युवा बॉलीवुड स्टार भूमि पेडनेकर ने ये दिखाया है कि उनका झुकाव सामाजिक मनोरंजन करने वाली फिल्मों की तरफ है जो बॉक्स ऑफिस पर भी अच्छा प्रदर्शन करती हैं। इस वर्सेटाइल अभिनेत्री ने, टॉयलेट, शुभ मंगल सावधान, बाला, दम लगा के हईशा, डॉली किट्टी और वो चमके सितारे, लस्ट स्टोरीज आदि जैसी फिल्मों में अपने बेहतरीन परफार्मेंस से पर्दे पर महिलाओं को वास्तविक प्रतिनिधित्व दिलाया है। भूमि को लगता है कि इंडस्ट्री अभी भी महिलाओं को लेकर स्टीरियोटाइप्ड है और इन सब बातों से वह काफी प्रभावित होती हैं।
संतुलन जरूरी
"मैं अधिकांश ऐसी फिल्में चुनती हूं जिनमें सशक्त सामाजिक संदेश छिपा होता है लेकिन साथ ही मैं ऐसे प्रोजेक्ट्स को चुनने के बारे में सोचती हूं जो कॉमर्शियली भी अच्छा करे। फिल्मों का संदेश और मकसद लोगों तक पहुंचे इसके लिए यह जरूरी है कि अधिक से अधिक लोग इन फिल्मों को देखें। मैं दोनों के बीच संतुलन वाली फिल्में करने की कोशिश कर रही हूँ ।”
टॉयलेट ने किया अचंभित
'टॉयलेट मेरी सबसे कॉमर्शियल के साथ-साथ सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्मों में से एक है। लेकिन फिल्म की जैसी पहुंच थी या जिस तरह का उसका प्रभाव था, उसको देखकर मैं अचंभित थी। फ़िल्म रिलीज होने के बाद, ऐसे कैंपेन चलाए गए, जिनमें मां-बाप ये कहते हुए सबसे आगे थे, कि शौचालय नहीं, तो दुल्हन नहीं। यह वास्तव में गज़ब का अनुभव था।”
“आयुष्मान और मैंने एक साथ - शुभ मंगल सावधान की जो ह्यूमन सेक्सुअलिटी जैसे विषय को उठाती है और यह एक ऐसी चीज है जिस पर कभी बात नहीं होती। मैंने लस्ट स्टोरीज़ की, जो लैंगिक भेद, वर्ग विभाजन और वुमन सेक्सुअलिटी के बारे में बात करती है, ये ऐसे विषय हैं जिनके बारे में बिल्कुल भी बात नहीं की जाती। महिलाओं को ऐसे जीव के रूप में दिखाया जाता है जिनकी कोई इच्छाएँ नहीं होतीं - कोई महत्वाकांक्षा या कोई यौन इच्छाएँ नहीं होतीं और इसी चीज को मैं फिर से बदलना चाहती हूँ। ”
वास्तविक महिलाएं
भूमि ऐसी फिल्में करना चाहती हैं जो सिनेमा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कहानी को बदल दे। वे कहती हैं, “अपने सिनेमा के माध्यम से, मैं वास्तविक महिलाओं को दिखाने की कोशिश करती हूं। सिनेमा में महिलाओं को अच्छे प्रतिनिधित्व की जरूरत है। मैं देखती हूं कि महिलाओं को स्क्रीन पर सही रिप्रेजेंटेशन नहीं मिलता। इससे मैं बहुत प्रभावित होती हूँ।”