दक्षिण अफ़्रीका का केपटाउन शहर जल्द ही आधुनिक दुनिया का पहला ऐसा बड़ा शहर बनने जा रहा है जहां पीने के पानी की भारी कमी होने वाली है। आने वाले कुछ सप्ताहों में यहां रहने वाले लोगों को पीने का पानी नहीं मिलेगा।
लेकिन दक्षिण अफ़्रीका का ये सूखाग्रस्त शहर इस तरह की समस्या का सामना करने वाला पहला शहर नहीं है। कई विशेषज्ञ पहले से पानी के संकट के बारे में चेतावनी देते रहे हैं। हालांकि ये बात सच है कि धरती की सतह पर 70 फ़ीसदी हिस्से में पानी भरा हुआ है लेकिन ये समुद्री पानी है जो खारा है। दुनिया में मीठा पानी केवल 3 फ़ीसदी है और ये इतना सुलभ नहीं है।
दुनिया में सौ करोड़ अधिक लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है। जबकि 270 करोड़ लोगों को साल में एक महीने पीने का पानी नहीं मिलता। साल 2014 में दुनिया के 500 बड़े शहरों में हुई एक जांच में पाया गया है कि एक अनुमान के अनुसार हर चार में से एक नगरपालिका 'पानी की कमी' की समस्या का सामना कर रही है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 'पानी की कमी' तब होती है जब पानी की सालाना सप्लाई प्रति व्यक्ति 1700 क्युबिक मीटर से कम हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र समर्थित विशेषज्ञों के आकलन के अनुसार साल 2030 तक वैश्विक स्तर पर पीने के पानी की मांग सप्लाई से 40 फ़ीसदी अधिक हो जाएगी।
इसके कारण होंगे- जलवायु परिवर्तन, विकास करने की इंसानों की होड़ और जनसंख्या में वृद्धि। इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस बढ़ते संकट का समना करने वाला पहला शहर केपटाउन है।
हर महाद्वीप पर मौजूद शहरों के सामने ये समस्या मुंह बाए खड़ी है और समय के साथ मुक़ाबला कर रहे इन शहरों के पास इससे बचने का रास्ता निकालने का वक़्त नहीं है। एक नज़र डालिए दुनिया के 11 बड़े शहरों पर जिनके सामने पीने के पानी का भारी संकट जल्द ही आने वाला है।
साओ पालो
दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक है ब्राज़ील की आर्थिक राजधानी साओ पालो। यहां 2.17 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं। इस शहर के सामने साल 2015 में वही स्थिति आई जो आज केपटाउन के सामने है। उस वक्त यहां की मुख्य झील की क्षमता मात्र 4 फीसदी ही रह गई थी।
सूखा बढ़ा और हालात ऐसे हो गए कि शहर को मात्र 20 दिनों की पानी की सप्लाई मिल पा रही थी। इस दौरान एक जगह से दूसरी जगह पानी पहुंचाने वाले ट्रकों को पुलिस सुरक्षा के बीच ले जाया जाता था।
माना जाता है कि 2014 से 2017 के बीच ब्राज़ील के दक्षिणपूर्व हिस्से में भयंकर सूखा पड़ा जिस कारण पानी की भयंकर कमी हो गई थी। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के एक मिशन ने इसके लिए "ग़लत योजना और सही जगह में निवेश नहीं करने" के लिए साओ पालो के अधिकारियों की निंदा की थी।
2016 में में घोषणा की गई कि ये समस्या सुलझ गई है लेकिन इसके अगले साल जनवरी में शहर के मुख्य झील की क्षमता उम्मीद से 15 फ़ीसदी तक कम थी। इसके बाद सरकार के दावों पर फिर से सवाल खड़े किए गए।
बंगलुरु
भारतीय शहर बंगलुरु के विकास ने प्रशासन पर बड़ा दवाब डाला है। ग्लोबल टेक्नोलॉजी सेंटर के तौर पर आगे बढ़ रहे इस शहर में वो पानी की सप्लाई के जल और निकास प्रणाली को बेहतर बनने के लिए जुटे हुए हैं। शहर में पानी के पुराने पाइपों को मरम्मत की सख्त ज़रूरत है। सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार शहर में पीने के पानी का आधे से अधिक इन्हीं पाइपों से रिस कर बर्बाद हो जाता है।
चीन की तरह भारत के सामने भी पानी के प्रदूषण की भारी समस्या है और बंगलुरु की स्थिति कोई अलग नहीं। एक जांच के अनुसार शहर की झीलों का 85 फीसदी पानी केवल सिंचाई के लिए या फैक्ट्री में इस्तेमाल करने लायक है लेकिन पीने लायक नहीं है। किसी एक झील का पानी इतना साफ़ नहीं कि उसे पीने या फिर नहाने लायक माना जाए।
बीजिंग
वर्ल्ड बैंक का मानना है कि 'पानी की कमी' तब होती है जब पानी की सालाना सप्लाई प्रति व्यक्ति 1700 क्युबिक मीटर से कम हो जाती है। साल 2014 में शहर में रहने वाले 2 करोड़ लोगों को 145 क्युबिक मीटर पानी मिला था।
दुनिया की आबादी का 20 फ़ीसदी हिस्सा चीन में है लेकिन दुनिया के मीठे पानी का मात्र 7 फ़ीसदी हिस्सा ही यहां है। अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोलंबिया के एक शोध के अनुसार, एक अनुमान के मुताबिक 2000 से 2009 के बीच शहर में जल संसाधनों की क्षमता 13 फ़ीसदी तक कम हो गई थी।
2015 में जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बीजिंग में पानी इतना प्रदूषित है कि ये खेती में इस्तेमाल करने लायक भी नहीं है। चीनी सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए पानी के बेहतर वितरण की योजनएं बनाईं, जागरूकता के कार्यक्रम चलाए और पानी की अधिक खपत करने वालों के लिए अधिक दाम तय किए।
काहिरा
दुनिया की महान सभ्यताओं का जन्म नील नदी के किनारे हुआ था लेकिन ये पुरानी बात है। फ़िलहाल ये नदी समस्याओं का सामना कर रही है। मिस्र की जरूरत का 97 फीसदी पानी नील नदी से ही आता है, साथ ही यही नदी है जहां खेती से निकला और घरों से निकला प्रदूषित पानी पहुंचता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मिस्र उन देशों में शामिल है जहां जल प्रदूषण से संबंधित मृत्यु दर सबसे अधिक है और जहां लोगों की औसत आय सबसे कम है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि साल 2025 तक देश को पानी की कमी का सामना करना होगा।
जकार्ता
समंदर किनारे बसे दुनिया के अन्य शहरों की तरह जकार्ता के सामने जो बड़ी चनौती है वो है समंदर का बढ़ता जलस्तर। इसके अलावा यहां दूसरी बड़ी समस्या है कि यहां की एक करोड़ की जनसंख्या के आधे से कम लोगों सार्वजनिक पानी के नेटवर्क तक पहुंच ही नहीं पाते।
यहां ग़ैरकानूनी रूप से कुओं की खुदाई की काम बढ़ रहा है जिस कारण भूजल स्रोत पर दवाब पड़ रहा है। यहां की झीलों में एसफॉल्ट काफी मात्रा में पाया जाता है जिस कारण ये झीलें बारिश के पानी को पूरी तरह सोख नहीं पाती। ये समस्या पनी के संकट को कई गुना बढ़ा देती है।
मॉस्को
दुनिया के मीठे पानी के स्रोतों में से एक चौथाई स्रोत रूस में हैं, लेकिन सोवियत काल में हुए औद्योगिक विकास के कारण यहां पानी के प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर बन गई है।
मॉस्को के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है यही है क्योंकि ये शहर अपनी ज़रूरत के पानी के 70 फ़ीसदी के लिए इन्हीं स्रोतों पर निर्भर करता है। सरकारी नियामक यह मानते हैं कि पीने के पानी के स्रोत के 35 से 60 फ़ीसदी स्वच्छता मानकों पर खरे नहीं उतरते।
इस्तांबुल
तुर्की की सरकार के आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो देश पानी के संकट के दौर का सामना कर रहा है। यहां 2016 में पानी की सालाना सप्लाई प्रति व्यक्ति 1700 क्युबिक मीटर से कम थी। स्थानीय जानकारों का मानना है कि 2030 तक स्थिति और बुरी हो सकती है।
हाल के सालों में अधिक आबादी वाले इस्तांबुल (1.4 करोड़ की जनसंख्या) जैसे शहरों में पानी की किल्लत शुरू हो गई और साल के कुछ महीनों में समस्या बढ़ जाती है। साल 2014 की शुरूआत में शहर के जल संसाधनों की क्षमता 30 फ़ीसदी तक कम हुई है।
मेक्सिको सिटी
मेक्सिको सिटी के 2.1 करोड़ रहने वालों के लिए पानी की तंगी कोई नई नहीं है। यहां हर पांच में से एक व्यक्ति को बस कुछ घंटों के लिए ही पानी की सप्लाई मिलती है। शहर की मात्र 20 फ़ीसदी जनता को दिन में कुछ वक़्त पानी मिलता है। शहर अपनी ज़रूरत का 40 फ़ीसदी हिस्सा अन्य स्रोतों से आयात करता है। साथ ही यहां गंदे पानी को दोबारा पीने लायक बनाने की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर की पाइपों में लीक के कारण यहां 40 फ़ीसदी पानी बर्बाद हो जाता है।
लंदन
पानी की कमी के बारे में सोचने पर सबसे पहले जिन शहरों का ख्याल आता है उनमें से एक है ब्रितानी राजधानी लंदन। यहां सालाना 600 मिलीमीटर तक बारिश होती है जो कि पेरिस और न्यूयॉर्क से कम है। शहर की ज़रूरत का 80 फ़ीसदी पानी नदियों से आता है।
ग्रेटर लंदन के अधिकारियों का कहना है कि शहर की क्षमता लगभग पूरी हो गई है और साल 2025 तक यहां पानी की गंभीर समस्या दिखने लगेगी। साल 2040 तक हालात बेहद गंभीर हो सकते हैं।
टोक्यो
जापान की राजधानी को हर साल अमूमन उतनी बारिश मिलती है जितनी कि अमरीकी शहर सिएटल को। सिएटल को 'रेनी' शहर भी कहा जाता है। लेकिन ये केवल चार महीनों की बात होती है। बारिश के पानी को अगर जमा कर के नहीं रखा गया तो कम बरिश होने वाले सालों में बड़ी मुश्किल हो सकती है।
समस्या के हल के रूप में अधिकारियों ने शहर के 750 सार्वजनिक और निजी इमारतों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग (यानी बारिश का पानी जमा करने की) व्यवस्था करवाई है। यहां 3 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं और शहर के 70 फ़ीसदी लोग पीने के पानी के लिए झीलों या पिघले बर्फ पर निर्भर करते हैं। हाल में यहां की सरकार ने शहर के पाइपों को दुरुस्त करने का काम शुरू किया है जिससे पानी बर्बाद होने से रोका जा सके।
मियामी
अमरीका में सबसे अधिक बारिश होती है फ्लोरिडा में। लेकिन इस राज्य के मशहूर मियामी शहर के सामने मुंह बाये खड़ी है पानी की कमी की समसया। अटलांटिक सागर ने यहां की मुख्य झील विज़काया के पानी को प्रदूषित कर दिया है जो कि शहर के लिए पानी की मुख्य स्रोत है।
इस समस्या का पता 1930 के आसपास लगा लिया गया था। समंदर से खारा पानी बह कर मीठे पानी के इस स्रोत को खराब कर रहा है। इसका मुख्य कारण है समुद्र स्तर का उम्मीद से अधिक बढ़ना।