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Cannes Film Festival: फिल्म 'मॉन्स्टर' इंसानी फितरत को दिखाती है नजदीक से

हमें फॉलो करें Cannes Film Festival: फिल्म 'मॉन्स्टर' इंसानी फितरत को दिखाती है नजदीक से

प्रज्ञा मिश्रा

, शुक्रवार, 19 मई 2023 (13:02 IST)
Photo credit : Twitter
movie monster and homecoming: जापानी फिल्ममेकर हीरोकाजु कोरीदा अपनी फिल्मों में परिवार और समाज में मौजूद मुद्दों को गंभीरता से दिखाने में माहिर है। इस साल उनकी फिल्म 'मॉन्स्टर' कान फिल्म फेस्टिवल की कॉम्पीटीशन में शामिल है। फिल्म बहुत से मौजूं बातों से गुजरती हुई इंसानी फितरत को नज़दीक से दिखाती है।

 
फिल्म की शुरुआत में हम एक जलती हुई बिल्डिंग देखते हैं और यह बिल्डिंग आगे जितनी बार पर्दे पर आती है उतनी बार कहानी कहने और देखने वाले का नज़रियां सामने आता है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की फिल्में पहले नहीं बनी लेकिन कोरीदा की खूबसूरती ही यही है कि वो आम इंसान के एहसासों को, उनके सोचने के तरीकों को और अपने किरदारों को ऐसे पर्दे पर उतारते हैं जहां हम उनकी जिंदगी का हिस्सा हो जाते हैं। 
 
फिल्म की कहानी है एक दस साल के लड़के और उसकी मां की है, पिता नहीं हैं और फिर यूं लगता है कि बच्चा स्कूल में मुश्किलों से गुजर रहा है। लेकिन यह मुश्किलें किस वजह से हैं, यह इस कहानी को कई घुमावदार गलियों से ले जाता है।
 
बचपन के इस दौर पर कई फिल्में बन रही हैं, इस दौर का बचपन बहुत अलग है जो इनसे पहले वाले पीढ़ी ने जिया है और इसलिए भी यह फिल्में ख़ास हो जाती हैं। 
 
पिछले साल आई लुकास धोंट की क्लोज भी लगभग इसी उम्र के दो लड़कों की कहानी है और कई बार इस फिल्म की याद भी आती है। मॉन्स्टर यह बताने में कामयाब है कि साफ़ साफ़ कोई भी मॉन्स्टर नहीं है और नजर में फर्क हो तो कोई भी मॉन्स्टर लग सकता है।
 
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Photo credit : Twitter
दूसरी फिल्म है 'होमकमिंग' जो कोर्सिका में बनी है (इम्तियाज़ अली की तमाशा जिन्होंने देखी है उन्हें कोर्सिका याद होगा) यहां वो टूरिस्ट वाला कोर्सिका नहीं है, फिल्म में एक मां है और दो बेटियां हैं। यहां भी पिता गायब हैं और बड़ी होती लड़कियों के अपने सवाल और अपनी मुश्किलें है। तीनों महिला किरदारों ने बेहतरीन काम किया है लेकिन पंद्रह साल की फराह का किरदार निभाने वाली एस्थर गोहोरौ ने कमाल किया है। 
 
ख़दीजा को हम फिल्म की शुरुआत में एक कार में जाते हुए देखते हैं, जिस तरह से कार जा रही है और वो सब घबराए हुए हैं किसी अनहोनी का अंदेशा हो ही जाता है। लेकिन अनहोनी तो तब होती है जब ख़दीजा का फोन आता है, कहानी सीधे पंद्रह साल आगे जाती है जब दोनों लडकियां बड़ी हो गई है और अपनी मां के साथ कोर्सिका वापस लौट रही हैं। हर परिवार की तरह यहां भी बहुत सी बातें हैं जो साफ़ साफ़ कही नहीं गई, समझायी नहीं गई और इन्हीं बातों के इर्द गिर्द फिल्म आगे बढ़ती है।
 
इस फिल्म के साथ भी शुरुआती दौर में मुश्किलें आई क्योंकि कई लोगों ने पंद्रह और सत्रह साल के बच्चों के बीच नजदीकी को पर्दे पर दिखाने को गलत बताया। लेकिन यह सीन आखिरकार फिल्म में रखा नहीं गया और फिल्म का प्रीमियर बिना किसी हो हल्ले के पूरा हुआ। फिल्म में बहुत सी बातें हैं जो इन लोगों की जिंदगी की तरह ही अधूरी ही रहती हैं लेकिन दोनों बहनों को और उनके रिश्ते को देखना बहुत ही शानदार है।

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