जुगल आर पुरोहित, बीबीसी संवाददाता
"एक पनडुब्बी कब्र की तरह शांत हो सकती है।" वॉइस एडमिरल जीएम हीरानंदानी (सेवानिवृत्त) ने 'ट्रांज़िशन टू गार्डियनशिप - द इंडियन नेवी 1991-2000' में ये लिखा था, जिसे आधिकारिक रूप से रक्षा मंत्रालय ने प्रकाशित किया था।
शायद ये शब्द इस बात को समझाने के लिए काफ़ी हैं कि भारत ने म्यांमार को आधिकारिक तौर पर एक पनडुब्बी सौंप दी लेकिन इसे लेकर चर्चा बहुत कम क्यों हुई?
15 अक्टूबर को, विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव अनुराग श्रीवास्तव से भारत द्वारा 'म्यांमार को एक पनडुब्बी गिफ्ट करने' की ख़बरों पर स्पष्टीकरण मांगा गया।
उन्होंने जवाब दिया, "भारत म्यांमार नौसेना को एक किलो क्लास की पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर देगा। हमारी समझ के मुताबिक यह म्यांमार नौसेना के लिए पहली पनडुब्बी होगी।
"ये SAGAR (सेक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन- क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के आधार पर किया गया है। हम सभी पड़ोसी देशों को क्षमता और आत्मनिर्भरता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"
सरकार ने बस इतना ही बताया, इससे जुड़ी कोई प्रेस रिलीज़ भी जारी नहीं की गई। भारत हेलीकॉप्टर और अन्य हथियारों सहित जहाजों और विमानों का निर्यात करता है। लेकिन जानकार कहते हैं कि एक पनडुब्बी सौंपना अलग कहानी है।
इसके अलावा, निर्यात उन चीज़ों का किया जाता है जो किसी के पास अधिक मात्रा में हों। लेकिन क्या भारतीय नौसेना के पानी के नीचे के बेड़े के बारे में ऐसा कहा जा सकता है?
आईएनएस सिंधुवीर
आईएनएस सिंधुवीर को पूर्व सोवियत संघ ने भारत को दिया था। 11 जून, 1988 को ये भारतीय बेड़े में शामिल हुआ।
रूसी इसे 877 इकेएम क्लास कहते हैं (नाटो कोड नाम: किलो क्लास) और ये डीज़ल-बिजली से चलने वाली बिना न्यूक्लियर पावर वाली पनडुब्बियां हैं। ये पानी के नीचे 300 मीटर तक गोता लगा सकती हैं और 45 दिनों के लिए बिना बाहरी मदद के काम कर सकती हैं। इसे चलाने के लिए 53 सदस्यीय चालक दल की आवश्यकता होती है।
मैंने सुना है कि नौसेना के अधिकारी इनकी क्षमता के कारण ईकेएम पनडुब्बियों को 'समुद्र में ब्लैक होल ' कहते हैं।
वास्तव में, नौसेना के आधिकारिक इतिहास की इस जानकारी से भारत के शुरुआती दृष्टिकोण का पता चलता है। कमांडर (बाद में कप्तान बने) केआर अजरेकर ने रूस में प्रशिक्षण लिया और वो सिंधुघोष जो कि पहली ईकेएम पनडुब्बी थी, उसके कमांडिंग ऑफिसर थे।
वो याद करते हैं, "हाइड्रो-डायनामिक रूप से पानी के नीचे काम करने के लिहाज़ से इसका कंफ़िग्यूरेशन सबसे अच्छा था, ईकेएम के पानी के नीचे का प्रदर्शन बेहतरीन है। इसके अलावा शिकार करने के लिए सोनार है जो बहुत उपयोगी है।"
आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत ने रूस से ऐसी 10 पनडुब्बियां ख़रीद लीं। एक नए अधिग्रहण कार्यक्रम में भी देरी हो रही है, ऐसे में पानी के नीचे काम करने की पूर्ण योग्यता पा लेने से अभी हम दूर हैं।
भारत से म्यांमार तक
इस मामले की समझ रखने वाले दो अधिकारियों ने मुझे बताया कि आईएनएस सिंधुवीर को म्यांमार को भारत का 'उपहार' कहना गलत है। उनमें से एक ने सबसे पहली बात कही, "मामला अति गोपनीय है।"
"मैं आपको बता सकता हूं कि ये निश्चित अवधि के लिए लीज़ पर है। ये राजस्व अर्जित करने के लिए नहीं किया गया है। "
भारत और म्यांमार में क्या हुआ, इसे समझने के लिए सिर्फ भारत और म्यांमार को नहीं देखना चाहिए।
कई अधिकारियों से मैंने बात कि जिन्होंने बताया कि भारत 'बांग्लादेश के साथ जो हुआ, उसे दोहराने से बचना चाहता है।' उनमें से एक ने समझाया, "2016-17 में, बांग्लादेश ने चीनी पनडुब्बियों का अधिग्रहण किया। चीनी पनडुब्बियों के माध्यम से, चीनी कर्मचारियों को बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने का एक रास्ता मिल गया।"
"हालाँकि, उन पनडुब्बियों का उपयोग करते हुए बांग्लादेश का अनुभव, जहां तक हमें पता है, उतना अच्छा नहीं रहा है।"
"इससे हमें म्यांमार नौसेना के साथ इस मामले पर चर्चा करने में मदद मिली, जो पानी के नीचे की अपनी क्षमताओं को बढ़ाना चाह रहे थे। हमने उनके क्रू की ट्रेनिंग शुरू की और हम आज भी उनसे जुड़े हुए हैं और सहायता दे रहे हैं।"
लेकिन चुप्पी का कारण क्या है?
एक अधिकारी के मुताबिक, "दोनों देशों में से कोई भी इस पर ध्यान नहीं खींचना चाहता है। ये अभी शुरुआत है। इसके अलावा म्यांमार के चीनियों के साथ भी गहरे संबंध हैं।"
इंडियन मेरिटाइम फाउंडेशन के उपाध्यक्ष,रिटायर्ड कॉमोडोर अनिल जय सिंह ने अपने तीन दशकों के अनुभव में चार पनडुब्बियों की कमान संभाली है। वो कहते हैं, "शायद ही कभी एक पनडुब्बी एक देश द्वारा दूसरे देश को लीज़ पर दी जाती है। हालांकि, बड़ी तस्वीर को देखते हुए, हम बंगाल की खाड़ी को चीन के हाथों नहीं खो सकते हैं। इसलिए यह नौसेनाओं के मिलन की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है।"
उनके अनुसार वह दिन दूर नहीं जब चीनी पनडुब्बियां हिंद महासागर में अक्सर तैनात रहेंगी। वो कहते हैं,"और याद रखें कि पाकिस्तान को चीन से आठ पनडुब्बियां मिल रही हैं, जो हमारे लिए (पश्चिमी तट पर भी) बड़ी चिंता का विषय है"
भारत की कितनी क्षमता है?
आईएनएस सिंधुवीर को छोड़ दें तो आज भारत के पास कुल आठ ईकेएम पनडुब्बियां, चार जर्मन निर्मित एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियां और दो फ्रांसीसी-डिज़ाइन की स्कॉर्पीन पनडुब्बियां हैं।
संख्या के लिहाज़ से भारत के पास अगस्त 2013 के बराबर पनडुब्बियां है। उस समय आईएनएस सिंधुरक्षक जो कि एक और ईकेएम पनडुब्बी थी, उसमें मुंबई नौसेना डॉकयार्ड के अंदर विस्फोट हो गया था और सभी लोग मारे गए थे।
नौसेना के एक अधिकारी के मुताबिक "हम उम्मीद कर रहे हैं कि बाकी चार स्कॉर्पीन 2022 के अंत तक जुड़ जाएंगी।"
वर्तमान में, जर्मन एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी का बेड़ा 26 से 34 वर्ष पुराना है। ईकेएम क्लास 20 से 34 वर्ष के बीच हैं। पहले, औसतन 28 साल इस्तेमाल के बाद पनडुब्बियां रिटायर कर दी जाती थीं।
सिंह, जो कि ब्रिटेन में भारत के नेवल एडवाइज़र रह चुके हैं, उनके मुताबिक, "मैं इसे लेकर काफी चिंतित हूं। (पनडुब्बी) अधिग्रहण धीमी गति से हो रहा है। आगे की राह साफ़ नहीं है।"
''पनडुब्बियां महंगी आती हैं। दिसंबर महीने में, नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा था, "रक्षा बजट में नौसेना का हिस्सा 2012 के 18% से घटकर वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में 13% हो गया है। उस समय कोरोना संक्रमण के मामले भी नहीं थे। "
क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता
म्यांमार को सहायता देने का निर्णय भारत ने सोच-समझ कर लिया है। बांग्लादेश और थाईलैंड भारत के पुराने पार्टनर रह चुके हैं। भारतीय नौसेना ने म्यांमार के साथ 2013 में नौसैनिक अभ्यास शुरू किया। बांग्लादेश के साथ अभ्यास 2019 में शुरू हुआ।
बीबीसी मॉनिटरिंग की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की समाचार वेबसाइट इरवाडी ने 16 जुलाई, 2019 को बताया था कि कैसे रूस की यात्रा के दौरान म्यांमार के कमांडर-इन-चीफ सीनियर-जनरल मिन औंग ह्लाइंग ने रूसी सेना के उप प्रमुख से एक उन्नत पनडुब्बी खरीदने पर चर्चा की।
11 दिसंबर, 2019 को म्यांमार टाइम्स ने बताया कि भारत के एक्शन पर थाईलैंड की किस तरह की प्रतिक्रिया थी।
अखबार ने लिखा, "रॉयल थाई नौसेना उस परिस्थिति से निपटने के लिए तैयारियां कर रही है जिसे वो उसके सामने एक 'नई स्थिति' कहती है। ये जानने के बाद कि म्यांमार अपनी पनडुब्बी को अंडमान सागर में सुरक्षा मिशनों के लिए भेजने वाला है, थाईलैंड चीन से तीन पनडुब्बियां खरीदने की प्रक्रिया में है।"
वाइस एडमिरल हीरानंदानी के मुतबिक, "समुद्र पनडुब्बी को इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरीके से कवच प्रदान करता है।"
पनडुब्बी के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी समुद्र ही है। वह लिखते हैं,"अगर पनडुब्बी से निकलने वाली आवाज़ को समुद्र की प्राकृतिक आवाज़ से भी कम कर दिया जाए, तो पनडुब्बी अपने आप को समुद्र में छुपा सकती है।"
वहीं, अगर कोई है जो समुद्र के नीचे शांति से साझेदारी बढ़ाना चाहता है, तो वो भारत और म्यांमार हैं।