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रूस का यह इंकार, भारत के लिए कितना बड़ा झटका, अब क्या है रास्ता

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BBC Hindi

, सोमवार, 8 मई 2023 (18:40 IST)
India and Russia: भारत और रूस ने आपसी कारोबार रुपए (business in rupees) में करने पर बातचीत रोक दी है। यूक्रेन युद्ध (Ukraine war) के बाद रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल और कोयला ख़रीद रहे भारत को इस बातचीत के पटरी पर उतरने से झटका लग सकता है। दरअसल, रूस के पास रुपयों का अंबार लग गया है और अब ये उसके लिए समस्या बन गया है।
 
चूंकि रूस के लिए रुपए को दूसरी करेंसी में बदलने की लागत बढ़ती जा रही है, इसलिए वो रुपए में पेमेंट लेने से इंकार कर रहा है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक के लिए गोवा आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने पत्रकारों को बताया कि रूस के भारतीय बैंकों में अरबों रुपए पड़े हैं, लेकिन वो इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता।
 
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ लावरोफ़ ने पत्रकारों से कहा, 'हमें इस पैसे का इस्तेमाल करना होगा। लेकिन इसे दूसरी मुद्रा में ट्रांसफ़र करना होगा। इसे लेकर बातचीत चल रही है।' इसका मतलब ये है कि रूस अब अपने तेल, हथियार और दूसरी चीज़ों का पेमेंट रुपए में लेने के लिए तैयार नहीं है।
 
रूस अब रुपए से ज़्यादा क़ीमती चीनी मुद्रा युआन या दूसरी करेंसी में ये पेमेंट चाहता है। यूक्रेन पर हमले के बाद लगे प्रतिबंध के बाद से रूस ने ही भारत को रुपए में सौदा करने के लिए प्रोत्साहित किया था। अमेरिका ने उस समय रूसी बैंकों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
 
चूंकि स्विफ़्ट मैसेजिंग सिस्टम से रूसी बैंकों को बाहर कर दिया गया था, इसलिए डॉलर समेत कई करेंसी में रूसी कारोबार का ट्रांजेक्शन बंद हो गया था। अमेरिका, यूरोपीय संघ समेत दूसरे पश्चिमी देशों की ओर से भी रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध के बाद रूस को अपने तेल के ग्राहकों की तलाश थी।
 
भारत ने भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से तेल की ख़रीद बढ़ा दी थी। चूंकि रूस सस्ता तेल दे रहा था, इसलिए भारत ने अपना आयात बढ़ाना शुरू कर दिया था। इस तेल के पेमेंट चूंकि रुपए में करना था, इसलिए उसके लिए ख़रीद बढ़ाने का अच्छा मौक़ा था। लेकिन भारत के बढ़ते व्यापार घाटे की वजह से रुपए में कमज़ोरी आई है, इसकी किसी दूसरी करेंसी में कन्वर्जन की लागत बढ़ गई है। लिहाजा रूस अब भारतीय रुपए में पेमेंट लेने में हिचकिचा रहा है।
 
भारत की ओर रूसी हथियार, तेल, कोयला और दूसरी चीज़ों का आयात बढ़ने से रूस का ट्रेड सरप्लस बढ़ गया और अब उसके पास 40 अरब डॉलर के बराबर रुपया जमा हो गया है। इस रुपए को दूसरी करेंसी में बदलना उसके लिए महंगा हो रहा है। लिहाजा अब वो और ज़्यादा रुपया जमा नहीं करना चाहता।
 
अब भारत को यह पेमेंट युआन या किसी दूसरी करेंसी में करना होगा, जो उसके लिए महंगा साबित होगा। भारत का रुपया पूर्ण परिवर्तनीय नहीं है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय निर्यात में भी इसकी हिस्सेदारी सिर्फ़ दो फ़ीसदी है। भारतीय अर्थव्यवस्था के इन कमज़ोर पहलुओं की वजह से दूसरे देशों के लिए रुपए का रिजर्व फ़ायदेमंद नहीं है।
 
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लावरोफ़ का बयान भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता?
 
भारत ने पिछले साल फरवरी में ही रूस से रुपए में सेटलमेंट की संभावना की तलाश शुरू कर दी थी। ऐसा रूसी प्रोत्साहन के बाद हुआ था। लेकिन अभी तक रुपए में कोई सेटलमेंट नहीं हुआ है। और अब लावरोफ़ के बयान ने इन उम्मीदों को और धूमिल कर दिया है।
 
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने एक स्रोत के हवाले से बताया कि रूस रुपए में सेटलमेंट को बढ़ावा नहीं देना चाहता। भारत ने रुपए में सेटलमेंट के लिए काफ़ी कोशिश की। लेकिन ये कामयाब नहीं हो सका। रूस इस वक़्त भारत का सबसे बड़े हथियार और दूसरे सैनिक साजोसामान का सप्लायर है। लेकिन ये सप्लाई अभी रुकी हुई है। क्योंकि रूस को पेमेंट करने का भारत के पास जो मैकेनिज्म है, उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है।
 
भारत को रूस को हथियार और दूसरे सैनिक साजोसामान की सप्लाई के एवज में 2 अरब डॉलर देने हैं। लेकिन प्रतिबंध की वजह से ये पेमेंट पिछले 1 साल से लटका हुआ है। भारत को डर है कि ऐसा करने पर वह अमेरिकी प्रतिबंध का शिकार बन सकता है। दूसरी ओर रूस रुपए में पेमेंट लेने के भी तैयार नहीं है।
 
भारतीय बैंकों ने रूसी बैंकों में वोस्त्रो अकाउंट खोले हैं, ताकि रुपए में पेमेंट करके तेल ख़रीदा जा सके। समस्या ये है कि भारत की ओर से तेल ख़रीद में तेज़ी के बाद रूस के पास रुपयों का अंबार लगता जा रहा है। रुपए में सेटलमेंट से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए अब वो इसमें पेमेंट नहीं लेना चाहता।
 
रूस से भारत का तेल आयात कितना बढ़ा?
 
अमेरिका और यूरोप की ओर से रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध के बाद भारत ने वहां से तेज़ी से तेल ख़रीदना शुरू किया। डेटा इंटेलिजेंस फर्म वॉर्टेक्सा लिमिटेड के मुताबिक़ इस अप्रैल में रूस से भारत का कच्चा तेल आयात बढ़ कर 16.80 लाख बैरल प्रति दिन पर पहुंच गया। ये अप्रैल 2022 की तुलना में 6 गुना ज़्यादा है।
 
पिछले साल फरवरी में छिड़े रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक भारत के आयात बास्केट में रूसी तेल की हिस्सेदारी सिर्फ़ एक फ़ीसदी थी, लेकिन एक साल में यानी फरवरी 2023 में ये हिस्सेदारी बढ़ कर 35 फ़ीसदी पर पहुंच गई।
 
इस साल मार्च में ख़ुद रूसी उप प्रधानमंत्री अलेक्जे़ंडर नोवाक ने बताया कि उनके देश ने पिछले एक साल में भारत को अपनी तेल बिक्री 22 फ़ीसदी बढ़ाई है। भारत, चीन और अमेरिका के बाद तेल का तीसरा बड़ा ख़रीदार है। भारत ने रूस से सस्ता तेल ख़रीद कर कर अब तक 35 हज़ार करोड़ रुपए बचाए हैं।
 
साथ ही ओर ये पेट्रोलियम उत्पादों का बड़ा सप्लायर बन कर भी उभरा है। लेकिन रूस से मिल रहे संकेतों के बाद शायद भारत ये फ़ायदा नहीं उठा पाएगा। सस्ते रूसी तेल से भारतीय रिफ़ाइनिंग कंपनियों को जो फ़ायदा हो रहा था, वो भी अब शायद नहीं रह जाएगा। रूसी सस्ते तेल की वजह से भारत के रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद तेज़ी से यूरोपीय बाजार में पहुंच रहे थे। लेकिन शायद ये स्थिति नहीं रह जाएगी।
 
भारत का बढ़ता आयात और घटता निर्यात सिरदर्द बना
 
रूस का भारत से रुपए में पेमेंट लेने से इंकार करना और बड़ा सिरदर्द इसलिए होने जा रहा है क्योंकि यूक्रेन पर हमले के बाद रूस से भारत का आयात 10.6 अरब डॉलर से बढ़ कर 51.3 अरब डॉलर के मूल्य के बराबर पहुंच गया है। वहीं निर्यात 3.61 अरब डॉलर से थोड़ा घटकर 3.43 अरब डॉलर के मूल्य के बराबर हो गया।
 
स्पष्ट है कि भारत को काफ़ी ज़्यादा पेमेंट करना है। रुपए में पेमेंट लेने से इंकार करने के बाद भारत को अब दूसरी करेंसी में पेमेंट करना होगा। ये करेंसी रुपए से ज़्यादा महंगी है, इसलिए भारत की देनदारी और बढ़ जाएगी। ये भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के लिए नुकसानदेह है। इससे भारत की आर्थिक दिक़्क़तें और बढ़ेंगी। फ़िलहाल रूस के साथ कारोबार में पेमेंट सेटलमेंट के लिए तीसरी पार्टी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
 
स्विफ़्ट पर दूसरे देशों से कारोबार पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसलिए भारत किसी तीसरे देश को पेमेंट कर सेटलमेंट कर रहा है। यहां से यह पैसा रूस को जा रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बताया है कि भारत सरकार के एक अधिकारी के मुताबिक़ इसमें चीनी मुद्रा युआन भी शामिल है।

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