बिहार चुनाव में बाहुबली पप्पू यादव की सियासी नैय्या मझधार में
तेजस्वी यादव से सियासी अदावत पप्पू यादव को पड़ रही भारी
बिहार विधानसभा चुनाव पूर्णिया से निर्दलीय लोकसभा सांसद बाहुबली पप्पू यादव के नाम की चर्चा खूब हो रही है। कभी राहुल-तेजस्वी यादव के मंच पर जगह नहीं मिलने तो कभी पीएम मोदी के साथ मंच पर खिलखिलाकर हंसने वाले पप्पू यादव की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है।
दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव को कांग्रेस ने भले ही लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया हो लेकिन वह पूर्णिया से जीतकर छठीं बार लोकसभा पहुंचे और अब विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और भाजपा दोनों के मंचों पर दिख रहे है।
पप्पू यादव अपनी निर्दलीय हैसियत का पूरा फायदा उठाते हुए कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर दिखाई दे रहे है तो कभी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ मंच शेयर कर रहे है। कहने को तो पप्पू यादव खुद को कांग्रेस का कार्यकर्ता बताते हुए है लेकिन पिछले महीने जब पूर्णिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्णिया मं हवाई अड्डे का उद्घाटन किया तो वह मंच पर पीएम मोदी के साथ खिलखिलाकर हंसते हुए नजर आते है। वहीं लॉंरेंस बिश्नोई से धमकी के बाद पप्पू यादव गृहमंत्री अमित शाह से सुरक्षा की मांग भी कर चुके है।
6 बार के सांसद और 4 बार के विधायक बाहुबली पप्पू यादव की सियासी नैय्या बिहार विधानसभा में मंझधार में फंसी नजर आ रही है, इसका सबसे बड़ा कारण उनकी बिहार में कांग्रेस के अहम साथी तेजस्वी यादव के साथ पुरानी सियासी अदावत है। पप्पू यादव चुनावी साल में खुद तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर खुलकर नाराजगी जाहिर कर चुके है, यहीं कारण है कि कांग्रेस पप्पू यादव को विधानसभा चुनाव में किसी भूमिका को लेकर कई स्टैंड नहीं ले पा रही है।
लालू युग के आगाज के साथ पप्पू यादव की राजनीति के शुरुआत- बाहुबली छवि वाले पप्पू यादव बिहार की सियासत में एक ऐसा नाम जिसने अपने दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। साढ़े तीन दशक पहले 1990 में बिहारा के मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले पप्पू यादव की गिनती बिहार के उस बाहुबली नेता के तौर पर होती है जिसके नाम का खौफ एक जमाने में बिहार से लेकर दिल्ली तक नेता खाते थे।। साल 1990 का बिहार एक ओर लालू यादव के मुख्मंत्री पद पर ताजपोशी का गवाह बन रहा था तो दूसरी और जरायम यानि अपराध की दुनिया के कई नामों के सियासी उदय होने का साक्षी भी बन रहा था। लालू यादव के साथ ही बिहार की राजनीति में बाहुबली पप्पू यादव का भी सियासी उदय होता है।
तीन दशक पहले 1990 में मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले पप्पू यादव की गिनती बिहार के उस बाहुबली नेता के तौर पर होती है जिसके नाम का खौफ एक जमाने में बिहार से लेकर दिल्ली तक नेता खाते थे।
साल 1990 का बिहार एक और लालू यादव के मुख्मंत्री पद पर ताजपोशी का गवाह बन रहा था तो दूसरी और जरायम यानि अपराध की दुनिया के कई नामों के सियासी उदय होने का साक्षी भी बन रहा था। लालू यादव के साथ ही बिहार की राजनीति में बाहुबली पप्पू यादव का भी सियासी उदय होता है।
जातीय टकराव में यादव सेना का निर्माण- बिहार में अस्सी के दशक में जिस जातीय टकराव की शुरुआत होती वह नब्बे के दशक आते- आते अपने चरम पर पहुंच जाती है। जाति के राजनीति के लिए पहचाना जाने वाला बिहार अब जातीय संघर्ष की आग में जलने लगा था। भूमिहारों और यादवों की जंग की धमक बिहार ही नहीं पूरे देश में सुनाई देने लगी थी। बिहार की पावन धरती एक के बाद नरसंहार से लाल होती जा रही थी। जातीय संघर्ष की इस जंग में भूमिहारों का नेतृत्व रणवीर सेना कर रह थी तो उसको चुनौती देने का काम पिछड़ों के नेता पप्पू यादव कर रहे थे जिन्होंने यादवों की अपनी अलग सेना का ही निर्माण कर डाला था।
कोसी का बेल्ट जहां हर बारिश में कोसी नदी अपने रौद्र रूप में तबाही मचाती थी वह इलाका अब पप्पू यादव और रणवीर सेना के टकराव में गोलियों से अक्सर गूंजता था। कहा जाता है कि भूमिहारों और यादवों की जंग बिहार में गृहयुद्ध का रूप ले चुकी थी और उसको काबू में करने के लिए उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बीएसएफ बुलानी पड़ी थी।
अपराध के चढ़ा सियासी ग्राफ-जातीय संघर्ष के सहारे अपनी सियासी रोटियां सेंकने वाले पप्पू यादव लगातार राजनीति की सीढियां चढ़ने लगे। विधायक बनने के एक साल बाद ही 1991 मे पूर्णिया लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे और चुनाव जीतकर संसद भी पहुंच गए। इसके बाद 1996 के लोकसभा चुनाव में भी पप्पू यादव पूर्णिया से फिर रिकॉर्ड तीन लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर संसद पहुंचे।
सांसद बनने के साथ ही पप्पू यादव खुलेआम कानून का माखौल उड़ाने लगा। खाकी के पहरेदार उससे खौफ खाने लगे। यह वह दौर था जब पप्पू यादव ने एक डीएसपी को चलती कार के सामने धकेल दिया। पप्पू यादव पर ताबड़तोड़ हत्या और अपहरण के मामले दर्ज होने लगे। सत्ता से नजदीकी होने के चलते पुलिस भी भी पप्पू यादव पर हाथ डालने से डरती थी। आखिरकार मुख्यमंत्री लालू यादव के आदेश पर पप्पू यादव गिरफ्तार किया गया।
जेल में मोहब्बत चढ़ी परवान- पप्पू यादव का जेल जाना भी उसकी जिंदगी में एक अहम पड़ाव साबित हुआ। बांकीपुर जेल में बंद पप्पू यादव की मुलाकात विक्की से होती है और विक्की की बहन रंजीत को एक एलबम में टेनिस खेलते हुए तस्वीर देख पप्पू यादव उसे दिल दे बैठता है। जिस पप्पू यादव के नाम से पूरा बिहार थर्राता था वह रंजीत के प्यार में ऐसा दीवाना हुआ कि नींद की गोलियां खाकर खुदकुशी की कोशिश भी की। आखिरकार कांग्रेस नेता एसएस अहलूवालिया के दखल के बाद पप्पू यादव और रंजीत 1990 में शादी के बंधन में बंध गए। पप्पू यादव ने खुद इस वाकये का जिक्र अपनी आत्मकथा 'द्रोहकाल का पथिक' में भी किया है।
अजीत सरकार हत्याकांड में उछला नाम-यह वह दौर था जब पप्पू यादव के नाम से लोग खौफ खाते थे लेकिन वक्त बदलता है और 1998 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव पहली बार पूर्णिया से चुनाव हार जाते है। बाहुबली पप्पू यादव अपनी हार के लिए माकपा नेता अजीत सरकार को जिम्मेदार मानते है। अजीत सरकार पूर्णिया में काफी लोकप्रिय थे और चार बार विधायक का चुनाव जीत चुके थे।
इसी बीच जून 1998 को दिनदहाड़े माकपा नेता अजीत सरकार उनके ड्राइवर और एक साथी को पूर्णिया में गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। अजीत सरकार की पोस्टमार्टम में उनके शरीर से 107 गोलियां निकलती है। कहा जाता है कि अजीत सरकार और उनके सथियों पर एके-47 से गोलियां बरसाईं गई थी।
अजीत सरकार की हत्या का आरोप पप्पू यादव पर लगता है और पप्पू यादव को गिरफ्तार कर लिया जाता है। पप्पू यादव जेल जाने से बचने के लिए हर बार की तरह अपने पुराने हथकंडे अपनाता है लेकिन वह सलाखों के पीछे पहुंच जाता है।
अजीत सरकार हत्याकांड में जमानत पर बाहर चल रहे पप्पू यादव की जमानत सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाती है और पप्पू यादव बेऊर जेल भेज दिए जाते है लेकिन जेल में उसके ऐशोआराम में कोई कमी नहीं आती है। पप्पू यादव की बैरक पर छापा मारा जाता है और उसके जूते से मोबाइल फोन बरामद होता है जिसकी डिटेल में कई नेताओं के साथ तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव के निजी सचिव के नंबर पर भी बात होने की डिटेल सामने आती है। जिसके बाद सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर पप्पू यादव को दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया जाता है और जेल में पप्पू यादव पर अंकुश लगाने के लिए तिहाड़ जेल में पहली बार मोबाइल जैमर लगाया जाता है।
अजीत सरकार हत्याकांड में 14 फरवरी 2008 में पप्पू यादव को पटना की सीबीआई कोर्ट में उम्रकैद की सजा सुनती है लेकिन इस मामले 2013 में हाईकोर्ट से पप्पू यादव को बरी कर दिया जाता है। हाईकोर्ट से बरी होने के बाद पप्पू यादव 2014 का लोकसभा चुनाव फिर मधेपुरा से आरजेडी के टिकट पर लड़ता है और राजनीति के दिग्गज शरद यादव को चुनाव हराकर फिर संसद पहुंच जाता है।
लालू ने पार्टी से निकाला, नई पार्टी का गठन-2015 में लालू यादव से विवाद के बाद पप्पू यादव आरजेडी से निकाल दिए जाते है और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव अपनी खुद की पार्टी जन अधिकार पार्टी बना लेते है,लेकिन चुनाव में उनकी पार्टी बुरी तरह हार जाती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव हार जाते है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर सकते है लेकिन जब लोकसभा चुनाव में पूर्णिया से उनको टिकट नहीं मिलता है तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ते है और छठीं बार जीतकर लोकसभा पहुंचते है।
तेजस्वी के विरोध के चलते मझधार में चुनावी नैय्या?- पप्पू यादव की बिहार विधानसभा चुनाव में क्या भूमिका होगी, यह अभी भी सवालों के घेरे में है। सोशल मीडिया पर खुद को कांग्रेस कार्यकर्ता बताने वाले पप्पू यादव अब भी औपचारिक रूप से कांग्रेस के सदस्य नहीं है। राहुल और प्रियंका के बिहार दौरे के दौरान उनके साथ नजर आने वाले पप्पू यादव को हाल में राहुल-तेजस्वी की बिहार अधिकार यात्रा में मंच पर जगह नहीं मिली, उनके सियासी भविष्य पर सवालिया निशाना लगाती है।
कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव आरजेडी के साथ मिलकर लड़ रही है और तेजस्वी यादव अघोषित रूप से महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे है लेकिन पप्पू यादव की तेजस्वी यादव से पटरी नहीं बैठना उनके कांग्रेस में भविष्य को भंवर जाल में फंसा दिया है। पप्पू यादव कई बार तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री चेहरे का विरोध कर चुके है। चुनावी साल में एक इंटरव्यू में पप्पू यादव ने कहा था कि 'अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने तो या तो मुझे मरवा देंगे या मैं बिहार छोड़ दूंग। एक जमाने में लालू यादव के सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले पप्पू यादव का यह बयान उनकी और तेजस्वी की पुरानी अदावत को उजागर करता है।
पप्पू यादव की सियासी ताकत कोसी और सीमांचल में है, जहां यादव, मुस्लिम, और दलित मतदाता उनकी ताकत हैं. लेकिन महागठबंधन में तेजस्वी यादव के नेतृत्व और आरजेडी की दबंगई उनके लिए चुनौती है. कांग्रेस की कमजोर संगठनात्मक स्थिति और सीट बंटवारे में कम हिस्सेदारी उनके लिए रास्ता मुश्किल बनाती है. यदि कांग्रेस 2025 में 70 सीटों की मांग करती है तो पप्पू की भूमिका अहम हो सकती है।