- समीरात्मज मिश्र
उत्तरप्रदेश के रामपुर में छह साल की बच्ची के कथित बलात्कारी को मुठभेड़ में गोली मारने के मामले में रामपुर के पुलिस अधीक्षक अजयपाल शर्मा की चर्चा सोशल मीडिया पर ख़ूब हो रही है। एक तरफ़ तो लोग इसे उनकी बहादुरी क़रार दे रहें हैं तो दूसरी तरफ़ बहुत सारे लोग इस मामले में कई सवाल भी उठा रहे हैं, जो न सिर्फ़ पुलिस की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं बल्कि राज्य की क़ानून व्यवस्था को भी घेरे में डाल रही है।
क़रीब डेढ़ महीने पहले छह साल की एक बच्ची की बेरहमी से हत्या करके शव को कहीं फेंक दिया गया था। आशंका ज़ाहिर की गई कि पहले बच्ची के साथ दुष्कर्म किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। इस मामले में नाज़िल नाम के जिस शख़्स को पुलिस मुख्य अभियुक्त मान रही थी, दो दिन पहले पुलिस के साथ उसकी मुठभेड़ हुई जिसमें बताया जा रहा है कि एसपी अजयपाल शर्मा ने नाज़िल को गोली मार दी जो कि उसकी टांगों पर लगी। बाद में नाज़िल को पुलिस ने हिरासत में लेकर अस्पताल भेज दिया।
आत्मरक्षा की कार्रवाई?
हालांकि अन्य मीडिया से बातचीत में ख़ुद एसपी अजयपाल शर्मा ने यही बताया, ''सिविल लाइंस थाने की पुलिस के साथ नाज़िल की मुठभेड़ हुई जिससे उसके पैर में गोली लग गई।''
लेकिन सोशल मीडिया पर अजयपाल शर्मा की तस्वीरों के साथ यही बात वायरल हो रही है कि नाज़िल को गोली अजयपाल शर्मा ने ही मारी। इसके लिए अजयपाल शर्मा की जमकर तारीफ़ भी हो रही है। गोली अजयपाल शर्मा ने ही मारी या फिर किसी और ने, इस बारे में जानने के लिए अजयपाल शर्मा से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि पुलिस ने 'पीड़ित लड़की के परिवार को न्याय दिलाया है', 'उनके मन में थोड़ा सुकून मिला है', 'इससे बदमाशों के मन में ख़ौफ़ पैदा होगा' 'इससे अपराधों में कमी आएगी' इत्यादि। सोशल मीडिया पर तो कई लोग उन्हें भगवान के समकक्ष रख रहे हैं तो कई उन्हें सिंघम का अवतार बता रहे हैं।
लेकिन कई लोग इस पर सवाल भी उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी एके जैन कहते हैं कि यदि मुठभेड़ के दौरान अभियुक्त ने गोली चलाई और पुलिस ने आत्मरक्षा में उसे गोली मारी तो इसमें कोई ग़लत नहीं है लेकिन सिर्फ़ रेप और हत्या का अभियुक्त मानकर गोली मार दी तो ये बिल्कुल ग़लत है।
बीबीसी से बातचीत में एके जैन का कहना था, "जैसा मैंने ख़बरों में पढ़ा है कि उस व्यक्ति ने पुलिस पर उस वक़्त गोली चलाई जब पुलिस उसे गिरफ़्तार करने की कोशिश कर रही थी। ऐसे में अपने बचाव में पुलिस अधिकारी का गोली चलाना पूरी तरह से न्यायसंगत है लेकिन रेप के एक अभियुक्त पर गोली चला देना जिसका कि पहले से कोई आपराधिक इतिहास भी न रहा हो तो ये ठीक नहीं है।"
एके जैन कहते हैं कि अभियुक्त की तो छोड़िए यदि आरोप साबित भी हो गए हों तो भी गोली चलाने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि सज़ा देना तो न्यायालय का काम है, पुलिस का नहीं।
'पब्लिसिटी स्टंट'
वहीं पुलिस विभाग के एक मौजूदा अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर इस कार्रवाई को पूरी तरह से 'पब्लिसिटी स्टंट' क़रार देते हैं। उनके मुताबिक़, "ये बात समझ से परे है कि एक अभियुक्त को किसी एक थाने की पुलिस पकड़ने गई है और उस पर गोली पुलिस अधीक्षक चला रहे हैं। किसी मुठभेड़ का नेतृत्व पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी का करना कोई सामान्य बात नहीं होती है और ये मामला इतना बड़ा और मुश्किल नहीं था कि इसमें एसपी जैसे अधिकारी को लगना पड़ता।"
हालांकि पुलिस अधिकारी की इस कार्रवाई की प्रशंसा करने वाले सोशल मीडिया पर ही नहीं बल्कि उसके अलावा भी तमाम लोग हैं। लखनऊ में अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार और पिछले क़रीब डेढ़ दशक से क्राइम की रिपोर्टिंग कर रहे विवेक त्रिपाठी कहते हैं कि एसपी अजयपाल शर्मा ने कुछ भी ग़लत नहीं किया। उनके मुताबिक़ ऐसे जघन्य कृत्य के लिए तो और बड़ी सज़ा दी जानी चाहिए थी।
विवेक त्रिपाठी कहते हैं, "पुलिस का इतना भय अपराधियों में रहना चाहिए अन्यथा अपराध रोकना आसान नहीं होगा। हम लोग क्राइम की ख़बरें कवर करते-करते अपराध और अपराधियों के मनोविज्ञान को भली-भांति समझते हैं। क़ानून और पुलिस का भय यदि ख़त्म हो गया तो अपराधियों के हौसले बुलंद रहेंगे।"
उत्तर प्रदेश में डीजीपी रह चुके एक अन्य रिटायर्ड पुलिस अधिकारी सुब्रत त्रिपाठी भी सिर्फ़ एक अभियुक्त को गोली मारने के पक्ष में नहीं हैं लेकिन मुठभेड़ में किसी को भी गोली लग जाने को वे बहुत आश्चर्यजनक घटना नहीं मानते हैं। वहीं लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान इस घटना को राज्य की 'बिगड़ती क़ानून व्यवस्था' और 'बेलगाम पुलिस' का नतीजा बताते हैं।
वो कहते हैं, "जिस व्यक्ति पर पुलिस को संदेह था, उसके संदेह का क्या आधार था ये किसी को नहीं पता है। उसे पकड़ने की बजाय गोली मारकर पुलिस अपनी नाकामी छिपा रही है। जबकि सच्चाई ये है कि डेढ़ महीने से लापता बच्ची के बारे में उसे तब तक कोई जानकारी नहीं मिली जब तक कि उसकी लाश की सूचना दूसरे लोगों ने नहीं दी। यह अकेली घटना नहीं है बल्कि राज्य में आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं।"
मुठभेड़ को लेकर यूपी पुलिस पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। हालांकि रिटायर्ड डीजीपी एके जैन के मुताबिक़ पहले के मुक़ाबले अब मुठभेड़ की घटनाएं बहुत कम होती हैं।
उनका कहना है, "मैंने जब सत्तर के दशक में नौकरी शुरू की थी, उस वक़्त सैकड़ों मुठभेड़ें हर साल होती थीं और कम से कम दो-ढाई सौ अपराधी मारे भी जाते थे। डकैती उन्मूलन अभियान में कितने डकैत मारे गए। लेकिन नब्बे के दशक के बाद मुठभेड़ों में इसलिए कमी आई क्योंकि मानवाधिकार आयोग, जांच एजेंसियों और सुप्रीम कोर्ट की सख़्ती के बाद पुलिस अधिकारियों में भी मुठभेड़ को लेकर डर पैदा हो गया।"
एके जैन के मुताबिक़, आम आदमी के पास मुठभेड़ों पर सवाल उठाने और उनकी शिकायत करने के लिए कई मंच उपलब्ध हैं। इनकी वजह से न सिर्फ़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ें कम हुई हैं बल्कि अपराधियों को सीधे मौत के घाट उतारने की बजाय उनके पैरों में गोली मारने का चलन भी बढ़ा है। एके जैन कहते हैं, "पहले की मुठभेड़ें तो आर या पार की लड़ाई जैसी होती थीं जिनमें या तो पुलिस को मरना है या फिर अपराधी को।"
एसपी अजयपाल शर्मा अभी कुछ दिन पहले ही रामपुर गए हैं। इससे पहले वो प्रयागराज स्थित पुलिस मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक कार्मिक के रूप में तैनात थे। पुलिस वालों के बीच 'एनकाउंटरमैन' के नाम से मशहूर अजयपाल शर्मा ने क़रीब दो हफ़्ते पहले ही रामपुर में बतौर पुलिस कप्तान, पदभार संभाला था।