Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

15 नवंबर : महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती, जानें 10 बातें

हमें फॉलो करें 15 नवंबर : महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती, जानें 10 बातें
1. Birsa munda jyanati  : आज भारत के महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती है। वे भारतीय इतिहास के ऐसे महानायक हैं, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी चिंतन से 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत के झारखंड में आदिवासियों की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक तथा राजनीतिक युग का सूत्रपात किया था। 
 
2. 15 नवंबर को बिरसा मुंडा को बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल में भगवान की तरह पूजा जाता है तथा महान देशभक्तों में उनकी की गणना की जाती है। नायक बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के एक आदिवासी परिवार में सुगना और करमी के घर हुआ था। 
 
3. जब पढ़ाई के दौरान मुंडा समुदाय के बारे में आलोचना की जाती थी, जो उन्हें बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती थी और वे नाराज हो जाते थे। इसके बाद उन्‍होंने आदिवासी तौर-तरीकों पर ध्‍यान देकर समाज के हित के लिए काफी संघर्ष किया। 
 
4. बिरसा मुंडा ने अपने साहस से शौर्य की गाथाएं लिखी तथा हिन्दू और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने महसूस किया कि आदिवासी समाज अंधविश्वास के कारण भटका रहा है। तब उन्होंने एक नए धर्म की शुरुआत की, जिसे बरसाइत कहा जाता था। इस धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने 12 विषयों का चयन किया गया था।
 
5. कहा जाता है इस धर्म के नियम बहुत कठिन हैं, इसमें आप मांस, मछली, सिगरेट, गुटखा, मदिरा, बीड़ी आदि का सेवन नहीं कर सकते हैं तथा बाजार का या किसी अन्य के यहां का खाना नहीं खा सकते। इतना ही नहीं गुरुवार के दिन फूल, पत्ती तोड़ना की सख्त मनाई है, क्योंकि बरसाइत धर्म के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं।
 
6. उस समय जब भारतीय जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासक के शोषण में आदिवासी समाज झुलस रहा है, तब उन्होंने आदिवासियों को इनके चुंगल से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें 3 स्तरों पर संगठित करना आवश्यक समझा। जिसमें पहला सामाजिक स्तर, जो अंधविश्वास और ढकोसल से मुक्ति, आर्थिक सुधार तथा राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को जोड़ना।
 
7. बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के नेतृत्व की कमान संभाली तथा आदिवासियों में चेतना जगा दी। आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने के बराबर संघर्ष किया। उन्हें आदिवासियों की जमीन को अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने के लिए एक अलग जंग लड़ना पड़ी। 
 
8. जिसके लिए बिरसा मुंडा ने 'अबुआ दिशुम अबुआ राज' यानी 'हमारा देश, हमारा राज' का नारा दिया। जब अंग्रेजों के पैरों से जमीन खिसकने लगी तथा पूंजीपति और जमींदार भी बिरसा मुंडा से डरने लगे, तब अंग्रेजी हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझ कर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया, जहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया, उसी कारण बिरसा मुंडा 9 जून 1900 को शहीद हो गए तथा उन्होंने रांची में अंतिम सांस ली।
 
9. आदिवासियों के न्याय के लिए उनके द्वारा किया गया संघर्ष किसी कहानी से कम नहीं है। बिरसा मुंडा एक ऐसे महानायक थे, जिन्होंने आदिवासियों के हित के लिए अंग्रेजों के शासन काल में अपना लोहा मनवाया था। 
 
10. अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि बिरसा मुंडा ही सही मायने में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी, पराक्रम, सामाजिक जागरण को लेकर एकलव्य के समान थे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi