भाई दूज पर यमराज और यमुना के साथ ही भगवान चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है। इस दिन उनके नाम का दीपक जलाने से जातक के पापों का नाश हो जाता है और भगवान चित्रगुप्त की कृपा प्राप्त होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को क्यों करते हैं चित्रगुप्त जी की पूजा। आओ जानते हैं इस संबंध में खास बातें।
1. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ था।
2. चित्रगुप्त जी को ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है। पुराणों अनुसार भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति ब्रह्माजी की काया से हुई है। ब्रह्मा के 18 मानस संतानों में से एक चित्रगुप्त को महाकाल भी कहा गया है।
3. चित्रगुप्त की बही 'अग्रसन्धानी' में प्रत्येक जीव के पाप-पुण्य का हिसाब लिखा हुआ है।
4. सनातनी श्राद्ध में पितरों की मुक्ति हेतु इनका पूजन किया जाता है और गुरूढ़ पुराण इन्हीं को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है।
5. यमराज तो ब्रह्मा के दशांश हैं जबकि चित्रगुप्त तो ब्रह्मा के पुत्र ही है और अपनी कठिन तपस्या से वह ब्रह्मा के समान ही हैं। वे यमराज से 10 गुना अधिक शक्ति के हैं। भगवान चित्रगुप्त तो यमराज के स्वामी हैं मुंशी नहीं।
6. कहते हैं कि ब्रह्माजी ने चित्रगुप्तजी का विवाह वैवस्वत मनु (कश्यप ऋषि के पौत्र) की 4 कन्याओं से और नागों की 8 कन्याओं से कर दिया। उक्त बारह कन्याओं से उनके 12 पुत्र उत्पन्न हुए। तत्पश्चायत ब्रह्माजी ने उन्हें सभी प्राणियों का भाग्य लिखने का जिम्मा सौंपा और ब्रह्माजी की आज्ञा से यमलोक में विराजमान होकर दण्डदाता कहलाने लगे।
7. भगवान चित्रगुप्त ने ही अनुशासन और दण्डविधान को बनाया है। उनके बनाए दण्ड विधान का पालन ही उनकी आज्ञा से यमराज और उनके यमदूत कराते हैं।
8. पुराणों के अनुसार चित्रगुप्त पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
9. भगवान चित्रगुप्त ही ऋषि, देव, दानवों का भाग्य निर्धारित करते हैं। लेखनी धारक भगवान चित्रगुप्त ही है।
10. भगवान चित्रगुप्त ही यमलोक में धर्माधिकारी नामक यम है। चित्रगुप्त को सभी प्राणियों के 'न्याय ब्रह्म एवं धर्माधिकारी' हैं। भगवान चित्रगुप्त ही लोगों को उनके पाप का दंड देते या पुण्य का फल देते हैं।