अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
क्या उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी 2017 विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहरा पाएगी? पहले चरण में जिन 58 विधानसभा सीटों पर चुनाव हैं, वहां 2017 में बीजेपी की लहर थी। बीजेपी ने 53 विधानसभा सीटें जीतकर सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल को मुक़ाबले से पूरी तरह बाहर कर दिया था, लेकिन इस बार क्या होगा?
क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी की वापसी हो पाएगी? पहले चरण के चुनाव में इन राजनीतिक दलों के समीकरण क्या हैं और क्या तस्वीर उभर रही है? आइए इसे आंकड़ों के ज़रिए समझते हैं।
2017 में कैसा था मुक़ाबला?
सबसे पहले नज़र डालते हैं 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजों पर। इस चुनाव में भाजपा 53 सीटों पर जीत के साथ नंबर एक पार्टी बनी थी। सिर्फ़ चार ऐसी सीटें थीं, जहां बीजेपी दूसरे नंबर पर रही।
2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इन दोनों पार्टियों के खाते में सिर्फ़ तीन सीटें आई थीं, जबकि बसपा को दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था।
उम्मीदवारों के चयन की क्या रही रणनीति?
सबसे पहले बात भारतीय जनता पार्टी की। जिन 58 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में चुनाव हो रहे हैं, वहां 2017 में बीजेपी ने मुक़ाबले को एकतरफ़ा बना दिया था।
बीजेपी ने तब 58 में से 53 सीटें जीती थीं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि उसने इस बार जीते हुए 19 उम्मीदवारों के टिकट काट दिए हैं। या कहें कि बीजेपी ने पिछली बार के 19 विजयी और चार हारे हुए उम्मीदवारों पर भरोसा न करते हुए नए चेहरों को मैदान में उतारा है।
पार्टी ने तीन ऐसे उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है जिन्होंने पिछला विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़ा था। इनमें खैरागढ़ से भगवान सिंह कुशवाहा, बरौली से ठाकुर जयवीर सिंह और एत्मादपुर से डॉक्टर धर्मपाल सिंह शामिल हैं।
इस विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया है। पहले चरण की 58 में से 29 सीटों पर रालोद, 28 पर सपा और एक सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही हैं। सपा-रालोद ने 58 में से 43 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार बदले हैं।
ख़ास बात ये है कि इन 43 उम्मीदवारों ने 2017 का विधानसभा चुनाव न तो सपा के टिकट पर लड़ा था और न ही राष्ट्रीय लोकदल के टिकट पर। अनूपशहर विधानसभा सीट एनसीपी को दी गई है, जहां से केके शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं।
बहुजन समाज पार्टी ने 2017 विधानसभा चुनाव जीतने वाले दो उम्मीदवारों को छोड़कर बाक़ी की 56 सीटों पर उम्मीदवारों को बदल दिया है। इन दो उम्मीदवारों में मांट विधानसभा से श्याम सुंदर शर्मा और गोवर्धन सीट से राजकुमार रावत शामिल हैं। 30 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर थे, लेकिन इनमें से सिर्फ़ एक उम्मीदवार को इस बार टिकट दिया गया है।
कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2017 में पहले चरण की 58 सीटों में से सिर्फ़ 23 सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे।
गठबंधन के बावजूद कई ऐसी सीटें थीं जहां एक साथ सपा और कांग्रेस के प्रत्याशी आमने सामने थे। इस चुनाव में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस ने सभी 58 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
इन 58 उम्मीदवारों में से पांच उम्मीदवार ऐसे हैं जो पिछली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे। इनमें पुरकाजी विधानसभा सीट से दीपक कुमार, कोइल से विवेक बंसल, मथुरा से प्रदीप माथुर, बलदेव से विनेश कुमार और आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट से उपेंद्र सिंह शामिल हैं।
सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (CSDS) के प्रोफ़ेसर संजय कुमार के मुताबिक़, ''भाजपा हर चुनाव में नए उम्मीदवारों को मौक़ा देती है। बड़ी वजह ये है कि स्थानीय स्तर पर मौजूदा विधायकों के ख़िलाफ़ जो एंटी इनकंबेंसी होती है, उससे बचने के लिए पार्टी उम्मीदवारों को बदल देती है। गुजरात के पिछले चुनाव में भाजपा ने एक तिहाई नए उम्मीदवार उतारे थे। ये भाजपा की रणनीति रही है।''
हालांकि पहले चरण में सपा-रालोद गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी ने जो उम्मीदवार बदले हैं, उसकी दूसरी वजह है।
प्रोफ़ेसर संजय कुमार बताते हैं, ''ये पार्टियां मुख्य तौर पर स्थानीय कारणों के हिसाब से उम्मीदवार तय करती हैं। इसमें जातीय समीकरण और उम्मीदवारों की छवि अहम मानी जाती है।''
पहले चरण में महिला उम्मीदवारों की स्थिति
पहले चरण की 58 सीटों पर महिला उम्मीदवारों की क्या स्थिति है, इस पर नज़र डालना जरूरी है। आंकड़े बताते हैं कि 2017 के मुक़ाबले इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है।
सबसे ज़्यादा कांग्रेस ने महिलाओं को टिकट दिया है। 2017 में कांग्रेस 58 सीटों में 23 पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें सिर्फ़ एक महिला उम्मीदवार थीं। ज़ाहिर है कि इस बार कांग्रेस ने महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है। वहीं सपा-रालोद गठबंधन ने सिर्फ़ चार और बीजेपी ने सात महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है।