कमलेश मठेनी, बीबीसी संवाददाता
बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को भले ही यूपी चुनाव में नदारद बताया जा रहा हो, लेकिन उनके बयानों और भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
ऐसा ही एक बयान उन्होंने हाल ही में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को लेकर दिया है। उन्होंने प्रियंका गांधी पर हमला बोलते हुए कांग्रेस की बजाय बीएसपी को वोट देने की अपील की।
दरअसल, पिछले दिनों यूपी चुनाव में कांग्रेस के चेहरे को लेकर पूछे गए सवाल पर प्रियंका गांधी ने कहा था कि ''क्या आपको उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरफ़ से कोई और चेहरा दिखाई दे रहा है?''
लेकिन, बाद में प्रियंका गांधी ने इस बयान को वापस ले लिया और कहा कि यूपी में सिर्फ़ वो ही पार्टी का चेहरा नहीं हैं, उन्होंने वो बात चिढ़कर कह दी थी क्योंकि बार-बार एक ही सवाल पूछा जा रहा था।
इसे लेकर मायावती ने प्रियंका गांधी को निशाने पर ले लिया और लोगों से कांग्रेस पर वोट बर्बाद ना करने की अपील कर डाली।
उन्होंने रविवार को ट्वीट किया, ''यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हालत इतनी ज़्यादा खस्ताहाल बनी हुई है कि इनकी सीएम की उम्मीदवार ने कुछ घंटों के भीतर ही अपना स्टैंड बदल डाला है। ऐसे में बेहतर होगा कि लोग कांग्रेस को वोट देकर अपना वोट ख़राब न करें बल्कि एकतरफ़ा तौर पर बीएसपी को ही वोट दें।'
प्रियंका गांधी ने भी अपने चुनाव में बसपा के असक्रिय रहने पर हैरानी जताई थी और उस पर बीजेपी का दबाव होने की बात कही थी।
एक तरफ़ यूपी चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है। वहीं, बसपा का कांग्रेस पर निशाना लगाना दिलचस्प है।
कांग्रेस ना तो इस समय सत्ता में है और ना ही जानकार उसे यूपी चुनाव का बड़ा खिलाड़ी मान रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मायावती प्रियंका गांधी पर निशाना क्यों साध रही हैं?
जानकार इसके पीछे दोनों के वोट बैंक की समानता को वजह मानते हैं। कांग्रेस की राजनीति दलित, मुस्लिम और ब्रह्मणों के इर्दगिर्द रही है। ये तीनों कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं। लेकिन क्षेत्रीय दलों के उभरने के बाद से कांग्रेस का वोट बैंक खिसकना शुरू हो गया।
कांग्रेस के वोट बैंक में दरार डाल कर ही ही समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दल उभरे हैं और यूपी में कांग्रेस के लिए चुनौती बन गए हैं।
दलित वोटों का डर
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार ब्रिजेश शुक्ला कहते हैं, ''कांग्रेस और बसपा दोनों के वोट बैंक का बड़ा आधार जाटव दलित रहे हैं। लेकिन, 1977 में आपातकाल के बाद इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई। बाबू जगजीवन राम और राम विलास पासवान जैसे नेताओं के आने से कांग्रेस के इस आधार में सेंध लग गई। इसके बाद 1984 में कांशी राम ने बसपा की स्थापना की। अब दलितों को अपनी पार्टी मिल गई तो वो उसकी तरफ़ चले गए।''
''अब भी कांग्रेस और बसपा के बीच जाटव दलित वोटों को लेकर टकराव है। अगर बसपा का ये वोट बैंक खिसकेगा तो वो कांग्रेस के पास जा सकता है। इसलिए मायावती बयान देकर लोगों को सतर्क करती रहती हैं। डॉक्टर अंबेडकर के साथ कांग्रेस ने ग़लत किया था इस तरह की बातें भी कहती हैं। ये आज की बात नहीं है। कांग्रेस का क्षरण ही बसपा के आने के बाद हुआ।''
राज्य में तक़रीबन 22 फ़ीसद दलित आबादी है जिनमें जाटव का वोट शेयर काफ़ी बड़ा है। ऐसे में सभी दलों की नज़र इस वोट बैंक पर रहती है।
दलितों को लेकर कांग्रेस और बसपा में पहले भी टकराव दिखा है। जब राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश में एक दलित के घर रुकने पर मायावती ने कहा था कि राहुल गांधी दलितों के घर से लौटने पर विशेष साबुन से नहाते हैं।
ब्रिजेश शुक्ला बताते हैं कि बीजेपी के ख़िलाफ़ भी वो बोलती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर आक्रामकता नहीं दिखती। वो कांग्रेस के ख़िलाफ़ ज़्यादा आक्रामक बयान देती हैं। बीजेपी और बसपा का उतना समान वोट बैंक नहीं है जितना की कांग्रेस और बसपा का है।
मायावती पर 'बहनजी' नाम की किताब के लेखक अजय बोस भी बसपा और कांग्रेस के बीच पुरानी तल्खी होने की बात कहते हैं।
अजय बोस कहते हैं कि इन दोनों ही पार्टियों के नेता एक-दूसरे के दलों में जाते रहे हैं। कांग्रेस का पुराना दलित वोट बसपा ने लिया। अब बसपा का वोट दूसरी पार्टियों में जा रहा है। गैर जाटव वोट कांग्रेस में चला गया।
2009 के लोकसभा चुनाव में भी उनका नुक़सान हुआ था जब कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन, 2009 के बाद कांग्रेस की हालत बहुत ख़राब हो गई। हालांकि, जानकारों के मुताबिक़ दोनों ही पार्टियां अब तक काफ़ी नीचे आ गई हैं।
ब्राह्मण और मुस्लिम वोट
लगभग ऐसी ही स्थिति ब्राह्मण और मुस्लिम वोट के साथ है। एक समय था जब मायावती ब्राह्मण वोटों के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थीं। जानकार कहते हैं कि बसपा ने अपना ये आधार खो दिया है।
हालांकि, इस चुनाव में बसपा ने ब्राह्मण वोट साधने की पूरी कोशिश की है। चुनाव में 'प्रबुद्ध सम्मेलन' के साथ प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए ही उन्होंने इसके संकेत दे दिए थे।
इस प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने ब्राह्मणों के साथ अत्याचार होने और मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार होने की बात कही थी। इसके लिए उन्होंने बीजेपी, सपा और कांग्रेस तीनों को निशाने पर लिया था।
उत्तर प्रदेश में 1989 के विधानसभा चुनाव से कांग्रेस का क्षरण शुरू हुआ था। इसके साथ ही बसपा का भी उदय होने लगा। जो ब्राह्मण और मुस्लिम वोट पहले कांग्रेस के पक्ष में था वो बिखर कर सपा, बसपा और बीजेपी में आ गया।
साल 2002 तक मुलायम सिंह बड़े नेता बनकर उभरे और कांग्रेस व बीजेपी के लिए चुनौती बन गए। इसी बीच धीरे-धीरे बसपा ने भी रफ़्तार पकड़ी और अगले ही चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। ऐसे में कांग्रेस से निकला ब्राह्मण और मुस्लिम वोट सपा और बीजेपी से होते हुए बसपा के पास आया।
अजय बोस बताते हैं, ''बसपा को ब्राह्मणों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर समर्थन करके जिताया था। 2002 के चुनाव में बीजेपी के ब्राह्मण नेताओं ने भी मायावती का समर्थन किया था क्योंकि उस समय मुलायम सिंह को रोकना था। लेकिन, 2007 में उन्होंने बीजेपी के समर्थन के बिना ब्राह्मणों का समर्थन हासिल कर लिया। उस समय बीजेपी और कांग्रेस दोनों कमज़ोर हो गई थीं। हालांकि, तीन-चार सालों में ही बसपा के पास से ब्राह्मणों का समर्थन कम होता गया।''
यूपी की राजनीति पर नज़र रखने वालों के अनुसार मायावती चाहती हैं कि अगर उत्तर प्रदेश में बीजेपी कमज़ोर होती है और ब्राह्मण वोट खिसकता है तो वो कांग्रेस में ना जाकर बसपा के पास आए। कांग्रेस के कमज़ोर रहने में उन्हें फ़ायदा मिल सकता है।
मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा भी बसपा, कांग्रेस और सपा के बीच ही रहता है, क्योंकि कांग्रेस कमज़ोर स्थिति में है तो मुस्लिम वोटों का उससे छिटकना संभव है। ये वोट भी बसपा अपनी तरफ़ करना चाहती है। उन्होंने बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार भी उतारे हैं।
कांग्रेस की मज़बूती, बसपा का डर
यूपी में कांग्रेस को सबसे कमज़ोर स्थिति में बताया जा रहा है। कहा जाता है कि कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर अपना आधार खो चुकी है।
लेकिन, प्रियंका गांधी यूपी में कांग्रेस को चर्चा में लाने में ज़रूर सफल दिख रही हैं।
हाथरस मामला हो, गैंगस्टर विकास दुबे की हत्या या महिलाओं से जुड़े मसले हों, प्रियंका गांधी लगातार सक्रिय नज़र आई हैं। पर उनकी सक्रियता मायावती के लिए मुश्किल बन सकती है।
बसपा के संस्थापक कांशीराम पर 'कांशीराम' किताब लिखने वाले प्रोफ़ेसर बद्री नारायण कहते हैं, ''धारणा के स्तर पर कांग्रेस को फ़ायदा हुआ है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कांग्रेस अभी भी नहीं है। ये आधार का मामला नहीं है। लेकिन विधानसभा चुनाव में कई जगह दो-तीन हज़ार के अंतर से भी फ़ैसला होता है। बिहार में 500 वोट से भी फ़ैसला हुआ है।''
''अभी प्रियंका गांधी का बड़ा प्रभाव नहीं दिख रहा है। लेकिन, कुछ विधानसभा क्षेत्रों में हो सकता है कि ब्राह्मण वोट कांग्रेस में जाएं।''
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि कांग्रेस के गिरने के साथ-साथ ही बसपा का उदय हुआ है। इसी तरह अगर कांग्रेस मज़बूत होती है तो बसपा के वोट शेयर पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में जनता को कांग्रेस की कमज़ोरी और अस्पष्टता की याद दिलाकर बसपा अपना आधार बनाए रखना चाहती है।