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अग्निपथ को लेकर सैन्य प्रेस वार्ता पर उठते ये गंभीर सवाल

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BBC Hindi

, मंगलवार, 21 जून 2022 (11:10 IST)
विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
रविवार को भारतीय सेनाओं के तीनों अंगों ने क़रीब एक घंटे की प्रेसवार्ता में सरकार की अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे नौजवानों से साफ़-साफ़ शब्दों में बात की।
 
इस प्रेस वार्ता में रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी, वायुसेना के एयर मार्शल एस के झा, नौसेना के वाइस एडमिरल डीके त्रिपाठी और थलसेना के एडजुटेंट जनरल बंसी पोनप्पा शामिल थे।
 
उन्होंने आरोप लगाए कि युवाओं के ग़ुस्से को भड़काने में असामाजिक तत्वों के साथ-साथ कोचिंग संस्थाओं का हाथ है, कहा कि योजना को वापस नहीं लिया जाएगा और आगज़नी और तोड़फोड़ करने वालों के लिए सेना में कोई जगह नहीं है।
 
अधिकारियों ने योजना के फ़ायदे गिनाए, ये बताने की कोशिश की कि इस पर लंबे समय से काम चल रहा था और कहा कि जो अग्निवीर से जुड़ना चाहता है, उसे एक शपथ पत्र देना होगा कि उसने किसी प्रदर्शन या तोड़फोड़ में हिस्सा नहीं लिया और फ़ौज में पुलिस वेरिफिकेशन के बिना कोई नहीं आ सकता।
 
पब्लिक प्लेटफ़ार्म पर मीडिया के सामने इस योजना के बचाव में वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के उतरने पर कई हलकों में आलोचना हो रही है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये काम सरकार, राजनीतिक व्यक्ति या डिफेंस पीआरओ का नहीं था?
 
प्रेस कॉन्फ्रेंस पर टिप्पणियां
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल उठाया है कि 75 सालों में पहली बार सरकार की नीति का बचाव करने के लिए सेना के तीनों प्रमुखों को उतारा गया है जबकि रक्षा और गृह मंत्रालय चुप हैं।
 
इस प्रेस वार्ता पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं, "ऐसा लगा लगा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ नहीं था, धमकाने के सिवा। उन्हें हिंसा की ज़्यादा फ़िक्र लग रही थी, बजाय इसके कि योजना की बारीकियों को समझाया जाए।"
 
मनोज जोशी के मुताबिक़ प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मीडिया के लोगों ने भी सही सवाल नहीं पूछे, "उन्हें भी सिस्टम ने बुल्डोज़ कर दिया है।"
 
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान के मुताबिक़ ये कहना कि विपक्ष ने युवाओं को बहका दिया है, ये युवाओं की बेइज़्ज़ती है। वो कहते हैं, "आज का युवा अच्छा जानकार है। न विपक्षी दल उसे बहका सकते हैं, न ही प्रॉपेगैंडा।"
 
रिटायर्ड मेजर जनरल श्योनन सिंह ने भी काफ़ी देर तक तक इस प्रेस कान्फ़्रेंस को देखा। वो कहते हैं कि जब अधिकारी कहते हैं कि किन आधार पर लोगों की भर्ती नहीं हो पाएगी, तब आप सकारात्मक भाव नहीं पैदा कर रहे हैं, बल्कि और विरोध पैदा कर रहे हैं।
 
वो कहते हैं, "मुझे इस प्रेस कान्फ्रेंस का उद्देश्य समझ में नहीं आया। क्या इसका मक़सद सरकार का मज़बूत रवैया पेश करना था और अगर सरकार का रवैया सख़्त है, सैन्य अधिकारी क्यों समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये अच्छा या बुरा फ़ैसला है?"
 
"इस प्रेस कान्फ़्रेंस में प्रदर्शन करने वाले लोगों को धमकाने की कोशिश की गई। देश में विषयों से निपटने का ये कोई तरीक़ा नहीं है। ये ऐसा था कि आप किसी को सबक सिखाना चाहते हैं। भारत किसी का उपनिवेश नहीं है। ये एक आज़ाद देश है, जहाँ लोगों की अपनी राय है। आपको उन्हें विश्वास दिलाना होगा।"
 
चार साल बाद के फ़ायदे और सीधी बात
चार साल के बाद अग्निवीरों को कहाँ-कहाँ मदद देने की कोशिश की जा रही है, इस पर तो बात हुई ही, इसके अलावा प्रेस कान्फ़्रेंस में भर्ती की प्रक्रिया की तारीख़ आदि पर भी दो टूक बात कही गई, यानी प्रदर्शनकारियों को संदेश साफ़ था कि प्रदर्शनों के बावजूद ये योजना आगे बढ़ रही है।
 
इस प्रेस वार्ता के बावजूद योजना के विरुद्ध प्रदर्शन जारी हैं। विपक्ष प्रदर्शनकारियों के पक्ष में उतर गया है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक हिंसा या इस योजना की आलोचना पर सीधे-सीधे कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है।
 
इस योजना के गुण बताने के लिए वरिष्ठ सैन्य अधिकारी टीवी चैनलों पर इंटरव्यू दे रहे हैं।
 
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज काद्यान याद दिलाते हैं कि करगिल युद्ध के दौरान भी प्रेस ब्रीफ़िंग देने का काम एक कर्नल को सौंपा गया था।
 
वो कहते हैं, "ये अभूतपूर्व है कि स्कीम को प्रसारित करने का काम वर्दी वाले लोगों को सौंपा गया है। ये रक्षा मंत्रालय का स्कीम है। इसकी घोषणा रक्षा मंत्री ने की। इसे प्रसारित करने का काम रक्षा मंत्रालय के पीआरओ को करना चाहिए न कि वर्दी पहनने वाले व्यक्ति को।"
 
प्रेसवार्ता में की गई टिप्पणियों पर सवाल
रक्षा विषयों पर लंबे समय से लिखने वाले पत्रकार मनोज जोशी के मुताबिक़ कई लोगों को नहीं पता कि इस स्कीम के लिए सेना ही ज़िम्मेदार थी और अब वो इसकी वकालत में उतर गई है।
 
मनोज जोशी बताते हैं कि सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को लगता था कि बड़ी सेना पर होने वाला खर्च बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है और उसमें कटौती से बचे पैसे को कैपिटल खर्च या नए सामान को ख़रीदने या सुविधाओं को पैदा करने में खर्च किया जा सकता है।
 
वो कहते हैं, "मिलिट्री इस विचार के साथ आई। वो इस विचार को सरकार के पास ले गई और अब उसे इसके समर्थन में उतरना होगा।"
 
रविवार की प्रेस वार्ता में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने लिखित में शपथ पत्र देने और पुलिस वेरिफ़िकेशन की बात की।
 
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान के मुताबिक़ शपथ मात्र की बात करना क़ानूनी तौर पर सवालों के घेरे में है। वो कहते हैं, "मैंने ब्वाय स्काउट के तौर पर प्रदर्शन में हिस्सा लिया होगा। क्या इस वजह से मैं सेना में भर्ती नहीं हो सकता? संविधान मुझे शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लेने की इजाज़त देता है।"
 
पत्रकार मनोज जोशी पूछते हैं, "क्या आप ये जानने के लिए जाँच बिठाएंगे कि भीड़ कहाँ थी, क्या फिर ट्रायल होगा? अगर किसी ने कहा कि मैं वहां से गुज़र रहा था और मेरी तस्वीर ले ली गई गई, तब? वो शपथ पत्र की बात कर रहे हैं। उससे क्या होगा?"
 
पुलिस जाँच पर सवाल
जोशी के मुताबिक़, वो इस बात को लेकर निश्चित नहीं हैं कि सैनिकों की भर्ती में पुलिस जाँच होती है। एक अन्य वरिष्ठ रिटायर्ड ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि सैनिकों की पुलिस जाँच सिर्फ़ संवेदनशील भर्तियों में होती है।
 
पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं, "दंगों में शामिल बहुत से वो लोग हैं जो उम्र की सीमा की वजह से अब भर्ती में शामिल नहीं हो पाएंगे।"
 
वो याद दिलाते हैं कि अग्निपथ योजना की घोषणा वाले दिन उम्र की अधिकतम सीमा 21 वर्ष बताई गई थी जिसके बाद काफ़ी हिंसा हुई।
 
वो कहते हैं, "पहले सेनाएं हर साल 65 हज़ार लोगों को चुनती हैं, अब ये संख्या 40,000 के आसपास है। तो ये जो बात कही जा रही है कि आप लोगों को नौकरी देंगे, ये ग़लत है। अब आप कम लोगों को नौकरी देंगे"।
 
रविवार की प्रेसवार्ता में अग्निपथ योजना के फ़ायदे गिनाते हुए सेनाओं को युवा चेहरा देने की बात ज़ोर-शोर से कही गई।
 
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान के मुताबिक़ कारगिल जैसे युद्ध में युवा सैनिकों के प्लाटून कमांडर थे जिनकी उम्र 40 से ज़्यादा थी।
 
मनोज जोशी कहते हैं, "युवा मिलिट्री का क्या फ़ायदा अगर वो आधा ट्रेंड है। चार सालों में से छह महीने बेसिक ट्रेनिंग, आठ महीने छुट्टी और कम से कम एक साल प्रोफ़ेशनल ट्रेनिंग में चले जाएंगे। आपके पास क़रीब दो साल की नौकरी बचती है। जब तक आपने कुछ बातें सीखीं तब तक आपके बाहर जाने का वक्त हो जाएगा। मुझे नहीं पता कि इससे सेनाओं को क्या फ़ायदा होगा।"
 
पत्रकार मनोज जोशी के मुताबिक़, स्कीम सात साल लंबी होनी चाहिए थी ताकि आप किसी व्यक्ति से क़रीब पांच साल की सेवा ले सकें और अगर समस्या सैनिकों की संख्या को लेकर है तो दो लाख के करीब सैनिक को वीआरएस देकर उनकी छुट्टी की जा सकती है जैसा कि चीन ने तीन लाख सैनिकों को हटाया था।
 
नौकरी के वायदों पर कितना विश्वास?
रविवार की प्रेस वार्ता में सैन्य मामलों के विभाग के अतिरिक्त सचिव लेफ़्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने दावा किया कि रक्षा मंत्रालय ने सभी राज्यों को सलाह दी है कि पुलिस भर्ती में अग्निवीरों को वरीयता दी जाए और चार राज्यों ने भी ऐसा भरोसा दिया है।
 
इसके अलावा उन्होंने अर्धसैनिक बलों, पीएसयू में जगह आदि के अलावा बैंकों से सहायता, निजी कंपनियों में भी नौकरियों का भरोसा दिलाया।
 
ऐसे में बिज़नेसमैन आनंद महिंद्रा का एक ट्वीट वायरल है जिसमें वो अग्निवीरों को नौकरी देने की बात कर रहे हैं।
 
जानकार बताते हैं कि पूर्व में भी रिटायर्ड सैनिकों को भविष्य में संस्थानों में नौकरी दिलाने की बातें कहीं गईं लेकिन ये वायदे पूरे नहीं हुए।
 
पत्रकार मनोज जोशी के मुताबिक, पैरामिलिट्री में अग्निवीरों की भर्ती को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
 
लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) राज कादियान कहते हैं, "हर साल हमारे 60 हज़ार सैनिक रिटायर हो रहे हैं। केंद्र सरकार का आदेश है कि रिटायर्ड सैनिकों के लिए कुछ प्रतिशत नौकरियों को रिज़र्व रखा जाए। इसके नहीं होने की वजह से कौन ज़िम्मेदार है?"

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