24 फरवरी को प्रदर्शित फिल्म 'रंगून' को दर्शक नहीं मिले और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। 80 करोड़ रुपये की लागत वाली इस फिल्म से 50 करोड़ रुपये का घाटा होगा। पेश है वो 5 कारण जिनकी वजह से फिल्म बुरी तरह पिटी।
बजट
62 करोड़ रुपये में यह फिल्म बनाई गई और 80 करोड़ में बेची गई। शाहिद कपूर और सैफ अली खान जैसे सितारों की फिल्म पर 80 करोड़ रुपये लगाना कतई अच्छा निर्णय नहीं कहा जा सकता। शाहिद और सैफ की पिछली कुछ फिल्में लगातार असफल रही हैं। उनकी स्टार वैल्यू लगातार कम होती जा रही है। सैफ और शाहिद ने जब भी हिट फिल्म दी है उसका व्यवसाय ऐतिहासिक नहीं रहा है। शाहिद और सैफ सोलो हीरो के रूप में अब तक सौ करोड़ के क्लेक्शन वाली फिल्म नहीं दे पाए हैं। विशाल भारद्वाज ऐसे निर्देशक नहीं हैं जो हर दर्शक को खुश करने वाली फिल्म बनाएं। लिहाजा रंगून के मामले में बजट का अहम रोल है। यदि यह फिल्म 30 करोड़ रुपये की बनती तो भी फ्लॉप रहती, लेकिन नुकसान इतना नहीं होता।
स्क्रिप्ट
'रंगून' की स्क्रिप्ट बहुत बड़ी खलनायक साबित हुई। न इसमें मनोरंजन था न कोई अनोखी बात। बहुत ही साधारण कहानी थी जिसे साधारण तरीके से पेश किया गया। युद्ध की पृष्ठभूमि पर प्रेम त्रिकोण का ड्रामा दर्शाया गया। न युद्ध वाली बात अपील करती है और न ही प्रेम कहानी। एक तलवार को फिल्म में अति महत्वपूर्ण दिखाया गया जिसके पीछे सारे लोग लगे रहते हैं। तलवार वाला ट्रेक अत्यंत ही कमजोर रहा।
स्टार कास्ट
सैफ अली खान और शाहिद कपूर कभी भी बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ सितारे नहीं माने गए। कुछ सफल फिल्में उन्होंने जरूर दी है, लेकिन इसके लिए अन्य बातें जिम्मेदार रही हैं। फिलहाल दोनों के सितारे गर्दिश में हैं। ऐसे समय दोनों को साथ लेकर इतनी महंगी फिल्म बनाना आग से खेलने के समान था जिसमें सभी के हाथ जल गए। खबर है शाहिद, कंगना और सैफ को सात-सात करोड़ रुपये दिए गए जो कि इनकी स्टार वैल्यू से बहुत ज्यादा है। इन तीनों में इतना दम नहीं है कि अपने बूते पर भीड़ को सिनेमाघर खींच कर लाए। माना कि 'रंगून' अच्छी फिल्म नहीं है, लेकिन तीनों सितारों की जिम्मेदारी थी कि ये अपने दम पर फिल्म को अच्छी ओपनिंग लगाए। पहले दिन आलम यह था कि कई शहरों में दर्शकों के अभाव में शो रद्द किए गए।
ट्रेलर और संगीत
टिकट खिड़की पर फिल्म अच्छी शुरुआत करे इसके लिए अच्छा संगीत और ट्रेलर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फिल्म का ट्रेलर इतना नीरस था कि दर्शकों में फिल्म के प्रति कोई उत्सुकता नहीं जगा पाया। फिल्म के गाने भी पसंद नहीं किए गए। ये गाने फिल्म देखते समय भले ही अच्छे लगते हो, लेकिन हिट नहीं हो पाए।
निर्देशन
विशाल भारद्वाज को कभी भी व्यावसायिक दृष्टि से बड़ी सफलता नहीं मिली। उनकी 'कमीने' को हिट माना जाता है, जबकि हकीकत यह है कि यह फिल्म निर्माता के लिए नुकसान का सौदा साबित हुई थी। 'हैदर' को सीमित बजट में बनाया था और यह फिल्म बमुश्किल अपनी लागत वसूल कर पाई थी। विशाल की फिल्मों की समीक्षक भले ही तारीफ करते हो या सोशल मीडिया पर वाहवाही होती हो, लेकिन आम दर्शक उनकी फिल्मों से दूर है। उनकी फिल्मों में कलात्मकता का पुट रहता है जो कि अच्छी बात है, लेकिन सीमित बजट में फिल्म बनाई जाए तो लागत वसूल हो सकती है। हैदर में विशाल को बड़ा बजट मिला। उन्हें फिल्म के लिए ज्यादा दर्शक चाहिए थे। ज्यादा दर्शक तभी मिलते हैं जब उनकी फिल्म समझने में आसान होती। देविका रानी और हिमांशु राय के प्रसंग कई दर्शकों के सिर के ऊपर से गए। उन्हें फिल्म को मनोरंजक बनाना था, लेकिन उनका प्रस्तुतिकरण आम दर्शक की नजर में उबाऊ था।