मैं अपने आपको बहुत खुशकिस्मत मानता हूं क्योंकि मैं 'हैलो चार्ली' हिस्सा हूं। आप इस फिल्म में देखेंगे तो ट्रेलर से ही समझ में आता है कि फिल्म में लोग बहुत कम है, लेकिन जितने भी लोग हैं जितने भी कैरेक्टर जिन्होंने प्ले किए हैं, बड़ी ही मेहनत के साथ किया और इस बात को कहते हुए मुझे खुशी इसलिए भी होती है क्योंकि शुरुआत से लेकर अंत तक आप फिल्म में सिर्फ हंसते रहेंगे।
इसमें बच्चों को भी मजा आएगा बूढ़ों को भी मजा आएगा। हर उम्र के लोगों को मजा आएगा चाहे वह 40 साल का हो गया हो या 50 साल का हो। एक और बात बताता हूं इस फिल्म में जितना काम कितनी मेहनत और लगन से कलाकारों ने काम किया है उससे दोगुनी मेहनत इसके टेक्नीशियन ने की है। इसलिए फिल्म मेरे लिए खास है, मुझे लगता है मैं बहुत ही खुशकिस्मत हूं जो ऐसी फिल्म का हिस्सा बन सका। यह कहना है राजपाल यादव का, जो कि हैलो चार्ली के जरिए लोगों के सामने आ रहे हैं। राजपाल ने अपनी इस फिल्म के बारे में वेबदुनिया से खास बातचीत की।
फिल्म के ट्रेलर में हमने देखा कि गोरिल्ला गायब हो गया है और आप के पहनावे को देखकर लगता है कि आप शायद फॉरेस्ट ऑफिसर हैं।
फिल्म में मैं और मेरा अर्दली टोटल एक इंसान बनते हैं क्योंकि हम इतने छोटे छोटे कद के हैं। हमें मिलाकर एक पूरा शख्स बनता है तो मेरे मेरे जंगल में 4 आदमी के बराबर गोरिल्ला ही गायब हो सकता है और कुछ भी गायब होने के लिए नहीं बचा है। और राजपाल यादव होगा तो ऐसा ही कुछ होगा ना?
फिल्मों में आपने कई बार देखा होगा जब भी बात आती है कि चलिए स्पेलिंग बताइए तो आम लोगों से लंदन या भारत की स्पेलिंग पूछ ली जाएगी लेकिन जैसा कि राजपाल यादव का नाम आएगा। वैसे ही हो चकोस्लोवाकिया की स्पेलिंग पूछ ली जाती है। पहले तो मुझे इस देश का नाम बोलते आना चाहिए और उसके बाद फिर मुझे स्पेलिंग बताना पड़ेगी तो अब आप सोचिए राजपाल यादव होगा तो इतना आसान तो कुछ भी नहीं होने वाला है तो हां गोरिल्ला गायब हो गया है और वही ढूंढना है मुझको।
अभी पिछले ही महीने आपका जन्मदिन था, आप 50 साल के हो गए हैं।
जन्मदिन था, 50 साल का हुआ तो मैंने अपना वह एक बोर्ड बदल दिया। अब मैं वापस से जन्मा हूं और मेरी उम्र जीरो से शुरू हुई है। अभी तक हाफ सेंचुरी हाफ सेंचुरी के बाद अब फुल सेंचुरी के लिए मैं एक और 50 बनाने वाला हूं, लेकिन उम्र मेरी अभी भी 0 साल से शुरू होने वाली है।
अच्छा तो यह गणित तो मुश्किल है, मेरे लिए समझना लेकिन चलिए इतना ही बता दीजिए कि क्या अपने 50 साल में आप खुश हैं अपने करियर को लेकर।
करियर क्या होता है। हमको तो बचपन से मालूम ही नहीं। यह करियर की बात वह समझे जैसे करियर का असल अर्थ समझ में आता है। मैं तो मनोरंजन करने के लिए आया अभिनेता हूं। हर वह काम करूंगा जिससे लोग देखकर खुश हो जाएं और उनका मनोरंजन होता हो।
राजपाल आगे बताते हैं, मुझे नहीं मालूम करियर कैसा होता है, कैसे शुरू होता है। बचपन से लेकर हमें आटा दाल सिखाया गया है। उसके बाद थोड़े बड़े हुए तो नुक्कड़ नाटक किया फिर थिएटर करना शुरू किया। कुछ साल तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में रहा 5 साल तक वहां पर लगा रहा उसके बाद फिर टेलीविजन आया।
टेलीविजन में शुरुआत की जंगल और शूल जैसी फिल्मों के जरिए फिल्मों में आया और फिर उसके बाद एक-एक करके कमर्शियल सिनेमा में चलता चला गया तो आज भी करियर अच्छा है या बुरा है मैं इसकी बात कह नहीं सकता। मैं तो ऐसा हूं कि जो आटा और आर्ट दोनों का मजा लेते हुए चलता हूं। जिंदगी का हर पल जीना चाहता हूं और उसी बात पर विश्वास रखता हूं।
मैं तो करियर के नाम पर इतना ही सोच लेता हूं कि पिछले 20 साल से हम आपस में जुड़े हुए हैं। मैं फिल्म में काम करता हूं तुम फिल्मों के बारे में पूछ लेती हो तो यही रिश्ता, निस्वार्थ रिश्ता है। तुम भी काम कर रहीं हम भी काम कर रहे हैं और एक दूसरे से कहीं कोई मतलब का रिश्ता नहीं है। बस आपस में बात कर लेते हैं, इंटरव्यु में कभी गोरिल्ला की बात पर हंस लेते हैं। कभी फिल्मों की बातें हो जाती है। यही मेरा करियर है। मैं तो इसी बात का मजा लेता हूं कि हम आपस में निस्वार्थ भाव से जुड़ते हैं। हम निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। हम अपने आप पर विश्वास रखते हैं और आप में विश्वास बढ़ता चला जाता है।
आपके लिए सिनेमा क्या है?
एक बात बताता हूं बचपन में मैंने एक बार लखनऊ में धोखे से चार्ली चैप्लिन की फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर देख ली थी और उस समय मेरी आंखें खुली की खुली रह गई। जो कि छोटे शहरों में हमको यह लगता था कि सिनेमा बड़ा मेकअप, बड़े कॉस्ट्यूम्स, बढ़ा सेट और ग्लैमर है। जब चार्ली चैप्लिन की फिल्म देखी तो लगा सिनेमा शो बाजी तो बिल्कुल भी नहीं होता है। सिनेमा एक बॉडी लैंग्वेज है जो बॉडी लैंग्वेज आपको संवाद करना सिखाती है। उस संवाद की जो हवा बहती है वह आपके दिल से और आपके शरीर से निकलकर सामने बैठे दर्शकों तक पहुंचती है।
असल में गोरिल्ला की कहानी को बयां किया गया है। क्या आपका कोई फेवरेट पशु है या पेट एनिमल अगर आपने कहीं किसी को पाला है?
नहीं। मुंबई में जिस तरीके से हमारा काम चलता रहता है, बाहर जाते रहते हैं किसी एक प्राणी को घर पर रखना उसकी जिम्मेदारी उठाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है, लेकिन इतना बताता हूं हमारे घर बचपन में एक घोड़ी हुआ करती थी। तो जब भी मैं गांव जाता था और उसे मिलता था, उसे दो रोटियां खिलाता था। वह लगातार तीन-चार मिनट तक मेरे गले लग कर रोया करती थी। आंसू बहाया करती थी। जो घोड़े की संवेदनशीलता है, मुझे याद रखती है हमेशा।
मुझे उसका यह इमोशन बहुत दिल को भा जाता है। गांव में ही जब मैं जाता हूं और लोगों के बीच में बैठना हो तो जो आवारा कुत्ते होते हैं, वह मेरे आस-पास घेरा बना कर बैठ जाते हैं। जब तक मैं हूं चाहे वह दो दिन हो या चार दिन हो तब से लेकर जब तक मैं अपनी गाड़ी से वापस मुंबई के लिए नहीं रवाना हो जाता वह मेरे आसपास घूमते रहते हैं और चुपचाप बैठे रहते हैं।
घोड़े की संवेदनशीलता और कुत्ते की वफादारी मुझे पसंद है। घोड़े की क्वालिटी जो मुझे पसंद आती है वह उसकी अश्वशक्ति। बड़ी बड़ी जगह हॉर्स पावर से शक्ति को मापा जाता है। आप बस उस पर काम पर लगा दो और वह भागता रहेगा। तेजी के साथ तो यह दो पशु मुझे बहुत पसंद आते हैं।