रूपहले पर्दे पर ईद जैसे पवित्र त्योहार से जुड़े गीत और दृश्य कभी फिल्म के मुख्य आकर्षण हुआ करते थे, लेकिन अब तो इस त्योहार की खुशबू फिल्मों में कम ही देखने को मिलती है। राजा नवाथे की वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'सोहनी महिवाल' एक ऐसी ही फिल्म थी जिसमें मशहूर गीत 'ईद का दिन तेरे बिन फीका...' फिल्माया गया था। मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की सुमधुर आवाज में रचे-बसे ईद के ये गीत आज भी लोकप्रिय हैं।
70 के दशक में कई फिल्मों में ईद पर आधारित गीत और दृश्य रखे गए। इनमें अमिताभ बच्चन और प्राण पर फिल्माया गीत 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी...' आज भी शिद्दत के साथ सुना जाता है। इसी तरह वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म 'कुर्बानी' में भी इस पर्व से जुडा 'तुझपे कुर्बां मेरी जान...' गीत दर्शकों को बहुत पसंद आया था।
वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म 'तीसरी आंख' में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज में रचा-बसा गीत 'ईद के दिन गले मिल ले राजा...' विशेष रूप से इस अवसर पर सुनने को मिलता है। वैसे भी अन्य दिनों में भी जब यह गीत फिजाओं में गूंजता है तो यह श्रोताओं को अभिभूत कर देता है।
निर्माता-निर्देशक सावन कुमार अक्सर अपनी फिल्मों में ईद से जुड़े दृश्य और गीत अक्सर रखते आए हैं। इनमें वर्ष 1992 में सलमान खान अभिनीत फिल्म 'सनम बेवफा' खासतौर पर उल्लेखनीय है। फिल्म का यह गीत 'बिना ईद के ही चांद का दीदार हो गया...' श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ था। सावन कुमार ने 'सलमा पे दिल आ गया', 'सनम हरजाई' जैसी फिल्मों में भी ईद पर आधारित गीत और दृश्य पेश किए।
वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म 'हीरो हिन्दुस्तानी' में भी ईद पर आधारित एक गीत फिल्माया गया था। अरशद वारसी अभिनीत इस फिल्म में सोनू निगम और अलका याज्ञनिक की दिलकश आवाज में गाया हुआ यह गीत 'चांद नजर आ गया...' ईद गीतों में अपना खास मुकाम रखता है।
इसी तरह वर्ष 2002 में प्रदर्शित फिल्म 'तुमको ना भूल पाएंगे' में भी ईद का गीत फिल्माया गया था। सोनू निगम की दिलकश आवाज में प्रस्तुत यह गीत 'मुबारक-ईद मुबारक...' श्रोताओं में काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत के बिना ईद के गीतों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।
इसी तरह समय-समय पर ईद पर आधारित गीत फिल्मों में पेश किए गए। इन गीतों में 'जिसे तू ना मिला उसे कुछ ना मिला...', 'ईद का दिन है...', 'नूरे खुदा...' और 'अल्लाह के बंदे हंस दे...' प्रमुख हैं।
'कैसी खुशी लेकर आया चांद ईद का, मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का...' जैसे गीत 70-80 के दशक तक सुनाई पड़ते थे, मगर ऐसे गीत अब गीतकारों की कलम से नहीं निकल पा रहे हैं।