समस्तीपुर। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी होने के साथ ही एक तरफ जहां गांव-गांव में मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर रोजी-रोटी खातिर यहां से लोगों का पलायन भी शुरू हो गया है, जिसको लेकर कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हो रही है।
पलायन करने वालों में ज्यादातर वे मजदूर हैं, जो लॉकडाउन के दौरान बिहार लौट आए थे। परिवार को पालने की चुनौती ने इन मजदूरों को कोरोना के भय से मुक्त कर दिया है। ऐन चुनाव से पहले शुरू हुए मजदूरों के इस पलायन से मतदान का प्रतिशत घटना तय है।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों से आई बसों में बैठकर मजदूर यहां से रवाना हो रहे हैं। इन मजदूरों को ले जाने के लिए टूरिस्ट बसों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि इन बसों पर कोई प्रशासनिक कार्रवाई न हो सके।
पलायन करने वाले ज्यादातर मजदूर पंजाब और हरियाणा जा रहे हैं, क्योंकि इस समय वहां धान की कटाई शुरू हो गई है। वहां मजदूरों की कमी पूरी करने के लिए समस्तीपुर-रोसड़ा क्षेत्र में टूरिस्ट बसों का आवा-जाही शुरू हो रही है। इन बसों में मजदूरों को को भरकर ले जाया जा रहा है। मजदूरों का ऐसा ही पलायन मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा आदि जिलों में भी शुरू हो गया है।
मजदूरों को तैयार करने के लिए जगह-जगह एजेंट सक्रिय हैं जो टोलों-मोहल्लों में घूम-घूम कर मजदूरों को यहां से रवाना होने के लिए तैयार कर रहे हैं। इन एजेंटों को एक मजदूर को बाहर जाने के दो सौ रुपए दिए जाते हैं। ऐसे एजेंटों का बस मालिकों से सीधा संपर्क बना हुआ है।
चूंकि बाहर के राज्यों की सामान्य बसों को बिहार में प्रवेश की अनुमति नहीं होती है, इसलिए इन बसों पर टूरिस्ट बस का बोर्ड लगाकर बस मालिक गांव-गांव जाकर मजदूरों को जुटाकर उन्हें ले जा रहे हैं।
पंजाब के लिए रवाना होने की तैयारी कर रहे देवप्रकाश महतो बताते हैं कि छह महीने से वे खाली बैठे हुए हैं। इससे पहले वे जमशेदपुर झारखंड में एक फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन अब वह फैक्ट्री बंद हो चुकी है। उनके परिवार में मां, पत्नी और तीन बच्चे हैं। यहां करने को कोई काम नहीं हैं, इसलिए परिवार के पालन-पोषण के लिए यहां से जाना मजबूरी है।
मजदूरों ने बताया कि बस से जाने और आने का खर्च उन्हें ले जाने वाले उठाते हैं। जब तक बाहर काम मिलता रहेगा, तब तक वहीं रहेंगे और काम खत्म होने के बाद वापस अपने-अपने घरों लौट आएंगे।
मजदूरों के इस पलायन की न तो यहां के राजनीतिक दलों को चिंता है और न ही प्रशासन को। चुनाव आयोग की भी इस पलायन पर नजर नहीं है। एक पुलिस अधिकारी से जब इस बारे में पूछा गया तो उसका कहना है कि हमारे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है।