बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा का नाम अब भारत के संसदीय इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है। बुधवार को संसद में घुसे दो युवाओं से मिले उनके 'पास' पर इन सांसद के ही हस्ताक्षर थे।
एक पत्रकार के रूप में छोटी उम्र से ही अपने विचारों और उसके बाद साल 2014 में मैसूर-कोडागु सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचने तक उन्होंने कई कारनामे किए हैं। बीते नौ साल की सांसदी में सिम्हा ने न सिर्फ़ विपक्ष बल्कि अपनी पार्टी के नेताओं से भी टक्कर ली है। जबकि बीजेपी जैसी अनुशासन प्रिय पार्टी में ऐसा होना आम बात नहीं है।
बीती मई में बीजेपी के राज्य विधानसभा चुनाव हारने पर प्रताप सिम्हा ने बीएस येदियुरप्पा और बासवराज बोम्मई की सरकार पर उंगली उठाई थी। उन्होंने कहा कि पार्टी ने कांग्रेस के नेताओं पर भ्रष्टाचार के कथित आरोपों की जांच नहीं की।
सिम्हा का आरोप था कि बीजेपी की राज्य सरकार ने किसी समझौते के तहत कांग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ क़दम नहीं उठाए थे।
कर्नाटक में सभी जानते हैं कि प्रताप सिम्हा बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष के शिष्य हैं। वे कह चुके हैं कि संतोष उन तीन आरएसएस नेताओं में से एक हैं जिनकी वजह से उन्हें मैसुरू से टिकट मिला था।
कर्नाटक बीजेपी में येदियुरप्पा और बीएल संतोष के बीच हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है।
मैसुरू के एक पूर्व विधायक जी मधुसूदन ने बीबीसी को बताया, 'प्रताप ने किसी को भी अपनी आत्मा नहीं बेची है। 2014 में वे इसलिए सामने लाए गए क्योंकि बीजेपी को एक वोक्कालिगा उम्मीदवार चाहिए था जो कांग्रेस के एएच विश्वनाथ को टक्कर दे सके।'
अहंकार या सम्मान पाने की चाह?
उन्होंने बीबीसी को बताया, 'हम वोक्कालिगा समुदाय से किसी ऐसे व्यक्ति को खोज रहे थे जो कट्टर हिंदुत्व का सर्मथक हो। प्रताप इसमें फिट हो गए क्योंकि वे उन दिनों काफ़ी मशहूर हो गए थे। वे आरएसएस से नहीं हैं लेकिन हमने उन्हें अपना लिया। लेकिन वे थोड़े घमंडी किस्म के हैं।'
लेकिन सिम्हा का पक्ष लेते हुए मधुसूदन कहते हैं, हर व्यक्ति सम्मान चाहता है। कुछ लोग ये बात नहीं समझते। उन्हें लगता है कि ये नौजवान उनसे ऐसे कैसे बात कर सकता है। उसकी क्या औकात है? लेकिन प्रताप सिम्हा जिन विवादों में फंसते रहे हैं, उन्हें पार्टी गंभीरता से लेती रही है।
जनवरी 2018 में उन्होंने मैसूरू में उस रूट पर हनुमान जयंती की झांकी निकाली जिसके लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी थी। जब पुलिस ने इस झांकी को रोकना चाहा तो सिम्हा ख़ुद झांकी वाली गाड़ी चलाने लगे और बैरिकेड तोड़ते हुए आगे बढ़ गए। अफरा तफरी में पुलिस वाले अपनी जान बचा कर भागे।
सिम्हा ने बाद में अपने बचाव में कहा कि वह तो सिर्फ गाड़ी घुमा रहे थे ताकि वह वापस लौट सकें।
इस घटना से कुछ दिन पहले उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हवाले से कहा था, “अमित शाह ने पूछा कि इन प्रदर्शनकारियों में से कितनों ने लाठीचार्ज और टीयरगैस देखा है? मैंने कहा एक ने भी नहीं। उन्होंने हमसे कहा कि हम आक्रामक हो जाएं और बड़े प्रदर्शन करें। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि भविष्य में ऐसे ही प्रदर्शन होंगे।”
इसके बाद साल 2022 के नवंबर महीने में सिम्हा ने मैसूर में हाइवे के क़रीब स्थित एक कॉलेज के पास बने एक गुंबदाकर बस स्टेशन का विरोध किया। ये एक बस स्टैंड था जिसे स्थानीय बीजेपी विधायक रामदास ने अपनी विधायक नीधि से बनवाया था।
सिम्हा का कहना ये था कि बस स्टेशन के ऊपर बना गुंबद 'एक मस्जिद है, कुछ और नहीं'। जिसे इंजीनियरों को हटाना पड़ेगा। उन्होंने यहां तक कहा कि वह जेसीबी लाकर इसे गिरा देंगे।
रामदास के एक समर्थक ने पिछले साल मुझे बताया था, “मैसूर में ऐसे कई बस स्टेशन हैं जिन पर इस तरह का गुंबद लगे हुए हैं जो मैसूर पैलेस के गुंबद से मेल खाते हैं। वह सिर्फ खुद को हिंदुओं का अगुवा दिखाने के लिए ये कर रहे हैं। ये सिर्फ उनका अहंकार है जो पार्टी का माहौल खराब कर रहा है।”
कांग्रेस सरकार ने जब (2013 से 2018) में टीपू सुल्तान की बरसी मनाना शुरू की तो सिम्हा ने हर स्तर पर इसका विरोध किया। टीपू सुल्तान एक ऐतिहासिक नेता हैं जिनकी अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ते हुए युद्ध भूमि में मौत हुई थी। उन्होंने टीपू सुल्तान को मुसलमानों के रोल मॉडल के रूप में परिभाषित किया था।
हालांकि, प्रकाश राज के मामले में उन्हें सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। क्योंकि प्रकाश राज ने उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी नोटिस भेज दिया था।
इसके साथ ही सिम्हा ने बंगलुरू-मैसूर सिक्स लेन हाइवे की अनुमति लेकर आने का दावा किया था। उनका कहना था कि ये हाइवे इसलिए संभव हो सका क्योंकि वह इसकी अनुमति लेकर आए थे।
इस पर कांग्रेस नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा कि इस हाइवे के लिए उस वक़्त अनुमति मिली थी जब ऑस्कर फर्नांडीज़ यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री हुआ करते थे।
कांग्रेस एमएलसी बीके हरिप्रसाद ने इस मुद्दे पर बीबीसी हिंदी को बताया, “यह फर्नांडीज़ और श्रीनिवास प्रसाद थे जिन पर इसकी ज़िम्मेदारी थी। उनके (सिम्हा) दावे हमेशा सवालों से घिरे रहे हैं।”
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने हाल ही में कहा है कि सिम्हा में राजनीतिक परिपक्वता की कमी है। उनकी ओर से ये बयान तब आया था जब सिम्हा ने दावा किया कि सिद्दारमैया और उनकी पार्टी के नेताओं के बीच “अडस्टमेंट पॉलिटिक्स” थी।
पत्रकार के तौर पर सिम्हा का करियर
एक पत्रकार के तौर पर प्रताप सिम्हा को विश्वेश्वर भट्ट ने मौका दिया था। भट्ट कहते हैं कि जब 24 वर्ष की आयु में उन्होंने कॉलम लिखना शुरू किया था तब भी वो अपनी मर्जी के मालिक थे।
भट्ट ने बीबीसी हिंदी को बताया, “उन दिनों हमारा अख़बार यानी विजय कर्नाटका नया-नया था। तो मैंने सोचा क्यों न किसी युवा चेहरे को संपादकीय पेज की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। दस साल तक सिम्हा ने हमारे अख़बार में ये काम किया। बाद में पांच साल वे कन्नड प्रभा के साथ रहे।”
भट्ट ने बताया कि सिम्हा का कॉलम शनिवार को छपता था। वे हर घर में जाने-पहचाने नाम हो गए थे। वे काफ़ी पढ़े-लिखे हैं और शोध करते हैं। हर चीज़ पर अपनी राय रखते हैं।
मधुसूदन कहते हैं, “उनके कॉलम का शीर्षक होता था - नग्न दुनिया। ये बेहद मशहूर लेख हुआ करता था। इसी की वजह से उन्हें राजनीति में सीधा प्रवेश मिला और वे लोकसभा पहुँच गए।”
विज़िटर पास पर विवाद
उनके पूर्व संपादक भट्ट विज़िटर पास पर साइन करने को लेकर प्रताप सिम्हा का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं, “आप जानते हैं कि बतौर पत्रकार हमें कई लोग निवेदन करते हैं कि सांसद या विधायक से विज़िटर पास साइन करवा दें। ये प्रताप की ग़लती नहीं है।"
उन्होंने कहा कि ये सुरक्षाकर्मी की चूक है। उन लोगों की ठीक से तलाशी ली जानी चाहिए थी। ऐसा होता तो वो लोग पकड़े जाते।