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Maharana pratap Jayanti: महाराणा प्रताप जयंती कब मनाई जाएगी

हमें फॉलो करें Maharana pratap Jayanti: महाराणा प्रताप जयंती कब मनाई जाएगी

WD feature Desk

, शुक्रवार, 31 मई 2024 (18:53 IST)
When is Maharana Pratap Jayanti 2024: प्रतिवर्ष महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। तथा अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई, 1540 ईस्वी में राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। हालांकि तिथि के अनुसार इस बार 9 जून 2024 रविवार के दिन महाराणा की जयंती मनाई जाएगी। 
9 जून 2024 रविवार के दिन इस बार महाराणा प्रताप की 484वां जयंती मनाई जाएगी। राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है। उनके पिता महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर/ जयवंत कंवर थीं। वे राणा सांगा के पौत्र थे। बचपन में सभी महाराणा प्रताप को 'कीका' नाम से पुकारते थे। 
 
महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। विक्रम संवत 1628 फाल्गुन शुक्ल 15 अर्थात् 1 मार्च 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया था। उनके पास 'चेतक' घोड़ा था, उनको सबसे अधिक प्रिय था। महाराणा प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था।
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप 72 किलो का कवच पहन कर 81 किलो का भाला अपने हाथ में रखते थे। और भाला, कवच और ढाल-तलवार का कुल मिलाकर वजन 208 किलो होता था, जिसे लेकर वे मैदान में युद्ध के लिए उतरते थे। महाराणा के मेवाड़ की राजधानी उदयपुर थी। उन्होंने 1568 से 1597 ईस्वी तक शासन किया। उदयपुर पर यवन, तुर्क आसानी से आक्रमण कर सकते हैं, ऐसा विचार कर तथा सामन्तों की सलाह से प्रताप ने उदयपुर छोड़कर कुम्भलगढ़ और गोगुंदा के पहाड़ी इलाके को अपना केन्द्र बनाया था।
उनके काल में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था। 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की,‍ जिसकी आस लिए ही अकबर इस दुनिया से चला गया। महाराणा ने अपने मेवाड़ की आन बान और शान को हमेशा कायम रखा। 19 जनवरी 1597 को उनका निधन हो गया।

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