अनुभव सिन्हा को आप मना करो, ऐसा हो ही नहीं सकता था। मैं तो एक ऐसे फिल्ममेकर के साथ हमेशा से काम करना चाहती थी। वैसे भी अनुभव के साथ मेरी जान पहचान आज की नहीं है सालों पहले की है जब मैं मिस इंडिया में गई थी। तब मैंने कुछ म्यूजिक वीडियो इनके साथ किए थे। उसके अलावा दो फिल्में हमने साथ में की है। उनकी फिल्म कैश में थी और अब थप्पड़ में हम लोग साथ में आए। हुआ यूं कि थोड़े दिन पहले मैं अनुभव से किसी पार्टी में मिली और मैंने उनसे पूछा कि तुम मुझे कास्ट क्यों नहीं कर रहे हो? क्यों अपनी किसी फिल्म में मुझे मौका नहीं देते? देखिए अब इस फिल्म में हम साथ में है।
यह कहना है दीया मिर्जा का जो 'भीड़' नाम की फिल्म में एक मां के किरदार में नजर आने वाली है। अपनी बातों को जारी रखते हुए दीया ने बताया कि मुझे एक दिन अनुभव सिन्हा की तरफ से फोन आया। फिर अनुभव ने मुझे कहा कि मेरे पास भीड़ नाम की फिल्म में एक ऐसा रोल है जो तुमने अभी तक किया तो नहीं है और मैं इस बारे में पक्का तौर पर नहीं कह सकता कि तुम करना भी चाहोगी या नहीं। मैंने भी कह दिया कि अच्छा तब स्क्रिप्ट तो भेजिए फिर जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी और अपना किरदार देखा तो उसके बाद मेरे होश उड़ गए। कहानी ऐसी है जो आपको अंदर तक हिला कर रख देती हैं?
खुद भी एक मां है और फिल्में भी मां का रोल निभा रही है। क्या काम करने में सहूलियत हुई
मुझे ऐसा लगता है कि मेरे अंदर ममता हमेशा से रही है। आप मेरी वेब सीरीज काफिर की बात कर लीजिए, उसमें भी मैंने मां का किरदार निभाया, लेकिन मैं उस समय मां नहीं थी। मां में अब बनी हूं, लेकिन हां मुझे मां बनने के बाद बहुत सारी चीजें समझ में आने लगी वो भी ज्यादा गहराई के साथ। जैसे इस रोल में जब मैं शूट करने के लिए जाती है तब मेरा बेटा को 6 महीने का हुआ करता था उसको छोड़ कर मैं शूटिंग पर जाती थी और मुझे उसकी याद आती थी, मुझे लगता था कि मुझे मेरे बच्चे के साथ रहना चाहिए।
लेकिन यहां पर मैं यह भी कहूंगी कि ममता वाली बात जो है, वह किसी हर किसी में होती है। किसी में दिखाई दे जाती है, किसी किसी में नहीं दिखती है। मुझे याद है काफिर के समय जब मैं इंटरव्यू दे रही थी तो मैंने कहा था कि जरूरी नहीं है आपमें मां की भावना हो उसके लिए आपको एक बच्चे को जन्म देना ही होगा। अब जब काफिर में प्यारी सी बच्ची के साथ में काम कर रही थी, उसे देखकर मुझे हमेशा लगता है कि तुम मेरी बच्ची हो।
आमतौर पर देखा गया है कि सेलिब्रिटीज को आम लोगों से इतना संपर्क नहीं हो पाता है। जब आज भीड़ फिल्म कर लेने के बाद आप भीड़ को देखते हैं तो नजरिया में कितना बदलाव आता है?
बदलाव निश्चित आता है, लेकिन ऐसा नहीं था कि मैंने कभी आम लोगों को देखा नहीं है। उनके लिए मुझे कहीं कोई सहानुभूति नहीं रही। बहुत ज्यादा तेज गर्मी हो, तपती दोपहरी हो तो मुझे कंस्ट्रक्शन पर काम करते हुए मजदूरों से सहानुभूति होती थी मुझे। धूप में घूम रहे बच्चों को देखकर बुरा लगता था। और हां, जब से लॉकडाउन हुआ है तब से हमें सोचने का मौका मिला है। कि हमारी जिंदगी उन अनगिनत लोगों से भी जुड़ी हुई है जिन्हें हम जानते भी नहीं, इनकी शक्ल भी नहीं हम जानते हो जो इस दुनिया में है भी हम तो ये भी नहीं जानते हैं। लेकिन यह अनजाने लोग कैसे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को बदल सकते हैं और उसमें दखल रखते हैं, यह जरूर लॉकडाउन ने हमें सिखा दिया।
दीया आपका लॉकडाउन का समय कैसा गुजरा?
मेरे लिए लॉकडाउन के दौरान जीवन में बहुत बड़े-बड़े बदलाव आ रहे थे। जब पहला लॉकडाउन लगा तब मैं घर पर ही थी और बहुत आभारी हूं कि यह समय मेरे जीवन में आया क्योंकि यह वह समय था जब मैं अपने पति से मिल सकी, वरना वो जिस तरीके का काम करते हैं। जितना समय वह घर के बाहर काम में गुजारते हैं। उनका और मेरा कहीं कोई मेल ही नहीं था। लॉक डाउन की वजह से हम दोनों के रास्ते टकरा गए और जिंदगी में नई करवट ली।
यह पहले लॉकडाउन की बात करती हूं। बहुत आभारी भी हूं उस समय की। दूसरे लॉकडाउन में मुझे मेरा बेटा मिला। बहुत खुशी है इस पूरे समय के लिए। जब बात करती हूं मेरी निजी तौर पर कैसा रहा लॉकडाउन तो बहुत स्ट्रगल सभी ने किया तो वहीं स्ट्रगल मैंने भी किया क्योंकि मैं जिस हॉस्पिटल में थी, वहां पर एमआरआई की सुविधा नहीं थी। अगर वह सुविधा होती और कुछ चीजें मालूम पड़ जाती तो शायद मेरे बच्चे की डिलीवरी 6 महीने में ही नहीं हो जाती। यह समय जरा मुश्किल भरा रहा मेरे लिए। फिर 3 महीने तक मेरे बच्चे को एनआईसीयू में रखा गया जहां में हफ्ते में एक ही दिन उसे जाकर देख सकती थी। पर कुल जमा कहूं तो इतना कहूंगी कि लॉक डाउन का समय वह समय था जहां हम सभी असहाय थे।
हाल ही में देश ने ऑस्कर जीता है। कैसा लगता है
बहुत अच्छा लगता है। यहां पर मैं खासतौर से बात करना चाहूंगी। इलेक्शन फेस पर कि मुझे बहुत अच्छा लगा कि उसको नॉमिनेशन मिला और उससे भी ज्यादा आभार व्यक्त करती हूं कि इसने जीत देखी। मुझे बड़ा अच्छा लगा। वन्य जीव और वन्य जीवन के संरक्षण के लिए करती आई हूं। जब ऐसी कोई फिल्म यह डॉक्यूमेंट्री ऑस्कर के लेवल पर जाती है तो अच्छा लगता है। ऐसा लगता है कि संरक्षण एक बहुत बड़ा मुद्दा बन कर सामने आता है और फिर संरक्षण के लिए जो कहानी बताई गई है जिसे स्टोरी टेलिंग कहती है, उसे भी लोग अपना रहे हैं।
अब देखो ना दो महिलाओं ने जिस तरीके से नए प्रतिमान स्थापित किए हैं उसे देखकर अच्छा ही लगता है। तोड़फोड़ मचा कर रख दिया अपनी एक प्यारी सी कृति के जरिए। यह बात थी फिर दिमाग में आती है कि उस कर्ज को भी अब जो भी लगने लग गया है कि साउथ एशिया की बहुत सारी कहानी है जिन्हें ऑस्कर में जगह देना बहुत जरूरी हो गया है। हां, अब यह बात अलग है कि इन कहानियों में मैं कहां फिट बैठती हूं मुझे नहीं मालूम क्योंकि जब ब्राउन कहा जाता है तो मैं उस पैमाने पर नहीं बैठती।
हमने सुना है कि आप को अपने उजले और खूबसूरत रंग रूप की वजह से कई बार फिल्मों में रिजेक्शन का सामना करना पड़ा।
जी हां ऐसा हुआ है। मैं अपने करियर में कई विचारों को जन्म देने वाली फिल्म और सीरियस फिल्मों में काम करना चाहते थी लेकिन जब उस तरीके के लोगों से मैं बात करती थी तो वह मुझे कहते थे कि तुम बहुत सुंदर दिखती हो और तुम्हारा चेहरा मेनस्ट्रीम कमर्शियल फिल्म्स के लिए बना है। मुझे बहुत बार लगता था कि मैं ऐसी फिल्मों में काम कर सकती हूं। लेकिन याद है कई बार निर्देशक और निर्माता मुझे कह देते कि तुम बहुत ज्यादा ही सुंदर दिखती हो। मुझे लगता है कि कई बार आप जैसे दिखते हैं। उसकी वजह से कई सारे कैरेक्टर्स आप तक पहुंच ही नहीं पाते हैं बहुत कम जगह बचती है जहां पर आप काम कर सके।