- रजनीश कुमार
दिन के दस बज रहे हैं। सभी नौजवान पसीने से लथपथ हैं। कोई सब्ज़ी काट रहा है तो कोई कपड़े धो रहा है। कुछ कैरमबोर्ड खेल रहे हैं। कमर से ऊपर सब बिना कपड़े के हैं। उमस वाली बेइंतहा गर्मी है। पास में पहाड़ है। पहाड़ एकदम हरा है और ऊपर काले-सफ़ेद बादल। नेपाल के लुंबिनी प्रदेश की राजधानी बुटवल में गोरखा स्पोर्ट्स ट्रेनिंग सेंटर कुछ इसी परिवेश में समाया दिख रहा है।
ट्रेनर रमेश थापा के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे। चार साल पहले उनकी मौत हो गई थी। उनकी माँ लंदन में ही रहती हैं। रमेश थापा बुटवल में नेपाली गोरखाओं को ब्रिटिश और भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी करवाते हैं।
रमेश थापा ने भी सेना में भर्ती होने की कोशिश की थी लेकिन वह नाकाम रहे थे। ब्रिटेन और भारत की आर्मी में नेपाली गोरखा 1947 में हुई त्रिपक्षीय संधि के तहत भर्ती होते हैं। रमेश थापा की ट्रेनिंग सेंटर में कम से कम 100 नौजवान हैं। सभी की उम्र 15 से 20 साल के बीच है। नेपाल के अलग-अलग इलाक़ों से आए ये नौजवान यहीं रहकर ट्रेनिंग करते हैं। इन्हें हर महीने 13 हज़ार रुपए फीस के तौर पर देने होते हैं।
जून महीने के पहले तक इस ट्रेनिंग सेंटर में ये नौजवान पूरे जोश के साथ कड़ी ट्रेनिंग करते थे। 14 जून को भारतीय सेना ने नई भर्ती नीति अग्निपथ की घोषणा की तब से यहाँ निराशा और ग़ुस्से का माहौल है। रमेश थापा कहते हैं कि यहाँ सभी नौजवान भारत की सेना में जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे लेकिन अब वह उत्साह नहीं है।
थापा कहते हैं, ब्रिटिश आर्मी में हर साल नेपाली गोरखाओं के लिए महज़ 172 सीट ही होती है। भारतीय सेना में 1000 से ज़्यादा लोगों को भर्ती किया जाता था। जब से भारत ने अग्निपथ योजना की घोषणा की है तब से लोग बहुत निराश हैं। अब शायद ही कोई नेपाली गोरखा भारतीय सेना में जाना चाहेगा। चार साल बाद ये बच्चे क्या करेंगे? गोरखा बहुत कड़ी मेहनत करते हैं लेकिन भारत ने गोरखाओं की मेहनत पर अग्निपथ लाकर पानी फेर दिया है।
चीन और पाकिस्तान हमें बुला रहे हैं
लुंबिनी के 22 साल के सचिन कुंवर पिछले पाँच सालों से इस ट्रेनिंग सेंटर पर भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी कर रहे हैं।
इनके पिता इंद्र बहादुर कुंवर भी भारतीय सेना में थे। सेना से रिटायर होने के बाद इंद्र बहादुर कुंवर पंजाब में डीएसई में नौकरी कर रहे हैं। सचिन अग्निपथ योजना से इतना ख़फ़ा हैं कि वह पाकिस्तान और चीन की सेना में जाने के लिए तैयार हैं।
नौजवानों के झुंड से सचिन कहते हैं, हमारे लिए केवल भारत ही नहीं है। चीन और पाकिस्तान हमें बुला रहे हैं। हम चीन और पाकिस्तान की सेना में भी भर्ती हो सकते हैं। गोरखाओं की बहादुरी को हर कोई जानता है। हमें स्थाई नौकरी चाहिए। चाहे वह भारत हो या चीन या फिर पाकिस्तान। हमारी प्रतिबद्धता उसी देश के प्रति होगी जो हमें सुविधाएं देगा।
सचिन से पूछा कि तुम्हारे पिता भारत के लिए लड़े क्या तुम चीन और पाकिस्तान के लिए लड़ेगो? सचिन ने जवाब में कहा, मेरे पिता को भारत में स्थाई नौकरी और सुविधाएं मिलीं तो उनकी वफ़ादारी उस मुल्क के प्रति रही और हमेशा रहेगी।
पिता की वफ़ादारी मैं क्यों ढोऊंगा? मैं अग्निपथ के दम पर भारत के साथ वफ़ादारी नहीं निभाऊंगा। हमें चीन से भी ऑफ़र मिल रहा है। पाकिस्तान तो बुलाता ही रहता है। हमें चीन और पाकिस्तान अपनी सेना में भर्ती करेंगे तो हम भी जाने के लिए तैयार हैं।
सचिन ने जब यह बात कही तो वहाँ खड़े सभी नौजवानों ने सहमति जताई और कहा कि अग्निपथ में वे नहीं जाएंगे। सचिन की बातों में अपनी बात जोड़ते हुए नरेश महता कहते हैं, भारत के लिए जान दे सकते हैं तो चीन और पाकिस्तान के लिए जान देने में क्या हर्ज है? भारत के लिए जान देने का इनाम हमें अग्निपथ मिला है।
नरेश महता उत्तराखंड की सीमा से लगे नेपाल में कंचनपुर के रहने वाले हैं। नरेश ने 12वीं तक पढ़ाई की है। नरेश के पिता शंकर सिंह महता भारत में ट्रक चलाते थे। चार साल पहले एक सड़क दुर्घटना में शंकर सिंह महता की जान चली गई थी। 21 साल के नरेश कहते हैं कि वह जी जान से भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए लगे थे लेकिन अग्निपथ योजना ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया है।
वहां 4 साल के लिए जाकर क्या करूंगा
अग्निपथ योजना से आक्रोशित नरेश महता कहते हैं, हम चार साल बाद नेपाल आकर क्या करेंगे? मैं अग्निपथ स्कीम के तहत भारतीय सेना में अब नहीं जाऊंगा। नेपाल की सरकार को पाकिस्तान और चीन के साथ समझौता करना चाहिए।
हमारे लिए इन दोनों देशों की सेना का दरवाज़ा भी खोलना चाहिए। अब बहुत हो गया। हम भारत की हर मनमानी तो नहीं सुन सकते। गोरखाओं ने भारत के लिए बहुत कुछ किया है लेकिन ये हमें बुनियादी प्रतिष्ठा भी नहीं देते हैं।
भारत और ब्रिटेन की नेपाल से जो त्रिपक्षीय संधि है, वैसी संधि चीन और पाकिस्तान के साथ नहीं है। 1947 में हुई इसी संधि के कारण नेपाली गोरखा भारत और ब्रिटेन की आर्मी में भर्ती होते हैं। लेकिन सिंगापुर और ब्रुनेई के साथ भी नेपाल की कोई संधि नहीं है और वहां की सेना में भी नेपाली गोरखा जा रहे हैं।
नरेश महता कहते हैं कि नेपाल केवल भारत पर आश्रित रहेगा तो इसी तरह की मनमानी होती रहेगी। सचिन और नरेश जब ऐसा कह रहे थे तो वहाँ खड़े सभी नौजवानों ने इन दोनों की बातों का गर्मजोशी से समर्थन किया।
इन दोनों के समर्थन में नेपाल में गुल्मी के 19 साल के बिमल पांडे भी सामने आए। बिमल पांडे के पिता रामप्रसाद पांडे भारत में खाना बनाने का काम करते थे। अब रामप्रसाद पांडे दुबई में खाना बनाते हैं।
12वीं पास बिमल पांडे अग्निपथ के सवाल पर भावुक हो जाते हैं और नाराज़ होकर कहते हैं, मेरे लिए भारतीय फौज ही आख़िरी उम्मीद थी। अब वहां चार साल के लिए जाकर क्या करूंगा। पिछले चार सालों से किसी तरह फीस चुकाकर कड़ी मेहनत कर रहा था लेकिन अब तो सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। मैं जिस हालत में हूँ, उसमें चीन या पाकिस्तान किसी भी आर्मी में जा सकता हूँ। हमारे लिए कोई अछूत नहीं है। चीन और पाकिस्तान की सेना के लिए हम रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
बुटवल में भारतीय सेना से रिटयार फौजी भी बड़ी संख्या में रहते हैं। जब हम इन नौजवानों से बात कर रहे थे तो भारतीय सेना में 34 साल रहे कैप्टन नारायण पौडेल भी वहीं खड़े थे। कैप्टन पौडेल ने कारगिल का युद्ध भी लड़ा था। वह श्रीलंका में भी भारतीय सेना की ओर से पीसमेकिंग फ़ोर्स में शामिल हुए थे।
गोरखाओं के लिए अग्निपथ नहीं हटाया तो...
कैप्टन पौडेल से पूछा कि ये नौजवान नाराज़गी में ऐसा कह रहे हैं या वाक़ई इन्हें मौक़ा मिलेगा तो पाकिस्तान और चीन की आर्मी में चले जाएंगे?
जवाब में पौडेल कहते हैं, अग्निपथ से नाराज़ तो हैं ही। भारत ने नेपाली गोरखाओं के लिए अग्निपथ नहीं हटाया तो चीन और पाकिस्तान नाराज़ नौजवानों को मौक़ा दे सकते हैं। भारत को समझना चाहिए कि गोरखा उनके लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
नेपाली गोरखाओं को इस्तेमाल करने के लिए चीन और पाकिस्तान तैयार बैठे हैं। मुझे नहीं लगता कि ये नौजवान केवल ग़ुस्से में ऐसा कह रहे हैं। नेपाल में भारत विरोधी भावना मज़बूत है। अग्निपथ इस भावना को और खाद-पानी मुहैया कराएगा।
कैप्टन नारायण पौडेल कहते हैं, भारत भविष्य की सेना के लिए काम कर रहा है। यह बात सही है। लेकिन ढिंढोरा पिटने की ज़रूरत नहीं थी। इन्हें अग्निपथ से 25 फ़ीसदी लोगों को नियमित नौकरी के लिए रिटेन करना है। ऐसे में नेपाली गोरखाओं की उतनी ही भर्तियां निकालते जितनों को रिटेन किया जा सके। भारत की हर लड़ाई में गोरखाओं ने जान दी है। लेकिन गोरखाओं के इस समर्पण को तवज्जो नहीं दी गई तो भारत के लिए ही मुश्किल स्थिति खड़ी होगी।
जनरल अशोक कुमार मेहता गोरखा रेजिमेंट में रहे हैं और अब रक्षा विश्लेषक के तौर पर लिखते हैं। नेपाली गोरखाओं के चीन और पाकिस्तान की आर्मी में जाने वाली बात पर उनसे पूछा तो उन्होंने भी इस चिंता का ज़िक्र किया।
जनरल अशोक कुमार मेहता ने कहा, नेपाली गोरखाओं के लिए अग्निपथ विषय पर दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 25 जुलाई को एक सेमिनार हुआ था। इसमें नेपाल की जनता समाजवादी पार्टी के केंट्रीय समिति के सदस्य और पुलिस फेडरेशन के अध्यक्ष मानद सूबेदार मेजर खेम जंग गुरुंग ने ऑडियो संदेश भेजा था। इस ऑडियो संदेश में उन्होंने कहा था कि अग्निपथ से भारतीय सेना में ऑपरेशनल क्षमता कम होगी और साथ ही गोरखाओं के उत्साह भी जाते रहेंगे।
ऐसा इसलिए है कि नौकरी छोटी अवधि की होगी और न ही पेंशन होगी। अग्निवीर सेना से बाहर होने के बाद भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। भारत विरोधी माओवादी समूह इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। सबसे अहम बात है कि भारत और नेपाल संबंधों में नेपाली गोरखा राजनयिक सेतु का काम करते हैं और यह सेतु कमज़ोर होगा।
इस सेमिनार को मेजर जनरल गोपाल गुरुंग ने भी संबोधित किया था। इसमें उन्होंने कहा था, चीन फिर से नेपाली गोरखाओं को अपनी फौज में भर्ती करने की कोशिश कर सकता है। भारत के ख़िलाफ़ चीन की यह रणनीति हो सकती है। चीन गोरखाओं के पराक्रम के इतिहास को लेकर बहुत उत्साहित रहा है।
1962 में चीन ने गोरखाओं को युद्धबंदी बनाया था तो उनके साथ भारतीय युद्धबंदियों की तुलना में अच्छा व्यवहार किया था। 2020 में चीन ने एक स्टडी भी करवाई थी कि नेपालियों को भारतीय सेना में जाने की प्रेरणा कहां से आती है। अग्निपथ योजना के कारण नेपाली गोरखा भी चीन की ओर आकर्षित हो सकते हैं।