Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

गधों और अपराधियों के पेच में फंसी राजस्थान पुलिस

हमें फॉलो करें गधों और अपराधियों के पेच में फंसी राजस्थान पुलिस

BBC Hindi

, शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021 (08:03 IST)
मोहर सिंह मीणा, जयपुर से, बीबीसी हिंदी के लिए
राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले में लगातार हो रही गधों की चोरी ने पुलिस को सभी काम छोड़ कर गधों के चोरों को पकड़ने में लगा दिया है। चोरों की तलाश के लिए पुलिस टीम बनाई गई हैं और लोगों को अपने गधों को घर में ही रखने की हिदायत दी जा रही है।
 
हनुमानगढ़ ज़िले के नोहर तहसील के खुईयाँ थाना क्षेत्र के कई गांवों में दस दिसंबर से ही गधे चोरी होने की शिकायतें लगातार थाने पहुंच रही हैं। कुछ दिन तक सुनवाई नहीं हुई तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ चरवाहों ने 28 दिसंबर को गधों की तलाश की मांग करते हुए खुईयाँ थाने पर धरना दे दिया। पुलिस के 15 दिन में गधों की तलाश करने के आश्वासन के बाद धरना समाप्त हुआ।
 
अब तक 76 गधों की चोरी
लेकिन, 29 दिसंबर की रात फिर एक गांव मंदर पुरा से छह गधे चोरी हो गए। अब इलाक़े के चरवाहे डरे हुए हैं और जल्द ही चोरी हुए गधों की तलाश की मांग कर रहे हैं।
 
नोहर के डिप्टी एसपी विनोद कुमार ने बीबीसी को बताया, "पहली बार ऐसा हुआ है। दो-तीन जगहों से गधे चोरी की सूचना आई है। किसी के चार और किसी के पांच गधे चोरी हुए हैं। तलाश के लिए हमने पुलिस टीम लगाई हुई हैं, हम प्रयास कर रहे हैं।"
 
देवासर गांव के चरवाहा पवन के पास बड़ी संख्या में भेड़ हैं। उनका दावा है कि उनके तीन गधे चोरी हुए हैं। उन्होंने फ़ोन पर बीबीसी को बताया, "9 तारीख़ की रात से ही गधे चोरी हो रहे हैं। किसी के दो तो किसी के तीन गधे चोरी हुए और हमारे गांव में अब तक 16 गधे चोरी हो गए हैं।"
 
गधे चोरी होने बाद खुईयाँ थाने पर चरवाहों के साथ धरना देने पहुंचे माकपा से पंचायत समिति सदस्य मंगेज चौधरी ने बीबीसी से कहा, "गधे चोरी के मामले को लेकर हम कई बार पुलिस से मिले। लेकिन, पुलिस ने दो चार दिन का समय मांगा। आख़िर हमने चरवाहों के साथ 28 दिसंबर को दिनभर थाने पर धरना दिया। तब शाम को डिप्टी एसपी ने धरने पर पहुंच कर 15 दिन में गधे खोजने का समय मांगा है।"
 
चौधरी ने कहा, "नोहर तहसील के मन्द्रपुरा, कानसर, देवासर, नीमला, जबरासर, राईकावाली, नीमला, जबरासर समेत अन्य गांवों से गधे चोरी हुए हैं।"
 
मन्द्रपुरा ग्राम पंचायत के सरपंच प्रतिनिधि शरीफ़ मोहम्मद ने हमसे कहा, "29 दिसंबर की रात हमारे गांव से 6 गधे चोरी हुए हैं। बीकानेर से आए रामनारायण जाट और मुकेश कुमार गोदारा गांव में रुके हुए थे। रात में उन दोनों के छह गधे चोरी हो गए।"
 
शरीफ़ ने बताया, "सुबह गधे चोरी की जानकारी होने पर खुईयाँ थाना पुलिस गांव में आई। हमने थाने में शिकायत भी दी है। पहले 70 और अब 6 चोरी हुए गधों को मिलकर कुल 76 गधे इलाक़े से चोरी हो चुके हैं।"
 
पुलिस ने गधों को पकड़ा, वह नहीं थे चरवाहों के चिंटू, पीकू
गधों की चोरी की शिकायतों के बाद पुलिस 27 दिसंबर की रात 15 गधों को पकड़ कर थाने भी ले आई। फिर चरवाहों को अपने गधों की पहचान के लिए बुलाया गया।
 
खुईयाँ थाना अधिकारी वीरेंद्र शर्मा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "गधे चोरों की शिकायत मिली तो पुलिस टीम ने कुछ गधों को पकड़ा था। लेकिन, अपने गधे की पहचान के दौरान चरवाहे गधों को चिंटू, पीकू, कालू और अन्य नामों से बुलाने लगे।"
 
"बाद में उन्होंने अपने गधे होने से इंकार कर दिया क्योंकि नाम लेने पर गधे पलटे नहीं थे।"
 
थाना अधिकारी वीरेंद्र का कहना है, "उन्होंने न तो अपने गधों की कुछ पहचान बताई है और न ही कुछ निशान। फिर भी हम गधों को खोजने का प्रयास कर रहे हैं।"
 
डिप्टी एसपी विनोद कुमार ने भी कहा, "कुछ गधे हमें मिले भी थे जो चरवाहों को दिखाए गए। लेकिन, वह कह रहे हैं कि वो गधे उनके नहीं हैं।"
 
देवासर गांव से चोरी हुए गधों के मालिक (चरवाहा) पवन का कहना है, "थाने में जो गधे दिखाए गए थे, वो हमारे नहीं थे। हम अपने पशुओं को पहचानते हैं। थाने में दिखाए गधे भट्टे और ईंट ढोने का काम करने वाले थे।"
 
चरवाहों के मददगार होते हैं गधे
हनुमानगढ़ ज़िले में कृषि के बाद सबसे ज़्यादा पशुपालन का ही व्यवसाय है। नोहर और भादरा तहसीलों के अधिकतर गांवों में चरवाहों के पास बड़ी संख्या में पशु हैं। एक चरवाहे के पास तीन सौ तक पशु होते हैं। और हर एक गांव में हज़ारों की संख्या में पशु हैं।
 
यह चरवाहे भेड़, बकरी और गायों के साथ एक से दो गधे भी साथ रखते हैं। क्योंकि, जब भेड़, बकरियों के सैकड़ों के झुंड को चराने ले जाते हैं, उस दौरान गधे पर अपने खाने, पानी, कपड़े जैसा ज़रूरत का सामान लाद देते हैं। कई बार तो भेड़ और बकरियों के बेहद छोटे बच्चों को भी इन गधों पर ही लाद दिया जाता है।
 
ये चरवाहे अकसर कई ज़िलों से होते हुए तीन से चार महीने का सफ़र कर अपने गांव लौटते हैं। इस दौरान इनका सारा सामान इन्हीं गधों पर इनके रेवड़ (भेड़, बकरियों के झुंड) के साथ ही चलता है।
 
इसलिए गधे इनके बड़े मददगार साबित होते हैं। लेकिन, अब गधे चोरी होने से इन चरवाहों के सामने संकट खड़ा हो गया है।
 
चरवाहा पवन जिसके पास सौ भेड़ हैं, कहते हैं कि, "पांच दिसंबर को ही चार महीने बाद लौटा था अपनी रेवड़ (भेड़ों) को लेकर। अब फिर बाहर जाना था लेकिन गधे चोरी होने से अब बिना गधों के कैसे जाऊंगा।"
 
वहीं, पुलिस भी बढ़ती गधे चोरी को देखते हुए इलाक़े के ग्रामीणों को अपने गधों को घरों में रखने की हिदायत दे रही है।
 
खुईयाँ थाना अधिकारी वीरेंद्र शर्मा ने बीबीसी से कहा, "ग्रामीणों के बीच जा कर उन्हें गधों को खुला नहीं छोड़ने के लिए कहा जा रहा है। हम चरवाहों से गधों को घर में रखने के लिए भी बोल रहे हैं।"
 
गधे चोरी से घबराए चरवाहे, बीस हज़ार तक की क़ीमत का दावा
लगातार हो रही गधों की चोरी से जहां इलाक़े के लोग हैरान हैं। वहीं, चरवाहों के सामने बड़ी चिंता अपने भेड़ बकरियों की है।
 
एक एक चरवाहे के पास सैकड़ों भेड़ और बकरियां हैं। चरवाहे बताते हैं कि एक भेड़ की क़ीमत दस से लेकर पंद्रह हज़ार रुपये तक है। ऐसे में यदि भेड़ें भी चोरी होने लगी तो हम क्या करेंगे।
 
देवासर गांव के चरवाहे पवन बताते हैं कि "तेरह से पंद्रह हज़ार रुपया एक गधे की कीमत है। हम गरीब लोग पशुपालन से ही जीवनयापन करते हैं।"
 
वह कहते हैं, "गधे चोरी होने की घटनाओं के बाद से ही अब उन्हें रात को नींद नहीं आती है। इसी तरह भेड़ चोरी हो गए तो क्या होगा?"
 
चरवाहा राजेंद्र सारण दावा करते हुए कहते हैं, "एक गधे की क़ीमत बीस हज़ार रुपये तक है। गधों की चोरी होना हमारे लिए तो बड़ी चिंता है। अब अपनी रेवड़ (भेड़ बकरियों) को बिना गधों के कहां ले कर जाएं। गधों पर ही तो हम अपना सामान लादते थे।"
 
राजस्थान में गधों का मेला भी लगता है
गधे बहुत पहले से ही माल ढोने के काम में लाए जाते हैं। कई जगह तो आज भी खेती से जुड़े कार्यों में भी गधों की मदद ली जाती है। हालांकि, कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं लेकिन अब गधों की संख्या में बहुत कमी आई है।
 
पशु मेलों में बिकने आने वाले गधों की खरीददारी के लिए भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। लेकिन, अब यहां भी गधों की संख्या कम ही दिखाई पड़ती है। गधों की कदकाठी के अनुसार ही उनकी क़ीमत भी अलग अलग होती है।
 
उज्जैन में बीते महीने लगे पशु मेले में सोलह हज़ार तक में गधे बिकने की ख़बरें आई थीं।
 
जबकि, अजमेर के पुष्कर में हाल ही में लगे पशु मेले में गधों की खरीददारी करने वालों की संख्या ठीक ठाक ही थी। हालांकि, गधों की संख्या ज़रूर मेलों में कम हो गई है। यहां दो से तीन हज़ार रुपये से गधों की क़ीमत शुरू हो रही थी।
 
तीन हज़ार से लेकर दस बारह हज़ार तक के गधे मेलों में मिल ही जाते हैं। वहीं, हनुमानगढ़ में गधे पर ईंट बजरी धोने वाले एक शख़्स ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि वह चार हज़ार रुपये में गधे को ख़रीद कर लाया है।
 
नोहर तहसील के गांवों से चोरी हुए गधों की क़ीमत कुछ चरवाहे बीस हज़ार रुपये तक बता रहे हैं। ऐसे में यदि औसतन पंद्रह हज़ार रुपये भी यदि एक गधे की क़ीमत मानी जाती है। तब चोरी हुए 76 गधों की क़ीमत 11 लाख 40 हज़ार रुपये होती है। गधों की कीमत से ज़्यादा कई साल से अपने मददगार पशुओं को खोने का दुख ज़रूर चरवाहों को झेलना पड़ रहा है।
 
साल के अंतिम महीने में जहां पुलिस पेंडिंग मामलों को तेज़ी से जांच कर निपटाने का काम करती है। वहीं, खुईयां थाना पुलिस ज़रूर इस समय गधों की तलाश में दिन रात जुटी हुई है।
 
चरवाहों को भी अपने मददगार गधों के लौट आने का इंतज़ार है और अपने भेड़ बकरियों के चोरी होने का डर भी सर्द अंधेरी रातों में बढ़ता जा रहा है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या भारत को मिलेगा सेमीकंडक्टर की वैश्विक कमी का फायदा