर्थन कर रही हैं, वो इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।"
 
 
वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले को लगता है कि राज ठाकरे की रैलियों का असर काफ़ी लोगों पर होगा। उन्होंने कहा, "राज ठाकरे को इन चुनावों में इसलिए लोगों का समर्थन मिल रहा है क्योंकि उन्होंने मोदी-शाह की जोड़ी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है।
 
 
विपक्षी पार्टियां उस तरह अपना चुनाव प्रचार नहीं कर सकीं, जैसा कि उन्हें करना चाहिए था, लेकिन राज ठाकरे इस तर्ज़ पर आगे बढ़ रहे हैं। ऑडियो-वीडियो माध्यम से वो मोदी-शाह की जोड़ी के झूठ को जनता के सामने ला रहे हैं। अब तक किसी भी राजनेता ने इस तकनीकी को नहीं आजमाया था।"
 
 
वापस लौटने का रास्ता है क्या?
अगर राज ठाकरे फिर से हिंसक आंदोलन के अपने आक्रामक रुख़ पर वापस लौतते हैं, तो क्या उनके नए प्रशंसक मुश्किलों का सामना करेंगे? इस सवाल पर निखिल वागले कहते हैं, "हाल के भाषणों में राज ठाकरे ने कभी नहीं कहा कि उन्होंने अपने पिछले रुख़ को बदल दिया है।
 
 
उनकी हिंदुत्ववादी छवि और उत्तर भारतीयों के ख़िलाफ़ उनका रुख़ पहले जैसा ही है। लेकिन बदले हालात में उन्होंने इस पर रुख़ कुछ नरम किया है, उनकी राजनीति इस बात पर निर्भर करेगी कि वो आने वाले समय में क्या करते हैं।"
 
 
वहीं वरिष्ठ पत्रकार स्मृति कोप्पिकर का कहना है कि कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, वामपंथी झुकाव वाले, उदारवादियों को राज ठाकरे से इसलिए प्यार नहीं हुआ है, क्योंकि वे उनकी हर बात से सहमत हैं। यह संबंध विचारधारा-आधारित नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक साझेदारी है। यह एक ग़ैर-वैचारिक रिश्ता है।
 
 
कोप्पिकर कहती हैं, "राज ठाकरे अपने अतीत और राजनीतिक दृष्टिकोण को अपने साथ लाते हैं जो उन्होंने आज तक लिया था। हम यह नहीं मान सकते कि उदारवादी यह सब भूल गए हैं। साथ ही, भले ही राज ठाकरे ने मोदी की भारी आलोचना की हो, लेकिन उनके और उदारवादियों के बीच का टकराव बंद नहीं होगा। यह राज ठाकरे पर है कि वह इस अंतर को कैसे पाटना चाहते हैं।"
 
 
राज ठाकरे की भाषा में बदलाव पर उन्होंने कहा, "राज ठाकरे का मूल आधार मराठी उप-राष्ट्रवाद, मराठी पहचान और मराठी मानूस पर आधारित है। लेकिन, इन भाषणों में उन्होंने इसका उल्लेख भी नहीं किया है।
 
 
उन्होंने सामान्य शब्द 'बाहरी' भी नहीं बोला है। हालाँकि वो अपने भाषण मराठी में दे रहे हैं, लेकिन जब चुनाव खत्म होंगे उन्हें इस बात का जवाब देना होगा कि उनके मूल मराठी मुद्दों का क्या हुआ, तभी महराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक परिदृश्य स्पष्ट होगा।"
 

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