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जब भुट्टो ने जल्लाद से कहा ‘फंदा खींचो...फ़िनिश इट’

हमें फॉलो करें जब भुट्टो ने जल्लाद से कहा ‘फंदा खींचो...फ़िनिश इट’
, मंगलवार, 4 अप्रैल 2017 (14:59 IST)
- रेहान फज़ल 
4 अप्रैल, 1979 को ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रात दो बजे, रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। उनको रावलपिंडी जेल के 'ज़नान ख़ाने' में, जहाँ महिला कैदियों को रखा जाता है, एक सात गुणा दस फ़ीट की कोठरी में कैद किया गया था। भुट्टो को एक पलंग, गद्दा, छोटी मेज़ और एक बुक शेल्फ़ दी गई थी। बगल की कोठरी को उनकी रसोई बनाई गई जहाँ एक कैदी उनके लिए खाना बनाता था।
 
हर दस दिन पर वो कैदी बदल दिया जाता था ताकि उसे भुट्टो से लगाव न पैदा हो जाए। कभी कभी भुट्टो के दोस्त और डेन्टिस्ट डाक्टर नियाज़ी उनके लिए खाना भिजवाया करते थे। भुट्टो के जीवनीकार सलमान तासीर जिनकी बाद में हत्या कर दी गई, अपनी किताब 'भुट्टो' में लिखते हैं, "शुरू के दिनों में भुट्टो जब टॉयलेट जाते थे, तब एक गार्ड वहाँ भी उनकी निगरानी करता था। भुट्टो को ये बात इतनी बुरी लगती थी कि उन्होंने करीब करीब खाना ही छोड़ दिया था ताकि उन्हें टॉयलेट न जाना पड़े। कुछ दिनों बाद इस तरह की निगरानी ख़त्म कर दी गई थी और उनके लिए कोठरी के बाहर एक अलग से शौचालय बनवाया गया था।"
 
भुट्टो को जेल में पढ़ने की आज़ादी थी। आख़िरी दिनो में वो चार्ल्स मिलर की 'ख़ैबर', रिचर्ड निक्सन की आत्मकथा, नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' और सिद्दीक सालिक की 'विटनेस टू सरेंडर' पढ़ रहे थे। पंजाब सरकार के जल्लाद तारा मसीह को भुट्टो को फांसी देने के लिए लाहौर से बुलाया गया था। उसका पूरा परिवार चार पुश्तों से रणजीत सिंह के ज़माने से, फांसी देने का ही काम करता आया था। उस समय मसीह की तनख्वाह 375 रुपये महीना थी और उन्हें फांसी देने के लिए अतिरिक्त 10 रुपये मिला करते थे।
 
जेल में रहने के दौरान भुट्टो लगातार मसूढ़ों के दर्द से परेशान थे। उसमें पस भी पड़ गया था। एक बार जब उनके डेन्टिस्ट डॉक्टर नियाज़ी लालटेन जिसे एक कैदी ने पकड़ा हुआ था की रोशनी में उनके दांतों का मुआयना कर रहे थे, भुट्टो ने उनके साथ मज़ाक किया था, "नियाज़ी तुम भी मेरी ही तरह अभागे हो। क्लीनिक में एक हसीन लड़की तुम्हारी मदद कर रही होती, यहां इस जेल में मदद करने के लिए ये कैदी ही तुम्हें मिला है।"
 
बेनज़ीर भुट्टो 2 अप्रैल, 1979 की सुबह अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी कि अचानक उनकी माँ नुसरत कमरे में कहते हुए घुसी, "पिंकी। घर के बाहर आए सेना के अफ़सर कह रहे हैं कि हम दोनों को ही आज तुम्हारे पिता से मिलने जाना होगा। इसका मतलब क्या है?"
 
बेनज़ीर अपनी आत्मकथा 'डॉटर ऑफ़ द ईस्ट' में लिखती है, "मुझे पता था कि इसका मतलब क्या है। मेरी माँ को भी पता था। लेकिन हम दोनों ही इसको स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। वो लोग हम दोनों के साथ जाने की ज़िद कर रहे थे, इसका एक ही मतलब था कि ज़िया मेरे पिता की हत्या करने के लिए तैयार थे।"
 
नुसरत और बेनज़ीर को एक शेवरलेट कार में रावलपिंडी जेल लाया गया था। तलाशी के बाद उन्हें भुट्टो के सामने ले जाया गया। उनके बीच पाँच फ़ीट की दूरी रखी गई थी। बेनज़ीर लिखती हैं, "मेरे पिता ने पूछा था परिवार से मिलने के लिए मुझे कितना समय दिया गया है? जवाब आया था आधा घंटा। लेकिन मेरे पिता ने कहा था कि जेल के नियम कहते हैं कि आख़िरी मुलाकात के लिए एक घंटे का समय निर्धारित है। लेकिन अधिकारी ने जवाब दिया था कि मुझे आदेश मिले हैं कि आपको सिर्फ़ आधा घंटा ही दिया जाए। वो ज़मीन पर गद्दे पर बैठे हुए थे, क्योंकि उनकी मेज़, कुर्सी और पलंग वहाँ से हटा ली गई थी।"
 
बेनज़ीर आगे लिखती हैं, "उन्होंने मेरी लाई हुई पत्रिकाएं और किताबें मुझे लौटाई थीं। वो बोले थे, 'मैं नहीं चाहता कि वो लोग मेरे मरने के बाद इन्हें छुएं।' उन्होंने मुझे उनके वकील द्वारा लाए गए कुछ सिगार भी वापस किए थे। वो बोले थे शाम के लिए एक सिगार मैंने बचा रखा है।
 
उन्होंने शालीमार कोलोन की एक बोतल भी अपने पास रखी हुई थी। वो अपनी शादी की अंगूठी भी मुझे दे रहे थे, लेकिन मेरी माँ ने उन्हें रोक दिया था। इस पर वो बोले थे, 'अभी तो मैं इसे पहने रख रहा हूँ, लेकिन बाद में इसे बेनज़ीर को दे दिया जाए।" थोड़ी देर बाद जेलर ने आकर कहा था, समय हो गया है। बेनज़ीर ने कहा कि कोठरी को खोलिए। मैं अपने पिता को गले लगाना चाहती हूं। जेलर ने इसकी अनुमति नहीं दी।
 
बेनज़ीर लिखती हैं, "मैंने कहा, प्लीज़...मेरे पिता पाकिस्तान के निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं और मैं इनकी बेटी हूँ। ये हमारी आख़िरी मुलाकात है। मुझे इन्हें गले लगाने का हक़ है। लेकिन जेलर ने साफ़ इंकार कर दिया। मैंने कहा गुड बाई पापा। मेरी माँ ने सीखचों के बीच हाथ बढ़ा कर मेरे पिता के हाथ को छुआ। हम दोनों तेज़ी से बाहर की तरफ़ बढ़े। मैं पीछे मुड़ कर देखना चाहती थी, लेकिन मेरी हिम्मत जवाब दे गई।"
 
जेल अधीक्षक यार मोहम्मद ने उन्हें काला वारंट पढ़ कर सुनाया, जिसे उन्होंने चुपचाप सुना। उन्होंने कोठरी के बाहर खड़े संतरी को अंदर बुलाया और डिप्टी सुपरिंटेंडेंट से कहा से कहा कि मेरे मरने के बाद मेरी घड़ी इसे दे दी जाए। आठ बज कर पांच मिनट पर भुट्टो ने अपने हेल्पर अब्दुर रहमान से कॉफ़ी लाने के लिए कहा। उन्होंने रहमान से कहा कि अगर मैंने तुम्हारे साथ कोई बदसलूकी की हो, तो इसके लिए मुझे माफ़ कर देना।
 
सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी अपील ठुकरा दिए जाने के बाद उनका रेज़र इसलिए ले लिया गया था कि कहीं वो उससे अपनी आत्महत्या न कर लें। सलमान तासीर लिखते हैं, "भुट्टो ने कहा, 'मुझे दाढ़ी बनाने की अनुमति दी जाए। मैं मौलवी की तरह इस दुनिया से नहीं जाना चाहता।"
 
नौ बजकर 55 मिनट पर उन्होंने अपने दांतों में ब्रश किया, चेहरा धोया और बाल काढ़े। इसके बाद वो सोने चले गए। रात डेढ़ बजे भुट्टो को जगाया गया। वो ऑफ़ वाइट रंग का सलवार कुर्ता पहने हुए थे। जेल अधिकारियों ने ज़ोर नहीं दिया कि वो इसे बदलें।। जब सुरक्षाकर्मियों ने उनके हाथ पीछे कर बाँधने की कोशिश की तो उन्होंने उसका विरोध किया।
 
आख़िरकार उनके हाथों में ज़बरदस्ती रस्सी बाँधी गई। उसके बाद उन्हें एक स्ट्रेचर पर लिटा कर करीब 400 गज़ तक ले जाया गया। सलमान तासीर लिखते हैं, "इसके बाद भुट्टो स्ट्रेचर से ख़ुद उतर गए और फाँसी के फंदे तक चल कर गए। जल्लाद ने उनके चेहरे को काले कपड़े से ढक दिया। उनके पैर बाँध दिए गए। जैसे ही दो बज कर चार मिनट पर मजिस्ट्रेट बशीर अहमद खाँ ने इशारा किया, जल्लाद तारा मसीह ने लीवर खींचा। भुट्टों के आख़िरी शब्द थे, 'फ़िनिश इट।'
 
पैंतीस मिनट बाद भुट्टो के मृत शरीर को एक स्ट्रेचर पर रख दिया गया।
 
उस जमाने में रावलपिंडी सेंट्रल जेल में खुफिया अधिकारी रहे कर्नल रफ़ीउद्दीन अपनी किताब 'भुट्टो के आख़िरी 323 दिन' में लिखते हैं, "थोड़ी देर बाद एक ख़ुफ़िया एजेंसी के एक फ़ोटोग्राफ़र ने आ कर भुट्टो के गुप्तांगों की तस्वीर ली। प्रशासन इस बात की पुष्टि करवाना चाहता था कि भुट्टो का इस्लामी रीति से ख़तना हुआ था या नहीं। तस्वीर खिंचने के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं रहा कि भुट्टो का वास्तव में ख़तना हुआ था।"
 
बाद में श्याम भाटिया ने भी अपनी किताब 'गुडबाई शहज़ादी' में लिखा था कि बेनज़ीर ने उन्हें ख़ुद बताया था कि भुट्टो को मौत के बाद इस अपमान से भी गुज़रना पड़ा था। उधर वहाँ से कुछ मीलों की दूरी पर सिहाला के एक गेस्ट हाउज़ में कैद बेनज़ीर भुट्टो ने अपने पिता की मौत को महसूस किया।
 
बेनज़ीर अपनी आत्मकथा डॉटर ऑफ़ द ईस्ट में लिखती हैं, "माँ की दी गई वॉलियम गोलियों के बावजूद ठीक दो बजे मेरी आँख खुल गई। मैं ज़ोर से चिल्लाई नो...नो, मेरी साँस रुक रही थी। जैसे किसी ने मेरे गले में फंदा पहना दिया हो। पापा...पापा...।। मेरे मुंह से बस यही निकल रहा था। कड़ी गर्मी के बावजूद मेरा पूरा जिस्म कांप रहा था।"
 
कुछ घंटों के बाद सेंट्रल जेल का असिस्टेंट जेलर उस घर में गया जहाँ बेनज़ीर और नुसरत को नज़रबंद किया गया था। उससे मिलते ही बेनज़ीर के पहले शब्द थे, "हम प्रधानमंत्री के साथ चलने को तैयार है।" जेलर का जवाब था, "उनको पहले ही दफ़नाने के लिए ले जाया चुका है।"
 
बेनज़ीर लिखती हैं, "मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे घूंसा मारा हो। मैंने चिल्ला कर कहा आप उनके परिवार के बिना उन्हें कैसे दफ़ना सकते हैं?"
 
उसके बाद उस जेलर ने भुट्टो की एक एक चीज़ बेनज़ीर को सौंपी।
 
बेनज़ीर लिखती हैं, "उसने मुझे पापा की सलवार कमीज़ दी जो उन्होंने मौत के समय पहन रखी थी। उसमें से शालीमार कोलोन की महक अभी तक आ रही थी। फिर उसने एक टिफ़िन बॉक्स दिया जिसमें पिछले दस दिनों से उन्हें खाना भेजा जा रहा था और जिसे वो खा नहीं रहे थे... उसने उनका बिस्तर और चाय का कप भी मुझे सौंपा। मैंने पूछा उनकी अंगूठी कहाँ है? जेलर ने कहा उनके पास अंगूठी भी थी क्या?
 
फिर उसने झोले में अंगूठी ढ़ूंढ़ने का नाटक किया और अंगूठी भी मुझे पकड़ा दी। वो जेलर बार बार कहता रहा, 'उनका अंत बहुत शाँतिपूर्ण था।' मैंने सोचा फाँसी भी कभी शाँतिपूर्ण हो सकती है?' बेनज़ीर के परिवार के नौकर बशीर की निगाह जैसे ही भुट्टो के कपड़ों पर पड़ी, वो चिल्लाने लगा, "या अल्लाह! या अल्लाह! उन्होंने हमारे साहब को मार दिया।"

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