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लोकसभा अध्यक्ष का पद इतना अहम क्यों है और कैसे होता है चुनाव?

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BBC Hindi

, सोमवार, 24 जून 2024 (09:19 IST)
-अमृता दुर्वे (बीबीसी मराठी)
 
First session of the 18th Lok Sabha: 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू हो रहा है। सत्र की शुरुआत में नए सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी और इसके बाद सबसे अहम काम लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है? यह पद महत्वपूर्ण क्यों है? बीजेपी सांसद ओम बिरला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष थे।
 
लेकिन पिछली लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल नई लोकसभा के पहले सत्र तक ही होता है। इसलिए जब 18वीं लोकसभा की कार्यवाही शुरू होती है तो सबसे पहले प्रोटेम स्पीकर का चुनाव किया जाता है। यह प्रभारी अध्यक्ष सांसदों को पद की शपथ दिलाता है और पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त होने तक सदन के कामकाज का संचालन करता है। सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर चुना जाता है।
 
इस हिसाब से कांग्रेस कार्यकारी समिति के सदस्य और केरल के मवेलिककारा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद कोडिकुनिल सुरेश का दावा सबसे मज़बूत था। 8वीं बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश, मवेलिककारा से चौथी बार चुने गए हैं और सालों के अनुभव के लिहाज से वे सदन में सबसे वरिष्ठ हैं।
 
लेकिन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बीजेपी सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम अध्यक्ष नियुक्त किया है। भर्तृहरी महताब 7 बार के सांसद है, हालांकि उनकी नियुक्ति पर कांग्रेस ने सवाल भी उठाए हैं। लेकिन महताब ही नए सांसदों को उनके पद की शपथ दिलाएंगे।
 
लोकसभा के अध्यक्ष कैसे चुने जाते हैं?
 
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। सांसद अपने में से दो सांसदों को सभापति और उप-सभापति चुनते हैं।
 
सदस्यों को इस लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से एक दिन पहले उम्मीदवारों को समर्थन का नोटिस जमा करना होता है।
 
चुनाव के दिन, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत के ज़रिए किया जाता है। यानी जिस उम्मीदवार को उस दिन लोकसभा में मौजूद आधे से ज़्यादा सांसद वोट देते हैं, वह लोकसभा अध्यक्ष बनता है।
 
इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए किसी अन्य शर्त या योग्यता को पूरा करना ज़रूरी नहीं है।
 
लेकिन जो व्यक्ति स्पीकर होता है उसे सदन के कामकाज, उसके नियमों, देश के संविधान और कानूनों के बारे में जानकारी होना ज़रूरी है।
 
लोकसभा अध्यक्ष कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए ज़िम्मेदार होता है। इसलिए ये पद काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
 
लोकसभा अध्यक्ष संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं और सदन में विवाद होने पर स्पीकर नियमानुसार कार्रवाई करते हैं।
 
सदन में सत्ता और विपक्ष दोनों पक्षों के सदस्य होते हैं। इसीलिए लोकसभा अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह तटस्थ रहकर कामकाज चलाएं। लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे पर अपनी राय घोषित नहीं करते।
 
वे किसी प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लेते लेकिन अगर प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर वोट हों तो वे निर्णायक मत डाल सकते हैं।
 
लोकसभा अध्यक्ष विभिन्न समितियों का गठन करते हैं और इन समितियों का कार्य उसके निर्देशानुसार होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोई सदस्य सदन में दुर्व्यवहार करता है तो लोकसभा अध्यक्ष उसे निलंबित कर सकते हैं।
 
दिसंबर 2023 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में घुसपैठ के मामले में बहस की मांग करने पर दुर्व्यवहार के लिए कुल 141 विपक्षी नेताओं को निलंबित कर दिया गया था।
 
इनमें से 95 लोगों को लोकसभा से और 46 लोगों को राज्यसभा से निलंबित किया गया। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र का मजाक बताकर इसकी निंदा की।
 
डिप्टी स्पीकर का पद
 
आम तौर पर सत्तारूढ़ दल के सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। जबकि उपसभा पति का पद विपक्षी दल को दिया जाता है।
 
अब तक लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से होता आया है और स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस पद के लिए कोई चुनाव नहीं हुआ है।
 
इस बार बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो बीजेपी ने तेलुगुदेशम पार्टी और जनता दल यूनाइटेड की मदद से एनडीए सरकार बनाई। इसीलिए चर्चा है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद बीजेपी अपने पास रखेगी या सहयोगी दलों को देगी।
 
16वीं और 17वीं लोकसभा में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत था। सुमित्रा महाजन 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष थीं। एआईएडीएमके नेता एम। थम्बी दुरई इस लोकसभा के उपाध्यक्ष थे।
 
बीजेपी के ओम बिरला 17वीं लोकसभा के अध्यक्ष थे। लेकिन तब लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ और पूरे कार्यकाल तक यह पद खाली रहा।
 
इस लोकसभा में डिप्टी स्पीकर पाने के लिए इंडिया अलायंस का आक्रामक रुख़ है।
 
ये भी रहे लोकसभा के अध्यक्ष
 
लोकसभा में उन सांसदों को भी स्पीकर का पद दिया गया है जो पहले सत्ता पक्ष से नहीं थे।
 
12वीं लोकसभा की अध्यक्षता तेलुगुदेशम पार्टी के जीएमसी बालयोगी ने की, जबकि उस समय बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे।
 
बालयोगी को 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया था। लेकिन इसी पद पर रहते हुए उनकी हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई।
 
उनके बाद शिवसेना सांसद मनोहर जोशी 13वीं लोकसभा के अध्यक्ष थे।
 
अब तक के इतिहास में एम। के अयंगर, जी। एस। ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जीएमसी बालयोगी को लगातार दो लोकसभाओं का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
 
इनमें से केवल बलराम जाखड़ ने 7वीं और 8वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया।
 
चौथी लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस नेता नीलम संजीव रेड्डी ने अपनी नियुक्ति के बाद अध्यक्ष को तटस्थ होने के सिद्धांत को मानते हुए कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी।
 
जबकि मनमोहन सिंह की पहली यूपीए सरकार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने बाहरी समर्थन दिया था, तब अनुभवी सीपीआई (एम) नेता सोमनाथ चटर्जी लोकसभा के अध्यक्ष बने थे।
 
बाद में, सीपीआई (एम) ने अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते विवाद पर सरकार से समर्थन वापस ले लिया और चटर्जी को लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के लिए कहा।
 
लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया, इसलिए बाद में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।
 
2009 से 2014 तक 15वीं लोकसभा की अध्यक्ष रहीं मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष का पद संभालने वाली पहली महिला थीं। उनके बाद बीजेपी की सुमित्रा महाजन 16वीं लोकसभा की अध्यक्ष बनीं।
 
क्या लोकसभा अध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है?
 
संविधान का अनुच्छेद 94 सदन को लोकसभा अध्यक्ष को पद से हटाने का अधिकार देता है।
 
लोकसभा अध्यक्ष को 14 दिन का नोटिस देकर 50 प्रतिशत से अधिक प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा पद से हटाया जा सकता है।
 
प्रभावी बहुमत का मतलब उस दिन लोकसभा में 50% से अधिक सदस्य सांसद मौजूद होते हैं।
 
इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 7 और 8 के अनुसार भी लोकसभा अध्यक्ष को हटाया जा सकता है।
 
अगर स्पीकर स्वयं पद छोड़ना चाहें तो वो अपना इस्तीफ़ा उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर) को सौंपता है।

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