कोरोना ने पूरी दुनिया को परेशान कर रखा है। लाखों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है तो करोड़ों लोग नौकरियों से निकाल दिए गए हैं। कई व्यवसाय ऐसे हैं जो पटरी से ऐसे उतरे कि अभी भी सही राह पर नहीं आ पाए, फिल्म व्यवसाय उनमें से एक है। चकाचौंध वाली फिल्म इंडस्ट्री भारत में मार्च 2020 से ही अंधेरे में है। अभी भी कुछ दिनों तक और इस अंधेरी सुरंग में उम्मीद की किरण का प्रवेश नहीं होने वाला है। भारत में कई राज्यों में अनलॉक हो गया है, लेकिन सिनेमाघरों को अभी भी खोलने की अनुमति नहीं दी गई है। जब रेस्तरां में साथ बैठ कर लोग खाना खा सकते हैं तो साथ में फिल्म देखने पर रोक क्यों? यह सवाल फिल्म इंडस्ट्री में उठाया जा रहा है, लेकिन कभी भी करोड़ों रुपये कमाने वाली इस इंडस्ट्री में दमदार आवाज उठाने वाला कोई नहीं रहा। फिल्मों में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले ये अभिनेता रियल लाइफ में ऐसा काम करते कभी नजर नहीं आते।
सिनेमाघर पर हमेशा ताले लगने की नौबत!
2021 आधा बीत चुका है और सिनेमाघरों में ताला ही लगा हुआ है। कई राज्यों की सरकारों ने सिनेमाघर मालिकों को कोई राहत नहीं दी है। स्टाफ को तनख्वाह देना पड़ रही है। बिजली के बिल भरना पड़ रहे है। और भी कई खर्चे हैं, लेकिन लाभ वाला कॉलम खाली ही है। आखिर कोई कब तक और कैसे यह कर पाएगा? यही कारण है कि कई सिनेमाघरों में अब हमेशा के लिए ताले लग जाएंगे। सिनेमाघर के व्यवसाय से जुड़े एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- 'सबसे बुरा असर तो सिनेमाघर वालों पर हुआ है। फिल्म निर्माता तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्में बेच रहे हैं, लेकिन सिनेमाघरों के बारे में कोई कुछ सोच नहीं रहा है। हालात यह है कि कई कर्मचारियों की छुट्टी की जा चुकी है। सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर पर तो कोरोना कहर बन कर टूटा है। छोटे शहर और ग्रामीण इलाकों के सिनेमाघर पर तो अब ताले लगना तय है। मल्टीप्लेक्सेस की भी अपनी समस्याएं हैं। सरकार न इस बारे में सोच रही है और न ही फिल्म इंडस्ट्री के सशक्त लोग कुछ इस दिशा में कर रहे हैं। जिन सिनेमाघरों ने करोड़ों रुपये का टैक्स चुकाया है उनके बारे में बात करने की किसी को भी फुर्सत नहीं है।'
दूसरा व्यवसाय करने की सोच रहे हैं
फिल्म वितरकों को भी समझ नहीं आ रहा है कि कब सिनेमा व्यवसाय सुचारू रूप से चलेगा। फिल्म वितरण से जुड़े अशोक का कहना है- 'डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर वैसे भी बहुत कुछ खत्म हो चुका है। बचे-खुचे जो लोग हैं वे भी दूसरे व्यवसाय में उतरने की सोच रहे हैं। नई फिल्मों में फिलहाल कोई पैसा नहीं लगाना चाह रहा है। सिनेमाघर खुलने चाहिए क्योंकि नई और बड़ी फिल्में कम से कम तीन सप्ताह बाद ही रिलीज होंगी। तब तक दर्शकों का आत्मविश्वास लौटाना जरूरी है। तब तक पुरानी फिल्मों के सहारे ही सिनेमाघर चलेंगे। जहां इतने दिन घाटा खाया है तो कुछ दिन का नुकसान और उठा लेंगे।'
ओटीटी का सहारा
सूर्यवंशी, 83, शमशेरा, बेलबॉटम, बंटी और बबली 2 जैसी कई बड़े बजट की फिल्म रिलीज होने की बाट जोह रही है। ये बड़े निर्माताओं की फिल्म है। वे ब्याज का खर्चा उठा सकते हैं, लेकिन ऐसे ज्यादा प्रोड्यूसर्स नहीं है। कई फिल्म प्रोड्यूसर्स ने ओटीटी प्लेटफॉर्म वालों से हाथ मिला कर अपनी फिल्में बेच दी हैं। जिनमें सलमान खान जैसे सुपरस्टार भी शामिल हैं। इसमें किसी को दोष भी नहीं दिया जा सकता है। आखिर कोई कब तक परिस्थिति सही होने का इंतजार करेगा। साथ ही किसी तरह की कोई मदद भी नहीं मिल रही है। फिल्म इंडस्ट्री को जो भी करना है खुद ही करना है।
यदि भारत में एक महीने का फिल्मों का 400 करोड़ रुपये का व्यवसाय (सिनेमाघरों में) भी मान लिया जाए तो पिछले 15 महीनों में 6000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। अभी भी जो परिस्थितियां हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि सिनेमाघरों की रौनक (यदि पूरे भारत में खुले तो) लौटने में कम से कम एक महीना लगेगा। यदि तीसरी वेव आती है तो 2020 की तरह 2021 में भी फिल्म व्यवसाय का चौपट होना तय है।
ये बात तो सिनेमाघरों की है। इसके साथ ही कई खाने-पीने, पार्किंग जैसे भी कई व्यवसाय जुड़े हैं। टीवी सीरियलों का निर्माण प्रभावित हो रहा है जिससे चैनलों के खर्चे नहीं निकल पा रहे हैं। शूटिंग रूक-रूक कर हो रही है जिसकी मार स्टूडियो झेल रहे हैं। होटल, टैक्सी, प्लेन जैसे व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं। इस नुकसान का तो आंकलन कर पाना ही संभव नहीं है। सारा नुकसान 10 हजार करोड़ रुपये या इससे भी ज्यादा हो सकता है।