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सुप्रीम कोर्ट के 4 फ़ैसले, जो भारत में बहुत कुछ बदल सकते हैं

हमें फॉलो करें सुप्रीम कोर्ट के 4 फ़ैसले, जो भारत में बहुत कुछ बदल सकते हैं

BBC Hindi

, गुरुवार, 7 नवंबर 2019 (07:33 IST)
भारतीय सुप्रीम कोर्ट अगले कुछ दिनों में कुछ ऐसे अहम फ़ैसले सुनाएगा जिससे देश के मौजूदा हालात में काफ़ी कुछ बदल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और 18 नवंबर को जस्टिस बोबडे उनकी जगह लेंगे। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि 17 नवंबर से पहले कुछ बड़े मामलों में फ़ैसला आ जाएगा।
 
इनमें जिस मामले पर फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा है वो है अयोध्या का बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद। सुप्रीम कोर्ट जब इस पर फ़ैसला सुनाएगा तो ये निश्चित रूप से ऐतिहासिक होगा।
 
उम्मीद जताई जा रही है कि पांच जजों वाली संवैधानिक बेंच इस मामले पर 4-15 नवंबर के बीच फ़ैसला सुनाएगी। बेंच की अगुवाई सीजेआई रंजन गोगोई कर रहे हैं। उनके अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अब्दुल नज़ीर शामिल हैं।
 
भारत सरकार के पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन परासरन का कहना है कि अयोध्या मामला बेहद संवेदनशील है इसलिए सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद भी बहुत सावधानी बरतनी होगी।
 
परासरन ने बीबीसी के सहयोगी और वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहन्ती से कहा, 'अयोध्या मामला राजनीतिक और धार्मिक, दोनों मायनों में बहुत संवेदनशील है। यह चार दशक से भी पुराना विवाद है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट चाहे जो फ़ैसला सुनाए, सभी समुदायों में शांति का माहौल बनाए रखना होगा।'
 
जानी-मानी वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा भी परासरन से सहमति जताती हैं। उन्होंने कहा कि अदालत का फ़ैसला चाहे जो जो, हमें इसका स्वागत करना होगा और किसी भी क़ीमत पर क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभाले रखनी होगी।
 
अयोध्या मामले के अलावा, कुछ दूसरे महत्वपूर्ण मामले भी हैं, जिन पर जस्टिस रंजन गोगोई अपने दो हफ़्तों में फ़ैसला सुनाएंगे। इनमें रफ़ाल डील और सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे मामले शामिल हैं।
 
रफ़ाल
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई गोगोई की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच रफ़ाल सौदा मामले पर फ़ैसला सुनने वाली है। बेंच में जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ़ हैं। रफ़ाल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फ़ैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी।
 
हालांकि इस फ़ैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं और 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।
 
फ़्रांस से 36 रफ़ाल फ़ाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं। सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फ़ैसले की समीक्षा करने की अपील की थी।
 
सबरीमला मंदिर
अगले दो हफ़्तों में सुप्रीम कोर्ट भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भी अपना आख़िरी फ़ैसला सुनाएगा।
 
वैसे तो सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर, 2018 को अपने फ़ैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश का हक़ दिया था।
हालांकि इस फ़ैसले की समीक्षा के लिए 60 याचिकाएं फिर से सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं।
 
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने 6 फ़रवरी, 2019 को इन सभी याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। इस बेंच की अगुवाई भी जस्टिस रंजन गोगोई ने की।
 
28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर। फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश की इजाज़त दे दी थी।
 
सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से नाख़ुश कई संस्थाओं और समूहों ने इसकी समीक्षा के लिए याचिकाएं दायर कीं। फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी (NSS) और मंदिर के तंत्री (पुजारी) भी शामिल हैं।
 
सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भारत में काफ़ी लंबी-चौड़ी बहस हुई है। मासिक धर्म से गुज़रने वाली महिलाओं को मंदिर में न जाने दिए जाने को महिलावादी और प्रगतिशील संगठनों ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है।
 
वहीं, कई धार्मिक संगठनों की दलील है कि चूंकि अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं, इसलिए 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मंदिर में जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
 
मुख्य न्यायाधीश कार्यालय RTI के दायरे में आता है?
अगले दो हफ़्तों में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच यह फ़ैसला भी सुनाएगी कि क्या भारतीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई (सूचना के अधिकार) के दायरे में आता है या नहीं।
 
इस संवैधानिक बेंच में जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एनवी रामन्ना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना हैं। बेंच की अगुवाई जस्टिस गोगोई कर रहे हैं।
 
सूचना अधिकार कार्यकर्ता कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सीजेआई ऑफ़िस को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए याचिका दायर की थी।
 
सुभाष चंद्र अग्रवाल का पक्ष रखने वाले वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि अदालत में सही लोगों की नियुक्ति के लिए जानकारियां सार्वजनिक करना सबसे अच्छा तरीका है।
 
प्रशांत भूषण ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति और ट्रांसफ़र की प्रक्रिया रहस्यमय होती है। इसके बारे सिर्फ़ मुट्ठी भर लोगों को ही पता होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फ़ैसलों में पारदर्शिता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है लेकिन जब अपने यहां पारदर्शिता की बात आती है तो अदालत का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं रहता।"
 
प्रशांत भूषण ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति से लेकर तबादले जैसे कई ऐसे मुद्दे हैं जिनमें पारदर्शिता की सख़्त जरूरत है और इसके लिए सीजेआई कार्यालय को आरटीआई एक्ट के दायरे में आना होगा।

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