बॉलीवुड के फेमस निर्देशक अनिल शर्मा 7 मार्च को अपना जन्मदिन मना रहे हैं, और इस मौके पर हम उनकी उन फिल्मों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने देशभक्ति की भावना को बड़े पर्दे पर बखूबी उतारा। मथुरा, उत्तर प्रदेश में 1955 को जन्मे अनिल शर्मा ने बॉलीवुड को कई ऐसी देशभक्ति से भरी फिल्में दी हैं, जो आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। उनका सिनेमाई सफर कई बेहतरीन पड़ावों से भरा हुआ है, जिसने उन्हें इंडस्ट्री में एक खास पहचान दिलाई।
18 साल की उम्र में शुरू हुआ अनिल शर्मा का फिल्मी सफर
अनिल शर्मा का ताल्लुक एक ऐसे परिवार से रहा है, जहां कला और संस्कृति की गहरी जड़ें थीं। उनके दादा पंडित दलचंद जाने-माने ज्योतिषी थे, और शायद वहीं से उन्हें किस्से-कहानियों का शौक लगा।खालसा कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद, उन्होंने सिर्फ 18 साल की उम्र में बॉलीवुड में एंट्री ले ली। उन्होंने बी.आर. चोपड़ा के असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम शुरू किया और 'पति, पत्नी और वो' (1978) और 'द बर्निंग ट्रेन' (1980) जैसी सुपरहिट फिल्मों में अपना हुनर दिखाया।
21 की उम्र में एक विजनरी डायरेक्टर
सिर्फ 21 साल की उम्र में अनिल शर्मा ने डायरेक्टर के तौर पर अपनी पहली फिल्म श्रद्धांजलि (1981) बनाई, जिसने उनकी दमदार कहानी कहने की कला को सबके सामने रखा। इसके बाद उन्होंने हुकूमत (1987) और तहलका (1992) जैसी हिट फिल्में दीं, जो आज भी दर्शकों को पसंद आती हैं। एक वक्त ऐसा भी था जब अनिल शर्मा का सपना था कि मुंबई में हॉलीवुड के यूनिवर्सल स्टूडियो (लॉस एंजेलिस) जैसी एक बड़ी स्टूडियो बनाए। ये उनकी बड़ी सोच और लार्जर देन लाइफ विजन को दिखाता है, जिससे उन्होंने हमेशा सिनेमा को एक नई ऊंचाई देने की कोशिश की।
प्रियंका चोपड़ा के लिए एक करियर बदलने वाला बड़ा फैसला
प्रियंका चोपड़ा के करियर के मुश्किल दौर में, जब एक कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट की वजह से इंडस्ट्री में उन्हें लेकर शक किया जाने लगा, तब अनिल शर्मा उनके साथ चट्टान की तरह खड़े रहे। उन्होंने प्रियंका को 'द हीरो: लव स्टोरी ऑफ ए स्पाय' (2003) में बनाए रखा और इंडस्ट्री में खुलकर उनका सपोर्ट किया। ये साबित करता है कि अनिल शर्मा नए टैलेंट को निखारने और आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं।
गदर में उनके बेटे की कास्टिंग महज एक इत्तेफाक
गदर: एक प्रेम कथा (2001) में तारा और सकीना के बेटे जीत के किरदार के लिए अनिल शर्मा को सही चाइल्ड एक्टर मिलने में काफी दिक्कत हो रही थी। लंबे समय तक तलाश करने के बाद भी जब कोई परफेक्ट एक्टर नहीं मिला, तब उन्होंने अपने ही बेटे उत्कर्ष शर्मा को देखा और महसूस किया कि वही इस किरदार के लिए सबसे सही रहेगा। हालांकि, शुरुआत में अनिल शर्मा को फेवरिटिज्म (नेपोटिज्म) के आरोपों का डर था, लेकिन जब उत्कर्ष का स्क्रीन टेस्ट हुआ तो प्रोड्यूसर्स भी उनके टैलेंट से प्रभावित हो गए। और फिर, सालों बाद उत्कर्ष ने गदर 2 (2023) में इसी किरदार को दोबारा निभाया, जिससे बॉलीवुड में एक फुल-सर्कल मोमेंट बन गया।
गदर के आइकॉनिक हैंडपंप सीन की असली कहानी
गदर का आइकॉनिक हैंडपंप सीन आज भी लोगों के बीच उतना ही पॉपुलर है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सीन को फिल्म में रखने के लिए अनिल शर्मा को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। जब उन्होंने ये सीन प्लान किया, तो कई लोगों ने उन्हें इसे हटाने की सलाह दी। कई लोगों का मानना था कि ये सीन दर्शकों को पसंद नहीं आएगा, लेकिन अनिल शर्मा अपने फैसले पर अड़े रहे। उन्हें पूरा भरोसा था कि ये सीन लोगों के दिलों में बस जाएगा। उन्होंने अपनी सोच पर कायम रहते हुए इसे फिल्म में रखा, और आज यह सीन हिंदी सिनेमा के सबसे आइकॉनिक पलों में से एक बन चुका है।