लेन विलियम्स, बीबीसी फ़्यूचर
तसव्वुर कीजिए कि दिल्ली, मुंबई या आप के शहर की सड़क का मंज़र अचानक बदल जाए। सड़कों पर गाड़ियों की भरमार नहीं, बच्चे खेलते नज़र आएं। गाड़ियों के हॉर्न का शोर नहीं, सड़क पर टूरिस्ट मस्ती में बातें करते और तस्वीरें लेते दिखें।
रेस्टोरेंट से अंदर से भीड़ निकलती हुई सड़कों तक फैल जाए। लोग इस बात से बेफ़िक्र हो कर सड़क पर कूद-फांद करें कि वो किसी गाड़ी से टकरा जाएंगे। उन्हें किसी कार, किसी बाइक या बस का ख़ौफ़ न हो।
ये कोरी कल्पना नहीं है। दुनिया के कई शहर अपनी सड़कों से गाड़ियों की भीड़ कम कर रहे हैं, या फिर पूरी तरह हटा रहे हैं। यूं तो इटली का वेनिस शहर ऐसा ही है, जिसकी कल्पना हम ने आप को बताई। वेनिस शहर, छोटे-छोटे जज़ीरों पर बसा है।
इसलिए बीच में जो सड़कें हैं, वहां पर गाड़ियों की आमद-ओ-रफ़्त नहीं होती। आप ट्रैफिक का सामना किए बग़ैर वहां आराम से चल-फिर सकते हैं। लेकिन, अब दुनिया के कई शहरों ने प्रयास शुरू किए हैं कि उनकी सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ कम हो, या फिर बिल्कुल ही न हो।
असल में, पिछली एक सदी में दुनिया भर के शहरों की सड़कों पर गाड़ियों की बादशाहत रही है। इनके लिए सड़कें चौड़ी गई हैं। गाड़ियां खड़ी करने के इंतज़ाम किए गए हैं। निजी गाड़ियों ने आवाजाही में इंक़लाब ला दिया है। लेकिन इनकी वजह से कई परेशानियां भी पैदा हो गईं। जैसे की वायु प्रदूषण, शहरों में जाम और सड़क हादसे।
इसलिए आज कुछ शहर इन गाड़ियों से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि शहरों में गाड़ियों से ज़्यादा इंसान नज़र आएं। इसके लिए हर शहर अपने तरह का प्रयोग कर रहे हैं। जैसे कि दिल्ली में ऑड-इवेन फॉर्मूले से प्रदूषण पर क़ाबू पाने की कोशिश हो रही है।
ऐसी ही कोशिश, मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी ने पिको या प्लाका अभियान से की है। अब नॉर्वे की राजधानी ओस्लो और स्पेन की राजधानी मैड्रिड ने भी इस दिशा में क़दम बढ़ाया है।
दोनों ही शहर अपने मुख्य इलाक़ों से गाड़ियों को दूर रखने का अभियान शुरू किया है। हालांकि वो इस मक़सद में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए। लेकिन, इन शहरों ने अपने कुछ हिस्सों में सड़कों को नई पहचान ज़रूर दी है।
सड़कों पर कारें कम करने की कोशिश
इन शहरों का ये प्रयास एक नए चलन का संकेत है। जो चाहते हैं कि शहर के भीतर गाड़ियों की आवाजाही कम हो। इसके लिए कई नुस्खे आज़माए जा रहे हैं। दिल्ली और मेक्सिको सिटी में ऑड-इवेन फ़ॉर्मूला चला, तो बीजिंग ने दफ़्तरों को ही शहर से दूर कर दिया। वहीं लंदन ने कंजेशन चार्ज लगा कर गाड़ियों की तादाद कम करने की कोशिश की। स्पेन के पोंटेवेड्रा शहर में तो गाड़ियां घुसने पर पूरी तरह से ही पाबंदी है।
ओस्लो की डिप्टी मेयर हैना मार्कसेन कहती हैं कि, 'हमारा मुख्य लक्ष्य ये है कि सड़क को लोगों को वापस दे दें। ये अभियान इस बात का है कि हम अपनी सड़कों को किस तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। हमारे हिसाब से तो सड़कें ऐसी जगह होनी चाहिए, जहां आप लोगों से मिलें, खुले रेस्टोरेंट में खाना खाएं। इतनी जगह हो कि बच्चे खेल सकें। जहां कला की नुमाइश हो सके।'
इन सब के लिए ओसलो ने शहर के केंद्रीय हिस्से की कुछ सड़कों पर गाड़ियों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी है। शहर की तमाम पार्किंग हटा कर उन में साइकिल लेन बना दी गई है। बीच सड़क पर बैठने के लिए बेंच लगा दी गई हैं और छोटे-छोटे पार्क भी बनाए गए हैं।
इस क़दम का ताल्लुक़ पर्यावरण से भी है। ओस्लो शहर चारों तरफ़ से पहाड़ियों से घिरा है। यानी ये कटोरे जैसी जगह पर आबाद है। इसका नतीजा ये होता है कि यहां वायु प्रदूषण से हालात कई बार बेक़ाबू हो जाते हैं। जब से ओस्लो ने कुछ सड़कों को ख़ाली कराया है, तब से प्रदूषण भी कम हुआ है। पिछले एक दशक में गाड़ियों से कहीं आने जाने की तादाद में कमी आई है। 2009 में जहां लोग अपनी मंज़िलों तक जाने के लिए 35% बार निजी गाड़ी इस्तेमाल करते थे। वहीं, 2018 में लोग केवल 27% बार ही निजी वाहन से यात्रा करते हैं।
शहरों को कार मुक्त बनाने के मामले में जे एच क्रॉफोर्ड को सबसे जानकार माना जाता है। क्रॉफोर्ड इस बारे में दो किताबें भी लिख चुके हैं। वो कहते हैं कि, 'कारों से भयंकर प्रदूषण होता है। इनसे होने वाले सड़क हादसों में दुनिया भर में दसियों लाख लोग मारे जाते हैं। लेकिन, कारों की बढ़ती तादाद से जो सबसे बड़ा नुक़सान हुआ है, वो ये है कि इन्होंने लोगों के मेलजोल की निगल ली है।'
क्रॉफोर्ड का मुख्य तर्क ये है कि निजी गाड़ियों से लोगों के बीच सामाजिक व्यवहार कम हो गया है। वो कहते हैं कि, 'आप ध्यान दीजिएगा कि शहरों की सबसे लोकप्रिय जगहें वो होती हैं, जहां गाड़ियां नहीं होतीं।' वो जगहें पार्क हो सकती हैं। चौराहे हो सकते हैं। या फिर पैदल चलने वाला रास्ता भी हो सकता है। क्रॉफोर्ड कहते हैं कि अमरीका के ह्यूस्टन और डलास जैसे शहरों में 70 फ़ीसद से ज़्यादा शहरी इलाक़ा तो पार्किंग के क़ब्ज़े में है। वो कहते हैं कि, 'शहरों का मौजूदा मकान का संकट, ज़मीन की कमी की वजह से है। आप कारों से निजात पा लें, तो मकान की समस्याएं अपने आप ख़त्म हो जाएंगी।'
कार मुक्ति पर विवाद
बिना कारों वाला शहर एक अच्छा ख़याल तो है। लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि क्या ऐसा मुमकिन भी है? क्या ये सभी के लिए मान्य है? और कोई इमरजेंसी हुई, तो क्या होगा? उन लोगों का क्या होगा, जो लंबी दूरी तक चल नहीं सकते? और, शहरों के विशाल उप नगरीय इलाक़ों का क्या होगा?
क्या कार मुक्त शहर उन युवाओं की पसंद का विचार है, जो छोटे केंद्रित शहरों में रहना चाहते हैं?
एसोसिएशन ऑफ़ ब्रिटिश ड्राइवर्स के ह्यू ब्लाडेन कहते हैं कि, 'अगर आप किसी सिटी सेंटर को ख़त्म करना चाहते हैं, तो इसका सबसे आसान तरीक़ा है कि लोगों को वहां जाने से रोक दीजिए।'
ह्यू ब्लाडेन कहते हैं कि ब्रिटेन के शहरों के हाई स्ट्रीट कल्चर को ख़त्म करने का ये तरीक़ा बिल्कुल ठीक नहीं है कि आप कारों पर तरह-तरह के टैक्स लगा दें। ड्राइविंग पर पाबंदियां लगाएं। वरना शहरों के लोकप्रिय अड्डे केवल नशेड़ियों का ठिकाना बन कर रह जाएंगे। वो मानते हैं कि कुछ क़स्बों और शहरों में भीड़ बहुत ज़्यादा है। लेकिन, ये योजना कारों की कमी का नतीजा है। उन्हें पार्किंग के बेहतर विकल्प मुहैया कराने चाहिए थे।
ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में अर्बन प्लानिंग के रिसर्चर रैंसफोर्ड अचेमपोंग कहते है कि शहरों से कारों की तादाद कम करने से प्रदूषण घटेगा और लोगों की सेहत भी यक़ीनन बेहतर होगी। लेकिन, वो ये भी कहते हैं कि, 'अगर आप लोगों से कार छीन लेंगे, तो आप को उन्हें आवाजाही के दूसरे विकल्प तो मुहैया कराने ही होंगे।'
यूरोपीय देशों में सार्वजनिक परिवहन की बेहतर सुविधाएं हैं। फिर भी बहुत से लोगों के लिए आवाजाही का अच्छा माध्यम निजी गाड़ियां ही हैं। उनका रहन सहन ऐसा है कि निजी कार के बग़ैर काम ही नहीं चलेगा।
ये परिवहन के 'लास्ट माइल सिद्धांत' का नतीजा है। जिसके मुताबिक़, ये अहम हो जाता है कि कोई इंसान अपनी यात्रा का आख़िरी हिस्सा कैसे तय करता है। जब तक सार्वजनिक परिवहन इस अंतर को छोटे से छोटा नहीं करते, तब तक लोग निजी कार से ही सफर करते रहेंगे।
नार्वे की हैना मार्कसेन ये तो मानती हैं कि लोगों को कारों से महरूम करने का मतलब उनकी आज़ादी छीनना है। लेकिन, वो ये भी कहती हैं कि, 'अगर आप कारों की आवाजाही पर पाबंदियां नहीं लगाते, तो उससे कुछ और लोगों की आज़ादी भी तो प्रभावित होती है। कारों की वजह से बच्चों के लिए गलियों में खेलना मुश्किल होता है बुज़ुर्गों को सड़क पार करने में दिक़्क़त होती है। ओस्लो शहर में प्रदूषण की समस्या है। अगर कारों को अबाध गति से आने जाने की इजाज़त दे दी जाती है। तो इसका मतलब ये हुआ कि अस्थमा के मरीज़, ज़्यादा प्रदूषण होने पर घर के भीतर ही रहने को मजबूर होते हैं। ये उनकी आज़ादी छीनना ही तो है।'
शहरों को कार मुक्त बनाने के लिए क्या करना होगा?
चीन ने ग्रेट सिटी चेंगडू मास्टर प्लान बनाया। जिस में आप कहीं भी पैदल जा सकते हैं। बहुत से ऐसे चौराहे हैं जहां आप पैदल या साइकिल से चल सकते हैं। ऊंची इमारतों को जोड़ने के लिए पुल भी बनाए गए हैं। शहर के बड़े उपनगरीय इलाक़ों को 10 हज़ार लोगों के रहने केक लिए बनाया गया था। ये इलाक़ा केवल एक वर्ग किलोमीटर का है। एक कोने से दूसरे कोने तक जाने में दस मिनट से ज़्यादा का वक़्त नहीं लगता।
लेकिन, अफ़सोस की बात ये है कि ये मास्टर प्लान कभी हक़ीक़त नहीं बन सका। अमरीकी आर्किटेक्ट फर्म स्मिथगिल के क्रिस ड्र्यू बताते हैं कि उनकी कंपनी को 2012 में ये मास्टर प्लान बनाने को कहा गया था, ताकि चेंगडू के बाहरी इलाक़े में उप नगर बसाए जा सकें। फिर भी इस योजना का ब्लूप्रिंट हमें बताते हैं कि कैसे किसी शहर का नक़्शा ऐसा बनाया जा सकता है, जहां लोग बिना कारों के रह सकते हैं।
क्रिस ड्र्यू कहते हैं कि, 'हम इसे ऐसा शहर बनाना चाहते थे, जहां लोग रह सकते, काम कर सकते और खेल कूद सकते और ऐसा माहौल होता जहां बच्चे बिना कार या बस के स्कूल जा सकते थे। लोगों को काम के लिए दूर तक का सफर नहीं करना होता।'
शहर के इस हिस्से को बाक़ी चेंगडू शहर से जोड़ने के लिए दो रेलवे लाइनों की परिकल्पना की गई थी। इससे किसी को भी कार से दफ़्तर तक जाने की ज़रूरत नहीं होती।
कई और शहरों की मिसालें हैं, जिन्होंने कार को अलविदा कह दिया है। क्रिस ड्र्यू स्मिथगिल कंपनी से पहले संयुक्त अरब अमीरात के मसदर शहर में काम करते थे। इस शहर की कल्पना पहले पूरी तरह कार मुक्त शहर के तौर पर की गई थी। हालांकि अब इसकी सड़कों पर गाड़ियां घूमती देखी जा सकती है। स्मिथगिल ने दुबई के वर्ल्ड फेयर 2020 के लिए लीगेसी मास्टर प्लान भी बनाया है। विश्व मेले के दौराना पूरे इलाक़े को कारों और दूसरी गाड़ियों से मुक्त रखे जाने की योजना है।
कोरे काग़ज़ पर शहर की परिकल्पना करने को कहने पर क्रॉफोर्ड एक ऐसे शहर का तसव्वुर करते हैं, जहां एक जगह से दूसरे ठिकाने पर जाने के लिए ट्राम सिस्टम या हल्की रेल सेवा की व्यवस्था हो। इन लाइनों के इर्द-गिर्द घनी रिहाइशी बस्तियों, दुकानों और दफ़्तरों का इंतज़ाम हो। ऐसे शहर के बाशिंदों को अपने घर से दफ़्तर या बाज़ार की दूरी तय करने में पांच मिनट से भी कम का वक़्त लगेगा। इस काल्पनिक शहर में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था से एक कोने से दूसरे कोने तक जाने में आधे घंटे से ज़्यादा का वक़्त नहीं लगेगा।
लेकिन, उन शहरों का क्या करें, जो पहले से आबाद हैं? जहां आज ज़्यादातर शहरी आबादी रहती है। हैना मार्कसेन समझाती हैं कि, 'हम ने पहले शहर के एक हिस्से की सड़क को ख़ाली करा कर लोगों को वहां हुए बदलाव का असर दिखाया। इसके बाद हम ने थोड़ा-थोड़ा कर के शहर के कुछ हिस्से कारों से मुक्त कराए। जैसे कि ओस्लो का सबसे प्रसिद्ध इलाक़ा इसका टाउन हॉल था, जो कभी गाड़ियों से भरा रहता था। लेकिन, जब हम ने एक साल पहले इसे कारों के लिए बंद किया, तो लोगों को अजीब लगा। लेकिन, अब वो ये सोचते हैं कि हम ने यहां तक कारें लाकर शहर की तस्वीर ही बिगाड़ दी थी।'
कार मुक्त भविष्य?
रैंसफोर्ड एचेमपोंग कहते हैं कि भविष्य में कारों से निजात पाने का ये सिलसिला और तेज़ होगा। आज कारों की संख्या बहुत ज़्यादा बढ़ गई है। लोग गाड़ियां चलाना कम कर रहे हैं। आज के युवा गाड़ी ख़रीदने से बचते हैं। आगे चल कर गाड़ियों की संख्या और कम होनी तय है।
रैंसफोर्ड कहते हैं कि आज ऊपर या लिफ़्ट जैसी सुविधाओं की मांग बढ़ रही है। इससे लोग सार्वजनिक परिवहन से दूर हो रहे हैं। पर फिर भी कारें तो हैं ही सड़कों पर। रैंसफोर्ड ये भी कहते हैं कि विकासशील देशों में कारों की ख़रीद लगातार बढ़ रही है। सरकारें भी इसको बढ़ावा देती हैं।
शहरों में कई बार सफ़र ऐसा होता है, जो इसके केंद्रीय हिस्से से दूर होता है। मसलन, लंदन का एम25 हाइवे या फिर बीजिंग की सात रिंग रोड।
यूरोप के सदियों पुराने शहरों के लिए कार से मुक्ति पाना आसान है। क्योंकि ये शहर सदियों तक बिना कारों के ही आबाद रहे थे। बाक़ी दुनिया के बारे में ये नहीं कहा जा सकता है। अब ये देखना होगा कि कार मुक्त शहर का ये चलन कितनी दूर तक जाता है।