चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, पटना
बिहार में अब तक बीजेपी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जाने वाला कोई नेता नहीं मिला है। हालाँकि भारतीय जनसंघ के कई नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की तरह जेपी आंदोलन में शामिल थे।
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से ही निकलकर पहले लालू और फिर नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे हैं। बीते तीन दशक से ज़्यादा समय से बिहार की सियासत इन्हीं दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रही है।
हालाँकि जेपी आंदोलन से जुड़े कई चेहरे बीजेपी में हैं, लेकिन जनसंघ से लेकर अब बीजेपी तक में पार्टी को ऐसा कोई नेता बिहार में नहीं मिला जो उसे राज्य की सत्ता दिला सके। बीजेपी राज्य की सत्ता में रही है तो नेतृत्व की जगह उसकी भूमिका सहयोगी की रही है।
इस तरह से बिहार इकलौता हिन्दी भाषी राज्य है, जहाँ बीजेपी को कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिल पाई है। नीतीश कुमार के एक बार फिर एनडीए में शामिल हो जाने के बाद बीजेपी अलग रणनीति पर काम करती दिख रही है।
उसने नई सरकार में कुशवाहा समुदाय के सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनवाया है जबकि भूमिहार बिरादरी के विजय सिन्हा दूसरे उपमुख्यमंत्री हैं।
सम्राट चौधरी सुर्खियों में क्यों हैं?
विजय सिन्हा बीजेपी के पुराने नेता हैं। लेकिन सम्राट चौधरी को बीजेपी में शामिल हुए अभी महज़ 6 साल पूरे हुए हैं। वो पहले प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बने और अब उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। इसलिए बिहार में हुए सियासी उलटफेर में जिस एक नेता का नाम काफ़ी चर्चा में है वो सम्राट चौधरी हैं।
सम्राट चौधरी फ़िलहाल बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं और उन्हें पार्टी ने विधायक दल का नेता भी बनाया है।
बीजेपी में सम्राट चौधरी का कद काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है। कभी बीजेपी के विरोधी रहे सम्राट ने पार्टी के कई बड़े नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। बिहार में सम्राट चौधरी का नाम नीतीश कुमार के धुर विरोधी नेता के तौर पर लिया जाता रहा है।
माना जाता है कि सम्राट चौधरी बीजेपी के उन नेताओं में हैं, जो नीतीश की एनडीए में वापसी का विरोध कर रहे थे।
हालाँकि वरिष्ठ पत्रकार ज्ञान प्रकाश मानते हैं कि सम्राट चौधरी ही नहीं राज्य के किसी नेता की राय इस मामले में अहमियत नहीं रखती है।
उनका कहना है, “बीजेपी में इस तरह के फ़ैसले नरेंद्र मोदी लेते हैं और उसके बाद अमित शाह का नंबर आता है। कुछ हद तक इसमें पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की भूमिका हो सकती है। इस मामले में सम्राट चौधरी की राय कोई जगह नहीं रखती है।”
सम्राट चौधरी साल 2017 में बीजेपी में शामिल हुए थे। उस वक़्त एनडीए की सरकार में उन्हें पंचायती राज मंत्री भी बनाया गया था। यानी छह साल में ही सम्राट चौधरी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के बाद अब बीजेपी के कोटे से बिहार सरकार में उप मुख्यमंत्री भी बन गए हैं।
जातीय समीकरण में फिट
ज्ञान प्रकाश का मानना है कि सम्राट चौधरी को उप मुख्यमंत्री बनाने के पीछे स्पष्ट तौर पर बिहार का जातीय समीकरण है। सम्राट चौधरी ओबीसी समुदाय से आते हैं। वो कोइरी (कुशवाहा) वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।
बिहार में पिछले साल जारी किए गए जातीय गणना के आँकड़ों के मुताबिक़, राज्य में महज़ 10 फ़ीसदी सवर्ण हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए अपने परंपरागत सवर्णों के वोटों के अलावा बाक़ी वोटों को साधना भी ज़रूरी है।
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “सम्राट चौधरी उस वक़्त बीजेपी में शामिल हुए थे जब बीजेपी ने बिहार में ओबीसी को साधने की शुरुआत की थी। बीजेपी की रणनीति नीतीश के लव-कुश वोटों में भी सेंध लगाना है। इसमें कुर्मी-कोइरी वोटरों की भूमिका अहम होती है। नीतीश कुमार कुर्मी हैं तो सम्राट चौधरी कोइरी।”
माना जाता है कि सम्राट चौधरी को बीजेपी मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर तैयार कर रही थी। अगस्त 2022 में नीतीश के एनडीए छोड़ने के क़रीब 6 महीने के बाद बीजेपी ने उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। लेकिन नीतीश के एनडीए में आने के बाद हालात थोड़े बदल गए हैं।
राजनीतिक विरासत
सम्राट चौधरी बीजेपी के ऐसे नताओं में से हैं जो आरएसएस की पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं। उनके पिता शकुनी चौधरी ख़ुद समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। शकुनी चौधरी कभी नीतीश के क़रीबी थे तो कभी लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी में भी रहे।
शकुनी चौधरी का नाम कुशवाहा समाज के बड़े नेताओं में शुमार है और वो ख़ुद भी विधायक और सांसद रहे हैं। यानी सम्राट चौधरी के पास एक राजनीतिक विरासत भी है, जो उनके सियासी प्रभाव को बढ़ाता है। शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी का प्रवेश सक्रिय राजनीति में 1990 में हुआ।
बिहार विधान परिषद की वेबसाइट के मुताबिक़ 1995 में उन्हें एक राजनीतिक मामले में 89 दिन के लिए जेल जाना पड़ा था।
शकुनी चौधरी ने साल 1999 में बिहार में राबड़ी देवी की सरकार का साथ दिया था, हालाँकि वो ख़ुद उस वक़्त सांसद थे।
कम उम्र में बने मंत्री
शकुनी चौधरी के सहयोग की वजह से आरजेडी की सरकार ने उनके बेटे राकेश कुमार को, जो अब सम्राट चौधरी के नाम से जाने जाते हैं, मंत्री बनाया था।
उस वक़्त राकेश कुमार (सम्राट चौधरी) न तो विधानसभा के सदस्य थे और न ही विधान परिषद के। बाद में उनकी उम्र को लेकर विवाद पैदा हो गया था और इसकी शिकायत चुनाव आयोग तक की गई थी।
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “यह अपने आप में एक अनोखा मामला था, जब राज्यपाल ने उम्र के विवाद में किसी मंत्री को उसके पद से हटाया था। उस वक़्त सम्राट चौधरी की उम्र मंत्री बनने के लिहाज से कम पाई गई थी।”
बाद में बिहार में साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में सम्राट चौधरी परबत्ता विधानसभा सीट से आरजेडी के टिकट पर चुनाव जीते थे। जबकि साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में वो जेडीयू के रामानंद सिंह से हार गए थे। साल 2010 में भी सम्राट चौधरी इस सीट से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक़, सम्राट चौधरी उर्फ़ राकेश कुमार ने जेडीयू के रामानंद प्रसाद सिंह को कड़े मुक़ाबले में पराजित किया था।
सम्राट चौधरी की ताक़त
साल 2014 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू के ख़राब प्रदर्शन की ज़िम्मेवारी लेते हुए नीतीश ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था। उस वक़्त सम्राट चौधरी ने आरजेडी के कुछ विधायकों के साथ मांझी का समर्थन किया था। साल 2014 में वो नगर विकास विभाग के मंत्री भी बनाए गए थे।
साल 2015 में बिहार में पहली बार महागठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा था और यह सीट जेडीयू को मिली थी।
लेकिन उस वक़्त जेडीयू के रामानंद प्रसाद सिंह को परबत्ता सीट से टिकट दिया था और वो जीत गए थे।
बिहार में पिछले साल हुए जातिगत गणना के आँकड़ों के मुताबिक़, राज्य में कुशवाहा आबादी 4.2% है। यह ओबीसी वर्ग में है। बिहार में इस वर्ग की ताक़त को देखते हुए साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के साथ समझौता किया था।
ज्ञान प्रकाश कहते हैं, “राज्य में बीजेपी की आंतरिक राजनीति बहुत ख़राब थी। नंद किशोर यादव के सहारे पार्टी को मज़बूत करने की कोशिश की थी, लेकिन वो किसी और को बोलने नहीं देते थे। उसके बाद सुशील मोदी के तौर पर एक चेहरा सामने आया लेकिन वो नीतीश कुमार के पीछे रहने लगे। इसलिए उनका सफर रुक गया।”
नीतीश कैसे बैठाएंगे तालमेल
सम्राट चौधरी भाषण देने में भी काफ़ी माहिर हैं। बातचीत में अपना दबदबा बनाकर रखना राजनीति में उनके आगे बढ़ने के पीछे एक बड़ी वजह मानी जाती है।
नचिकेता नारायण के मुताबिक़, जब सम्राट चौधरी को बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया था तब सोशल मीडिया पर उनके समर्थक दावा कर रहे थे कि सम्राट बिहार में बीजेपी के योगी आदित्यनाथ बनने वाले हैं।
नचिकेता नारायण कहते हैं, “सम्राट चौधरी ऐसे नेताओं में से हैं, जिनकी नीतीश कुमार से कभी नहीं बनी है। यही हाल विजय सिन्हा का है। नीतीश कुमार का इन नेताओं से संबंध देखकर लगता है कि बीजेपी इस बार सरकार में दबदबे और आक्रामकता के साथ अपनी बात रखेगी।
पिछली बार एनडीए सरकार के दौरान साल 2022 में विजय सिन्हा के विधानसभा अध्यक्ष रहते नीतीश से उनकी बहस सुर्खियों में रही थी। उस वक़्त बिहार के लखीसराय में क़ानून और व्यवस्था के मुद्दे पर सदन में नीतीश ने विधानसभा अध्यक्ष पर सवाल खड़े कर दिए थे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था, "सारे लोगों को एक बात जानना चाहिए, संविधान क्या कहता है? कॉन्स्टिट्यूशन निकालिए। आप इस तरह हाउस चलाइएगा? मुझे तकलीफ़ हुई है।"
विजय कुमार सिन्हा लखीसराय के ही विधायक हैं। एक साल पहले बिहार में ज़हरीली शराब से मौत पर सदन में बीजेपी मुआवज़े की मांग कर रही थी, तब भी नीतीश कुमार विजय सिन्हा की तरफ़ देखते हुए काफ़ी आक्रोश में जवाब दे रहे थे। आमतौर पर नीतीश को ऐसे तेवर में कम देखा जाता है।
राजनीतिक पगड़ी
वहीं सम्राट चौधरी ने नीतीश को सीएम की कुर्सी से हटाने तक सिर पर मुरेठा (पगड़ी) बांधे रखने का संकल्प लिया था।
चौधरी के इस संकल्प की चर्चा बिहार के सियासी गलियारों में खूब होती रही है। वो पिछले कई महीनों से हर सभा या सार्वजनिक जगह पर पगड़ी बांधे नज़र आते हैं।
बिहार में आरजेडी से वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीक़ी तंज़ कसते हुए सवाल उठाते हैं, “सम्राट चौधरी पहले हमारी पार्टी में थे। अपनी पगड़ी के बारे में उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है। अब तो नीतीश कुमार साथ आ गए हैं, अब पगड़ी उतारी या नहीं मुझे नहीं मालूम।”
सम्राट चौधरी ने इस मुद्दे पर बीबीसी से बातचीत में कहा है कि वो अयोध्या में राम मंदिर का दर्शन करने जाएंगे और अपना मुरेठा उतारेंगे।
आरजेडी से बीजेपी तक के सफर में सम्राट चौधरी फ़िलहाल तेज़ी से आगे बढ़ते दिख रहे हैं। अपने तेवर और अंदाज़ की वजह से वो चर्चा में भी रहते हैं। लेकिन अब उनके राजनीतिक सफर और तेवर के बीच नीतीश कुमार हैं। वही नीतीश जिनके बारे में कोई अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है।
Edited by : Nrapendra Gupta