बीजेपी नेता तीरथ सिंह रावत ने भले ही संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए उत्तराखंड के सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये हक़ीक़त नहीं है।
हिन्दी के अख़बार, अमर उजाला ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद हुए आंतरिक सर्वे में पाया गया कि तीरथ सिंह रावत के चेहरे के सहारे चुनाव जीतना मुश्किल है। फिर पार्टी नेतृत्व को यह डर भी था कि अगर रावत उपचुनाव में हार गए या उनकी तरफ से खाली की गई लोकसभा की पौड़ी गढ़वाल सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी हार गई तो इसका बड़ा सियासी नुक़सान होगा।
ख़बर के अनुसार, पौड़ी गढ़वाल से सांसद तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर तक विधानसभा चुनाव जीतना था। पहले उन्हें सल्ट उपचुनाव लड़ने की सलाह दी गई थी, लेकिन वो तैयार नहीं हुए। इस बीच राज्य में 2 और सीटें (गंगोत्री व हल्द्वानी) खाली हो गईं, जहां उपचुनाव होना है।
पहले अटकलें थीं कि तीरथ सिंह रावत गढ़वाल क्षेत्र में स्थित गंगोत्री से उपचुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन इस सीट पर भी तीरथ सिंह रावत सहज नहीं थे।
ख़बर के मुताबिक़, जब मार्च में उत्तराखंड के सीएम पद पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को लाया गया था, तो उसके बाद सीटों की भी अदला-बदली होनी थी। तीरथ सिंह रावत की संसदीय सीट पौड़ी से पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनाव लड़ाया जाना था और त्रिवेंद्र सिंह की विधानसभा सीट डोईवाल से तीरथ सिंह को लड़ना था। लेकिन वो भी नहीं हो पाया।
हालांकि, कुछ पर्यवेक्षकों का कहना ये भी था कि राज्य विधानसभा के कार्यकाल का एक साल से भी कम समय बचा है और मुमकिन है कि निर्वाचन आयोग उत्तराखंड की रिक्त सीटों पर उपचुनाव कराने का कोई आदेश ही न दे।
लेकिन शुक्रवार को जब तीरथ सिंह रावत ने अपना इस्तीफ़ा दिया, तो उन्होंने पत्र में लिखा कि संवैधानिक बाध्यता के कारण मैं 6 महीने में विधानसभा सदस्य नहीं बन सकता। ऐसे में मैं नहीं चाहता कि पार्टी के सामने कोई संकट उत्पन्न हो। इसलिए मैं सीएम पद से इस्तीफ़ा दे रहा हूं।
हालांकि, अपने इस्तीफ़े से पहले 22 हज़ार करोड़ के कोविड पैकेज और 22 हज़ार नौकरियों की घोषणा कर, तीरथ सिंह रावत ने सबको चौंका दिया।
उन्होंने जिस अंदाज़ में 114 दिन की अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाया, उसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। उन्होंने विदाई से पहले ख़ुद की पीठ थपथपाई और प्रेस के सवालों का जवाब दिए बिना ही, चुपचाप सबको धन्यवाद बोलकर चले गए।
जम्मू हमले से पहले, इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के ऊपर देखा गया था ड्रोन
इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग परिसर के ऊपर पिछले सप्ताह एक ड्रोन देखे जाने की घटना पर भारत सरकार ने चिंता व्यक्त की है और पाकिस्तान से इस घटना की जांच कराने की मांग की है।
दिल्ली से प्रकाशित होने वाले सभी बड़े अख़बारों ने इस ख़बर को प्रमुखता से छापा है।
अंग्रेज़ी अख़बार, 'द हिन्दू' लिखता है कि भारत ने पाकिस्तान से यह सुनिश्चित कराने को कहा है कि भविष्य में ऐसी सुरक्षा चूक दोबारा नहीं हो।
ख़बर के अनुसार, 26 जून को इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के परिसर के उपर एक ड्रोन देखा गया था। भारतीय अधिकारियों ने इस मामले को आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान की सरकार के समक्ष उठाया था और इस मुद्दे को लेकर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी।
ख़बर में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग वाली घटना, जम्मू के भारतीय वायु सेना स्टेशन पर हमले से ठीक एक दिन पहले हुई थी। 27 जून को विस्फोटकों से लदे एक ड्रोन से हमले की यह घटना घटी थी।
भारतीय सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, पाकिस्तान स्थित आतंकियों द्वारा मानव रहित ड्रोन के ज़रिए भारत में प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने की यह पहली घटना थी।
शुक्रवार को भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि आतंकवाद और आतंकी वित्तपोषण के बारे में हमारी 'कतई बर्दाश्त न करने' की नीति है। हम आतंकवाद के हर स्वरूप की निंदा करते हैं और सभी देशों से अपेक्षा करते हैं कि वे सीमापार से आतंकवादियों की आवाजाही, आतंकियों की पनाहगाह और उनके वित्त पोषण को ख़त्म करने के लिए विश्वसनीय क़दम उठाएंगे।
अख़बार ने इस ख़बर में जम्मू-कश्मीर के डीजीपी, दिलबाग़ सिंह के बयान को भी शामिल किया है जिनका कहना है कि 27 जून को जम्मू में हुए 2 ड्रोन हमलों के पीछे चरमपंथी संगठन लश्करे तैय्यबा का हाथ हो सकता है, सुरक्षा एजेंसियों को ऐसा संदेह है और इस मामले की जांच जारी है।
कोरोना काल में भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग बढ़ा: अध्ययन
एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि भारत में कोरोना की पहली लहर के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग बढ़ा था और इन दवाओं का इस्तेमाल कोरोना संक्रमण के हल्के और मध्यम लक्षण वाले मरीज़ों के इलाज में किया गया।
हिन्दी अख़बार, जनसत्ता ने इस पर एक रिपोर्ट की है जिसमें लिखा है कि अमेरिका में वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि कोविड-19 के कारण भारत में पहली लहर के दौराना यानी जून 2020 से सितंबर 2020 तक, वयस्कों को दी गई एंटीबायोटिक की 21.64 करोड़ और एजिथ्रोमाइसिन दवाओं की 3.8 करोड़ की अतिरिक्त बिक्री होने का अनुमान है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि दवाओं का ऐसा दुरुपयोग अनुचित माना जाता है क्योंकि एंटीबायोटिक्स केवल बैक्टीरिया के संक्रमण के ख़िलाफ़ प्रभावी होते हैं, न कि कोविड-19 जैसे वायरल संक्रमण के ख़िलाफ़ असरदार होते हैं। एंटीबायोटिक्स के ज़रूरत से अधिक इस्तेमाल ने ऐसे संक्रमण का ख़तरा बढ़ा दिया है जिसपर इन दवाओं का असर न हो।
इस अध्ययन में जनवरी 2018 से दिसंबर 2020 तक भारत के निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में सभी एंटीबायोटिक्स दवाओं की मासिक बिक्री का विश्लेषण किया गया। इसके आंकड़े अमेरिका स्थित स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी आईक्यूवीआईए की भारतीय शाखा से लिए गए थे।
अनुसंधानकर्ताओं ने पता लगाया कि भारत में 2020 में एंटीबायोटिक्स की 16.29 अरब दवाएं बिकीं, जो 2018 और 2019 में बिकीं दवाओं से थोड़ी कम हैं।
हालांकि जब अनुसंधानकर्ताओं ने वयस्कों को दी गईं एंटीबायोटिक दवाओं पर ध्यान केंद्रित किया तो इसका इस्तेमाल 2019 में 72।5 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 76.8 प्रतिशत हो गया।
साथ ही भारत में वयस्कों में एजिथ्रोमाइसिन की बिक्री 2019 में 4.5 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 5. 9 प्रतिशत हो गई।
अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोविड के मामले बढ़ने के साथ ही एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भी बढ़ गया। हमारे नतीजों से पता चलता है कि भारत में कोराना वायरस से संक्रमित पाए गए लगभग हर व्यक्ति को एंटीबायोटिक दी गई।