नहीं, हुमा की शादी का कोई खयाल हुमा की मम्मी के दिल में नहीं आया है। बस, उन्हें इंसान के तौर पर हुमा की नई फिल्म 'जॉली एलएलबी' के को-स्टार अक्षय पसंद आ गए हैं।
हुमा बताती हैं कि मेरी मम्मी को अक्षय की सादगी मन को भा गई है। हमारी 'जॉली एलएलबी' की शूटिंग लखनऊ में चल रही थी तो मेरी मां भी वहीं आ गईं और उनके हिसाब से तो दुनिया के सबसे बेहतरीन इंसान अक्षय ही हैं। वे बहुत ही नम्रता के साथ पेश आए। वे किसी भी महिला के लिए कुर्सी भी खींचकर उन्हें पहले बैठाएंगे। अक्षय को ऐसा कुछ भी करने की जरूरत नहीं है लेकिन आप ऐसा कर रहे हो, तो एक बड़े स्टार होने के बाद भी वो बहुत बड़ी बात है। उन्होंने उस दिन खाना भी मेरे और मेरी मम्मी के साथ ही में खाया।
हुमा इन दिनों अपनी अगली फिल्म 'जॉली एलएलबी' के प्रमोशन में मसरुफ हैं। फिल्म में वे एक बड़ी ही दबंग पत्नी का रोल कर रही हैं, जो समय आने पर अपने पति जॉली के लिए इमोशनल सपोर्ट का काम करती हैं।
हुमा कहती हैं कि उन्हें अक्षय की कई खूबियों को जानने का मौका मिला है, जैसे कि अक्षय एक साल में 4 फिल्में कर लेते हैं और हर बात मैनेज करते हैं। सेट पर सब उन्हें पसंद भी खूब करते हैं। वे इतने अनुशासित हैं कि अपना काम करके शाम 5 बजे तक आपको फ्री कर देते हैं। बड़ा अच्छा लगता है कि जब अब शूट पर से इतनी जल्दी फ्री हो जाते हैं तो फिर आप जिम जा सकते हैं, शॉपिंग कर सकते हैं और अपने घर वालों के साथ टाइम बिता सकते हैं।
ये तो हुई अक्षय की बात, आप अरशद और नसीर जैसे कलाकारों के साथ काम कर चुकी हैं। वे कैसे लगे आपको?
अरशद के बारे में इतना कह सकती हूं कि वह हर समय सिर्फ शैतानी करता रहता है और इसमें कोई भी मिलावट नहीं रहती। वह कभी सीरियस नहीं रहता है और अगर कोई संजीदगी वाली बात हुई तो वह चुटकुला सुना कर सबको हंसा देगा। मुझे अरशद से ज्यादा उनकी पत्नी मारिया पसंद हैं। बहुत अच्छी इंसान हैं वो। नसीर सर के साथ तो जब मैं पहले मिली थी तो बहुत डर गई थी। वैसे भी 'डेढ़ इश्कियां' में कई सारे उर्दू के डायलॉग्स थे, तो मुझे लगा कि कहीं किसी डायलॉग में मैंने नुक्ते इधर-उधर लगा दिए तो मुझे एक टपली पड़ जाएगी लेकिन वे बड़े ही मस्त किस्म के शख्स लगे। हमने कई सारे जोक्स सुनाए। उनके साथ काम करना बड़ा आसान लगा मुझे।
क्या ये 'जॉली एलएलबी' अपनी पुरानी फिल्म 'जॉली एलएलबी' जैसी ही होगी?
मेरे हिसाब से तो ऐसा नहीं है। दोनों बहुत ही अलग फिल्में हैं। पहली फिल्म दिल्ली में बनी है तो ये वाली लखनऊ की फिल्म है। दोनों में केस अलग हैं। उनकी मस्ती करने का तरीका अलग है। दोनों की जोक मारने की आदत भी अलग है। दोनों अलग ही फिल्में हैं, हालांकि मैंने अरशद की जॉली भी देखी है और वो बहुत ही मजेदार फिल्म है।
आप इस इंडस्ट्री से नहीं हैं तो क्या कभी आपको वो 'बाहर वाली लड़की' होने जैसी बातों का सामना करना पड़ता है?
मुझे तो हर जगह आजकल बाहर वाली लड़की जैसा कॉम्प्लेक्स हो जाता है। मैं दिल्ली की हूं लेकिन मुझे दिल्ली मैं भी ऐसी फीलिंग आ जाती है। कई बार तो मुझे ये भी समझ में नहीं आता कि वे लोग क्या बोल रहे हैं? वे कई बार ऐसी बातें करते हैं जिन्हें सुनकर मुझे लगता है कि मुझे तो ये सब समझ ही नहीं आने वाला है।